डिजिटल अटेंडेंस पर सरकार और शिक्षकों में टकराव क्यों?:विरोध का कितना होगा असर, क्या सरकार को बढ़ाना पड़ेगा छूट का दायरा

डिजिटल अटेंडेंस पर सरकार और शिक्षकों में टकराव क्यों?:विरोध का कितना होगा असर, क्या सरकार को बढ़ाना पड़ेगा छूट का दायरा

यूपी के प्राइमरी स्कूलों में 8 जुलाई से शिक्षकों की बायोमेट्रिक हाजिरी का आदेश जारी हुआ। शिक्षक इसके विरोध में उतर आए। धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसके बाद सरकार ने आधे घंटे का अतिरिक्त समय दिया। तकनीकी दिक्कत आने पर कभी भी हाजिरी लगाने की छूट दी। इसके बावजूद अब तक एक फीसदी भी डिजिटल हाजिरी नहीं लगी है। प्राइमरी टीचरों के विरोध के बीच राजकीय माध्यमिक स्कूलों में भी डिजिटल हाजिरी अनिवार्य कर दी गई। माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेंद्र देव की तरफ से आदेश जारी किया। कहा गया है कि राजकीय माध्यमिक स्कूलों के शिक्षक और कर्मचारियों की बायोमेट्रिक मशीन से उपस्थिति अनिवार्य की जाए। संस्था प्रधान शिक्षक और कर्मचारियों के हर माह के वेतन बिल के साथ बायोमेट्रिक अटेंडेंस भी भेजें। उसी आधार पर वेतन बिल पास होगा। आखिर शिक्षक क्यों नहीं लागू नहीं होने दे रहे हैं? सरकार इसे क्यों लागू करने पर अड़ी है? भास्कर एक्सप्लेनर में एक्सपर्ट्स से जानेंगे इन्हीं सवालों के जवाब… पहले जानिए बायोमेट्रिक अटेंडेंस क्या है?
बायोमेट्रिक्स जैविक माप (बायोलॉजिकल मेजरमेंट) है। इससे किसी भी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है। इसके लिए फिंगरप्रिंट, फेस रिकग्निशन , रेटिना स्कैन किया जाता है। शिक्षकों के मामले में फेस रिकग्निशन के जरिए हाजिरी लगाने का प्रावधान है। कैसे काम करता है सिस्टम?
आमतौर पर बायोमेट्रिक सिस्टम में हर कर्मचारी के फिंगरप्रिंट, रेटिना और फेस को स्कैन किया जाता है। इसके बाद जब कर्मचारी बायोमेट्रिक सिस्टम पर अपनी उंगली रखता है, तो उसके पिछले रिकॉर्ड से मैच होने के साथ अटेंडेंस लग जाती है। इसके लिए बेसिक शिक्षा विभाग ने सभी सरकारी स्कूलों में दो-दो टैबलट उपलब्ध करवाए हैं। जिसके जरिए शिक्षकों को स्कूल खुलने के 15 मिनट पहले और बंद होने के 15 मिनट के भीतर प्रेरणा ऐप पर डिजिटल अटेंडेंस लगानी है। हालांकि विरोध के बाद आधे घंटे का अतिरिक्त समय दिया गया है। उसके लिए शिकायत दर्ज करानी होगी। बेसिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव एम सुंदरम् ने साफ किया है कि छूट सिर्फ तब तक के लिए है जब तक प्रेरणा ऐप की तकनीकी खराबी ठीक नहीं कर ली जाती। अभी तक हाजिरी कैसे लगती थी? इसमें क्या-क्या लूप होल होते थे?
प्राइमरी और माध्यमिक स्कूलों में अभी तक अटेंडेंस के लिए रजिस्टर होता था। टीचर इस पर सिग्नेचर करते थे। यह रजिस्ट्रर हेडमास्टर या प्राचार्य के पास होता था। इसमें लूप होल यह था कि जब भी टीचर स्कूल आते सिग्नेचर कर देते थे। दूसरा- अगर स्कूल नहीं आते तो दूसरे दिन भी सिग्नेचर कर देते थे। शिक्षक विरोध क्यों कर रहे हैं? शिक्षकों का विरोध कितना बड़ा है?
शिक्षक एकजुट हैं। हर स्कूल में प्रदर्शन हो रहा है। दो दिन के बायोमेट्रिक अटेंडेंस के आंकड़ों से विरोध का अंदाजा लगाया जा सकता है। शुक्रवार को सिर्फ 0.61% टीचरों ने बायोमेट्रिक अटेंडेंस लगाई, जबकि शनिवार को यह आंकड़ा और कम हो गया। सिर्फ 2210 टीचरों यानी सिर्फ 0.39% ने ही बायोमेट्रिक अटेंडेंस लगाई। मैनपुरी, एटा और बरेली जैसे जिलों में शिक्षकों ने संकुल के प्रभार से इस्तीफा दे दिया है। शिक्षा के अलावा दूसरे सरकारी कार्यों में लगे टीचरों ने काम छोड़ दिया है। यूपी में प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा मित्र से लेकर टीचर तक की संख्या 6 लाख 9 हजार 564 है। सरकार को फैसला वापस लेना पड़ेगा
पूरे मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। सपा नेता शिक्षकों के साथ आदेश का विरोध कर रहे हैं। एक शिक्षक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि टीचर पब्लिक ओपिनियन माने जाते हैं। दूसरे, चुनावों में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। वे पीठासीन अधिकारी का काम संभालते हैं। इसलिए राजनीतिक पार्टियां उनके पक्ष में आएंगी। सरकार को फैसला वापस लेना पड़ेगा। पुरानी पद्धति की आदत
एक्सपर्ट कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में तैनात कई शिक्षकों को पुरानी पद्धति से काम करने की आदत पड़ गई है। इसमें देर से स्कूल पहुंचना या अनुपस्थित रहना भी शामिल है। ऐसे में विरोध का कारण ये भी हो सकता है। डिजिटल हाजिरी क्यों?
एक्सपर्ट्स का कहना है, निरीक्षण के दौरान यह निकलकर आता था कि स्कूलों में टीचर आते ही नहीं थे। कई बार 90% तक टीचर अनुपस्थित मिले हैं। बलरामपुर, श्रावस्ती जैसे जिले में तो यह निकलकर आया है कि वहां पर टीचर अफसरों को एक फिक्स अमाउंट दे देते हैं, बाकी वो नोएडा और दूसरे शहरों में रहकर दूसरा काम भी करते हैं। उन्हें आराम से सैलरी मिलती है। अगर सरकार ने डिजिटल हाजिरी तय की है तो इसके पीछे उसने पूरी जानकारी जुटाई है, तब ही लागू किया है। इसमें फर्जीवाड़ा नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसमें फर्जीवाड़े की कोई गुंजाइश नहीं है। इसकी वजह यह है कि स्कूलों की मैपिंग की गई है। जिस टैबलेट से अटेंडेंस लगनी है, उसे स्कूल के आसपास होना जरूरी है। दूसरा- फेस रिकग्निशन के जरिए अटेंडेंस लगनी है। इसमें रेटिना तक स्कैन होगी। इसलिए शिक्षक को स्कूल में उस समय रहना ही होगा। गड़बड़ी यही हो सकती है कि अटेंडेंस लगाकर टीचर चला जाए, लेकिन उसे फिर छुट्‌टी के समय स्कूल आना होगा। यानी कम से कम दो बार उसे स्कूल आना ही होगा। उन शिक्षकों के लिए ज्यादा दिक्कत होगी, जो शहर में रहते हुए कभी-कभार स्कूल जाते हैं। टैबलेट से अटेंडेंस में खामियां क्या हैं?
कुछ स्कूलों से ये भी शिकायत आई है कि वहां पर नेटवर्क नहीं है। इसकी वजह से अटेंडेंस नहीं लग पा रही है। कुछ जगह टैब भी नहीं काम कर रहे हैं। अटेंडेंस स्कूल के अंदर से लगानी है। ऐप में लोकेशन किसी दूसरी जगह की दिख रही है। शिक्षक नेताओं का कहना है कि सरकार प्राइवेट कंपनी के जरिए ये प्रक्रिया लागू करा रही है। जूनियर स्कूलों में सिम और टैब नहीं दिया गया है। सिम के लिए शिक्षकों को अपनी आईडी देनी पड़ रही है। इससे महिला शिक्षकों की सुरक्षा को भी खतरा है, हर समय उनकी लोकेशन ट्रेस हो रही है। अटेंडेंस में गड़बड़ी होने पर उन्हें परेशान किए जाने का भी डर है। क्या पहले भी यूपी में लागू हुआ था ऐसा आदेश?
ऐसा पहली बार नहीं है जब विद्यालयों के लिए ऐसा आदेश जारी हुआ है। राजकीय व अशासकीय सहायता प्राप्त (एडेड) माध्यमिक विद्यालयों में 2022 व उससे पहले भी यह व्यवस्था लागू करने के आदेश जारी हुए थे। कई GIC और GGIC में यह व्यवस्था लागू भी हुई, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के काफी राजकीय और एडेड विद्यालयों में यह पूरी तरह लागू नहीं हो पाई। अब माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेंद्र देव ने प्रदेश के सभी विद्यालयों में इसे लागू करने के निर्देश दिए हैं। अब आगे क्या ?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि डिजिटल अटेंडेंस को लेकर व्यावहारिक दिक्कतें अभी आ रही हैं। टीचर भी अड़े हुए हैं। सरकार ने अभी ग्रेस टाइम बढ़ाया है। टीचरों के विरोध को देखते हुए सरकार एक ही समय की डिजिटल अटेंडेंस को लागू कर सकती है। यूपी में डिजिटल हाजिरी अब तक किस-किस विभाग में हैं?
यूपी में अधिकतर डिपार्टमेंट में बायोमेट्रिक अटेंडेंस का नियम लागू है। मध्यप्रदेश में इसी साल से डिग्री कॉलेजों में स्कूल खुलने और बंद होने के समय सेल्फी लेकर सार्थक ग्रुप में डालने का नियम है। इसके पहले मध्यप्रदेश के ही प्राइमरी स्कूलों में बायोमेट्रिक अटेंडेंस की शुरुआत की गई थी, लेकिन विरोध के चलते यह सफल नहीं हो पाया। यूपी के प्राइमरी स्कूलों में 8 जुलाई से शिक्षकों की बायोमेट्रिक हाजिरी का आदेश जारी हुआ। शिक्षक इसके विरोध में उतर आए। धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया। इसके बाद सरकार ने आधे घंटे का अतिरिक्त समय दिया। तकनीकी दिक्कत आने पर कभी भी हाजिरी लगाने की छूट दी। इसके बावजूद अब तक एक फीसदी भी डिजिटल हाजिरी नहीं लगी है। प्राइमरी टीचरों के विरोध के बीच राजकीय माध्यमिक स्कूलों में भी डिजिटल हाजिरी अनिवार्य कर दी गई। माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेंद्र देव की तरफ से आदेश जारी किया। कहा गया है कि राजकीय माध्यमिक स्कूलों के शिक्षक और कर्मचारियों की बायोमेट्रिक मशीन से उपस्थिति अनिवार्य की जाए। संस्था प्रधान शिक्षक और कर्मचारियों के हर माह के वेतन बिल के साथ बायोमेट्रिक अटेंडेंस भी भेजें। उसी आधार पर वेतन बिल पास होगा। आखिर शिक्षक क्यों नहीं लागू नहीं होने दे रहे हैं? सरकार इसे क्यों लागू करने पर अड़ी है? भास्कर एक्सप्लेनर में एक्सपर्ट्स से जानेंगे इन्हीं सवालों के जवाब… पहले जानिए बायोमेट्रिक अटेंडेंस क्या है?
बायोमेट्रिक्स जैविक माप (बायोलॉजिकल मेजरमेंट) है। इससे किसी भी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है। इसके लिए फिंगरप्रिंट, फेस रिकग्निशन , रेटिना स्कैन किया जाता है। शिक्षकों के मामले में फेस रिकग्निशन के जरिए हाजिरी लगाने का प्रावधान है। कैसे काम करता है सिस्टम?
आमतौर पर बायोमेट्रिक सिस्टम में हर कर्मचारी के फिंगरप्रिंट, रेटिना और फेस को स्कैन किया जाता है। इसके बाद जब कर्मचारी बायोमेट्रिक सिस्टम पर अपनी उंगली रखता है, तो उसके पिछले रिकॉर्ड से मैच होने के साथ अटेंडेंस लग जाती है। इसके लिए बेसिक शिक्षा विभाग ने सभी सरकारी स्कूलों में दो-दो टैबलट उपलब्ध करवाए हैं। जिसके जरिए शिक्षकों को स्कूल खुलने के 15 मिनट पहले और बंद होने के 15 मिनट के भीतर प्रेरणा ऐप पर डिजिटल अटेंडेंस लगानी है। हालांकि विरोध के बाद आधे घंटे का अतिरिक्त समय दिया गया है। उसके लिए शिकायत दर्ज करानी होगी। बेसिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव एम सुंदरम् ने साफ किया है कि छूट सिर्फ तब तक के लिए है जब तक प्रेरणा ऐप की तकनीकी खराबी ठीक नहीं कर ली जाती। अभी तक हाजिरी कैसे लगती थी? इसमें क्या-क्या लूप होल होते थे?
प्राइमरी और माध्यमिक स्कूलों में अभी तक अटेंडेंस के लिए रजिस्टर होता था। टीचर इस पर सिग्नेचर करते थे। यह रजिस्ट्रर हेडमास्टर या प्राचार्य के पास होता था। इसमें लूप होल यह था कि जब भी टीचर स्कूल आते सिग्नेचर कर देते थे। दूसरा- अगर स्कूल नहीं आते तो दूसरे दिन भी सिग्नेचर कर देते थे। शिक्षक विरोध क्यों कर रहे हैं? शिक्षकों का विरोध कितना बड़ा है?
शिक्षक एकजुट हैं। हर स्कूल में प्रदर्शन हो रहा है। दो दिन के बायोमेट्रिक अटेंडेंस के आंकड़ों से विरोध का अंदाजा लगाया जा सकता है। शुक्रवार को सिर्फ 0.61% टीचरों ने बायोमेट्रिक अटेंडेंस लगाई, जबकि शनिवार को यह आंकड़ा और कम हो गया। सिर्फ 2210 टीचरों यानी सिर्फ 0.39% ने ही बायोमेट्रिक अटेंडेंस लगाई। मैनपुरी, एटा और बरेली जैसे जिलों में शिक्षकों ने संकुल के प्रभार से इस्तीफा दे दिया है। शिक्षा के अलावा दूसरे सरकारी कार्यों में लगे टीचरों ने काम छोड़ दिया है। यूपी में प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा मित्र से लेकर टीचर तक की संख्या 6 लाख 9 हजार 564 है। सरकार को फैसला वापस लेना पड़ेगा
पूरे मुद्दे ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। सपा नेता शिक्षकों के साथ आदेश का विरोध कर रहे हैं। एक शिक्षक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि टीचर पब्लिक ओपिनियन माने जाते हैं। दूसरे, चुनावों में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। वे पीठासीन अधिकारी का काम संभालते हैं। इसलिए राजनीतिक पार्टियां उनके पक्ष में आएंगी। सरकार को फैसला वापस लेना पड़ेगा। पुरानी पद्धति की आदत
एक्सपर्ट कहते हैं कि ग्रामीण इलाकों में तैनात कई शिक्षकों को पुरानी पद्धति से काम करने की आदत पड़ गई है। इसमें देर से स्कूल पहुंचना या अनुपस्थित रहना भी शामिल है। ऐसे में विरोध का कारण ये भी हो सकता है। डिजिटल हाजिरी क्यों?
एक्सपर्ट्स का कहना है, निरीक्षण के दौरान यह निकलकर आता था कि स्कूलों में टीचर आते ही नहीं थे। कई बार 90% तक टीचर अनुपस्थित मिले हैं। बलरामपुर, श्रावस्ती जैसे जिले में तो यह निकलकर आया है कि वहां पर टीचर अफसरों को एक फिक्स अमाउंट दे देते हैं, बाकी वो नोएडा और दूसरे शहरों में रहकर दूसरा काम भी करते हैं। उन्हें आराम से सैलरी मिलती है। अगर सरकार ने डिजिटल हाजिरी तय की है तो इसके पीछे उसने पूरी जानकारी जुटाई है, तब ही लागू किया है। इसमें फर्जीवाड़ा नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि इसमें फर्जीवाड़े की कोई गुंजाइश नहीं है। इसकी वजह यह है कि स्कूलों की मैपिंग की गई है। जिस टैबलेट से अटेंडेंस लगनी है, उसे स्कूल के आसपास होना जरूरी है। दूसरा- फेस रिकग्निशन के जरिए अटेंडेंस लगनी है। इसमें रेटिना तक स्कैन होगी। इसलिए शिक्षक को स्कूल में उस समय रहना ही होगा। गड़बड़ी यही हो सकती है कि अटेंडेंस लगाकर टीचर चला जाए, लेकिन उसे फिर छुट्‌टी के समय स्कूल आना होगा। यानी कम से कम दो बार उसे स्कूल आना ही होगा। उन शिक्षकों के लिए ज्यादा दिक्कत होगी, जो शहर में रहते हुए कभी-कभार स्कूल जाते हैं। टैबलेट से अटेंडेंस में खामियां क्या हैं?
कुछ स्कूलों से ये भी शिकायत आई है कि वहां पर नेटवर्क नहीं है। इसकी वजह से अटेंडेंस नहीं लग पा रही है। कुछ जगह टैब भी नहीं काम कर रहे हैं। अटेंडेंस स्कूल के अंदर से लगानी है। ऐप में लोकेशन किसी दूसरी जगह की दिख रही है। शिक्षक नेताओं का कहना है कि सरकार प्राइवेट कंपनी के जरिए ये प्रक्रिया लागू करा रही है। जूनियर स्कूलों में सिम और टैब नहीं दिया गया है। सिम के लिए शिक्षकों को अपनी आईडी देनी पड़ रही है। इससे महिला शिक्षकों की सुरक्षा को भी खतरा है, हर समय उनकी लोकेशन ट्रेस हो रही है। अटेंडेंस में गड़बड़ी होने पर उन्हें परेशान किए जाने का भी डर है। क्या पहले भी यूपी में लागू हुआ था ऐसा आदेश?
ऐसा पहली बार नहीं है जब विद्यालयों के लिए ऐसा आदेश जारी हुआ है। राजकीय व अशासकीय सहायता प्राप्त (एडेड) माध्यमिक विद्यालयों में 2022 व उससे पहले भी यह व्यवस्था लागू करने के आदेश जारी हुए थे। कई GIC और GGIC में यह व्यवस्था लागू भी हुई, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के काफी राजकीय और एडेड विद्यालयों में यह पूरी तरह लागू नहीं हो पाई। अब माध्यमिक शिक्षा निदेशक डॉ. महेंद्र देव ने प्रदेश के सभी विद्यालयों में इसे लागू करने के निर्देश दिए हैं। अब आगे क्या ?
एक्सपर्ट्स का कहना है कि डिजिटल अटेंडेंस को लेकर व्यावहारिक दिक्कतें अभी आ रही हैं। टीचर भी अड़े हुए हैं। सरकार ने अभी ग्रेस टाइम बढ़ाया है। टीचरों के विरोध को देखते हुए सरकार एक ही समय की डिजिटल अटेंडेंस को लागू कर सकती है। यूपी में डिजिटल हाजिरी अब तक किस-किस विभाग में हैं?
यूपी में अधिकतर डिपार्टमेंट में बायोमेट्रिक अटेंडेंस का नियम लागू है। मध्यप्रदेश में इसी साल से डिग्री कॉलेजों में स्कूल खुलने और बंद होने के समय सेल्फी लेकर सार्थक ग्रुप में डालने का नियम है। इसके पहले मध्यप्रदेश के ही प्राइमरी स्कूलों में बायोमेट्रिक अटेंडेंस की शुरुआत की गई थी, लेकिन विरोध के चलते यह सफल नहीं हो पाया।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर