पाकिस्तानी हमले में मुजफ्फरनगर के ताऊ-भतीजी की मौत:भाई बोला- गैराज में आर्मी की गाड़ी थी, इसलिए हमला हुआ; एक विस्फोट से सब खत्म

पाकिस्तानी हमले में मुजफ्फरनगर के ताऊ-भतीजी की मौत:भाई बोला- गैराज में आर्मी की गाड़ी थी, इसलिए हमला हुआ; एक विस्फोट से सब खत्म

9 मई की सुबह 5 बजकर 5 मिनट पर अचानक तेज धमाका हुआ। मेरे कान सुन्न हो गए। घर का मलबा मेरे ऊपर आ गिरा। मैं 2-3 मिनट बाद उठा। मेरी कमर से खून निकल रहा था। दूसरे कमरे में पहुंचा तो बड़े भाई और बेटी मृत पड़े थे। आसमान से गिरा विस्फोटक भाई की एक टांग को चीरते हुए दीवार फोड़कर निकल गया। बेटी का एक हाथ अलग हो गया। दूसरे कमरे में पत्नी को जाकर देखा तो वो घायल थी। एक हाथ से खून बह रहा था। यह दर्द है मुजफ्फरनगर निवासी मोहम्मद तौहीद का। वह अपने परिवार के साथ कश्मीर के राजौरी में गैराज चलाते हैं। पाकिस्तान के हमले में अपने बड़े भाई और बेटी को गंवा दिया। दोनों का अंतिम संस्कार 11 मई को मुजफ्फरनगर में किया गया। दैनिक भास्कर की टीम तौहीद के घर पहुंची। राजौरी में उस दिन क्या हुआ, यह जाना? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… हम मुजफ्फरनगर जिले का खाईखेड़ा गांव पहुंचे। तौहीद के घर लोगों की भीड़ थी। हर कोई उन्हें ढांढस बंधा रहा था। घर से रुक-रुक सिसकने की आवाजें आ रही थीं। हमने तौहीद से बात की। तौहीद ने कहा- हमें सेना के डिफेंस सिस्टम पूरा भरोसा था। घर के आगे और पीछे आर्मी के परमानेंट कैंप बने थे। इसलिए किसी भी वक्त दिमाग में डर वाली बात रहती ही नहीं थी। इतना तो पता था कि पाकिस्तान से खतरा है। हमारी गैराज में आर्मी की एक गाड़ी ठीक होने आई थी। कहीं पाकिस्तानियों को ऐसा तो नहीं लगा कि ये आर्मी की जगह है? शायद उसी चक्कर में हमारे घर को निशाना न बनाया गया हो। हालांकि, तौहीद यह नहीं बता सके कि घर पर ड्रोन गिरा था या मिसाइल या कुछ और। 17 साल पहले गए थे कमाने, JK में रहते हैं 4 भाई
35 साल के मोहम्मद साहिब करीब 17 साल पहले रोजगार के सिलसिले में अपने एक रिश्तेदार के साथ राजौरी (जम्मू-कश्मीर) चले गए थे। वहां उनके रिश्तेदार एल्यूमीनियम का काम करते थे। धीरे-धीरे साहिब ने कार मिस्त्री का काम सीख लिया। फिर राजौरी में अपनी ही कार गैराज खोल लिया। इसके बाद साहिब ने अपने छोटे भाई मोहम्मद तौहीद (30) को भी राजौरी बुलाकर अपने साथ काम पर लगा लिया। नीचे बेसमेंट में गैराज थी। उसके ऊपर बने 3 कमरों में मोहम्मद साहिब, छोटा भाई तौहीद, उनकी पत्नी नईमा और डेढ़ साल की बेटी आयशा नूर रहते थे। मृतक मोहम्मद साहिब के तीसरे और चौथे भाई भी जम्मू में रहकर कुछ और काम करते हैं। ‘आगे और पीछे आर्मी, इसलिए कोई खतरा नहीं था’
मोहम्मद तौहीद बताते हैं- हमारे घर के सामने ही एक किला है। वहां पर हर वक्त भारतीय सेना के जवान तैनात रहते हैं। घर के पीछे भी फौजियों का कैंप बना है। इसलिए हमें कभी कोई खतरा ही नहीं था। इसलिए सेना या लोकल प्रशासन ने कभी वो एरिया सिविलियन से खाली भी नहीं कराया। हां, इतना जरूर पता था कि पाकिस्तान से खतरा है। लेकिन, भारतीय सेना पर हमें खुद से ज्यादा भरोसा था। मेरे बड़े भाई मोहम्मद साहिब कहा करते थे कि डरकर भागने से कुछ नहीं होगा। अगर हम मरेंगे, तो अपने देश के लिए मरेंगे। कहीं और जाएंगे, तो वहां भी मर सकते हैं। इसलिए हम यहीं रहेंगे और कहीं भी नहीं जाएंगे। ‘भाई की टांग फटी, बेटी का एक हाथ अलग हुआ’
9 मई की रात का घटनाक्रम बयां करते हुए तौहीद बताते हैं- मैं, पत्नी और बेटी एक कमरे में थे। बड़े भाई दूसरे कमरे में सो रहे थे। सुबह 5 बजे पत्नी अजान के लिए उठी, तो बेटी भी उठ गई। बेटी उठकर बगल वाले कमरे में अपने ताऊ के पास पहुंच गई। इसी दौरान अचानक विस्फोट हुआ और सब कुछ तबाह हो गया। मैं भी घायल था, कमर से खून निकल रहा था। हिम्मत करके भाई के कमरे में गया। भाई की टांग से लगातार खून बह रहा था। वह पूरी तरह से फट गई थी। बेटी का एक हाथ अलग हो गया था। हमले के फौरन बाद नहीं मिली कोई मदद
तौहीद बताते हैं- हमले के तुरंत बाद मैंने कई लोगों से मदद मांगी, लेकिन किसी ने कोई मदद नहीं की। प्रशासन की तरफ से कोई नहीं आया। बहुत देर बाद एक एंबुलेंस आई। वो भाई और बेटी की डेडबॉडी को डालकर अस्पताल ले गई। हमारी गैराज पर विनोद यादव नाम का कर्मचारी काम करता है। वह हमारे घर से थोड़ा दूरी पर ही रहता है। थोड़ी ही देर में विनोद वहां आ गया। विनोद ने मुझे और पत्नी को हॉस्पिटल में ट्रीटमेंट दिलाया। विनोद ने 25 हजार रुपए खर्च करके एक एंबुलेंस बुक की। वही राजौरी से मुजफ्फरनगर तक दोनों डेडबॉडी लेकर आई। तौहीद कहते हैं- अगर विनोद नहीं होता, तो दोनों डेडबॉडी हमारे गांव तक नहीं आ पातीं। किसी ने हाल नहीं पूछा, यह मलाल रहेगा
फिलहाल यह परिवार सरकारों से नाराज है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने जहां दोनों शवों को घर तक पहुंचवाने में कोई मदद नहीं की। वहीं यूपी सरकार का कोई नुमाइंदा इस परिवार का हाल जानने घर पर नहीं आया। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के बाद 12 मई को इलाके के एसडीएम और सीओ घर जरूर आए। वो कहकर गए कि सरकार से मुआवजा दिलाने में मदद करेंगे। उन्होंने 13 मई को फैमिली से मृतकों की डिटेल्स और डॉक्यूमेंट्स भी मंगवाए हैं। परिवार के लोग कहते हैं- हम शायद मुसलमान हैं, इसलिए किसी ने हमारा हाल नहीं पूछा। ————————– यह खबर भी पढ़ें… 1971 के युद्ध में आगरा में गिरे थे 16 बम, यूपी को इस बार कितना खतरा, पाक बॉर्डर से सबसे नजदीक हैं पश्चिमी शहर 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध। आगरा एक के बाद एक बमों के हमले से दहल उठा था। पाकिस्तान ने बमवर्षक विमान मार्टिन बी-57 कैनबरा से बम गिराए थे। धिमिश्री और कीठम पर भी बम गिरे थे। धिमिश्री पर गिरे बम से 10-12 फीट गहरा गड्‌ढा हो गया था। उस समय के लोगों के जेहन में ये यादें आज भी ताजा हैं। पढ़ें पूरी खबर… 9 मई की सुबह 5 बजकर 5 मिनट पर अचानक तेज धमाका हुआ। मेरे कान सुन्न हो गए। घर का मलबा मेरे ऊपर आ गिरा। मैं 2-3 मिनट बाद उठा। मेरी कमर से खून निकल रहा था। दूसरे कमरे में पहुंचा तो बड़े भाई और बेटी मृत पड़े थे। आसमान से गिरा विस्फोटक भाई की एक टांग को चीरते हुए दीवार फोड़कर निकल गया। बेटी का एक हाथ अलग हो गया। दूसरे कमरे में पत्नी को जाकर देखा तो वो घायल थी। एक हाथ से खून बह रहा था। यह दर्द है मुजफ्फरनगर निवासी मोहम्मद तौहीद का। वह अपने परिवार के साथ कश्मीर के राजौरी में गैराज चलाते हैं। पाकिस्तान के हमले में अपने बड़े भाई और बेटी को गंवा दिया। दोनों का अंतिम संस्कार 11 मई को मुजफ्फरनगर में किया गया। दैनिक भास्कर की टीम तौहीद के घर पहुंची। राजौरी में उस दिन क्या हुआ, यह जाना? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… हम मुजफ्फरनगर जिले का खाईखेड़ा गांव पहुंचे। तौहीद के घर लोगों की भीड़ थी। हर कोई उन्हें ढांढस बंधा रहा था। घर से रुक-रुक सिसकने की आवाजें आ रही थीं। हमने तौहीद से बात की। तौहीद ने कहा- हमें सेना के डिफेंस सिस्टम पूरा भरोसा था। घर के आगे और पीछे आर्मी के परमानेंट कैंप बने थे। इसलिए किसी भी वक्त दिमाग में डर वाली बात रहती ही नहीं थी। इतना तो पता था कि पाकिस्तान से खतरा है। हमारी गैराज में आर्मी की एक गाड़ी ठीक होने आई थी। कहीं पाकिस्तानियों को ऐसा तो नहीं लगा कि ये आर्मी की जगह है? शायद उसी चक्कर में हमारे घर को निशाना न बनाया गया हो। हालांकि, तौहीद यह नहीं बता सके कि घर पर ड्रोन गिरा था या मिसाइल या कुछ और। 17 साल पहले गए थे कमाने, JK में रहते हैं 4 भाई
35 साल के मोहम्मद साहिब करीब 17 साल पहले रोजगार के सिलसिले में अपने एक रिश्तेदार के साथ राजौरी (जम्मू-कश्मीर) चले गए थे। वहां उनके रिश्तेदार एल्यूमीनियम का काम करते थे। धीरे-धीरे साहिब ने कार मिस्त्री का काम सीख लिया। फिर राजौरी में अपनी ही कार गैराज खोल लिया। इसके बाद साहिब ने अपने छोटे भाई मोहम्मद तौहीद (30) को भी राजौरी बुलाकर अपने साथ काम पर लगा लिया। नीचे बेसमेंट में गैराज थी। उसके ऊपर बने 3 कमरों में मोहम्मद साहिब, छोटा भाई तौहीद, उनकी पत्नी नईमा और डेढ़ साल की बेटी आयशा नूर रहते थे। मृतक मोहम्मद साहिब के तीसरे और चौथे भाई भी जम्मू में रहकर कुछ और काम करते हैं। ‘आगे और पीछे आर्मी, इसलिए कोई खतरा नहीं था’
मोहम्मद तौहीद बताते हैं- हमारे घर के सामने ही एक किला है। वहां पर हर वक्त भारतीय सेना के जवान तैनात रहते हैं। घर के पीछे भी फौजियों का कैंप बना है। इसलिए हमें कभी कोई खतरा ही नहीं था। इसलिए सेना या लोकल प्रशासन ने कभी वो एरिया सिविलियन से खाली भी नहीं कराया। हां, इतना जरूर पता था कि पाकिस्तान से खतरा है। लेकिन, भारतीय सेना पर हमें खुद से ज्यादा भरोसा था। मेरे बड़े भाई मोहम्मद साहिब कहा करते थे कि डरकर भागने से कुछ नहीं होगा। अगर हम मरेंगे, तो अपने देश के लिए मरेंगे। कहीं और जाएंगे, तो वहां भी मर सकते हैं। इसलिए हम यहीं रहेंगे और कहीं भी नहीं जाएंगे। ‘भाई की टांग फटी, बेटी का एक हाथ अलग हुआ’
9 मई की रात का घटनाक्रम बयां करते हुए तौहीद बताते हैं- मैं, पत्नी और बेटी एक कमरे में थे। बड़े भाई दूसरे कमरे में सो रहे थे। सुबह 5 बजे पत्नी अजान के लिए उठी, तो बेटी भी उठ गई। बेटी उठकर बगल वाले कमरे में अपने ताऊ के पास पहुंच गई। इसी दौरान अचानक विस्फोट हुआ और सब कुछ तबाह हो गया। मैं भी घायल था, कमर से खून निकल रहा था। हिम्मत करके भाई के कमरे में गया। भाई की टांग से लगातार खून बह रहा था। वह पूरी तरह से फट गई थी। बेटी का एक हाथ अलग हो गया था। हमले के फौरन बाद नहीं मिली कोई मदद
तौहीद बताते हैं- हमले के तुरंत बाद मैंने कई लोगों से मदद मांगी, लेकिन किसी ने कोई मदद नहीं की। प्रशासन की तरफ से कोई नहीं आया। बहुत देर बाद एक एंबुलेंस आई। वो भाई और बेटी की डेडबॉडी को डालकर अस्पताल ले गई। हमारी गैराज पर विनोद यादव नाम का कर्मचारी काम करता है। वह हमारे घर से थोड़ा दूरी पर ही रहता है। थोड़ी ही देर में विनोद वहां आ गया। विनोद ने मुझे और पत्नी को हॉस्पिटल में ट्रीटमेंट दिलाया। विनोद ने 25 हजार रुपए खर्च करके एक एंबुलेंस बुक की। वही राजौरी से मुजफ्फरनगर तक दोनों डेडबॉडी लेकर आई। तौहीद कहते हैं- अगर विनोद नहीं होता, तो दोनों डेडबॉडी हमारे गांव तक नहीं आ पातीं। किसी ने हाल नहीं पूछा, यह मलाल रहेगा
फिलहाल यह परिवार सरकारों से नाराज है। जम्मू-कश्मीर सरकार ने जहां दोनों शवों को घर तक पहुंचवाने में कोई मदद नहीं की। वहीं यूपी सरकार का कोई नुमाइंदा इस परिवार का हाल जानने घर पर नहीं आया। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के बाद 12 मई को इलाके के एसडीएम और सीओ घर जरूर आए। वो कहकर गए कि सरकार से मुआवजा दिलाने में मदद करेंगे। उन्होंने 13 मई को फैमिली से मृतकों की डिटेल्स और डॉक्यूमेंट्स भी मंगवाए हैं। परिवार के लोग कहते हैं- हम शायद मुसलमान हैं, इसलिए किसी ने हमारा हाल नहीं पूछा। ————————– यह खबर भी पढ़ें… 1971 के युद्ध में आगरा में गिरे थे 16 बम, यूपी को इस बार कितना खतरा, पाक बॉर्डर से सबसे नजदीक हैं पश्चिमी शहर 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध। आगरा एक के बाद एक बमों के हमले से दहल उठा था। पाकिस्तान ने बमवर्षक विमान मार्टिन बी-57 कैनबरा से बम गिराए थे। धिमिश्री और कीठम पर भी बम गिरे थे। धिमिश्री पर गिरे बम से 10-12 फीट गहरा गड्‌ढा हो गया था। उस समय के लोगों के जेहन में ये यादें आज भी ताजा हैं। पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर