छत्तीसगढ़ के जनजातीय कलाकार पंडी राम मंडावी को पद्मश्री सम्मान, CM विष्णु देव साय ने दी बधाई

छत्तीसगढ़ के जनजातीय कलाकार पंडी राम मंडावी को पद्मश्री सम्मान, CM विष्णु देव साय ने दी बधाई

<p style=”text-align: justify;”><strong>Republic Day 2025:</strong> गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति <a title=”द्रौपदी मुर्मू” href=”https://www.abplive.com/topic/droupadi-murmu” data-type=”interlinkingkeywords”>द्रौपदी मुर्मू</a> ने पद्म पुरस्कारों का ऐलान किया है. पद्मश्री पुरस्कारों की सूची में छत्तीसगढ़ से जनजातीय कलाकार पंडी राम मंडावी का नाम भी शामिल है. मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने नारायणपुर जिले के जनजातीय कलाकार पंडी राम मंडावी का नाम पद्मश्री सम्मान के लिए चयनित होने पर बधाई और शुभकामनाएं दी.</p>
<p style=”text-align: justify;”>पंडी राम मंडावी को प्रतिष्ठित सम्मान पारंपरिक वाद्ययंत्र निर्माण और लकड़ी की शिल्पकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाएगा. 68 वर्षीय पंडी राम मंडावी का संबंध गोंड मुरिया जनजाति से है. पिछले पांच दशकों से बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और नई पहचान दिलाने में जनजातीय कलाकार का अहम योगदान है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>पंडी राम मंडावी को पद्मश्री सम्मान मिलने पर मुख्यमंत्री ने दी बधाई</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>पंडी राम मंडावी की विशेष पहचान बांस की बस्तर बांसुरी, &lsquo;सुलुर&rsquo; के निर्माण में है. &nbsp;इसके अलावा, उन्होंने लकड़ी के पैनलों पर उभरे हुए चित्र, मूर्तियां और अन्य शिल्पकृतियों के माध्यम से अपनी कला को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया है. पंडी राम मंडावी ने मात्र 12 वर्ष की उम्र में अपने पूर्वजों से कला सीखी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>उन्होंने समर्पण और कौशल के दम पर छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. एक सांस्कृतिक दूत के रूप में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन 8 से अधिक देशों में किया है. साथ ही, अपने कार्यशाला के जरिए एक हजार से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षण देकर इस परंपरा को नई पीढ़ियों तक पहुंचाया.&nbsp;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>ये भी पढ़ें-</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><strong><a title=”महाकुंभ के बीच छत्तीसगढ़ में कुंभ कल्प का आयोजन, धीरेंद्र शास्त्री बोले- ‘पूरा भारत यहां आए'” href=”https://www.abplive.com/states/chhattisgarh/dhirendra-krishna-shastri-on-mahakumbh-chhattisgarh-kumbh-kalp-sanatan-dharma-ann-2870083″ target=”_self”>महाकुंभ के बीच छत्तीसगढ़ में कुंभ कल्प का आयोजन, धीरेंद्र शास्त्री बोले- ‘पूरा भारत यहां आए'</a></strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>&nbsp;</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Republic Day 2025:</strong> गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति <a title=”द्रौपदी मुर्मू” href=”https://www.abplive.com/topic/droupadi-murmu” data-type=”interlinkingkeywords”>द्रौपदी मुर्मू</a> ने पद्म पुरस्कारों का ऐलान किया है. पद्मश्री पुरस्कारों की सूची में छत्तीसगढ़ से जनजातीय कलाकार पंडी राम मंडावी का नाम भी शामिल है. मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने नारायणपुर जिले के जनजातीय कलाकार पंडी राम मंडावी का नाम पद्मश्री सम्मान के लिए चयनित होने पर बधाई और शुभकामनाएं दी.</p>
<p style=”text-align: justify;”>पंडी राम मंडावी को प्रतिष्ठित सम्मान पारंपरिक वाद्ययंत्र निर्माण और लकड़ी की शिल्पकला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाएगा. 68 वर्षीय पंडी राम मंडावी का संबंध गोंड मुरिया जनजाति से है. पिछले पांच दशकों से बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और नई पहचान दिलाने में जनजातीय कलाकार का अहम योगदान है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>पंडी राम मंडावी को पद्मश्री सम्मान मिलने पर मुख्यमंत्री ने दी बधाई</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>पंडी राम मंडावी की विशेष पहचान बांस की बस्तर बांसुरी, &lsquo;सुलुर&rsquo; के निर्माण में है. &nbsp;इसके अलावा, उन्होंने लकड़ी के पैनलों पर उभरे हुए चित्र, मूर्तियां और अन्य शिल्पकृतियों के माध्यम से अपनी कला को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया है. पंडी राम मंडावी ने मात्र 12 वर्ष की उम्र में अपने पूर्वजों से कला सीखी.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>उन्होंने समर्पण और कौशल के दम पर छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. एक सांस्कृतिक दूत के रूप में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन 8 से अधिक देशों में किया है. साथ ही, अपने कार्यशाला के जरिए एक हजार से अधिक कारीगरों को प्रशिक्षण देकर इस परंपरा को नई पीढ़ियों तक पहुंचाया.&nbsp;</p>
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