यूपी भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल जनवरी, 2023 में समाप्त हो गया है। तब से नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में कोई न कोई अड़चन आती रही। साथ ही दावेदारों की लिस्ट बढ़ती गई। प्रदेश से लेकर देश तक हो रही घटनाओं से प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के समीकरण बदल रहे हैं। ताजा मामले में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले से प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति का मामला फिर अटक गया। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी, 2023 में समाप्त हो गया था। उसी के साथ यूपी के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल भी समाप्त हो गया था। लेकिन हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर समेत अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव के चलते नड्डा का कार्यकाल जून, 2024 तक बढ़ा दिया गया। नड्डा का कार्यकाल बढ़ते ही चौधरी का कार्यकाल भी बढ़ गया। इसके बाद पार्टी ने सदस्यता अभियान के लिए नड्डा का कार्यकाल दिसंबर तक बढ़ा दिया। इसके बाद संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई। भाजपा ने यूपी में 1819 में से 1610 मंडलों में मंडल अध्यक्ष का चयन कर लिया। वहीं, 98 संगठनात्मक जिलों में से 70 जिलों में जिलाध्यक्ष भी नियुक्त कर दिए। नियमानुसार प्रदेश अध्यक्ष चुनाव के लिए कोरम पूरा हो गया है। लेकिन, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर लगातार अड़चनें आ रही हैं। शुरुआती दौर में मुद्दा पिछड़े, दलित और ब्राह्मण के पेंच में फंसा रहा। पिछड़े वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने पर सहमति बनी। लेकिन, कुर्मी, निषाद और लोध समाज में से किस जाति के नेता को कमान सौंपी जाए, इस पर फैसला नहीं हो सका। उसके बाद लगातार घट रही घटनाओं से मामला अटकता ही जा रहा है। पहले इन तीन वजहों से नियुक्ति टली… 1- लोध राजनीति से शुरू हुई सियासत: पिछड़े वर्ग में लोध समाज को भाजपा का वोट बैंक माना जाता है। लोध समाज ने वर्चस्व की जंग में जगह-जगह सम्मेलन और बैठकों का दौर शुरू किया। पूर्व सीएम कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह राजू भैया ने एक नया संगठन बनाकर लोध वोट बैंक के जरिए बाबूजी की विरासत संजोए रखने की रणनीति अपनाई। वहीं, भाजपा ने केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा पर दांव लगाने का विचार किया। इस पर राजवीर सिंह ने खुलेतौर पर बीएल वर्मा का विरोध किया। राजवीर और बीएल वर्मा की लड़ाई में पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह का नाम सामने आया। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी नेतृत्व ने गंभीरता से धर्मपाल के नाम पर विचार किया। कुछ वरिष्ठ नेताओं ने उनके नाम पर सहमति भी दी। लेकिन, उसके बाद बदले सियासी माहौल में मामला अटक गया। 2- विनय तिवारी की गिरफ्तारी से ब्राह्मण राजनीतिक गरमाई: बीते दिनों ED ने सपा के पूर्व विधायक विनय शंकर तिवारी के यहां दबिश देकर उन्हें गिरफ्तार किया। विनय का परिवार अवध से पूर्वांचल तक ब्राह्मणों में गहरी पकड़ रखता है। विनय के परिवारवालों ने कार्रवाई को द्वेषपूर्ण बताया। सोशल मीडिया पर भी खबरें वायरल हुईं कि सरकार ब्राह्मणों पर कार्रवाई कर रही है। सूत्रों के मुताबिक, इस घटना से ब्राह्मणों की नाराजगी बढ़ती देख भाजपा ने यूपी में किसी ब्राह्मण नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपने पर मंथन तेज किया। ब्राह्मण समाज से राज्यसभा सांसद डॉ. दिनेश शर्मा, पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी, पूर्व सांसद सतीश गौतम, उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, विधायक श्रीकांत शर्मा समेत अन्य नाम सामने आए। इसी बीच पहलगाम की घटना के कारण अब मामला फिर विचाराधीन हो गया है। 3- करणी सेना और रामजीलाल सुमन विवाद में दलित फैक्टर आया: सपा के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के राणा सांगा पर दिए बयान के बाद करणी सेना ने उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। रामजीलाल सुमन के खिलाफ करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने तलवारें भी लहराईं। समाजवादी पार्टी ने इसे सरकार के संरक्षण में दलितों के दमन के रूप में पेश किया। भाजपा को भी पश्चिमी यूपी से फीडबैक मिला कि रामजीलाल सुमन के खिलाफ करणी सेना के प्रदर्शन से दलित वर्ग नाराज है। करणी सेना के कार्यकर्ताओं पर कोई कार्रवाई नहीं होने से सीधा संदेश जा रहा है कि उसको आरएसएस, सरकार और भाजपा का अघोषित समर्थन है। दलित वर्ग की नाराजगी का मुद्दा उठने के बाद भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान किसी दलित चेहरे को देने पर विचार किया। दलित वर्ग में पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री रामशंकर कठेरिया, पूर्व सांसद विनोद सोनकर, एमएलसी विद्यासागर सोनकर के नाम की अटकलें शुरू हुईं। लेकिन, फिर एक बार जातीय राजनीति के समीकरण बदलने से दलित नेताओं के उदय का मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया। अब पहलगाम घटना ने बदले समीकरण
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के कारण भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति का मामला अटक गया है। पिछले दिनों राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल फिर बढ़ गया है। सूत्रों के मुताबिक, पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा इन दिनों पहलगाम के बाद बदले माहौल को संभालने में जुटे हैं। वहीं, सरकार ने जातीय जनगणना कराने का भी निर्णय किया है। इस मुद्दे को भी दलित और पिछड़े वर्ग के बीच पार्टी बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश करना चाहती है। लिहाजा, यूपी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर मंथन के लिए समय मुफीद नहीं है। जानकारों का मानना है कि पहलगाम की घटना के बाद पाकिस्तान के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया देने के बाद ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर विचार होगा। पहलगाम घटना के बाद पार्टी अब प्रदेश अध्यक्ष चुनने के लिए नए सिरे से विचार करेगी। अब आगे क्या होगा ‘एक साधे सब सधे’ पर होगा काम
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा अब ‘एक साधे सब सधे’ की रणनीति पर काम करेगी। पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष ऐसा चेहरा होगा, जो दलितों-ब्राह्मणों की नाराजगी दूर करने के साथ ही पिछड़े वर्ग को भी साधने की ताकत रखता हो। आरएसएस से समन्वय बनाने के साथ कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने और सरकार से संतुलन बनाने का भी कौशल रखता हो। कोई चूक नहीं करना चाहती भाजपा
वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय का मानना है- भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में कोई चूक नहीं करना चाहती। पार्टी के लिए किसी चेहरे से ज्यादा महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव- 2027 जीतकर हैट्रिक बनाना है। ———————— ये खबर भी पढ़ें… संभल में 51 लाख की पॉलिसी हड़पने के लिए मर्डर, बीमा एजेंट ने दिव्यांग को गाड़ी से कुचलवाया यूपी के संभल में 51 लाख रुपए की बीमा पॉलिसी के लिए एक्सिस बैंक के पॉलिसी एडवाइजर ने एक दिव्यांग का कत्ल करवा दिया। पहले उसको जेल से छूटे एक पेशेवर अपराधी से गाड़ी से कुचलवाया गया। तब भी मौत नहीं हुई, तो सिर पर हथौड़े बरसाए। मौत होने के बाद उसे रोड एक्सीडेंट का रूप दिया और FIR करा दी। पुलिस ने भी एक्सीडेंट मानकर फाइल बंद कर दी। पढ़ें पूरी खबर यूपी भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कार्यकाल जनवरी, 2023 में समाप्त हो गया है। तब से नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में कोई न कोई अड़चन आती रही। साथ ही दावेदारों की लिस्ट बढ़ती गई। प्रदेश से लेकर देश तक हो रही घटनाओं से प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के समीकरण बदल रहे हैं। ताजा मामले में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले से प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति का मामला फिर अटक गया। राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी, 2023 में समाप्त हो गया था। उसी के साथ यूपी के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल भी समाप्त हो गया था। लेकिन हरियाणा, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर समेत अन्य राज्यों में विधानसभा चुनाव के चलते नड्डा का कार्यकाल जून, 2024 तक बढ़ा दिया गया। नड्डा का कार्यकाल बढ़ते ही चौधरी का कार्यकाल भी बढ़ गया। इसके बाद पार्टी ने सदस्यता अभियान के लिए नड्डा का कार्यकाल दिसंबर तक बढ़ा दिया। इसके बाद संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई। भाजपा ने यूपी में 1819 में से 1610 मंडलों में मंडल अध्यक्ष का चयन कर लिया। वहीं, 98 संगठनात्मक जिलों में से 70 जिलों में जिलाध्यक्ष भी नियुक्त कर दिए। नियमानुसार प्रदेश अध्यक्ष चुनाव के लिए कोरम पूरा हो गया है। लेकिन, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर लगातार अड़चनें आ रही हैं। शुरुआती दौर में मुद्दा पिछड़े, दलित और ब्राह्मण के पेंच में फंसा रहा। पिछड़े वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने पर सहमति बनी। लेकिन, कुर्मी, निषाद और लोध समाज में से किस जाति के नेता को कमान सौंपी जाए, इस पर फैसला नहीं हो सका। उसके बाद लगातार घट रही घटनाओं से मामला अटकता ही जा रहा है। पहले इन तीन वजहों से नियुक्ति टली… 1- लोध राजनीति से शुरू हुई सियासत: पिछड़े वर्ग में लोध समाज को भाजपा का वोट बैंक माना जाता है। लोध समाज ने वर्चस्व की जंग में जगह-जगह सम्मेलन और बैठकों का दौर शुरू किया। पूर्व सीएम कल्याण सिंह के बेटे राजवीर सिंह राजू भैया ने एक नया संगठन बनाकर लोध वोट बैंक के जरिए बाबूजी की विरासत संजोए रखने की रणनीति अपनाई। वहीं, भाजपा ने केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा पर दांव लगाने का विचार किया। इस पर राजवीर सिंह ने खुलेतौर पर बीएल वर्मा का विरोध किया। राजवीर और बीएल वर्मा की लड़ाई में पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह का नाम सामने आया। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी नेतृत्व ने गंभीरता से धर्मपाल के नाम पर विचार किया। कुछ वरिष्ठ नेताओं ने उनके नाम पर सहमति भी दी। लेकिन, उसके बाद बदले सियासी माहौल में मामला अटक गया। 2- विनय तिवारी की गिरफ्तारी से ब्राह्मण राजनीतिक गरमाई: बीते दिनों ED ने सपा के पूर्व विधायक विनय शंकर तिवारी के यहां दबिश देकर उन्हें गिरफ्तार किया। विनय का परिवार अवध से पूर्वांचल तक ब्राह्मणों में गहरी पकड़ रखता है। विनय के परिवारवालों ने कार्रवाई को द्वेषपूर्ण बताया। सोशल मीडिया पर भी खबरें वायरल हुईं कि सरकार ब्राह्मणों पर कार्रवाई कर रही है। सूत्रों के मुताबिक, इस घटना से ब्राह्मणों की नाराजगी बढ़ती देख भाजपा ने यूपी में किसी ब्राह्मण नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपने पर मंथन तेज किया। ब्राह्मण समाज से राज्यसभा सांसद डॉ. दिनेश शर्मा, पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी, पूर्व सांसद सतीश गौतम, उच्च शिक्षा मंत्री योगेंद्र उपाध्याय, विधायक श्रीकांत शर्मा समेत अन्य नाम सामने आए। इसी बीच पहलगाम की घटना के कारण अब मामला फिर विचाराधीन हो गया है। 3- करणी सेना और रामजीलाल सुमन विवाद में दलित फैक्टर आया: सपा के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन के राणा सांगा पर दिए बयान के बाद करणी सेना ने उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। रामजीलाल सुमन के खिलाफ करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने तलवारें भी लहराईं। समाजवादी पार्टी ने इसे सरकार के संरक्षण में दलितों के दमन के रूप में पेश किया। भाजपा को भी पश्चिमी यूपी से फीडबैक मिला कि रामजीलाल सुमन के खिलाफ करणी सेना के प्रदर्शन से दलित वर्ग नाराज है। करणी सेना के कार्यकर्ताओं पर कोई कार्रवाई नहीं होने से सीधा संदेश जा रहा है कि उसको आरएसएस, सरकार और भाजपा का अघोषित समर्थन है। दलित वर्ग की नाराजगी का मुद्दा उठने के बाद भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान किसी दलित चेहरे को देने पर विचार किया। दलित वर्ग में पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री रामशंकर कठेरिया, पूर्व सांसद विनोद सोनकर, एमएलसी विद्यासागर सोनकर के नाम की अटकलें शुरू हुईं। लेकिन, फिर एक बार जातीय राजनीति के समीकरण बदलने से दलित नेताओं के उदय का मामला भी ठंडे बस्ते में चला गया। अब पहलगाम घटना ने बदले समीकरण
पहलगाम में हुए आतंकी हमले के कारण भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति का मामला अटक गया है। पिछले दिनों राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल फिर बढ़ गया है। सूत्रों के मुताबिक, पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा इन दिनों पहलगाम के बाद बदले माहौल को संभालने में जुटे हैं। वहीं, सरकार ने जातीय जनगणना कराने का भी निर्णय किया है। इस मुद्दे को भी दलित और पिछड़े वर्ग के बीच पार्टी बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश करना चाहती है। लिहाजा, यूपी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर मंथन के लिए समय मुफीद नहीं है। जानकारों का मानना है कि पहलगाम की घटना के बाद पाकिस्तान के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया देने के बाद ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर विचार होगा। पहलगाम घटना के बाद पार्टी अब प्रदेश अध्यक्ष चुनने के लिए नए सिरे से विचार करेगी। अब आगे क्या होगा ‘एक साधे सब सधे’ पर होगा काम
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा अब ‘एक साधे सब सधे’ की रणनीति पर काम करेगी। पार्टी का नया प्रदेश अध्यक्ष ऐसा चेहरा होगा, जो दलितों-ब्राह्मणों की नाराजगी दूर करने के साथ ही पिछड़े वर्ग को भी साधने की ताकत रखता हो। आरएसएस से समन्वय बनाने के साथ कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने और सरकार से संतुलन बनाने का भी कौशल रखता हो। कोई चूक नहीं करना चाहती भाजपा
वरिष्ठ पत्रकार आनंद राय का मानना है- भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में कोई चूक नहीं करना चाहती। पार्टी के लिए किसी चेहरे से ज्यादा महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव- 2027 जीतकर हैट्रिक बनाना है। ———————— ये खबर भी पढ़ें… संभल में 51 लाख की पॉलिसी हड़पने के लिए मर्डर, बीमा एजेंट ने दिव्यांग को गाड़ी से कुचलवाया यूपी के संभल में 51 लाख रुपए की बीमा पॉलिसी के लिए एक्सिस बैंक के पॉलिसी एडवाइजर ने एक दिव्यांग का कत्ल करवा दिया। पहले उसको जेल से छूटे एक पेशेवर अपराधी से गाड़ी से कुचलवाया गया। तब भी मौत नहीं हुई, तो सिर पर हथौड़े बरसाए। मौत होने के बाद उसे रोड एक्सीडेंट का रूप दिया और FIR करा दी। पुलिस ने भी एक्सीडेंट मानकर फाइल बंद कर दी। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
पहलगाम हमले के बाद यूपी भाजपा अध्यक्ष कौन?:पहले लोध, फिर दलित-ब्राह्मण विवाद से अटका; सबको साधने वाले की तलाश
