देशभर की निगाहें जिस अयोध्या पर थीं, वहीं भाजपा चुनाव हार गई। राम नगरी में मिले इस जनमत ने सबको चौंका दिया। 90 की रथयात्रा से लेकर 2024 के चुनाव तक भाजपा के मूल में रहने वाली सीट पर पार्टी ने जी-जान से ताकत लगाई। हजार-दो हजार करोड़ नहीं, 32 हजार करोड़ के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट शुरू कराए। राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा दुनियाभर में सुर्खियां बनीं। 500 साल पुराना इतिहास बदला गया। पीएम मोदी खुद यहां रोड-शो करने आए। योगी ने 5 जनसभाएं कीं। मगर सियासी जादू नहीं चला। यहां जनता की नाराजगी अंदर ही अंदर मुखर हो रही थी। भाजपा के स्थानीय नेताओं से लेकर आलाकमान तक उस तासीर को भांप ही नहीं पाए। प्रधानमंत्री मोदी को यहां के भाजपा नेता गुड मैनेजमेंट दिखाते रहे। मगर अंदरखाने में कुछ और ही चल रहा था। विरोध की यह चिंगारी कैंडिडेट के फाइनल होते ही शुरू हो गई थी। आखिर भाजपा अपने सबसे बड़े गढ़ में क्यों हारी, लोगों के बीच में क्या गुस्सा था? मोदी आखिर जनता की नब्ज को क्यों नहीं भांप पाए? इन सवालों के जवाब खंगालने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड पर उतरी। पूरी रिपोर्ट पढ़िए… लोग बोले- मंदिर से खुश, सांसद से नाराज
हनुमानगढ़ी जाने वाली सड़क के मार्केट में हमारी मुलाकात रणंजय शास्त्री से हुई। भाजपा को वोट क्यों नहीं पड़ा? वो कहते हैं- भाजपा इसलिए नहीं हारी, क्योंकि लोग मोदी-योगी को पसंद नहीं करते हैं। लोग राममंदिर बन जाने से खुश हैं। मगर मौजूदा सांसद लल्लू सिंह से नाराज हैं। आप ऐसे समझिए कि जो 4.99 लाख वोट भाजपा को मिले हैं। वो पीएम मोदी को मिले हैं, लल्लू सिंह को नहीं। अयोध्या में 2 साल से लोग परेशान हैं। VIP तो आते हैं, मगर जो सड़कें बंद होती हैं, उनमें हम लोग फंसते हैं। लोग घरों में कैद हो जाते हैं। हमारे रिश्तेदार शहर के बॉर्डर पर फंस जाते हैं। अंदर नहीं आने दिया जाता। यही वजह है कि लोगों ने सपा को जिता दिया। भाजपा को शहर से मिले वोट, गांव वालों का रुख सपा की ओर
यहां से कुछ आगे चलने पर हमारी मुलाकात ओंकार पांडेय से हुई। वह बताते हैं- भाजपा को गांव में कम वोट मिले हैं। शहर के लोगों ने वोट दिए हैं। इसकी वजह अधिकारियों की तानाशाही और सांसद की उदासीनता मानी गई। अफसरों को लगता है कि वो मुख्यमंत्री के सीधे संपर्क में हैं। लोगों की समस्याएं तक नहीं सुनते। गांव के लोग ज्यादा परेशान हैं। आप देख लीजिएगा, गांव के लोगों के वोट सपा को गए होंगे। मकान-दुकान टूटने से नाराजगी
कुछ दूरी पर खड़े अधिवक्ता अजय कुमार तिवारी खुद को नहीं रोक सके। वह कहते हैं- बाबाजी का बुलडोजर पूरे यूपी में जिता रहा होगा, मगर अयोध्या में ये भी हार का बड़ा कारण रहा है। इतने मकान-दुकानें तोड़ दीं। लोग क्या खुश होंगे? फिर पेपर लीक होने से लड़के खफा थे। जिन्होंने सोचा कि सरकारी नौकरी मिलेगी, उन्हें बहुत निराशा हुई। यहां कानून व्यवस्था नहीं, सिर्फ मास्टर लॉ चलाया जा रहा है। रोजी-रोटी चले जाने से गुस्से में छोटे दुकानदार
अब हम सिविल लाइन पहुंचे। यहां अजय यादव मिले। वह कहते हैं- लोगों की रोजी-रोटी चली गई। सांसद किसी के सुख-दुख में शामिल नहीं हुए। किसी को मदद नहीं मिली। VIP मूवमेंट की आड़ में अगर किसी का ठेला हटा दिया गया तो उसको दुकान भी नहीं लगाने दी जा रही है। उसकी समस्या सुनने वाला कोई नहीं। राम मंदिर तो सबका है। सबकी आस्था है, फिर गरीब आदमी क्यों परेशान हो? यही वजह है कि चुनाव में नतीजे भाजपा के फेवर में नहीं आए हैं। रमेश कहते हैं- लोगों को लगता है कि अयोध्या के लोगों ने अपनी ही पार्टी को हरा दिया। मगर असलियत कोई नहीं जानता है। जब भाजपा को जिताना था, हमने जिताया। मगर ऐसा कब तक चलेगा। मिल्कीपुर के विधायक अवधेश प्रसाद भले ही सपा के हैं। मगर पूरे अयोध्या के लोगों की सुनते हैं। भाजपा के पदाधिकारियों से तो लोग मिल भी नहीं सकते हैं। जातिगत समीकरण हावी दिखा
कथा वाचक डॉ चंद्रांशु महाराज कहते हैं- चुनाव में जातिगत समीकरण ज्यादा हावी रहे। भाजपा को इस बार 40% वोट ही मिले। अयोध्या में हार का मुख्य कारण जनसमस्या रही है। जिस पर जनप्रतिनिधियों ने ध्यान नहीं दिया। अयोध्या के महंत अवधेश दास करते हैं- मोदी के कार्यकाल में ही राम मंदिर का फैसला आया, भूमि पूजन हुआ और भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। भाजपा प्रत्याशी की हार पर महंत कहते हैं- ‘तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा। चोरहि चंदिनि राति न भावा’। अयोध्या के वासी किसी के सगे नहीं हैं। यहां प्रत्याशी के खिलाफ नेरेटिव फैलाया गया है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट अयोध्या में भाजपा की बड़ी हार के फैक्टर क्या रहे?
वरिष्ठ पत्रकार आनंद मोहन पांडेय बताते हैं- भाजपा की हार के कई कारण हैं। पहला, भाजपा कैंडिडेट का ओवर कॉन्फिडेंस। ये लोग समझते रहे कि राम मंदिर बन गया है। अब तो जीत ही जाएंगे। दूसरा कारण, जातिगत समीकरण। सपा प्रत्याशी दलित बिरादरी से थे। उन्हें अपनी जाति के 1.5 लाख में 90% वोट मिले हैं। इसके अलावा, पिछड़ा, यादव-मुस्लिम के वोट भी उन्हें मिले हैं। क्या अयोध्या में राममंदिर का मुद्दा नहीं चला?
वरिष्ठ पत्रकार बीएन दास बताते हैं- अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के बाद ऐसा लग रहा था कि इस बार भाजपा को भारी बढ़त मिलेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। क्योंकि यहां पहले भी राम मंदिर का मुद्दा हावी नहीं रहा। यही कारण है कि इस बार भी चुनाव में इसका खास असर नहीं दिखा। देशभर की निगाहें जिस अयोध्या पर थीं, वहीं भाजपा चुनाव हार गई। राम नगरी में मिले इस जनमत ने सबको चौंका दिया। 90 की रथयात्रा से लेकर 2024 के चुनाव तक भाजपा के मूल में रहने वाली सीट पर पार्टी ने जी-जान से ताकत लगाई। हजार-दो हजार करोड़ नहीं, 32 हजार करोड़ के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट शुरू कराए। राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा दुनियाभर में सुर्खियां बनीं। 500 साल पुराना इतिहास बदला गया। पीएम मोदी खुद यहां रोड-शो करने आए। योगी ने 5 जनसभाएं कीं। मगर सियासी जादू नहीं चला। यहां जनता की नाराजगी अंदर ही अंदर मुखर हो रही थी। भाजपा के स्थानीय नेताओं से लेकर आलाकमान तक उस तासीर को भांप ही नहीं पाए। प्रधानमंत्री मोदी को यहां के भाजपा नेता गुड मैनेजमेंट दिखाते रहे। मगर अंदरखाने में कुछ और ही चल रहा था। विरोध की यह चिंगारी कैंडिडेट के फाइनल होते ही शुरू हो गई थी। आखिर भाजपा अपने सबसे बड़े गढ़ में क्यों हारी, लोगों के बीच में क्या गुस्सा था? मोदी आखिर जनता की नब्ज को क्यों नहीं भांप पाए? इन सवालों के जवाब खंगालने के लिए दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड पर उतरी। पूरी रिपोर्ट पढ़िए… लोग बोले- मंदिर से खुश, सांसद से नाराज
हनुमानगढ़ी जाने वाली सड़क के मार्केट में हमारी मुलाकात रणंजय शास्त्री से हुई। भाजपा को वोट क्यों नहीं पड़ा? वो कहते हैं- भाजपा इसलिए नहीं हारी, क्योंकि लोग मोदी-योगी को पसंद नहीं करते हैं। लोग राममंदिर बन जाने से खुश हैं। मगर मौजूदा सांसद लल्लू सिंह से नाराज हैं। आप ऐसे समझिए कि जो 4.99 लाख वोट भाजपा को मिले हैं। वो पीएम मोदी को मिले हैं, लल्लू सिंह को नहीं। अयोध्या में 2 साल से लोग परेशान हैं। VIP तो आते हैं, मगर जो सड़कें बंद होती हैं, उनमें हम लोग फंसते हैं। लोग घरों में कैद हो जाते हैं। हमारे रिश्तेदार शहर के बॉर्डर पर फंस जाते हैं। अंदर नहीं आने दिया जाता। यही वजह है कि लोगों ने सपा को जिता दिया। भाजपा को शहर से मिले वोट, गांव वालों का रुख सपा की ओर
यहां से कुछ आगे चलने पर हमारी मुलाकात ओंकार पांडेय से हुई। वह बताते हैं- भाजपा को गांव में कम वोट मिले हैं। शहर के लोगों ने वोट दिए हैं। इसकी वजह अधिकारियों की तानाशाही और सांसद की उदासीनता मानी गई। अफसरों को लगता है कि वो मुख्यमंत्री के सीधे संपर्क में हैं। लोगों की समस्याएं तक नहीं सुनते। गांव के लोग ज्यादा परेशान हैं। आप देख लीजिएगा, गांव के लोगों के वोट सपा को गए होंगे। मकान-दुकान टूटने से नाराजगी
कुछ दूरी पर खड़े अधिवक्ता अजय कुमार तिवारी खुद को नहीं रोक सके। वह कहते हैं- बाबाजी का बुलडोजर पूरे यूपी में जिता रहा होगा, मगर अयोध्या में ये भी हार का बड़ा कारण रहा है। इतने मकान-दुकानें तोड़ दीं। लोग क्या खुश होंगे? फिर पेपर लीक होने से लड़के खफा थे। जिन्होंने सोचा कि सरकारी नौकरी मिलेगी, उन्हें बहुत निराशा हुई। यहां कानून व्यवस्था नहीं, सिर्फ मास्टर लॉ चलाया जा रहा है। रोजी-रोटी चले जाने से गुस्से में छोटे दुकानदार
अब हम सिविल लाइन पहुंचे। यहां अजय यादव मिले। वह कहते हैं- लोगों की रोजी-रोटी चली गई। सांसद किसी के सुख-दुख में शामिल नहीं हुए। किसी को मदद नहीं मिली। VIP मूवमेंट की आड़ में अगर किसी का ठेला हटा दिया गया तो उसको दुकान भी नहीं लगाने दी जा रही है। उसकी समस्या सुनने वाला कोई नहीं। राम मंदिर तो सबका है। सबकी आस्था है, फिर गरीब आदमी क्यों परेशान हो? यही वजह है कि चुनाव में नतीजे भाजपा के फेवर में नहीं आए हैं। रमेश कहते हैं- लोगों को लगता है कि अयोध्या के लोगों ने अपनी ही पार्टी को हरा दिया। मगर असलियत कोई नहीं जानता है। जब भाजपा को जिताना था, हमने जिताया। मगर ऐसा कब तक चलेगा। मिल्कीपुर के विधायक अवधेश प्रसाद भले ही सपा के हैं। मगर पूरे अयोध्या के लोगों की सुनते हैं। भाजपा के पदाधिकारियों से तो लोग मिल भी नहीं सकते हैं। जातिगत समीकरण हावी दिखा
कथा वाचक डॉ चंद्रांशु महाराज कहते हैं- चुनाव में जातिगत समीकरण ज्यादा हावी रहे। भाजपा को इस बार 40% वोट ही मिले। अयोध्या में हार का मुख्य कारण जनसमस्या रही है। जिस पर जनप्रतिनिधियों ने ध्यान नहीं दिया। अयोध्या के महंत अवधेश दास करते हैं- मोदी के कार्यकाल में ही राम मंदिर का फैसला आया, भूमि पूजन हुआ और भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। भाजपा प्रत्याशी की हार पर महंत कहते हैं- ‘तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा। चोरहि चंदिनि राति न भावा’। अयोध्या के वासी किसी के सगे नहीं हैं। यहां प्रत्याशी के खिलाफ नेरेटिव फैलाया गया है। पॉलिटिकल एक्सपर्ट अयोध्या में भाजपा की बड़ी हार के फैक्टर क्या रहे?
वरिष्ठ पत्रकार आनंद मोहन पांडेय बताते हैं- भाजपा की हार के कई कारण हैं। पहला, भाजपा कैंडिडेट का ओवर कॉन्फिडेंस। ये लोग समझते रहे कि राम मंदिर बन गया है। अब तो जीत ही जाएंगे। दूसरा कारण, जातिगत समीकरण। सपा प्रत्याशी दलित बिरादरी से थे। उन्हें अपनी जाति के 1.5 लाख में 90% वोट मिले हैं। इसके अलावा, पिछड़ा, यादव-मुस्लिम के वोट भी उन्हें मिले हैं। क्या अयोध्या में राममंदिर का मुद्दा नहीं चला?
वरिष्ठ पत्रकार बीएन दास बताते हैं- अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के बाद ऐसा लग रहा था कि इस बार भाजपा को भारी बढ़त मिलेगी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका। क्योंकि यहां पहले भी राम मंदिर का मुद्दा हावी नहीं रहा। यही कारण है कि इस बार भी चुनाव में इसका खास असर नहीं दिखा। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर