क्या डीएम से विधायक इतना कमजोर कि पैर छूने पड़ें?:पूर्व सांसद बृजभूषण के बयान से उठे सवाल; DM-MLA में कौन पावरफुल

क्या डीएम से विधायक इतना कमजोर कि पैर छूने पड़ें?:पूर्व सांसद बृजभूषण के बयान से उठे सवाल; DM-MLA में कौन पावरफुल

यूपी के अफसर नेताओं की नहीं सुनते। भाजपा नेताओं का यह दर्द अक्सर सामने आता रहा है। अब भाजपा के पूर्व सांसद बृजभूषण सिंह ने अपने बयान से इसे और तूल दे दिया है। बृजभूषण ने यहां तक कह डाला कि विधायकों की औकात जीरो हो गई है। काम निकलवाने के लिए डीएम के पैर छूकर नमस्ते करते हैं। बृजभूषण का पूरा बयान क्या है? उन्होंने ऐसा क्यों कहा? विधायक और डीएम के पावर क्या होते हैं? भास्कर एक्सप्लेनर में इस सवालों के जवाब पढ़िए… सवाल 1- पूर्व भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने क्या कहा? जवाब- भाजपा के पूर्व सांसद बृजभूषण सिंह ने एक पॉडकास्ट में कहा- आज विधायकों की औकात जीरो हो गई है। वह काम निकलवाने के लिए डीएम के पैर छूकर नमस्ते करते हैं। उनकी मर्जी होगी तो काम होगा, नहीं तो नहीं होगा। इस विषय पर ज्यादा नहीं बोलूंगा, नहीं तो आग लग जाएगी। सारा पावर एक जगह सिमट गया है। अगर वह पावर अच्छा काम करेगा तो सबकी नैया पार हो जाएगी। अगर नहीं किया, तो सभी फेल हो जाएंगे। बृजभूषण सिंह ने कहा- राजनीति का तरीका बदल गया है। अब मेरे फोन का भी किसी अधिकारी पर असर नहीं है। आम आदमी तो हमेशा पिसता है। लेकिन जो चल रहा है, उसे चलने देना चाहिए। आज विधायक की हैसियत ग्राम प्रधान से भी नीचे हो गई है। मैं सभी जगह की बात नहीं कर रहा, लेकिन कई जगह हालात ऐसे ही हैं। सरकार बने 2 साल हो गए हैं। विधायक जनता के बीच किस उपलब्धि के साथ जाएंगे? इसका उत्तर न मेरे पास है, न ही किसी विधायक के पास। यह पूरी तरह उत्तर प्रदेश सरकार पर निर्भर है। इसमें विधायकों की कोई गलती नहीं है। विधायक केवल इतना कर सकते हैं कि अपने दरवाजे पर लोगों के सुख-दुख में शामिल हों। सवाल 2- डीएम के पास क्या पावर होती है? जवाब- डीएम भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) से आते हैं। एक तरह से जिले के सबसे बड़े अधिकारी होते हैं। सभी विभाग के मुखिया उसको रिपोर्ट करते हैं। वह किसी भी विभाग का निरीक्षण कर सकता है, विभाग की समीक्षा कर सकता है। वह किसी काम के लिए सभी अफसरों को डायरेक्ट आदेश दे सकता है। लापरवाह अफसर और कर्मचारियों को सस्पेंड कर सकता है। कुछ बड़े अफसरों को सस्पेंड करने के लिए सरकार को लिख सकता है। सवाल 3- विधायकों के पास क्या पावर होती है? जवाब- पूर्व संसदीय कार्य मंत्री और अंबेडकर नगर से सांसद लालजी वर्मा के मुताबिक, संविधान में विधायक के पास केवल सदन के अंदर अधिकार है। वह विभिन्न नियमों के तहत अपनी बात रख सकता है। लेकिन, आमतौर पर सत्ता पक्ष के विधायक का रोल केवल सदन में बहुमत साबित करने और विधेयक पारित कराने तक है। विपक्ष के विधायक तो फिर भी सरकार के खिलाफ सदन में बोल बाते हैं। विधायक क्षेत्र में सरकार की योजनाओं, स्कूल, कॉलेज और अस्पताल में व्यवस्थाओं का निरीक्षण कर सकता है। लेकिन, कार्रवाई करने का उसे कोई अधिकार नहीं। वह निरीक्षण में मिली खामियों को दूर करने के लिए शासन को पत्र लिख सकता है। अधिकारी उसके पत्र का जवाब दे या नहीं दें। उसकी शिकायत पर कार्रवाई करें या न करें, इसके लिए कोई बाध्यता नहीं। विधानसभा क्षेत्र विकास निधि में भी वह केवल अपने क्षेत्र में विकास कार्य के लिए प्रस्ताव दे सकता है। अगर प्रस्ताव नियमों के दायरे में हुआ, तो मुख्य विकास अधिकारी स्वीकृत करेंगे। अगर जरा भी दाएं-बाएं हुआ, तो उसे भी अस्वीकृत कर सकते हैं। सवाल 4- विधायक-डीएम में सैलरी किसकी ज्यादा है? जवाब- अगर बेसिक सैलरी की बात करें, तो डीएम विधायक पर भारी पड़ते हैं। डीएम की बेसिक सैलरी 56 हजार 100 होती है, जबकि विधायक की 25 हजार रुपए। लेकिन, जब भत्तों की बात की जाए तो विधायक डीएम पर भारी पड़ते हैं। विधायकों को कई तरह के भत्ते मिलते हैं। अगर किसी समिति में शामिल हैं, तो उसे अतिरिक्त भत्ता मिलता है। सवाल 5- विधायक और DM में किसके पास ज्यादा पावर? जवाब- यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन के मुताबिक, आमतौर पर विधायक किसी भी अधिकारी से मिलने का समय लेकर ही जाता है। ऐसे में मिन्नतें करने जैसी बात सामने नहीं आती। मेरठ के पिठौर से सपा विधायक शाहिद मंजूर कहते हैं- विधायक का प्रोटोकॉल मुख्य सचिव के बराबर होता है। यूपी सरकार ने अफसरों को निर्देशित किया है कि अगर विधायक मिलने आएं तो खड़े होकर स्वागत करें। काम होने योग्य है तभी करें। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित के मुताबिक, जिले में डीएम सबसे बड़ा अफसर है। उसके पास विधायक से ज्यादा पावर है। वह गलती पर किसी अफसर-कर्मचारी को सीधे सस्पेंड कर सकता है। जबकि विधायक के पास यह पावर नहीं। विधायक किसी अफसर को सीधे काम के लिए आदेश नहीं दे सकते, जबकि डीएम दे सकता है। विधायक डीएम को किसी काम के लिए आदेश नहीं दे सकते। इसको ऐसे समझें- अगर विधायक को अपने समर्थक के लिए शस्त्र लाइसेंस चाहिए तो वह सीधे डीएम को आदेश नहीं दे सकते। डीएम की मर्जी पर निर्भर करता है कि वह मंजूरी दे या न दे। सवाल 6: विधायकों के पास क्या विशेषाधिकार है? पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन के मुताबिक, विधायक दुर्व्यवहार होने पर सदन में विशेषाधिकार का प्रयोग कर सकते हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित कहते हैं- विधायक के पास कोई संवैधानिक अधिकार नहीं। उसके पास केवल सदन के अंदर तक ही अधिकार है। उसमें भी सबसे बड़ा अधिकार है फ्रीडम ऑफ स्पीच। कोई विधायक सदन में किसी को कुछ कह दे, तो उस पर मुकदमा या कार्रवाई नहीं हो सकती। कोई भी अधिकारी किसी विधायक को सदन में बात रखने से रोकता है या प्रताड़ित करता है, विधायक उसके खिलाफ विशेषाधिकार हनन के तहत याचिका दायर कर सकते हैं। उस पर सुनवाई होती है। सुनवाई में अगर आरोप सही पाया जाता है, तो संबंधित को दंडित भी किया जा सकता है। सवाल 7- क्या पहले भी ऐसी बातें सामने आई हैं? जवाब- सदन में कई बार विधायक यह बात उठा चुके हैं कि अफसर उनका फोन नहीं उठाते। विधानसभा में सत्तापक्ष और विपक्ष के विधायकों ने यह मुद्दा कई बार उठाया है कि जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन और शासन के अधिकारी उनका फोन नहीं उठाते। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने भी कई बार सदन में संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना को इस संबंध में निर्देश दिए। लेकिन, हालत जस की तस है। सवाल 8- बृजभूषण शरण सिंह के बयान के मायने क्या हैं? जवाब- सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट सिद्धार्थ कलहंस बताते हैं- CM योगी से बृजभूषण शरण सिंह के रिश्ते सहज नहीं हैं। विधायकों में प्रशासनिक अफसरों के सुनवाई नहीं करने की शिकायतें आती हैं। पश्चिम से नंदकिशोर गुर्जर भी इस पर सवाल उठा चुके हैं। कुछ विधायक खुलेआम बोलते हैं, कुछ पार्टी फोरम में बात रखते हैं। ऐसे ही विधायकों के अगुवा बृजभूषण शरण सिंह बनना चाहते हैं। बृजभूषण मानते हैं कि कुश्ती संघ विवाद में पार्टी और संगठन से उन्हें कोई सहयोग नहीं मिला। पंचायत चुनाव में उन्होंने देवीपाटन मंडल के चारों जिलें में जिला पंचायत अध्यक्ष भाजपा के बनवाए। इसके बाद भी पार्टी में कोई तवज्जो नहीं मिली। इसलिए समय-समय पर वह ऐसे बयान देते रहते हैं। 2027 के चुनाव तक उनके ऐसे बयान आएंगे। वह चुनाव में अपने लोगों को टिकट दिलाने के लिए दबाव भी बनाएंगे। अगर उनकी सुनवाई नहीं हुई तो दूसरा रास्ता भी देख सकते हैं, क्योंकि वह पहले भी ऐसा कर चुके हैं। सवाल 9- कौन हैं बृजभूषण शरण सिंह? जवाब- बृजभूषण शरण सिंह यूपी के कैसरगंज से पूर्व सांसद रहे हैं। वह भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में कांग्रेसी नेता चंद्रभान शरण सिंह के परिवार में 1957 में बृजभूषण शरण सिंह पैदा हुए। कॉलेज के दिनों से ही बृजभूषण छात्र राजनीति में सक्रिय थे। छह बार सांसद रहे हैं। ——————– ये खबर भी पढ़ें… बहन मां बनती, रिश्ता तय और फिर दूल्हा लुटता, यूपी में लुटेरी दुल्हन ने 13 युवकों को लूटा; दूसरी रेप में फंसाकर रुपए ऐंठती मासूम चेहरा और सुंदर नयन-नक्श वाली लड़की की तस्वीर। ऐसी तस्वीर, जिसे देखते ही युवक शादी के लिए हां बोल देते। फिर यहीं से तैयार होता लूटने का प्लान। इस गैंग में 5 लोग शामिल थे। लुटेरी दुल्हन की बहन और पिता भी इसमें शामिल थे। इस गैंग ने 13 युवकों को इसी तरह से लूटा। यह पहला मामला नहीं है। हरदोई में ही एक दूसरा गैंग भी सामने आया है। यूपी में हर महीने लुटेरी दुल्हन के मामले सामने आ रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर यूपी के अफसर नेताओं की नहीं सुनते। भाजपा नेताओं का यह दर्द अक्सर सामने आता रहा है। अब भाजपा के पूर्व सांसद बृजभूषण सिंह ने अपने बयान से इसे और तूल दे दिया है। बृजभूषण ने यहां तक कह डाला कि विधायकों की औकात जीरो हो गई है। काम निकलवाने के लिए डीएम के पैर छूकर नमस्ते करते हैं। बृजभूषण का पूरा बयान क्या है? उन्होंने ऐसा क्यों कहा? विधायक और डीएम के पावर क्या होते हैं? भास्कर एक्सप्लेनर में इस सवालों के जवाब पढ़िए… सवाल 1- पूर्व भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने क्या कहा? जवाब- भाजपा के पूर्व सांसद बृजभूषण सिंह ने एक पॉडकास्ट में कहा- आज विधायकों की औकात जीरो हो गई है। वह काम निकलवाने के लिए डीएम के पैर छूकर नमस्ते करते हैं। उनकी मर्जी होगी तो काम होगा, नहीं तो नहीं होगा। इस विषय पर ज्यादा नहीं बोलूंगा, नहीं तो आग लग जाएगी। सारा पावर एक जगह सिमट गया है। अगर वह पावर अच्छा काम करेगा तो सबकी नैया पार हो जाएगी। अगर नहीं किया, तो सभी फेल हो जाएंगे। बृजभूषण सिंह ने कहा- राजनीति का तरीका बदल गया है। अब मेरे फोन का भी किसी अधिकारी पर असर नहीं है। आम आदमी तो हमेशा पिसता है। लेकिन जो चल रहा है, उसे चलने देना चाहिए। आज विधायक की हैसियत ग्राम प्रधान से भी नीचे हो गई है। मैं सभी जगह की बात नहीं कर रहा, लेकिन कई जगह हालात ऐसे ही हैं। सरकार बने 2 साल हो गए हैं। विधायक जनता के बीच किस उपलब्धि के साथ जाएंगे? इसका उत्तर न मेरे पास है, न ही किसी विधायक के पास। यह पूरी तरह उत्तर प्रदेश सरकार पर निर्भर है। इसमें विधायकों की कोई गलती नहीं है। विधायक केवल इतना कर सकते हैं कि अपने दरवाजे पर लोगों के सुख-दुख में शामिल हों। सवाल 2- डीएम के पास क्या पावर होती है? जवाब- डीएम भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) से आते हैं। एक तरह से जिले के सबसे बड़े अधिकारी होते हैं। सभी विभाग के मुखिया उसको रिपोर्ट करते हैं। वह किसी भी विभाग का निरीक्षण कर सकता है, विभाग की समीक्षा कर सकता है। वह किसी काम के लिए सभी अफसरों को डायरेक्ट आदेश दे सकता है। लापरवाह अफसर और कर्मचारियों को सस्पेंड कर सकता है। कुछ बड़े अफसरों को सस्पेंड करने के लिए सरकार को लिख सकता है। सवाल 3- विधायकों के पास क्या पावर होती है? जवाब- पूर्व संसदीय कार्य मंत्री और अंबेडकर नगर से सांसद लालजी वर्मा के मुताबिक, संविधान में विधायक के पास केवल सदन के अंदर अधिकार है। वह विभिन्न नियमों के तहत अपनी बात रख सकता है। लेकिन, आमतौर पर सत्ता पक्ष के विधायक का रोल केवल सदन में बहुमत साबित करने और विधेयक पारित कराने तक है। विपक्ष के विधायक तो फिर भी सरकार के खिलाफ सदन में बोल बाते हैं। विधायक क्षेत्र में सरकार की योजनाओं, स्कूल, कॉलेज और अस्पताल में व्यवस्थाओं का निरीक्षण कर सकता है। लेकिन, कार्रवाई करने का उसे कोई अधिकार नहीं। वह निरीक्षण में मिली खामियों को दूर करने के लिए शासन को पत्र लिख सकता है। अधिकारी उसके पत्र का जवाब दे या नहीं दें। उसकी शिकायत पर कार्रवाई करें या न करें, इसके लिए कोई बाध्यता नहीं। विधानसभा क्षेत्र विकास निधि में भी वह केवल अपने क्षेत्र में विकास कार्य के लिए प्रस्ताव दे सकता है। अगर प्रस्ताव नियमों के दायरे में हुआ, तो मुख्य विकास अधिकारी स्वीकृत करेंगे। अगर जरा भी दाएं-बाएं हुआ, तो उसे भी अस्वीकृत कर सकते हैं। सवाल 4- विधायक-डीएम में सैलरी किसकी ज्यादा है? जवाब- अगर बेसिक सैलरी की बात करें, तो डीएम विधायक पर भारी पड़ते हैं। डीएम की बेसिक सैलरी 56 हजार 100 होती है, जबकि विधायक की 25 हजार रुपए। लेकिन, जब भत्तों की बात की जाए तो विधायक डीएम पर भारी पड़ते हैं। विधायकों को कई तरह के भत्ते मिलते हैं। अगर किसी समिति में शामिल हैं, तो उसे अतिरिक्त भत्ता मिलता है। सवाल 5- विधायक और DM में किसके पास ज्यादा पावर? जवाब- यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन के मुताबिक, आमतौर पर विधायक किसी भी अधिकारी से मिलने का समय लेकर ही जाता है। ऐसे में मिन्नतें करने जैसी बात सामने नहीं आती। मेरठ के पिठौर से सपा विधायक शाहिद मंजूर कहते हैं- विधायक का प्रोटोकॉल मुख्य सचिव के बराबर होता है। यूपी सरकार ने अफसरों को निर्देशित किया है कि अगर विधायक मिलने आएं तो खड़े होकर स्वागत करें। काम होने योग्य है तभी करें। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित के मुताबिक, जिले में डीएम सबसे बड़ा अफसर है। उसके पास विधायक से ज्यादा पावर है। वह गलती पर किसी अफसर-कर्मचारी को सीधे सस्पेंड कर सकता है। जबकि विधायक के पास यह पावर नहीं। विधायक किसी अफसर को सीधे काम के लिए आदेश नहीं दे सकते, जबकि डीएम दे सकता है। विधायक डीएम को किसी काम के लिए आदेश नहीं दे सकते। इसको ऐसे समझें- अगर विधायक को अपने समर्थक के लिए शस्त्र लाइसेंस चाहिए तो वह सीधे डीएम को आदेश नहीं दे सकते। डीएम की मर्जी पर निर्भर करता है कि वह मंजूरी दे या न दे। सवाल 6: विधायकों के पास क्या विशेषाधिकार है? पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन के मुताबिक, विधायक दुर्व्यवहार होने पर सदन में विशेषाधिकार का प्रयोग कर सकते हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित कहते हैं- विधायक के पास कोई संवैधानिक अधिकार नहीं। उसके पास केवल सदन के अंदर तक ही अधिकार है। उसमें भी सबसे बड़ा अधिकार है फ्रीडम ऑफ स्पीच। कोई विधायक सदन में किसी को कुछ कह दे, तो उस पर मुकदमा या कार्रवाई नहीं हो सकती। कोई भी अधिकारी किसी विधायक को सदन में बात रखने से रोकता है या प्रताड़ित करता है, विधायक उसके खिलाफ विशेषाधिकार हनन के तहत याचिका दायर कर सकते हैं। उस पर सुनवाई होती है। सुनवाई में अगर आरोप सही पाया जाता है, तो संबंधित को दंडित भी किया जा सकता है। सवाल 7- क्या पहले भी ऐसी बातें सामने आई हैं? जवाब- सदन में कई बार विधायक यह बात उठा चुके हैं कि अफसर उनका फोन नहीं उठाते। विधानसभा में सत्तापक्ष और विपक्ष के विधायकों ने यह मुद्दा कई बार उठाया है कि जिला प्रशासन, पुलिस प्रशासन और शासन के अधिकारी उनका फोन नहीं उठाते। विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने भी कई बार सदन में संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना को इस संबंध में निर्देश दिए। लेकिन, हालत जस की तस है। सवाल 8- बृजभूषण शरण सिंह के बयान के मायने क्या हैं? जवाब- सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट सिद्धार्थ कलहंस बताते हैं- CM योगी से बृजभूषण शरण सिंह के रिश्ते सहज नहीं हैं। विधायकों में प्रशासनिक अफसरों के सुनवाई नहीं करने की शिकायतें आती हैं। पश्चिम से नंदकिशोर गुर्जर भी इस पर सवाल उठा चुके हैं। कुछ विधायक खुलेआम बोलते हैं, कुछ पार्टी फोरम में बात रखते हैं। ऐसे ही विधायकों के अगुवा बृजभूषण शरण सिंह बनना चाहते हैं। बृजभूषण मानते हैं कि कुश्ती संघ विवाद में पार्टी और संगठन से उन्हें कोई सहयोग नहीं मिला। पंचायत चुनाव में उन्होंने देवीपाटन मंडल के चारों जिलें में जिला पंचायत अध्यक्ष भाजपा के बनवाए। इसके बाद भी पार्टी में कोई तवज्जो नहीं मिली। इसलिए समय-समय पर वह ऐसे बयान देते रहते हैं। 2027 के चुनाव तक उनके ऐसे बयान आएंगे। वह चुनाव में अपने लोगों को टिकट दिलाने के लिए दबाव भी बनाएंगे। अगर उनकी सुनवाई नहीं हुई तो दूसरा रास्ता भी देख सकते हैं, क्योंकि वह पहले भी ऐसा कर चुके हैं। सवाल 9- कौन हैं बृजभूषण शरण सिंह? जवाब- बृजभूषण शरण सिंह यूपी के कैसरगंज से पूर्व सांसद रहे हैं। वह भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में कांग्रेसी नेता चंद्रभान शरण सिंह के परिवार में 1957 में बृजभूषण शरण सिंह पैदा हुए। कॉलेज के दिनों से ही बृजभूषण छात्र राजनीति में सक्रिय थे। छह बार सांसद रहे हैं। ——————– ये खबर भी पढ़ें… बहन मां बनती, रिश्ता तय और फिर दूल्हा लुटता, यूपी में लुटेरी दुल्हन ने 13 युवकों को लूटा; दूसरी रेप में फंसाकर रुपए ऐंठती मासूम चेहरा और सुंदर नयन-नक्श वाली लड़की की तस्वीर। ऐसी तस्वीर, जिसे देखते ही युवक शादी के लिए हां बोल देते। फिर यहीं से तैयार होता लूटने का प्लान। इस गैंग में 5 लोग शामिल थे। लुटेरी दुल्हन की बहन और पिता भी इसमें शामिल थे। इस गैंग ने 13 युवकों को इसी तरह से लूटा। यह पहला मामला नहीं है। हरदोई में ही एक दूसरा गैंग भी सामने आया है। यूपी में हर महीने लुटेरी दुल्हन के मामले सामने आ रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर