चेहरे से पांव तक सिर्फ राम-राम, VIDEO:मुगलों ने मंदिर तोड़े, तब से ऐसा ही रहा जीवन; बोली-पहनावे में भी राम

चेहरे से पांव तक सिर्फ राम-राम, VIDEO:मुगलों ने मंदिर तोड़े, तब से ऐसा ही रहा जीवन; बोली-पहनावे में भी राम

महाकुंभ नगर के सेक्टर-18 में 43 श्रद्धालुओं का जत्था सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। चेहरे और हाथों पर राम-राम का गोदना करवाए महिलाएं भी इनमें शामिल हैं। इनके कैंप से 24 घंटे राम-राम की धुन सुनाई देती है। पहनावे में सफेद कपड़े और उस पर भी सिर्फ राम-राम ही नजर आता है। ये श्रद्धालु कोई और नहीं, छत्तीसगढ़ से आया रामनामी पंथ समाज है। इसे देश-दुनिया में बहुत कम लोग ही जानते हैं। रात-दिन, हंसते-रोते…सभी परिस्थितियों में पूरी उम्र इस पंथ के लोग सिर्फ राम नाम का जाप करते हैं। ये कहते हैं- हमारे तो रोम-रोम में राम हैं। विश्व हिंदू परिषद के शिविर में रुकी 55 साल की जानकी रामनामी कहती हैं- मैं रामनामी समाज की पांचवीं पीढ़ी से हूं। हम अपने पूर्वजों की परंपरा को निभा रहे हैं। रामचरित मानस ही हमारे आराध्य ईश्वर हैं। हमारे समाज के लोग मूर्ति पूजा, यज्ञ-हवन या फिर अन्य कर्मकांड करने वाली संस्कृति को नहीं मानते। केवल राम के नाम को ही जप कर लोगों को भव सागर से पार उतरने का संदेश देते हैं। विहिप प्रचारक स्वामी त्रिवेणी दास के मुताबिक, रामनाम पंथ समाज और इस परंपरा की शुरुआत का कारण एवं कारक मुगल काल रहा है। मुगलों ने सनातनियों पर जब आक्रमण किया, तो इस समाज के लोगों ने उनसे डटकर मुकाबला किया। धर्म की रक्षा के लिए इन्होंने यह परंपरा अपनाई। मंदिर-मूर्ति और पूजा स्थल सुरक्षित नहीं रहे, तब 200 साल पहले छत्तीसगढ़ के पिरदा गांव में जा बसे और बस यहीं से राम नाम पंथ परंपरा की नींव पड़ी। वीडियो में देखिए, कैसे महाकुंभ नगर में रामनामी पंथ के लोग अपनी परंपरा निभा रहे हैं… महाकुंभ नगर के सेक्टर-18 में 43 श्रद्धालुओं का जत्था सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। चेहरे और हाथों पर राम-राम का गोदना करवाए महिलाएं भी इनमें शामिल हैं। इनके कैंप से 24 घंटे राम-राम की धुन सुनाई देती है। पहनावे में सफेद कपड़े और उस पर भी सिर्फ राम-राम ही नजर आता है। ये श्रद्धालु कोई और नहीं, छत्तीसगढ़ से आया रामनामी पंथ समाज है। इसे देश-दुनिया में बहुत कम लोग ही जानते हैं। रात-दिन, हंसते-रोते…सभी परिस्थितियों में पूरी उम्र इस पंथ के लोग सिर्फ राम नाम का जाप करते हैं। ये कहते हैं- हमारे तो रोम-रोम में राम हैं। विश्व हिंदू परिषद के शिविर में रुकी 55 साल की जानकी रामनामी कहती हैं- मैं रामनामी समाज की पांचवीं पीढ़ी से हूं। हम अपने पूर्वजों की परंपरा को निभा रहे हैं। रामचरित मानस ही हमारे आराध्य ईश्वर हैं। हमारे समाज के लोग मूर्ति पूजा, यज्ञ-हवन या फिर अन्य कर्मकांड करने वाली संस्कृति को नहीं मानते। केवल राम के नाम को ही जप कर लोगों को भव सागर से पार उतरने का संदेश देते हैं। विहिप प्रचारक स्वामी त्रिवेणी दास के मुताबिक, रामनाम पंथ समाज और इस परंपरा की शुरुआत का कारण एवं कारक मुगल काल रहा है। मुगलों ने सनातनियों पर जब आक्रमण किया, तो इस समाज के लोगों ने उनसे डटकर मुकाबला किया। धर्म की रक्षा के लिए इन्होंने यह परंपरा अपनाई। मंदिर-मूर्ति और पूजा स्थल सुरक्षित नहीं रहे, तब 200 साल पहले छत्तीसगढ़ के पिरदा गांव में जा बसे और बस यहीं से राम नाम पंथ परंपरा की नींव पड़ी। वीडियो में देखिए, कैसे महाकुंभ नगर में रामनामी पंथ के लोग अपनी परंपरा निभा रहे हैं…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर