पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार (20 मई) को पहलगाम हमले में मारे गए 26 लोगों को शहीद का दर्जा देने की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुमित गोयल की बैच ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा, “कोर्ट नई नीतियां नहीं बना सकता। ये काम सरकार का है।” बैंच ने याचिकाकर्ता को यह भी कहा कि वह अपनी मांग या शिकायत उचित अधिकारी या अथॉरिटी को लिखकर दे। इसके बाद 30 दिन के अंदर उसकी मांग पर विचार किया जाएगा। दरअसल, 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में करनाल के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की भी मौत हुई थी। वह अपनी पत्नी हिमांशी के साथ हनीमून पर गए हुए थे। कोर्ट ने पूछा- क्या ये अनुच्छेद 226 में आता है?
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस शील नागू ने याचिकाकर्ता से पूछा, “क्या उन्हें शहीद घोषित करना अनुच्छेद 226 के अंतर्गत आता है? अगर ऐसा है तो उदाहरण देकर बताइये। क्या कोर्ट ऐसा फैसला ले सकती है? यह फैसला तो सरकार को लेना चाहिए, क्योंकि यह उनका काम है। इसका जवाब देते हुए याचिकाकर्ता एडवोकेट आयुष आहूजा ने कहा, निर्दोष पर्यटकों को धर्म के नाम पर आतंकवादियों ने सिर पर गोली मार दी, उन्हें एक सैनिक की तरह उनका सामना करना चाहिए। केंद्र ने कहा था- याचिकाकर्ता को नहीं पता सरकार क्या कर रही
याचिका का विरोध करते हुए, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) सत्य पाल जैन ने पहले केंद्र सरकार की ओर से कहा था, “याचिकाकर्ता को पता नहीं है कि भारत सरकार क्या कर रही है। गृह मंत्री उसी शाम श्रीनगर पहुंच गए। हम दूसरे देश के साथ युद्ध के कगार पर हैं। यह ऐसे मुद्दों को उठाने का समय नहीं है, हम अन्य चीजों को प्राथमिकता दे रहे हैं। कोर्ट कह चुका- विचार करना चाहिए
हालांकि, चीफ जस्टिस शील नागू ने पहले सुनवाई के दौरान कहा था, “भले ही कोई सैनिक मर जाए, उन्हें पुरस्कार के लिए विचार किया जाना चाहिए, लेकिन यह तुरंत नहीं दिया जाता है। इसमें समय लगता है। आमतौर पर कम से कम एक साल का टाइम हो जाता है। इस मामले में भी फैसला सुनाएंगे। इसके बाद 6 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। हम इस खबर को अपडेट कर रहे हैं… पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार (20 मई) को पहलगाम हमले में मारे गए 26 लोगों को शहीद का दर्जा देने की मांग वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस सुमित गोयल की बैच ने यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा, “कोर्ट नई नीतियां नहीं बना सकता। ये काम सरकार का है।” बैंच ने याचिकाकर्ता को यह भी कहा कि वह अपनी मांग या शिकायत उचित अधिकारी या अथॉरिटी को लिखकर दे। इसके बाद 30 दिन के अंदर उसकी मांग पर विचार किया जाएगा। दरअसल, 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में करनाल के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की भी मौत हुई थी। वह अपनी पत्नी हिमांशी के साथ हनीमून पर गए हुए थे। कोर्ट ने पूछा- क्या ये अनुच्छेद 226 में आता है?
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस शील नागू ने याचिकाकर्ता से पूछा, “क्या उन्हें शहीद घोषित करना अनुच्छेद 226 के अंतर्गत आता है? अगर ऐसा है तो उदाहरण देकर बताइये। क्या कोर्ट ऐसा फैसला ले सकती है? यह फैसला तो सरकार को लेना चाहिए, क्योंकि यह उनका काम है। इसका जवाब देते हुए याचिकाकर्ता एडवोकेट आयुष आहूजा ने कहा, निर्दोष पर्यटकों को धर्म के नाम पर आतंकवादियों ने सिर पर गोली मार दी, उन्हें एक सैनिक की तरह उनका सामना करना चाहिए। केंद्र ने कहा था- याचिकाकर्ता को नहीं पता सरकार क्या कर रही
याचिका का विरोध करते हुए, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) सत्य पाल जैन ने पहले केंद्र सरकार की ओर से कहा था, “याचिकाकर्ता को पता नहीं है कि भारत सरकार क्या कर रही है। गृह मंत्री उसी शाम श्रीनगर पहुंच गए। हम दूसरे देश के साथ युद्ध के कगार पर हैं। यह ऐसे मुद्दों को उठाने का समय नहीं है, हम अन्य चीजों को प्राथमिकता दे रहे हैं। कोर्ट कह चुका- विचार करना चाहिए
हालांकि, चीफ जस्टिस शील नागू ने पहले सुनवाई के दौरान कहा था, “भले ही कोई सैनिक मर जाए, उन्हें पुरस्कार के लिए विचार किया जाना चाहिए, लेकिन यह तुरंत नहीं दिया जाता है। इसमें समय लगता है। आमतौर पर कम से कम एक साल का टाइम हो जाता है। इस मामले में भी फैसला सुनाएंगे। इसके बाद 6 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। हम इस खबर को अपडेट कर रहे हैं… हरियाणा | दैनिक भास्कर
