MLA बेटे की जुबानी, पिता के निधन की कहानी:पेट दर्द दिखाने गए तो कैंसर का पता चला; डॉक्टर ने रात 2 बजे कहा-वे अब नहीं रहे हरियाणा के BJP विधायक सुनील सांगवान ने मंत्री रहे पिता सतपाल सांगवान के निधन पर दर्द बयां किया है। जेल सुपरिटेंडेंट रह चुके सुनील ने 2 पार्ट में पिता की बीमारी का पता चलने से लेकर निधन तक के बारे में बताया है। जिसे उन्होंने अपने करीबियों से शेयर भी किया है। इसमें उन्होंने कहा कि किस तरह वे सिर्फ पेट दर्द दिखाने गए तो गुरुग्राम के डॉक्टर ने लिवर कैंसर बताया। बहन के निधन पर किस तरह पिता अंतिम वक्त तक गम से बाहर नहीं निकल पाए। कैसे रात 2 बजे डॉक्टर ने कहा कि पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। पूर्व मंत्री का 2-3 मार्च की रात निधन हुआ था। वे 83 साल के थे। उन्हें पूर्व CM चौधरी बंसीलाल राजनीति में लाए थे। उन्हें बंसीलाल का बुलडोजर भी कहा जाता था। पढ़िए पिता के निधन पर विधायक बेटे सुनील सांगवान ने क्या लिखा… नवंबर की बात है साहेब (पिता) ने पेट में दर्द बताया। हमने सोचा, कोई साधारण तकलीफ होगी। गुड़गांव के डॉक्टर को दिखाया, कुछ टेस्ट हुए। फिर डॉक्टर ने जो कहा, उसने मानो समय को थाम दिया। डॉक्टर ने कहा- लिवर में कैंसर है, जो नसों तक फैल चुका है। मैं और रविंद्र सिलगर, डॉक्टर के सामने खड़े थे। चारों ओर हलचल थी, लेकिन हमारे भीतर एक गहरी खामोशी पसर गई। मैं आंसुओं को जबरन रोके खड़ा था, लेकिन भीतर सब बिखर रहा था। शब्द गले में अटक गए। कुछ मिनटों तक दिमाग सुन्न रहा। मैंने हिम्मत जुटाकर पूछा- कितना समय बचा है? डॉक्टर की आवाज स्थिर थी- 3 से 4 महीने… लेकिन उन्हें मत बताइए। बाहर आए तो साहेब की तेज निगाहें हम पर टिकी थीं। उन्होंने पूछा- क्या बताया डॉक्टर ने? दिल भारी था, पर चेहरे पर हल्की मुस्कान रखनी थी। बड़ी हिम्मत से कहा- लिवर में थोड़ा इंफेक्शन है, दवाइयों से ठीक हो जाएगा। बेटे सुनील सांगवान ने लिखा- बाहर से दवाइयां मंगाई गईं। इलाज शुरू हुआ, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कैंसर नसों में उतर चुका था। नवंबर में पहला PET स्कैन हुआ, जिससे स्थिति स्पष्ट हुई। समय के साथ तबीयत और बिगड़ती गई, तो फरवरी में दूसरा PET स्कैन कराया। रिपोर्ट देखी, तो मानो जमीन खिसक गई- कैंसर रीढ़ की हड्डी और नसों तक जा पहुंचा था। डॉक्टरों से चर्चा हुई, और यह तय किया कि अब अस्पताल में भर्ती कराना ही सही रहेगा। इसके बाद 28 जनवरी को एक पहाड़ जैसा दिन आया। उस दिन बहन जी (ऊषा कादियान) चली गईं। घर का सन्नाटा अब तक के सारे शोर से भारी था। माता-पिता के लिए इससे बड़ा कोई दुख नहीं कि उनका बच्चा उनके सामने दुनिया से चला जाए। पूरा परिवार और इलाका शोक में डूब गया। बहनजी के जाने के बाद साहेब ने मुझे अपने पास बुलाया। एक ताकतवर इंसान, जो अपनी बेटी के इस दुनिया से अचानक चले जाने के सदमें से उबर नहीं पा रहे थे, आज उनकी आवाज थकी हुई थी। कांपती आवाज, मगर शब्दों में वही अपनापन था। उन्होंने मुझे कहा- अब तुझे कहीं नहीं जाना, मेरे पास ही रहना है। यह सुनकर आंखें छलक आईं, और मुझ से पिता की ओर देखा नहीं गया। मैंने पिता के गले लग कर सांत्वना देने का प्रयास किया, जिंदगी में पहली बार पिताजी के गले लगा, अलौकिक व अद्भुत पल था पिताजी के गले लगना। विधायक सांगवान ने कहा- मैं अपने हम उम्र साथियों से कहूंगा कि अपने पिता को गले जरूर लगाया करो, ये वाकई जादू की झप्पी है। पिता और पुत्र, दोनों ही हरे भरे हो उठते हैं इस एक झप्पी से। मगर, अब शायद उन्हें यह डर सताने लगा था कि जब उनका समय आएगा, तब कोई उनके पास होगा या नहीं। इस बीच, कुछ लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि मैं सार्वजनिक समारोहों में नहीं जा रहा। वे यह नहीं समझ पाए कि मैं हर किसी को व्यक्तिगत रूप से फोन करके बता रहा था कि मैं क्यों नहीं आ सकता। फरवरी के आखिरी दिनों में कैंसर ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिया। रीढ़ की हड्डी में फैलने के कारण पिता के पैर धीरे-धीरे जवाब देने लगे। अब वे चल नहीं पा रहे थे। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। खबर फैलते ही हर रोज सैकड़ों लोग अस्पताल पहुंचने लगे। कोई दूर से देखता, कोई हाथ जोड़कर प्रार्थना करता। उनके चाहने वालों की कतारें बढ़ती जा रही थीं, लेकिन हालत लगातार बिगड़ रही थी। फिर आई 2-3 मार्च की वो रात… सारा परिवार वहीं हॉस्पिटल में पिता के पास था। रात के 2 बजे डॉक्टर आए और धीमी मगर कठोर आवाज में बोले— वे अब हमारे बीच नहीं रहे सुनते ही ऐसा लगा जैसे समय ठहर गया हो, जैसे आसमान सिर पर टूट पड़ा हो। पूरा परिवार निशब्द… किसी को यकीन नहीं हुआ, पर सच सामने था। आंखें नम थीं, दिल भारी था, लेकिन फिर भी किसी तरह खुद को संभालना था। सुबह 5 बजे हम उन्हें (पार्थिव देह) लेकर दादरी की ओर चल पड़े। एम्बुलेंस में मैं साथ बैठा था। गुरुग्राम के राजीव चौक के पास से जब एम्बुलेंस निकली, तो पास के ही शिव मंदिर (हंस एन्क्लेव) से मंदिर की घंटियों की ध्वनि आई। उसके पास ही मौजूद मस्जिद से फजर की नमाज की अजान सुनाई दी। विधायक ने कहा- ऐसा लगा जैसे ईश्वर भी उन्हें अंतिम विदाई दे रहे हों। अल्लाह की अजान और भोलेनाथ की घंटियां, दोनों एक साथ गूंज रही थीं। जैसे-जैसे हम आगे बढ़े, पिता का अपना शहर दादरी नजदीक आता गया। मगर, वहां पहुंचने से पहले ही, घर के बाहर काफी लोग जमा हो चुके थे। सुबह की ठंडी हवा में एक गहरी खामोशी थी और जिसे वह नम आंखें तोड़ रहीं थी, जो अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शन को बेताब थीं। उनका पार्थिव शरीर 4 घंटे तक अंतिम दर्शन के लिए घर पर रखा गया। इस दौरान हर कोई उनकी बस एक झलक पाने के लिए बेचैन था। कुछ लोग रो रहे थे, कुछ हाथ जोड़कर खड़े थे और कुछ बस टकटकी लगाए देख रहे थे- जैसे अभी वे उठ खड़े होंगे और सबको वैसे ही राम-राम करेंगे, जैसे वो हमेशा किया करते थे। फिर दोपहर के 2 बजे, साहेब की अंतिम यात्रा शुरू हुई। दादरी की हर सड़क, हर चौक, हर गली में एक सन्नाटा था- इस सन्नाटे में भी आंसुओं की भाषा थी। जहां-जहां से यात्रा गुजरी, वहां के व्यापारियों ने अपनी दुकानें बंद कर दीं। हर कोई अपने प्रिय नेता को पुष्पांजलि अर्पित कर रहा था। लोगों के चेहरे स्तब्ध थे, जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह अंतिम यात्रा है। चंदेनी (मूल गांव) की ओर बढ़ते हुए, जितने भी गांव रास्ते में आए, वहां भी यही दृश्य था। लोग सड़कों के किनारे खड़े थे, हाथों में फूल लिए, आंखों में आंसू भरे। जहां-जहां से यात्रा गुजरती, लोग गाड़ी रुकवाकर उनके अंतिम दर्शन कर रहे थे। फूल बरसाए जा रहे थे, और पूरे माहौल में सिर्फ एक ही गूंज थी— ”सतपाल सांगवान अमर रहें!”
“जब तक सूरज चांद रहेगा, साहेब तेरा नाम रहेगा!” चार घंटे बाद जब यात्रा गांव पहुंची, तो हजारों लोग टकटकी लगाए साहेब को निहार रहे थे। हर चेहरे पर दुख की छाया थी, हर आंख में आंसू थे। जैसे पूरा गांव ठहर गया था। हरियाणा सरकार ने राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार की घोषणा की थी। विधायक ने कहा- पूरे सम्मान के साथ, जब उनकी चिता सजाई गई, तो मेरा दिल भारी हो गया। पुत्र होने के नाते, मैंने कांपते हाथों से अपने पिता को अग्नि दी। यह वह क्षण था, जिसे शब्दों में बयां करना असंभव है। सतपाल सांगवान, बेटे को इस्तीफा दिला विधायक बनाया
सतपाल सांगवान ने चरखी दादरी विधानसभा से 6 बार विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें से उन्हें 2 बार जीत मिली। पहली बार वह 1996 में हरियाणा विकास पार्टी से विधायक बने थे। वहीं, दूसरी बार 2009 में वह हजकां टिकट पर विधायक बने थे। बाद में हजकां का कांग्रेस में विलय होने पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा सरकार में सहकारिता मंत्री बने थे। उन्होंने कांग्रेस व जजपा के टिकट पर भी दादरी से चुनाव लड़ा था। पिछले साल अप्रैल 2024 में सतपाल सांगवान ने भाजपा में शामिल होने का निर्णय लिया। 19 अप्रैल 2024 को सोनीपत में आयोजित एक समारोह में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की मौजूदगी में वे भाजपा में आ गए। सतपाल सांगवान ने उम्र अधिक होने के कारण उन्होंने स्वयं चुनाव नहीं लड़ा, बल्कि अपने बेटे सुनील सांगवान को राजनीति में उतारने की तैयारी की। इसके लिए बेटे को जेल सुपरिटेंडेंट के पद से स्वैच्छिक सेवामुक्ति (VRS) दिलाई। 2024 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से चुनाव लड़कर बेटे ने जीत हासिल की।