हिमाचल प्रदेश कुल्लू जिला की शैंशर कोठी के खाइण गांव में दियाली मेले में अद्धभुत परम्परा का नजारा देखने को मिला। कुल्लू जिला में विभिन्न स्थानों पर पहाड़ी दियाली में अश्लील गाली गलौज व्यंग्यात्मक तरीके से होता है लेकिन शेंशर के दियाली (दीपावली) मेले में हॉर्न यानी हिरण स्वांग नृत्य से मनोरंजन हुआ। वहीं रातभर कुल्लू नाटी भी वाद्य यंत्रों की थाप होती रही। सुबह 4 बजे का आसपास खेत में घास जलाकर दियाली की परम्परा का निर्वहन किया गया। कुल्लू नाटी और हिरण स्वांग
दियाली मेले के दौरान रात भर कुल्लवी नाटी डाली गई, जिसमें स्थानीय लोगों ने भाग लिया। सुबह के समय खेत में घास जलाकर दियाली मनाई। जिसमें हिरण स्वांग का अद्भुत दृश्य देखने को मिला। हिरण स्वांग में विभिन्न पात्रों ने मुखौटे लगाकर नृत्य किया। दर्शकों ने खूब मनोरंजन करने के साथ ही उक्त देवी-देवताओं का आशीर्वाद भी लिया। मनु महाराज ने किया था दियाली का शुभारंभ
दियाली का शुभारंभ स्थानीय देवता मनु महाराज, माता शतरूपा व कशु नारायण के भव्य मिलन से हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मनु शतरूपा ने धरती पर सृष्टि का विस्तार महाप्रलय के बाद किया। यह 7वें मनु माने जाते हैं। इससे पहले भृगु ऋषि के पास मनु की उपाधि थी। क्या है हिरण स्वांग?
हरण लोकनाट्य हिमाचल के सर्वाधिक क्षेत्र में प्रदर्शित होता है। चम्बा में हरणेतर, किन्नौर में होरिंगफो, कुल्लू में हॉर्न भी कहते हैं। कुल्लू दशहरा में हिरण स्वांग नृत्य लंका दहन के दिन होता है। इसमें दो पक्षों का नृत्य और स्वांग होता है। नृत्य में तीन पात्र हरण, बूढ़ी और कान्हा चित्रा पट्टू डालकर हिरण बनते हैं और दाएं-बाएं चलकर नृत्य करते हैं। यह नृत्य 15 पौष, कुछ स्थानों पर माघी त्योहार, कई स्थानों पर होली तक रातभर आयोजित किया जाता है। हिरण खलियानों के बीच में धीरे-धीरे नाचती है। ढोल नगारा, काहल, रणसिंगा, शहनाई, बांसुरी और भाणा वाद्य यंत्रों के संगीत पर हरण, बूढ़ी और कान्हा बारह प्रकार के वशिष्ठ नृत्य करते हैं। यह नृत्य घर-घर जाकर खोली में भी किया जाता है। लोग उनको अनाज और पैसे भी भेंट करते हैं। हिमाचल प्रदेश कुल्लू जिला की शैंशर कोठी के खाइण गांव में दियाली मेले में अद्धभुत परम्परा का नजारा देखने को मिला। कुल्लू जिला में विभिन्न स्थानों पर पहाड़ी दियाली में अश्लील गाली गलौज व्यंग्यात्मक तरीके से होता है लेकिन शेंशर के दियाली (दीपावली) मेले में हॉर्न यानी हिरण स्वांग नृत्य से मनोरंजन हुआ। वहीं रातभर कुल्लू नाटी भी वाद्य यंत्रों की थाप होती रही। सुबह 4 बजे का आसपास खेत में घास जलाकर दियाली की परम्परा का निर्वहन किया गया। कुल्लू नाटी और हिरण स्वांग
दियाली मेले के दौरान रात भर कुल्लवी नाटी डाली गई, जिसमें स्थानीय लोगों ने भाग लिया। सुबह के समय खेत में घास जलाकर दियाली मनाई। जिसमें हिरण स्वांग का अद्भुत दृश्य देखने को मिला। हिरण स्वांग में विभिन्न पात्रों ने मुखौटे लगाकर नृत्य किया। दर्शकों ने खूब मनोरंजन करने के साथ ही उक्त देवी-देवताओं का आशीर्वाद भी लिया। मनु महाराज ने किया था दियाली का शुभारंभ
दियाली का शुभारंभ स्थानीय देवता मनु महाराज, माता शतरूपा व कशु नारायण के भव्य मिलन से हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मनु शतरूपा ने धरती पर सृष्टि का विस्तार महाप्रलय के बाद किया। यह 7वें मनु माने जाते हैं। इससे पहले भृगु ऋषि के पास मनु की उपाधि थी। क्या है हिरण स्वांग?
हरण लोकनाट्य हिमाचल के सर्वाधिक क्षेत्र में प्रदर्शित होता है। चम्बा में हरणेतर, किन्नौर में होरिंगफो, कुल्लू में हॉर्न भी कहते हैं। कुल्लू दशहरा में हिरण स्वांग नृत्य लंका दहन के दिन होता है। इसमें दो पक्षों का नृत्य और स्वांग होता है। नृत्य में तीन पात्र हरण, बूढ़ी और कान्हा चित्रा पट्टू डालकर हिरण बनते हैं और दाएं-बाएं चलकर नृत्य करते हैं। यह नृत्य 15 पौष, कुछ स्थानों पर माघी त्योहार, कई स्थानों पर होली तक रातभर आयोजित किया जाता है। हिरण खलियानों के बीच में धीरे-धीरे नाचती है। ढोल नगारा, काहल, रणसिंगा, शहनाई, बांसुरी और भाणा वाद्य यंत्रों के संगीत पर हरण, बूढ़ी और कान्हा बारह प्रकार के वशिष्ठ नृत्य करते हैं। यह नृत्य घर-घर जाकर खोली में भी किया जाता है। लोग उनको अनाज और पैसे भी भेंट करते हैं। हिमाचल | दैनिक भास्कर