छठ महापर्व आज से नहाय-खाए के साथ शुरू:व्रती महिला बीना बोलीं-छठी मैया के व्रत से मेरी हर मन्नत पूरी हुई

छठ महापर्व आज से नहाय-खाए के साथ शुरू:व्रती महिला बीना बोलीं-छठी मैया के व्रत से मेरी हर मन्नत पूरी हुई

आज से 35 साल पहले मेरे दो बच्चे खराब हो गया। उस समय हम एक किराए के मकान में रहते थे। हमारी जो मकान मालकिन थी उन्होंने छठ मैया का व्रत रखा और मेरे लिए मैया से कामना की थी कि मुझे एक लड़की या लड़का हो जाए। मुझे लड़का हुआ। उन्होंने कहा कि जब मैं मायके में रहती थी, तो 2 साल पहले मैंने इस व्रत का शुरुआत किया। उन्होंने कहा कि 2 साल पहले मैंने अपने छोटे लड़के का शादी किया था। लेकिन, बहू को थायराइड गांठ थी उसको बच्चे नहीं हो रहे थे। हमने छठी मैया का व्रत रखकर प्रार्थना किया। भगवान ने मेरे बहु को भी बहुत प्यारा बच्चा दिया….यह कहना है वाराणसी की रहने वाली बीना तिवारी का। वह जब यह बात दैनिक भास्कर को बता रही थी तो भावुक भी हो गई। ऐसे ही लाखों आस्थावानों के विश्वास का महापर्व छठ आज से शुरू हो रहा है। आइए अब जानते हैं इन 4 दिनों में महिलाएं किन परम्परा का निर्वाहन करती हैं…
सूर्य पूजा के महापर्व छठ पूजा में 7 नवंबर को डूबते सूर्य को और 8 नवंबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। आमतौर पर उगते सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा है, लेकिन सिर्फ छठ पूजा पर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। आज से छठ पूजा व्रत शुरू हुआ है। आज नहाय-खाय होगा। 6 नवंबर को खरना, 7 तारीख की शाम डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और 8 नवंबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही ये व्रत पूरा होगा। इस व्रत की खास बात ये है कि व्रत करने वाले भक्त को करीब 36 घंटों तक निर्जल रहना होता है यानी व्रत करने वाला व्यक्ति 36 घंटों तक पानी भी नहीं पीता है। 1. नहाय-खाय से शुरू होता है छठ पूजा पर्व
आज छठ महापर्व का पहला दिन है आज व्रत रखने वाले को नमक का सेवन नहीं किया जाता है। व्रत करने वाला व्यक्ति स्नान के बाद नए वस्त्र धारण करता है। लौकी की सब्जी और चावल चूल्हे पर पकाते हैं, पूजन के बाद प्रसाद रूप में इसे ही ग्रहण करते हैं। 2. दूसरे दिन होता है खरना
इस व्रत में दूसरे दिन खरना होता है, इस दिन सूर्यास्त के बाद पीतल के बर्तन में गाय के दूध की खीर बनाई जाती है। इस खीर का सेवन करने का एक नियम है। नियम के अनुसार व्रत करने वाला व्यक्ति जब ये खीर खा रहा होता है, उस वक्त अगर थोड़ी सी भी आवाज वह सुन लेता है तो वह वहीं खीर छोड़ देता है। फिर उसे पूरे 36 घंटों तक निर्जल और निराहार रहना होता है। इसलिए जब भी व्रत करने वाला खरना का पालन करता है, तब घर के लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसके आसपास कोई भी आवाज नहीं की जाती है। 3.तीसरे दिन सूर्यास्त के समय सूर्य को देते हैं अर्घ्य
​​​​​​​तीसरे दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह से व्रत करने वाला निराहार और निर्जल रहता है। प्रसाद ठेकुआ बनाता है और अर्घ्य के समय सूप में फल, केले की कदली और ठेकुआ भोग के रूप में रखकर सूर्य भगवान को चढ़ाता है। सूर्य पूजा के बाद रात में भी व्रत करने वाला निर्जल रहता है। चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य
छठ महापर्व के चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता हैं। इस दिन महिलाएं भोर में ही गंगा घाट पर पहुंच जाती हैं। वेदी के पास फल,फूल इत्यादि रखा जाता है। महिलाएं गीत भी गाती है। और उगते हुए सूर्य को अर्घ देकर वह अपनी मनोकामना भगवान सूर्य और छठी मैया से मांगती हैं। कोसी भरने की परंपरा
​​​​​​​छठ महापर्व पर बहुत से घरों में कोसी भरने की परंपरा भी होती है। मान्यता के मुताबिक जब किसी घर में कोई शुभ काम या नया काम हुआ रहता है तो कोसी भरी जाती है। घर में जब कोई मनौती होती है या पूरी होती है तो भी कोसी भरी जाती है। बहुत लोग अपनी श्रद्धा से नाच गाना कराते हैं। गांव के लोगों को भोजन कराते हैं। जिसके घर कोसी भरी जाती है लोग रात भर जगे रहते हैं। यह व्रत बहुत ही कठिन होता है, इसके नियम भी काफी सख्त हैं। निष्ठा से और नियम से जो इस व्रत का पालन करता है, उसे छठ माता की कृपा मिलती है और उसके जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है। आइए अब जानते हैं सबसे पहले छठ पूजा किसने की थी? पंडित विकास ने बताया कि छठ महापर्व के व्रत से जुड़ी तीन कहानी काफी प्रचलित है जिसको छठ महापर्व से जोड़ा जाता हैं। उन्होंने कहा कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत महाभारत के समय में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। वह प्रतिदिन घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्यदेव के आशीर्वाद से वह महान योद्धा बना।कुछ कथाओं में द्रौपदी से भी छठ पर्व को जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए, तब माता द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। व्रत के पुण्य फलों से पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया था। इसके अलावा यह भी कथा प्रचलित है कि प्रभु श्रीराम ने जब लंकापति रावण को युद्ध में पराजित किया था, तो राम राज्य के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को माता सीता और भगवान श्रीराम ने उपवास किया था और सूर्यदेव की पूजा-अर्चना की थी और फिर दोबारा पूजा-आराधना से सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया था। आज से 35 साल पहले मेरे दो बच्चे खराब हो गया। उस समय हम एक किराए के मकान में रहते थे। हमारी जो मकान मालकिन थी उन्होंने छठ मैया का व्रत रखा और मेरे लिए मैया से कामना की थी कि मुझे एक लड़की या लड़का हो जाए। मुझे लड़का हुआ। उन्होंने कहा कि जब मैं मायके में रहती थी, तो 2 साल पहले मैंने इस व्रत का शुरुआत किया। उन्होंने कहा कि 2 साल पहले मैंने अपने छोटे लड़के का शादी किया था। लेकिन, बहू को थायराइड गांठ थी उसको बच्चे नहीं हो रहे थे। हमने छठी मैया का व्रत रखकर प्रार्थना किया। भगवान ने मेरे बहु को भी बहुत प्यारा बच्चा दिया….यह कहना है वाराणसी की रहने वाली बीना तिवारी का। वह जब यह बात दैनिक भास्कर को बता रही थी तो भावुक भी हो गई। ऐसे ही लाखों आस्थावानों के विश्वास का महापर्व छठ आज से शुरू हो रहा है। आइए अब जानते हैं इन 4 दिनों में महिलाएं किन परम्परा का निर्वाहन करती हैं…
सूर्य पूजा के महापर्व छठ पूजा में 7 नवंबर को डूबते सूर्य को और 8 नवंबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। आमतौर पर उगते सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा है, लेकिन सिर्फ छठ पूजा पर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। आज से छठ पूजा व्रत शुरू हुआ है। आज नहाय-खाय होगा। 6 नवंबर को खरना, 7 तारीख की शाम डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और 8 नवंबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही ये व्रत पूरा होगा। इस व्रत की खास बात ये है कि व्रत करने वाले भक्त को करीब 36 घंटों तक निर्जल रहना होता है यानी व्रत करने वाला व्यक्ति 36 घंटों तक पानी भी नहीं पीता है। 1. नहाय-खाय से शुरू होता है छठ पूजा पर्व
आज छठ महापर्व का पहला दिन है आज व्रत रखने वाले को नमक का सेवन नहीं किया जाता है। व्रत करने वाला व्यक्ति स्नान के बाद नए वस्त्र धारण करता है। लौकी की सब्जी और चावल चूल्हे पर पकाते हैं, पूजन के बाद प्रसाद रूप में इसे ही ग्रहण करते हैं। 2. दूसरे दिन होता है खरना
इस व्रत में दूसरे दिन खरना होता है, इस दिन सूर्यास्त के बाद पीतल के बर्तन में गाय के दूध की खीर बनाई जाती है। इस खीर का सेवन करने का एक नियम है। नियम के अनुसार व्रत करने वाला व्यक्ति जब ये खीर खा रहा होता है, उस वक्त अगर थोड़ी सी भी आवाज वह सुन लेता है तो वह वहीं खीर छोड़ देता है। फिर उसे पूरे 36 घंटों तक निर्जल और निराहार रहना होता है। इसलिए जब भी व्रत करने वाला खरना का पालन करता है, तब घर के लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि उसके आसपास कोई भी आवाज नहीं की जाती है। 3.तीसरे दिन सूर्यास्त के समय सूर्य को देते हैं अर्घ्य
​​​​​​​तीसरे दिन शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन सुबह से व्रत करने वाला निराहार और निर्जल रहता है। प्रसाद ठेकुआ बनाता है और अर्घ्य के समय सूप में फल, केले की कदली और ठेकुआ भोग के रूप में रखकर सूर्य भगवान को चढ़ाता है। सूर्य पूजा के बाद रात में भी व्रत करने वाला निर्जल रहता है। चौथे दिन सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य
छठ महापर्व के चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता हैं। इस दिन महिलाएं भोर में ही गंगा घाट पर पहुंच जाती हैं। वेदी के पास फल,फूल इत्यादि रखा जाता है। महिलाएं गीत भी गाती है। और उगते हुए सूर्य को अर्घ देकर वह अपनी मनोकामना भगवान सूर्य और छठी मैया से मांगती हैं। कोसी भरने की परंपरा
​​​​​​​छठ महापर्व पर बहुत से घरों में कोसी भरने की परंपरा भी होती है। मान्यता के मुताबिक जब किसी घर में कोई शुभ काम या नया काम हुआ रहता है तो कोसी भरी जाती है। घर में जब कोई मनौती होती है या पूरी होती है तो भी कोसी भरी जाती है। बहुत लोग अपनी श्रद्धा से नाच गाना कराते हैं। गांव के लोगों को भोजन कराते हैं। जिसके घर कोसी भरी जाती है लोग रात भर जगे रहते हैं। यह व्रत बहुत ही कठिन होता है, इसके नियम भी काफी सख्त हैं। निष्ठा से और नियम से जो इस व्रत का पालन करता है, उसे छठ माता की कृपा मिलती है और उसके जीवन में सुख-शांति का आगमन होता है। आइए अब जानते हैं सबसे पहले छठ पूजा किसने की थी? पंडित विकास ने बताया कि छठ महापर्व के व्रत से जुड़ी तीन कहानी काफी प्रचलित है जिसको छठ महापर्व से जोड़ा जाता हैं। उन्होंने कहा कि पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत महाभारत के समय में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की। वह प्रतिदिन घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्यदेव के आशीर्वाद से वह महान योद्धा बना।कुछ कथाओं में द्रौपदी से भी छठ पर्व को जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए, तब माता द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था। व्रत के पुण्य फलों से पांडवों को अपना राजपाट वापस मिल गया था। इसके अलावा यह भी कथा प्रचलित है कि प्रभु श्रीराम ने जब लंकापति रावण को युद्ध में पराजित किया था, तो राम राज्य के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को माता सीता और भगवान श्रीराम ने उपवास किया था और सूर्यदेव की पूजा-अर्चना की थी और फिर दोबारा पूजा-आराधना से सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया था।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर