क्या राणा सांगा के बुलावे पर बाबर भारत आया?:महाराणा प्रताप के दादा थे, युद्ध में 80 घाव और एक आंख गंवाई; सपा सांसद के बयान पर बवाल

क्या राणा सांगा के बुलावे पर बाबर भारत आया?:महाराणा प्रताप के दादा थे, युद्ध में 80 घाव और एक आंख गंवाई; सपा सांसद के बयान पर बवाल

‘भाजपा वालों का तकिया कलाम हो गया है कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है… तो फिर हिंदुओं में किसका डीएनए है? बाबर को कौन लाया? बाबर को भारत में इब्राहीम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा लाया था। मुसलमान बाबर की औलाद हैं, तो तुम (हिंदू) गद्दार राणा सांगा की औलाद हो। यह हिंदुस्तान में तय हो जाना चाहिए। बाबर की आलोचना करते हैं, राणा सांगा की नहीं।’ राज्यसभा में सपा सांसद रामजी लाल सुमन के इस बयान के बाद यूपी में राजनीति गरमा गई है। आगरा में सपा सांसद के खिलाफ अखिल भारतीय हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। उनका पुतला फूंका। हिंदू महासभा की महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष मीरा राठौर ने रामजी लाल सुमन की जीभ काटकर लाने पर 1 लाख का इनाम देने की घोषणा कर दी। क्या वाकई राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था? राणा सांगा कौन थे? उनके और बाबर के संबंधों की पूरी कहानी भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए… सवाल 1- संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा कौन थे? जवाब- मेवाड़ के शासक महाराणा रायमल के 3 बेटे थे। कुंवर पृथ्वीराज, जयमल और संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा। पिता के जीवित रहते तीनों में उत्तराधिकारी के लिए युद्ध हुआ। इसी में राणा सांगा की एक आंख फूट गई। बाद में पिता रायमल ने खुद राणा सांगा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। 1508 ईस्वी में राणा सांगा मेवाड़ के शासक बने। उस समय उनकी उम्र 27 साल थी। इसी के साथ मेवाड़ ने अपनी चली आ रही उस परंपरा को भी तोड़ दिया, जहां किसी दिव्यांग व्यक्ति को राजा नहीं बनाया जा सकता था। राणा सांगा ने कई युद्ध लड़े। उनके शरीर पर 80 घाव हो गए थे। वह महाराणा प्रताप के दादा थे। सवाल 2- भारत आने से पहले बाबर कहां और क्या था? जवाब- इतिहासकार हरिश्चंद्र वर्मा अपनी किताब मध्यकालीन भारत में बताते हैं- जियाउद्दीन मुहम्मद बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 में हुआ था। उसके पिता उमर शेख मिर्जा और मां का नाम कुतलुक निगार था। 12 साल की उम्र में उसके पिता की मौत हो गई। इतिहासकार सतीश चंद्र अपनी किताब मध्यकालीन भारत में बताते हैं- 1494 में सिर्फ 12 साल की छोटी-सी उम्र में ही बाबर आक्सस-पार के एक छोटे से राज्य फरगना का राजा बना। फरगना आज के उज्बेकिस्तान में पड़ता है। बाबर ने साम्राज्य बढ़ाने के लिए उसने समरकंद 2 बार जीत भी लिया, लेकिन जल्द ही समरकंद उसके हाथ से निकल गया। समरकंद के राजा ने तब बाबर को बाहर निकालने के लिए उजबेक सरदार शैबानी खान को बुलाया। बाद में शैबानी खान ने बाबर के राज्य फरगना पर भी धावा बोलकर उसके ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा कर लिया। इससे बाबर के पास काबुल की तरफ बढ़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। बाबर ने 1504 में काबुल को जीत लिया। सवाल 3- बाबर ने भारत पर क्यों आक्रमण किया? जवाब- इस सवाल का जवाब बाबर की समरकंद पाने की ख्वाहिश में मिलती है। बाबर ने भले ही काबुल पर कब्जा कर लिया था, लेकिन उसकी नजर समरकंद पर थी। बाबर ने अपने संस्मरणों में लिखा कि 11 साल का होने के बाद उसने कभी रमजान का त्योहार एक ही जगह पर दो बार नहीं मनाया। दरअसल, दूसरी बार समरकंद पर कब्जा करने गए बाबर के काबुल में भी विद्रोह हो गया था। दूसरी तरफ, सिर्फ 100 दिन बाद समरकंद से भी उसका निकाला हो गया। इसे लेकर उस समय के लेखक फरिश्ता लिखते हैं- किस्मत के हाथ गेंद बना वह शतरंज के बादशाह जैसा एक से दूसरी जगह भागता था। समुद्र के किनारे पड़े कंकड़ के समान टक्करें खाता रहा। 1507 ईस्वी में बाबर ने दोबारा काबुल पर कब्जा किया। समरकंद के सपने को लेकर एक बार फिर उसने योजना बनाई। 1510 में उसने फारस के शासक शाह इस्माइल से हाथ मिलाया। लेकिन, यहां से उसे एक शर्त पर मदद मिली। शर्त थी, अगर वह समरकंद का शासक बनता है तो शाह इस्माइल के नाम का खुतबा पढ़वाएगा। उनके नाम पर सिक्के जारी करेगा और शियावाद का प्रचार करेगा। इतिहासकार हरिश्चंद्र वर्मा अपनी किताब मध्यकालीन भारत में लिखते हैं- जीतने के बाद बाबर ने इन वादों को पूरा नहीं किया। ऐसे में फारसियों से उसका अलगाव हो गया। तब बाबर को एक बार फिर समरकंद छोड़कर भागना पड़ा। इसके बाद वह समरकंद पर कब्जे का सपना भले ही देखता रहा, लेकिन कभी फिर आक्रमण नहीं कर पाया। मध्य एशिया में नाकाम रहने के बाद ही उसका ध्यान भारत की ओर आकर्षित हुआ। मध्यकालीन इतिहासकार सतीश चंद्र ने लिखा है- मध्य एशिया के पहले के कई हमलावरों की तरह बाबर भी भारत की बेपनाह दौलत के कारण उसकी ओर आकर्षित हुआ था। मुगल दरबार के इतिहासकार अबुल फजल ने इसे लेकर कहा है कि बाबर का शासन बदख्शां, कंदहार (कंधार) और काबुल पर था। इनसे फौज की जरूरतों के लिए पर्याप्त आय नहीं मिलती थी। उसे काबुल पर उजबेक हमले की भी आशंका थी। वह भारत को शरण के लिए अच्छा स्थान और उजबेकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उपयुक्त आधार मानता था। सवाल 4- बाबर ने भारत पर कितनी बार हमले किए? जवाब- इसको लेकर काफी मतभेद है। इतिहासकार अबुल फजल 5 हमलों की बात लिखते हैं। वह 1505 और 1507 के बाबर के नाकाम हमलों को पहला और दूसरा मानते हैं। जनवरी 1519 में भीड़ा के किले पर जीत को तीसरा बताते हैं। अबुल फजल चौथे हमले के बारे में कोई जानकारी नहीं देते। फिर पानीपत की लड़ाई को 5वां हमला बताते हैं। सवाल 5- क्या राणा सांगा के बुलावे पर बाबर ने भारत पर आक्रमण किया था? जवाब- इतिहासकार रवि भट्ट कहते हैं- बाबर को भारत किसने बुलाया था, इसे लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। राणा सांगा के बुलावे का जिक्र बाबर ने सिर्फ अपने बाबरनामा में किया है। बाकी कहीं इसकी पुष्टि नहीं होती। कुछ इतिहासकार बाबरनामा का हवाला देते हुए कहते हैं कि राणा सांगा के आमंत्रण पर बाबर भारत आया। वहीं, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि बाबर ने राणा सांगा से संपर्क साधा था। इतिहासकार सतीश चंद्र के मुताबिक, 1520-21 में पंजाब के सूबेदार अफगान सरदार दौलत खान लोदी ने एक प्रतिनिधिमंडल बाबर से मिलने भेजा था। वह अफगान सरदार इब्राहिम लोदी की सत्ता से खुद को स्वतंत्र करना चाहता था। इस प्रतिनिधिमंडल ने बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया। साथ ही सुझाया कि वह निरंकुश इब्राहिम लोदी को सत्ता से हटाए। सतीश चंद्र अपनी किताब में कहते हैं- लगता है कि इसी समय राणा सांगा का एक संदेशवाहक भी बाबर को भारत पर आक्रमण का निमंत्रण देने पहुंचा। इन प्रतिनिधिमंडलों ने बाबर को विश्वास दिला दिया कि स्वयं भारत न सही, पूरे पंजाब की विजय का अवसर आ चुका है। इतिहासकार हरिश्चंद्र वर्मा अपनी किताब मध्यकालीन भारत में लिखते हैं- बाबर 1524 में पंजाब के उमरावों के बुलावे पर फिर भारत आया। वे अफगान उमराव, इब्राहिम के शासन से त्रस्त थे। इस बात को बाबर ने भांप लिया कि अफगानों के बीच एकता नहीं है। राणा सांगा को लेकर वह लिखते हैं कि तारीख के बारे में निश्चयपूर्वक भले ही न कहा जा सके, लेकिन यही वह समय था, जब बाबर को राणा सांगा से भी आमंत्रण मिला। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं होती। बाबरनामा के अनुसार, राणा ने इस योजना के बारे में बात करने और अपनी शुभकामनाओं का यकीन दिलाने के लिए एक दूत भेजा था। कहा था कि उस तरफ से हुजूर बादशाह दिल्ली के करीब आ जाएं। इस तरफ से मैं आगरा की ओर बढ़ जाऊंगा। उसी साल 1524 में बाबर पंजाब आया। उसके बाद लाहौर और फिर 12 अप्रैल, 1526 में वह पानीपत पहुंचा। यहीं इब्राहिम लोदी और बाबर की सेनाओं का आमना-सामना हुआ। इसे ही पानीपत की लड़ाई कहा गया। इतिहासकार यदुनाथ सरकार अपनी किताब मिलिट्री हिस्ट्री ऑफ इंडिया में कहते हैं- इब्राहिम की सेनाओं के पैर उखड़ गए और वे भागने लगीं। बाबर की सेना ने लगातार पीछा किया और दिल्ली के फाटक तक जा पहुंची। इसके अलावा गौरीशंकर हीराचंद्र ओझा और गोवर्धन राय शर्मा जैसे इतिहासकार कहते हैं कि पहले बाबर ने राणा सांगा से संपर्क साधा ताकि वह इब्राहिम लोदी के खिलाफ अभियान में उसकी सहायता करें। हालांकि, राणा सांगा इसके लिए शुरू में तैयार हुए। लेकिन, बाद में शायद मेवाड़ दरबार में सलाहकारों की तरफ से इसका विरोध होने पर अपने कदम पीछे खींच लिए। सवाल–6: क्या बाबर और राणा सांगा में युद्ध हुआ था? जवाब: इब्राहिम लोदी के साथ लोदी साम्राज्य का खात्मा कर बाबर ने ऐलान कर दिया कि वह भारत में ही रहेगा और साम्राज्य स्थापित करेगा। बाबरनामा में बाबर लिखता है- नहीं, हमारे लिए काबुल की गरीबी फिर नहीं। इस तरह उसने भारत में ठहरने के अपने पक्के इरादे का ऐलान कर दिया। इस ऐलान के साथ ही बाबर और उत्तर भारत में तब मेवाड़ साम्राज्य के शासक राणा सांगा के बीच संघर्ष की जमीन तैयार कर दी। इतिहासकार सतीश चंद्र लिखते हैं- राणा का प्रभाव धीरे-धीरे आगरा के पड़ोस की एक छोटी-सी नदी पीलिया खार तक बढ़ चुका था। सिंधु-गंगा वादी में बाबर के साम्राज्य की स्थापना राणा सांगा के लिए चुनौती थी। इसलिए सांगा ने बाबर को निकाल बाहर करने या कम से कम पंजाब तक सीमित कर देने की तैयारी शुरू कर दी। बाबर ने राणा सांगा पर समझौता तोड़ने का आरोप लगाया। सतीश चंद्र अपनी किताब में आगे लिखते हैं- इब्राहिम लोदी के छोटे भाई महमूद लोदी समेत अनेक अफगानों ने राणा सांगा का साथ इस आशा में दिया कि यदि सांगा जीत जाता है तो उन्हें दिल्ली का तख्त वापस मिल जाएगा। मेवात के शासक हमन खान मेवाती ने भी सांगा के साथ अपना भाग्य जोड़ दिया। लगभग सभी प्रमुख राजपूत शासकों ने राणा सांगा के लिए अपने दस्ते भेजे। राणा सांगा की प्रतिष्ठा और बयाना जैसी कुछ बाहरी मुगल चौकियों के खिलाफ उनकी शुरुआती सफलता ने बाबर के सैनिकों को निराश कर दिया। ऐसे में उन्हें तैयार करने के लिए बाबर ने सांगा विरोधी जंग को जिहाद करार दिया। युद्ध से ठीक पहले उसने शराब की तमाम बोतलों और घड़ों को यह दिखाने के लिए तोड़ दिया कि वह कितना पक्का मुसलमान था। उसने अपनी पूरी सल्तनत में शराब की खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी। मुसलमानों पर सीमा शुल्क समाप्त कर दिया। बाबर ने आगरा से 40 किमी दूर खानवा को अपना ठिकाना बनाया। 1527 में यहीं बाबर और राणा सांगा के बीच पहली बार खानवा की लड़ाई में आमना-सामना हुआ। यह लड़ाई भयानक रही। सांगा की फौजें घिर गईं और भयंकर मारकाट के बाद पराजित हो गईं। इतिहासकार जदुनाथ सरकार अपनी किताब मिलिट्री हिस्ट्री ऑफ इंडिया में कहते हैं- बाबर के पास एक ऐसा हथियार था, जो उत्तर भारत में अनजान था। बाबर के पास गोला और बारूद का जखीरा था। इसी का इस्तेमाल कर बाबर ने पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराया था। युद्ध जीतने के बाद बाबर सांगा के कैंप में कुछ किलोमीटर आगे गया, लेकिन उसने मेवाड़ पर आक्रमण करने का विचार त्याग दिया। मार्च महीने में उत्तर भारत की गर्मी की वजह से उसने ऐसा फैसला लिया। ———————– ये खबर भी पढ़ें… सपा सांसद बोले-हिंदू गद्दार राणा सांगा की औलाद, आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों की गुलामी की, भाजपा बोली- ये सपा के संस्कार सपा के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने कहा- भाजपा वालों का तकिया कलाम हो गया कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है तो फिर हिंदुओं में किसका डीएनए है? बाबर को कौन लाया? बाबर को भारत में इब्राहीम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा लाया था। पढ़ें पूरी खबर ‘भाजपा वालों का तकिया कलाम हो गया है कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है… तो फिर हिंदुओं में किसका डीएनए है? बाबर को कौन लाया? बाबर को भारत में इब्राहीम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा लाया था। मुसलमान बाबर की औलाद हैं, तो तुम (हिंदू) गद्दार राणा सांगा की औलाद हो। यह हिंदुस्तान में तय हो जाना चाहिए। बाबर की आलोचना करते हैं, राणा सांगा की नहीं।’ राज्यसभा में सपा सांसद रामजी लाल सुमन के इस बयान के बाद यूपी में राजनीति गरमा गई है। आगरा में सपा सांसद के खिलाफ अखिल भारतीय हिंदू महासभा के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया। उनका पुतला फूंका। हिंदू महासभा की महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष मीरा राठौर ने रामजी लाल सुमन की जीभ काटकर लाने पर 1 लाख का इनाम देने की घोषणा कर दी। क्या वाकई राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था? राणा सांगा कौन थे? उनके और बाबर के संबंधों की पूरी कहानी भास्कर एक्सप्लेनर में पढ़िए… सवाल 1- संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा कौन थे? जवाब- मेवाड़ के शासक महाराणा रायमल के 3 बेटे थे। कुंवर पृथ्वीराज, जयमल और संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा। पिता के जीवित रहते तीनों में उत्तराधिकारी के लिए युद्ध हुआ। इसी में राणा सांगा की एक आंख फूट गई। बाद में पिता रायमल ने खुद राणा सांगा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। 1508 ईस्वी में राणा सांगा मेवाड़ के शासक बने। उस समय उनकी उम्र 27 साल थी। इसी के साथ मेवाड़ ने अपनी चली आ रही उस परंपरा को भी तोड़ दिया, जहां किसी दिव्यांग व्यक्ति को राजा नहीं बनाया जा सकता था। राणा सांगा ने कई युद्ध लड़े। उनके शरीर पर 80 घाव हो गए थे। वह महाराणा प्रताप के दादा थे। सवाल 2- भारत आने से पहले बाबर कहां और क्या था? जवाब- इतिहासकार हरिश्चंद्र वर्मा अपनी किताब मध्यकालीन भारत में बताते हैं- जियाउद्दीन मुहम्मद बाबर का जन्म 14 फरवरी, 1483 में हुआ था। उसके पिता उमर शेख मिर्जा और मां का नाम कुतलुक निगार था। 12 साल की उम्र में उसके पिता की मौत हो गई। इतिहासकार सतीश चंद्र अपनी किताब मध्यकालीन भारत में बताते हैं- 1494 में सिर्फ 12 साल की छोटी-सी उम्र में ही बाबर आक्सस-पार के एक छोटे से राज्य फरगना का राजा बना। फरगना आज के उज्बेकिस्तान में पड़ता है। बाबर ने साम्राज्य बढ़ाने के लिए उसने समरकंद 2 बार जीत भी लिया, लेकिन जल्द ही समरकंद उसके हाथ से निकल गया। समरकंद के राजा ने तब बाबर को बाहर निकालने के लिए उजबेक सरदार शैबानी खान को बुलाया। बाद में शैबानी खान ने बाबर के राज्य फरगना पर भी धावा बोलकर उसके ज्यादातर हिस्सों पर कब्जा कर लिया। इससे बाबर के पास काबुल की तरफ बढ़ने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। बाबर ने 1504 में काबुल को जीत लिया। सवाल 3- बाबर ने भारत पर क्यों आक्रमण किया? जवाब- इस सवाल का जवाब बाबर की समरकंद पाने की ख्वाहिश में मिलती है। बाबर ने भले ही काबुल पर कब्जा कर लिया था, लेकिन उसकी नजर समरकंद पर थी। बाबर ने अपने संस्मरणों में लिखा कि 11 साल का होने के बाद उसने कभी रमजान का त्योहार एक ही जगह पर दो बार नहीं मनाया। दरअसल, दूसरी बार समरकंद पर कब्जा करने गए बाबर के काबुल में भी विद्रोह हो गया था। दूसरी तरफ, सिर्फ 100 दिन बाद समरकंद से भी उसका निकाला हो गया। इसे लेकर उस समय के लेखक फरिश्ता लिखते हैं- किस्मत के हाथ गेंद बना वह शतरंज के बादशाह जैसा एक से दूसरी जगह भागता था। समुद्र के किनारे पड़े कंकड़ के समान टक्करें खाता रहा। 1507 ईस्वी में बाबर ने दोबारा काबुल पर कब्जा किया। समरकंद के सपने को लेकर एक बार फिर उसने योजना बनाई। 1510 में उसने फारस के शासक शाह इस्माइल से हाथ मिलाया। लेकिन, यहां से उसे एक शर्त पर मदद मिली। शर्त थी, अगर वह समरकंद का शासक बनता है तो शाह इस्माइल के नाम का खुतबा पढ़वाएगा। उनके नाम पर सिक्के जारी करेगा और शियावाद का प्रचार करेगा। इतिहासकार हरिश्चंद्र वर्मा अपनी किताब मध्यकालीन भारत में लिखते हैं- जीतने के बाद बाबर ने इन वादों को पूरा नहीं किया। ऐसे में फारसियों से उसका अलगाव हो गया। तब बाबर को एक बार फिर समरकंद छोड़कर भागना पड़ा। इसके बाद वह समरकंद पर कब्जे का सपना भले ही देखता रहा, लेकिन कभी फिर आक्रमण नहीं कर पाया। मध्य एशिया में नाकाम रहने के बाद ही उसका ध्यान भारत की ओर आकर्षित हुआ। मध्यकालीन इतिहासकार सतीश चंद्र ने लिखा है- मध्य एशिया के पहले के कई हमलावरों की तरह बाबर भी भारत की बेपनाह दौलत के कारण उसकी ओर आकर्षित हुआ था। मुगल दरबार के इतिहासकार अबुल फजल ने इसे लेकर कहा है कि बाबर का शासन बदख्शां, कंदहार (कंधार) और काबुल पर था। इनसे फौज की जरूरतों के लिए पर्याप्त आय नहीं मिलती थी। उसे काबुल पर उजबेक हमले की भी आशंका थी। वह भारत को शरण के लिए अच्छा स्थान और उजबेकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उपयुक्त आधार मानता था। सवाल 4- बाबर ने भारत पर कितनी बार हमले किए? जवाब- इसको लेकर काफी मतभेद है। इतिहासकार अबुल फजल 5 हमलों की बात लिखते हैं। वह 1505 और 1507 के बाबर के नाकाम हमलों को पहला और दूसरा मानते हैं। जनवरी 1519 में भीड़ा के किले पर जीत को तीसरा बताते हैं। अबुल फजल चौथे हमले के बारे में कोई जानकारी नहीं देते। फिर पानीपत की लड़ाई को 5वां हमला बताते हैं। सवाल 5- क्या राणा सांगा के बुलावे पर बाबर ने भारत पर आक्रमण किया था? जवाब- इतिहासकार रवि भट्ट कहते हैं- बाबर को भारत किसने बुलाया था, इसे लेकर इतिहासकारों में मतभेद है। राणा सांगा के बुलावे का जिक्र बाबर ने सिर्फ अपने बाबरनामा में किया है। बाकी कहीं इसकी पुष्टि नहीं होती। कुछ इतिहासकार बाबरनामा का हवाला देते हुए कहते हैं कि राणा सांगा के आमंत्रण पर बाबर भारत आया। वहीं, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि बाबर ने राणा सांगा से संपर्क साधा था। इतिहासकार सतीश चंद्र के मुताबिक, 1520-21 में पंजाब के सूबेदार अफगान सरदार दौलत खान लोदी ने एक प्रतिनिधिमंडल बाबर से मिलने भेजा था। वह अफगान सरदार इब्राहिम लोदी की सत्ता से खुद को स्वतंत्र करना चाहता था। इस प्रतिनिधिमंडल ने बाबर को भारत आने का निमंत्रण दिया। साथ ही सुझाया कि वह निरंकुश इब्राहिम लोदी को सत्ता से हटाए। सतीश चंद्र अपनी किताब में कहते हैं- लगता है कि इसी समय राणा सांगा का एक संदेशवाहक भी बाबर को भारत पर आक्रमण का निमंत्रण देने पहुंचा। इन प्रतिनिधिमंडलों ने बाबर को विश्वास दिला दिया कि स्वयं भारत न सही, पूरे पंजाब की विजय का अवसर आ चुका है। इतिहासकार हरिश्चंद्र वर्मा अपनी किताब मध्यकालीन भारत में लिखते हैं- बाबर 1524 में पंजाब के उमरावों के बुलावे पर फिर भारत आया। वे अफगान उमराव, इब्राहिम के शासन से त्रस्त थे। इस बात को बाबर ने भांप लिया कि अफगानों के बीच एकता नहीं है। राणा सांगा को लेकर वह लिखते हैं कि तारीख के बारे में निश्चयपूर्वक भले ही न कहा जा सके, लेकिन यही वह समय था, जब बाबर को राणा सांगा से भी आमंत्रण मिला। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं होती। बाबरनामा के अनुसार, राणा ने इस योजना के बारे में बात करने और अपनी शुभकामनाओं का यकीन दिलाने के लिए एक दूत भेजा था। कहा था कि उस तरफ से हुजूर बादशाह दिल्ली के करीब आ जाएं। इस तरफ से मैं आगरा की ओर बढ़ जाऊंगा। उसी साल 1524 में बाबर पंजाब आया। उसके बाद लाहौर और फिर 12 अप्रैल, 1526 में वह पानीपत पहुंचा। यहीं इब्राहिम लोदी और बाबर की सेनाओं का आमना-सामना हुआ। इसे ही पानीपत की लड़ाई कहा गया। इतिहासकार यदुनाथ सरकार अपनी किताब मिलिट्री हिस्ट्री ऑफ इंडिया में कहते हैं- इब्राहिम की सेनाओं के पैर उखड़ गए और वे भागने लगीं। बाबर की सेना ने लगातार पीछा किया और दिल्ली के फाटक तक जा पहुंची। इसके अलावा गौरीशंकर हीराचंद्र ओझा और गोवर्धन राय शर्मा जैसे इतिहासकार कहते हैं कि पहले बाबर ने राणा सांगा से संपर्क साधा ताकि वह इब्राहिम लोदी के खिलाफ अभियान में उसकी सहायता करें। हालांकि, राणा सांगा इसके लिए शुरू में तैयार हुए। लेकिन, बाद में शायद मेवाड़ दरबार में सलाहकारों की तरफ से इसका विरोध होने पर अपने कदम पीछे खींच लिए। सवाल–6: क्या बाबर और राणा सांगा में युद्ध हुआ था? जवाब: इब्राहिम लोदी के साथ लोदी साम्राज्य का खात्मा कर बाबर ने ऐलान कर दिया कि वह भारत में ही रहेगा और साम्राज्य स्थापित करेगा। बाबरनामा में बाबर लिखता है- नहीं, हमारे लिए काबुल की गरीबी फिर नहीं। इस तरह उसने भारत में ठहरने के अपने पक्के इरादे का ऐलान कर दिया। इस ऐलान के साथ ही बाबर और उत्तर भारत में तब मेवाड़ साम्राज्य के शासक राणा सांगा के बीच संघर्ष की जमीन तैयार कर दी। इतिहासकार सतीश चंद्र लिखते हैं- राणा का प्रभाव धीरे-धीरे आगरा के पड़ोस की एक छोटी-सी नदी पीलिया खार तक बढ़ चुका था। सिंधु-गंगा वादी में बाबर के साम्राज्य की स्थापना राणा सांगा के लिए चुनौती थी। इसलिए सांगा ने बाबर को निकाल बाहर करने या कम से कम पंजाब तक सीमित कर देने की तैयारी शुरू कर दी। बाबर ने राणा सांगा पर समझौता तोड़ने का आरोप लगाया। सतीश चंद्र अपनी किताब में आगे लिखते हैं- इब्राहिम लोदी के छोटे भाई महमूद लोदी समेत अनेक अफगानों ने राणा सांगा का साथ इस आशा में दिया कि यदि सांगा जीत जाता है तो उन्हें दिल्ली का तख्त वापस मिल जाएगा। मेवात के शासक हमन खान मेवाती ने भी सांगा के साथ अपना भाग्य जोड़ दिया। लगभग सभी प्रमुख राजपूत शासकों ने राणा सांगा के लिए अपने दस्ते भेजे। राणा सांगा की प्रतिष्ठा और बयाना जैसी कुछ बाहरी मुगल चौकियों के खिलाफ उनकी शुरुआती सफलता ने बाबर के सैनिकों को निराश कर दिया। ऐसे में उन्हें तैयार करने के लिए बाबर ने सांगा विरोधी जंग को जिहाद करार दिया। युद्ध से ठीक पहले उसने शराब की तमाम बोतलों और घड़ों को यह दिखाने के लिए तोड़ दिया कि वह कितना पक्का मुसलमान था। उसने अपनी पूरी सल्तनत में शराब की खरीद-बिक्री पर रोक लगा दी। मुसलमानों पर सीमा शुल्क समाप्त कर दिया। बाबर ने आगरा से 40 किमी दूर खानवा को अपना ठिकाना बनाया। 1527 में यहीं बाबर और राणा सांगा के बीच पहली बार खानवा की लड़ाई में आमना-सामना हुआ। यह लड़ाई भयानक रही। सांगा की फौजें घिर गईं और भयंकर मारकाट के बाद पराजित हो गईं। इतिहासकार जदुनाथ सरकार अपनी किताब मिलिट्री हिस्ट्री ऑफ इंडिया में कहते हैं- बाबर के पास एक ऐसा हथियार था, जो उत्तर भारत में अनजान था। बाबर के पास गोला और बारूद का जखीरा था। इसी का इस्तेमाल कर बाबर ने पानीपत के युद्ध में इब्राहिम लोदी को हराया था। युद्ध जीतने के बाद बाबर सांगा के कैंप में कुछ किलोमीटर आगे गया, लेकिन उसने मेवाड़ पर आक्रमण करने का विचार त्याग दिया। मार्च महीने में उत्तर भारत की गर्मी की वजह से उसने ऐसा फैसला लिया। ———————– ये खबर भी पढ़ें… सपा सांसद बोले-हिंदू गद्दार राणा सांगा की औलाद, आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों की गुलामी की, भाजपा बोली- ये सपा के संस्कार सपा के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने कहा- भाजपा वालों का तकिया कलाम हो गया कि मुसलमानों में बाबर का डीएनए है तो फिर हिंदुओं में किसका डीएनए है? बाबर को कौन लाया? बाबर को भारत में इब्राहीम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा लाया था। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर