दाल-रोटी खाकर टेनिस में लगाई ‘लाजवाब सर्विस’:डेविस कप में खेलेगा काशी का सिद्धार्थ; पिता ने दुकान का सामान बेचकर दिलाया था रैकेट

दाल-रोटी खाकर टेनिस में लगाई ‘लाजवाब सर्विस’:डेविस कप में खेलेगा काशी का सिद्धार्थ; पिता ने दुकान का सामान बेचकर दिलाया था रैकेट

‘मेरे पिता जी टुल्लू पंप और अन्य सामान ठीक करने की एक छोटी सी इलेक्ट्रॉनिक की दुकान चलाते थे। मुझे दिमागी बुखार की शिकायत थी। डॉक्टर ने कहा कि इसे किसी स्पोर्ट्स में डाल दीजिए। फिर मेरे चाचा ने मेरी ऊंगली पकड़ी और मुझे बीएचयू के टेनिस कोर्ट ले गए। यहां खेलना शुरू किया पर प्रोफेशनल रैकेट नहीं था। पिता ने मुझे पीछे नहीं हटने दिया और अपनी दुकान का सामान बेचकर मेरे लिए रैकेट खरीदा।’ डेविस कप में चयन हुआ इसके लिए मेरी मां का प्यार और मेरे कोच रतन शर्मा का बहुत योगदान है। उन्होंने हमेशा मुझे मोटिवेट किया यहां तक कि रतन सर की एकेडमी भी दांव पर लग गई पर उन्होंने मेरी हर तरह से मदद की। डाइट में बस दाल-रोटी और घर का खाना ही खाता था जिससे मेरी सर्विस दमदार हो गई है।’ ये कहकर वाराणसी के टेनिस खिलाड़ी सिद्धार्थ विश्वकर्मा खामोश हो गए। इस समय दिल्ली में अपनी डेविस कप की तैयारियों में जुटे हुए सिद्धार्थ वाराणसी के घौसाबाद के रहने वाले हैं। उनके पिता अंजनी कुमार विश्वकर्मा घर के बाहर ही इलेक्ट्रॉनिक्स और रिपयेरिंग की दुकान चलाते थे। आज दुकान भी बंद है और मकान भी। बेटा पिता और मां को अपने साथ ले गया और अब वो दोनों उसके साथ नोएडा में ही रहते हैं। दैनिक भास्कर ने नेशनल स्पोर्ट्स डे के मौके पर सिद्धार्थ से बात की और उनके संघर्षों की कहानी, उनकी जुबानी जानी। सबसे पहले जानते हैं आखिर क्यों सिद्धार्थ को टेनिस खेलना पड़ा, इसके पीछे की वजह क्या थी ? गरीब परिवार में जन्मे सिद्धार्थ ने 7 साल की उम्र में उठाया टेनिस रैकेट
वाराणसी के घौसाबाद के रहने वाले अंजनी विश्वकर्मा और किरन विश्वकर्मा के बेटे सिद्धार्थ को बचपन से ही दिमागी बुखार की शिकायत थी। परिजन परेशान थे। सिद्धार्थ ने बताया – तब शायद मै 7 साल का था। मुझे दिमागी बुखार रहता था। हमेशा बुखार 105 से ज्यादा होता था। ऐसे में डॉक्टर ने मेरे घर वालों को रिकमंड किया कि इसे किसी स्पोर्ट्स एक्टिविटी में डाल दिया जाए। इसकी तबीयत में सुधार आ जाएगा। इसके बाद मेरे चाचा जो बीएचयू में थे वो मुझे टेनिस कोर्ट ले गए। कुछ दिन तो मैंने बैठकर देखा फिर मुझे इंट्रेस्ट जागा और मैंने भी साल 2000 में रैकेट उठा लिया और टेनिस खेलने लगा। पिता चलाते थे इलेक्ट्रॉनिक्स और रिपयेरिंग की दुकान
सिद्धार्थ ने बताया- मेरे पिता जी छोटी से एक इलेक्ट्रॉनिक्स और टुल्लू पंप रिपेयरिंग की दुकान चलाते थे। अब वो मेरे साथ ही रहते हैं। दुकान बंद हो चुकी है। साल 2006 में मुझे डिस्ट्रिक्ट कंपटीशन में टेनिस खेलना था। मैंने पापा को बताया कि इसमें प्रोफेशनल टेनिस की आवश्यकता है। उन्होंने कहा तुम खेल पर ध्यान लगाओ। इन सब चीजों पर नहीं। हम मैनेज कर देंगे। इसके बाद उन्होंने मुझे अपनी दुकान के सामान बेचकर 25 हजार का रैकेट दिलाया। पटना में खेला साल 2008 में पहला नेशनल टूर्नामेंट
सिद्धार्थ ने पटना में पहला नेशनल टूर्नामेंट खेला जिसे AITA ने करवाया था। सिद्धार्थ ने बताया- इसमें मैंने जीत हासिल की तो पूरे घर में और मेरे कोच सब खुश थे। इस गेम में बहुत सारे कोच की मुझ पर नजर पड़ी और उन्होंने मुझसे संपर्क किया। ये मेरे खेल का पीक था लेकिन यहीं से शायद सफर खत्म होने वाला था। 2008 से छोड़ दिया टेनिस
सिद्धार्थ ने बताया – मेरा टेनिस साल 2008 में उस मुकाम पर था जहां से मै पीछे मुड़कर नहीं देखता। लेकिन कुछ वजह और घर की आर्थिक स्थिति ने मेरे कदम रोक दिए। मै घर पर बैठ गया। इस दौरान मेरी मम्मी ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। उन्होंने हमेशा मुझे हौसला दिया और प्रैक्टिस करते रहने की बात कही और मै भी प्रैक्टिस करता रहा। साल 2010 में लखनऊ गया तो किस्मत चमक गई। अब जानिए कब दोबारा की गेम में वापसी और किसने की मदद, दिल्ली में कैसे किया गुजारा ?
इस समय दिल्ली में डेविस कप की तैयारियों में जुटे हुए हैं। हमसे बात करते हुए वो रुक गए तो हमने पूछा की आखिर वापसी कैसे हुई टेनिस में और फिर डेविस कप का सफर ऐसे तय हुआ तो उन्होंने हंस कर आगे की बात बताई। 2010 में पवन सागर जी ने मुझे देखा और लखनऊ ले गए
सिद्धार्थ ने बताया- 2010 में पवन सागर जी जो मायावती के ओएसडी भी थे उन्होंने मुझे देखा और मेरा गेम देखकर प्रभावित हुए और लखनऊ गोमती नगर ले गए। वहां उन्होंने मुझे अपने घर में ही बेटे की तरह रखा और मुझे एकेडमी में भेजना शुरू किया। जिससे मेरा खेल निखार गया। यहां से मेरा नई दिल्ली जाने का रास्ता खुला। उन्होंने मुझे कई सारे टूर्नामेंट खिलाए और जूनियर होने के बावजूद मेरी रैंकिंग सीनियर प्लेयर्स में उनकी वजह से आ गई। दिल्ली में रहने के लिए कराने लगा युवाओं को टेनिस की कोचिंग
सिद्धार्थ जब दिल्ली पहुंचे तो कुछ दिन सब ठीक रहा पर जब पैसों की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने डिफेंस कालोनी के बच्चों को टेनिस की कोचिंग देना शुरू कर दिया। साल 2011 के बाद से 2022 तक दिल्ली में स्टूडेंट्स को कोचिंग दी और छोटे-छोटे टूर्नामेंट भी खेले। इसी दौरान टेनिस के बड़े कोच रतन शर्मा की मुझ पर नजर पड़ी तो उन्होंने मुझे डांटा। रतन शर्मा ने अपनी एकेडमी में दी जगह, नहीं लिया एक भी पैसा
काशी के सिद्धार्थ विश्वकर्मा 7 तारीख को स्वीडन जा रहे हैं। इसके पहले उन्होंने अपने कोच रतन शर्मा की जमकर तारीफ की उन्होंने बताया- जब रतन सर की निगाह मुझ पर पड़ी तो वो मुझे अपने साथ ले गए और कहा कि अब रोजाना यहां प्रैक्टिस करो। मैंने उनसे कहा कि मेरे पास पैसे नहीं हैं। तो उन्होंने कहा तुम चिंता न करो और फिर मै रोजाना प्रैक्टिस करने लगा। 37वें नेशनल गेम में इंडिविजुअल गोल्ड दिलाया यूपी को
सिद्धार्थ ने 37वें नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया। गोवा में हुए इस इवेंट में उन्होंने टेनिस का इंडिविजुअल इवेंट जीता और यूपी का नाम रोशन किया। सिद्धार्थ ने कहा कि यह सब रतन सर की देन था और आज मैं स्वीडन जा रहा हूं डेविस कप के लिए तो यह भी रतन सर की देन है। दाल-रोटी खाकर बनाई सर्विस हार्ड, डरते हैं प्रतिद्वंदी
हमने सिद्धार्थ से पूछा कि आप की सब मजबूत चीज टेनिस में क्या है तो उन्होंने बताया कि मेरी सर्विस काफी हार्ड है। जिसकी तारीफ मेरे कोच करते हैं। उनसे डाइट को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा मुझे दाल-रोटी और घर का खाना ही पसंद है। डाइट में बाद यही लेता हूं। ‘मेरे पिता जी टुल्लू पंप और अन्य सामान ठीक करने की एक छोटी सी इलेक्ट्रॉनिक की दुकान चलाते थे। मुझे दिमागी बुखार की शिकायत थी। डॉक्टर ने कहा कि इसे किसी स्पोर्ट्स में डाल दीजिए। फिर मेरे चाचा ने मेरी ऊंगली पकड़ी और मुझे बीएचयू के टेनिस कोर्ट ले गए। यहां खेलना शुरू किया पर प्रोफेशनल रैकेट नहीं था। पिता ने मुझे पीछे नहीं हटने दिया और अपनी दुकान का सामान बेचकर मेरे लिए रैकेट खरीदा।’ डेविस कप में चयन हुआ इसके लिए मेरी मां का प्यार और मेरे कोच रतन शर्मा का बहुत योगदान है। उन्होंने हमेशा मुझे मोटिवेट किया यहां तक कि रतन सर की एकेडमी भी दांव पर लग गई पर उन्होंने मेरी हर तरह से मदद की। डाइट में बस दाल-रोटी और घर का खाना ही खाता था जिससे मेरी सर्विस दमदार हो गई है।’ ये कहकर वाराणसी के टेनिस खिलाड़ी सिद्धार्थ विश्वकर्मा खामोश हो गए। इस समय दिल्ली में अपनी डेविस कप की तैयारियों में जुटे हुए सिद्धार्थ वाराणसी के घौसाबाद के रहने वाले हैं। उनके पिता अंजनी कुमार विश्वकर्मा घर के बाहर ही इलेक्ट्रॉनिक्स और रिपयेरिंग की दुकान चलाते थे। आज दुकान भी बंद है और मकान भी। बेटा पिता और मां को अपने साथ ले गया और अब वो दोनों उसके साथ नोएडा में ही रहते हैं। दैनिक भास्कर ने नेशनल स्पोर्ट्स डे के मौके पर सिद्धार्थ से बात की और उनके संघर्षों की कहानी, उनकी जुबानी जानी। सबसे पहले जानते हैं आखिर क्यों सिद्धार्थ को टेनिस खेलना पड़ा, इसके पीछे की वजह क्या थी ? गरीब परिवार में जन्मे सिद्धार्थ ने 7 साल की उम्र में उठाया टेनिस रैकेट
वाराणसी के घौसाबाद के रहने वाले अंजनी विश्वकर्मा और किरन विश्वकर्मा के बेटे सिद्धार्थ को बचपन से ही दिमागी बुखार की शिकायत थी। परिजन परेशान थे। सिद्धार्थ ने बताया – तब शायद मै 7 साल का था। मुझे दिमागी बुखार रहता था। हमेशा बुखार 105 से ज्यादा होता था। ऐसे में डॉक्टर ने मेरे घर वालों को रिकमंड किया कि इसे किसी स्पोर्ट्स एक्टिविटी में डाल दिया जाए। इसकी तबीयत में सुधार आ जाएगा। इसके बाद मेरे चाचा जो बीएचयू में थे वो मुझे टेनिस कोर्ट ले गए। कुछ दिन तो मैंने बैठकर देखा फिर मुझे इंट्रेस्ट जागा और मैंने भी साल 2000 में रैकेट उठा लिया और टेनिस खेलने लगा। पिता चलाते थे इलेक्ट्रॉनिक्स और रिपयेरिंग की दुकान
सिद्धार्थ ने बताया- मेरे पिता जी छोटी से एक इलेक्ट्रॉनिक्स और टुल्लू पंप रिपेयरिंग की दुकान चलाते थे। अब वो मेरे साथ ही रहते हैं। दुकान बंद हो चुकी है। साल 2006 में मुझे डिस्ट्रिक्ट कंपटीशन में टेनिस खेलना था। मैंने पापा को बताया कि इसमें प्रोफेशनल टेनिस की आवश्यकता है। उन्होंने कहा तुम खेल पर ध्यान लगाओ। इन सब चीजों पर नहीं। हम मैनेज कर देंगे। इसके बाद उन्होंने मुझे अपनी दुकान के सामान बेचकर 25 हजार का रैकेट दिलाया। पटना में खेला साल 2008 में पहला नेशनल टूर्नामेंट
सिद्धार्थ ने पटना में पहला नेशनल टूर्नामेंट खेला जिसे AITA ने करवाया था। सिद्धार्थ ने बताया- इसमें मैंने जीत हासिल की तो पूरे घर में और मेरे कोच सब खुश थे। इस गेम में बहुत सारे कोच की मुझ पर नजर पड़ी और उन्होंने मुझसे संपर्क किया। ये मेरे खेल का पीक था लेकिन यहीं से शायद सफर खत्म होने वाला था। 2008 से छोड़ दिया टेनिस
सिद्धार्थ ने बताया – मेरा टेनिस साल 2008 में उस मुकाम पर था जहां से मै पीछे मुड़कर नहीं देखता। लेकिन कुछ वजह और घर की आर्थिक स्थिति ने मेरे कदम रोक दिए। मै घर पर बैठ गया। इस दौरान मेरी मम्मी ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। उन्होंने हमेशा मुझे हौसला दिया और प्रैक्टिस करते रहने की बात कही और मै भी प्रैक्टिस करता रहा। साल 2010 में लखनऊ गया तो किस्मत चमक गई। अब जानिए कब दोबारा की गेम में वापसी और किसने की मदद, दिल्ली में कैसे किया गुजारा ?
इस समय दिल्ली में डेविस कप की तैयारियों में जुटे हुए हैं। हमसे बात करते हुए वो रुक गए तो हमने पूछा की आखिर वापसी कैसे हुई टेनिस में और फिर डेविस कप का सफर ऐसे तय हुआ तो उन्होंने हंस कर आगे की बात बताई। 2010 में पवन सागर जी ने मुझे देखा और लखनऊ ले गए
सिद्धार्थ ने बताया- 2010 में पवन सागर जी जो मायावती के ओएसडी भी थे उन्होंने मुझे देखा और मेरा गेम देखकर प्रभावित हुए और लखनऊ गोमती नगर ले गए। वहां उन्होंने मुझे अपने घर में ही बेटे की तरह रखा और मुझे एकेडमी में भेजना शुरू किया। जिससे मेरा खेल निखार गया। यहां से मेरा नई दिल्ली जाने का रास्ता खुला। उन्होंने मुझे कई सारे टूर्नामेंट खिलाए और जूनियर होने के बावजूद मेरी रैंकिंग सीनियर प्लेयर्स में उनकी वजह से आ गई। दिल्ली में रहने के लिए कराने लगा युवाओं को टेनिस की कोचिंग
सिद्धार्थ जब दिल्ली पहुंचे तो कुछ दिन सब ठीक रहा पर जब पैसों की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने डिफेंस कालोनी के बच्चों को टेनिस की कोचिंग देना शुरू कर दिया। साल 2011 के बाद से 2022 तक दिल्ली में स्टूडेंट्स को कोचिंग दी और छोटे-छोटे टूर्नामेंट भी खेले। इसी दौरान टेनिस के बड़े कोच रतन शर्मा की मुझ पर नजर पड़ी तो उन्होंने मुझे डांटा। रतन शर्मा ने अपनी एकेडमी में दी जगह, नहीं लिया एक भी पैसा
काशी के सिद्धार्थ विश्वकर्मा 7 तारीख को स्वीडन जा रहे हैं। इसके पहले उन्होंने अपने कोच रतन शर्मा की जमकर तारीफ की उन्होंने बताया- जब रतन सर की निगाह मुझ पर पड़ी तो वो मुझे अपने साथ ले गए और कहा कि अब रोजाना यहां प्रैक्टिस करो। मैंने उनसे कहा कि मेरे पास पैसे नहीं हैं। तो उन्होंने कहा तुम चिंता न करो और फिर मै रोजाना प्रैक्टिस करने लगा। 37वें नेशनल गेम में इंडिविजुअल गोल्ड दिलाया यूपी को
सिद्धार्थ ने 37वें नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया। गोवा में हुए इस इवेंट में उन्होंने टेनिस का इंडिविजुअल इवेंट जीता और यूपी का नाम रोशन किया। सिद्धार्थ ने कहा कि यह सब रतन सर की देन था और आज मैं स्वीडन जा रहा हूं डेविस कप के लिए तो यह भी रतन सर की देन है। दाल-रोटी खाकर बनाई सर्विस हार्ड, डरते हैं प्रतिद्वंदी
हमने सिद्धार्थ से पूछा कि आप की सब मजबूत चीज टेनिस में क्या है तो उन्होंने बताया कि मेरी सर्विस काफी हार्ड है। जिसकी तारीफ मेरे कोच करते हैं। उनसे डाइट को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा मुझे दाल-रोटी और घर का खाना ही पसंद है। डाइट में बाद यही लेता हूं।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर