लखीमपुर जिले का बेला सिकटिया गांव। रिंकी को पिछले साल प्रधानमंत्री आवास मिला था। उनके पति सर्वेश मजदूरी करते हैं। दोनों ने मेहनत करके घर बनवाया। एक साल भी नहीं रह पाए और घर बर्बाद हो गया। रात में बाढ़ के चलते घर छोड़कर भागना पड़ा। कमरे की फर्श बाढ़ के पानी में बह गई। रिंकी अब दूसरे के घर में रह रही हैं। वह कहती हैं- थोड़ी सी जमीन थी उसे भी बेच दिया ताकि घर अच्छा बन जाए, लेकिन वह भी अब नहीं रहेगा। असल में रिंकी के घर से शारदा नदी सिर्फ 10 मीटर रह गई है। जिस गति से कटान हो रहा, उससे लग रहा कि अगले 15 दिन में यह घर भी नदी में समा जाएगा। रिंकी के घर के पड़ोस में बने 7 घर पहले ही बह चुके हैं। गन्ने लगे खेत नदी में समा चुके हैं। लोग पानी उतरने का इंतजार कर रहे ताकि कुछ फसल बच जाए, जिसे बेचकर पूरे साल के राशन का इंतजाम हो सके। ऐसा ही हाल बिजुआ ब्लॉक के गुजारा गांव का भी है। यहां करीब 15 परिवार टेंट बनाकर रह रहे हैं। बारिश होती है तो छोटे से तंबू में ही सभी मायूस होकर बैठ जाते हैं। महिलाएं अपने छोटे बच्चों को गोद में लेकर बारिश से बचाने का प्रयास करती हैं। लखीमपुर खीरी जिले में करीब 150 गांव शारदा, घाघरा, मोहाना नदी की बाढ़ की चपेट में हैं। 4 सितंबर तक करीब 563 कच्चे-पक्के मकान और झोपड़ियां शारदा नदी में समा चुकी हैं। दैनिक भास्कर की टीम प्रभावित क्षेत्रों में पहुंची। बाढ़ के बीच लोग कैसे जिंदगी गुजार रहे, उनकी जद्दोजहद को करीब से देखा। प्रशासन कितना एक्टिव है, सरकार की तरफ से क्या मदद मिल रही है, इसे भी जाना… हमारी टीम सबसे पहले बाढ़ प्रभावित बिजुआ ब्लॉक के बेला सिकटिया गांव पहुंची। यहां पिछले तीन दिन में पानी कुछ कम हुआ है। हालांकि, पूरे गांव में कीचड़ है। गन्ने और धान के खेत अभी भी पानी से लबालब हैं। हम गांव के एक छोर पर पहुंचे। यहां से शारदा नहर गुजरी है। नदी पूरे उफान पर है। कटान लगातार बढ़ रहा है। हमें नदी के किनारे इसी गांव के अवधेश शुक्ला मिले। वह कहते हैं- पिछले 3 साल से कटान हो रहा है। उसके पहले तो नदी गांव से दो किलोमीटर दूर बहती थी। लेकिन, इस साल कटान ज्यादा बढ़ गया। गांव के 7 मकान नदी में समा गए हैं। वह सभी लोग गांव में ही व्यवस्था करके रह रहे हैं। इसी गांव के परशुराम हमें मिले। बाढ़ में हुए अपने नुकसान को बताते हुए कहते हैं- तीन एकड़ जमीन थी। गन्ना लगाया था, लेकिन सारी फसल कटान में समा गई। हमने पूछा, अगर फसल तैयार होती तो कितना मिलता? परशुराम कहते हैं- इसके बारे में क्या बताएं? अच्छी फसल होती तो ज्यादा मिलता, लेकिन कम से कम 1 लाख रुपए तो मिलता ही। घर में 8 लोग हैं, अब सब हमारे भरोसे हैं। मजदूरी करके किसी तरह घर चलाएंगे। इसी गांव की रामकुमारी कहती हैं- बाढ़ के चलते बहुत दिक्कत हुई। घर में कुछ नहीं रह गया। जो तीन एकड़ खेत था, वह भी अब नदी में समा गया। छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनका क्या होगा। रामकुमारी के पड़ोस बैठी एक महिला सरकारी व्यवस्था और मदद के बारे में पूछने पर बिफर पड़ीं। कहती हैं- कोई मदद नहीं मिली। हमारा सारा खेत चला गया। अब क्या खिलाएंगे, क्या खाएंगे? कुछ पता नहीं। हम गांव के प्रधान नेपाली के पास पहुंचे। वह कहते हैं- इस साल 200 एकड़ जमीन नदी में समा गई। 7 लोगों का घर बह गया। उन सबको मदद मिलेगी। बाकी लोगों के लिए भी प्रशासन की तरफ से खाने की व्यवस्था की जाती है। प्रशासन मुआवजे को लेकर आगे काम करेगा। तंबू में कट रही 15 परिवारों की जिंदगी बेला सिकटिया से निकलकर हम बिजुआ ब्लॉक के गुजारा गांव पहुंचे। यहां गांव जाने वाली सड़क बह गई है। स्थानीय प्रशासन ने नाव लगा दी है, जिससे लोग इधर से उधर आ-जा रहे हैं। यहां करीब 15 परिवारों के 100 से ज्यादा लोग बंधे पर ही जमे हैं, क्योंकि उनका घर बाढ़ में डूबा है। तंबू में रह रहीं राधिका कहती हैं- गांव में हमारा घर डूब गया। हमारे पास रहने के लिए कोई और व्यवस्था नहीं। इसलिए यहीं पन्नी के जरिए तंबू बनाकर अपने बच्चों के साथ रह रही हूं। दूसरे तंबू में बैठे बृजेश कहते हैं- 4-5 दिन से तो हम लोग यहां रह रहे हैं, लेकिन कुछ लोग अब वापस गांव में चले गए हैं। बरसात के बीच भी हम लोग यहीं रहते हैं। बंधे पर मौजूद मोहन सिंह से हमने पूछा कि क्या सरकारी कर्मचारी-अधिकारी आते हैं? वह कहते हैं- कभी आते हैं और कभी नहीं आते। हालांकि यहां सभी को सुबह और शाम प्रशासन की तरफ से पूड़ी-सब्जी या फिर खिचड़ी मिलती है। बाढ़ के बीच सड़क बह जाने से दिक्कत हो रही है। देखते हैं, कब ठीक होती है। जानवरों के लिए चारा लाना बना मुसीबत
इसके बाद हमारी टीम निघासन पहुंची। यहां 10 से ज्यादा गांव बाढ़ से बुरी तरह से प्रभावित हैं। हम तमोलिन का पुरवा जाने के लिए निकले। एक किलोमीटर पहले से ही सड़क पानी से भरी थी। हम पानी में उतरकर गांव के बीच पहुंचे। यहां हर व्यक्ति परेशान दिखा। सड़क पर पानी का बहाव इतना तेज है कि कई बार लोग बहकर खेत में चले जाते हैं। सिर पर पशुओं का चारा लेकर जा रहे गजोधर मिले। वह कहते हैं- इधर सारा पानी पलिया से आ रहा। यहां की स्थिति बहुत खराब है। सबसे ज्यादा दिक्कत पशुओं के चारे को लेकर हो रही है। बहुत दूर से लेकर आ रहे हैं। खाना भी घर पर पानी के बीच ही बन रहा। इस वक्त तो हर चीज में ही बहुत दिक्कत हो रही है। 47 करोड़ रुपए दिया जा चुका मुआवजा एसडीएफ विनोद गुप्ता बताते हैं- बाढ़ के बीच 5,927 किसानों का डेटा फीड हुआ था। 5,736 किसानों के खाते में पैसा पहुंच गया। 4 दिन पहले फिर से बाढ़ आने से इसमें 150 किसान बढ़े हैं। धान के लिए प्रति हेक्टेयर 17 हजार और गन्ने के लिए प्रति हेक्टेयर 22,500 रुपए मुआवजा निर्धारित है। अकेले गोला तहसील में 37 पक्के मकान, 42 झोपड़ी और 8 कच्चे मकान नदी में कटे हैं। इन सबको भी जल्द मुआवजा दिया जाएगा। ये भी पढ़ें… लखीमपुर में टाइगर का खौफ, बच्चों की पढ़ाई बंद; वनकर्मी पिंजरे के बाहर बांध रहे पाड़ा जिला- लखीमपुर खीरी, गांव- मूढ़ा जवाहर गांव, समय- रात 8 बजे गांव में जाने वाली सड़क के दोनों तरफ गन्ने के खेत हैं। सड़क किनारे झाड़ियां उगी हैं। इससे आधी सड़क ही चलने लायक दिखती है। गांव के एक छोर पर पूरी तरह सन्नाटा था। कोई भी बाहर नहीं दिख रहा था। हर कोई अपने घरों में कैद हो गया था। गांव के दूसरे छोर की तरफ जाने पर करीब 20 लोगों का एक ग्रुप दिखा। इनके हाथों में डंडे थे। ये बीच-बीच में पटाखे फोड़ रहे थे। पूछने पर बताया, यह इसलिए कर रहे ताकि बाघ गांव की तरफ न आए। इससे लोगों को भी सचेत कर रहे कि बाहर नहीं सोएं। घर के अंदर या फिर छत पर सोएं। यहां पढ़ें पूरी खबर लखीमपुर जिले का बेला सिकटिया गांव। रिंकी को पिछले साल प्रधानमंत्री आवास मिला था। उनके पति सर्वेश मजदूरी करते हैं। दोनों ने मेहनत करके घर बनवाया। एक साल भी नहीं रह पाए और घर बर्बाद हो गया। रात में बाढ़ के चलते घर छोड़कर भागना पड़ा। कमरे की फर्श बाढ़ के पानी में बह गई। रिंकी अब दूसरे के घर में रह रही हैं। वह कहती हैं- थोड़ी सी जमीन थी उसे भी बेच दिया ताकि घर अच्छा बन जाए, लेकिन वह भी अब नहीं रहेगा। असल में रिंकी के घर से शारदा नदी सिर्फ 10 मीटर रह गई है। जिस गति से कटान हो रहा, उससे लग रहा कि अगले 15 दिन में यह घर भी नदी में समा जाएगा। रिंकी के घर के पड़ोस में बने 7 घर पहले ही बह चुके हैं। गन्ने लगे खेत नदी में समा चुके हैं। लोग पानी उतरने का इंतजार कर रहे ताकि कुछ फसल बच जाए, जिसे बेचकर पूरे साल के राशन का इंतजाम हो सके। ऐसा ही हाल बिजुआ ब्लॉक के गुजारा गांव का भी है। यहां करीब 15 परिवार टेंट बनाकर रह रहे हैं। बारिश होती है तो छोटे से तंबू में ही सभी मायूस होकर बैठ जाते हैं। महिलाएं अपने छोटे बच्चों को गोद में लेकर बारिश से बचाने का प्रयास करती हैं। लखीमपुर खीरी जिले में करीब 150 गांव शारदा, घाघरा, मोहाना नदी की बाढ़ की चपेट में हैं। 4 सितंबर तक करीब 563 कच्चे-पक्के मकान और झोपड़ियां शारदा नदी में समा चुकी हैं। दैनिक भास्कर की टीम प्रभावित क्षेत्रों में पहुंची। बाढ़ के बीच लोग कैसे जिंदगी गुजार रहे, उनकी जद्दोजहद को करीब से देखा। प्रशासन कितना एक्टिव है, सरकार की तरफ से क्या मदद मिल रही है, इसे भी जाना… हमारी टीम सबसे पहले बाढ़ प्रभावित बिजुआ ब्लॉक के बेला सिकटिया गांव पहुंची। यहां पिछले तीन दिन में पानी कुछ कम हुआ है। हालांकि, पूरे गांव में कीचड़ है। गन्ने और धान के खेत अभी भी पानी से लबालब हैं। हम गांव के एक छोर पर पहुंचे। यहां से शारदा नहर गुजरी है। नदी पूरे उफान पर है। कटान लगातार बढ़ रहा है। हमें नदी के किनारे इसी गांव के अवधेश शुक्ला मिले। वह कहते हैं- पिछले 3 साल से कटान हो रहा है। उसके पहले तो नदी गांव से दो किलोमीटर दूर बहती थी। लेकिन, इस साल कटान ज्यादा बढ़ गया। गांव के 7 मकान नदी में समा गए हैं। वह सभी लोग गांव में ही व्यवस्था करके रह रहे हैं। इसी गांव के परशुराम हमें मिले। बाढ़ में हुए अपने नुकसान को बताते हुए कहते हैं- तीन एकड़ जमीन थी। गन्ना लगाया था, लेकिन सारी फसल कटान में समा गई। हमने पूछा, अगर फसल तैयार होती तो कितना मिलता? परशुराम कहते हैं- इसके बारे में क्या बताएं? अच्छी फसल होती तो ज्यादा मिलता, लेकिन कम से कम 1 लाख रुपए तो मिलता ही। घर में 8 लोग हैं, अब सब हमारे भरोसे हैं। मजदूरी करके किसी तरह घर चलाएंगे। इसी गांव की रामकुमारी कहती हैं- बाढ़ के चलते बहुत दिक्कत हुई। घर में कुछ नहीं रह गया। जो तीन एकड़ खेत था, वह भी अब नदी में समा गया। छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनका क्या होगा। रामकुमारी के पड़ोस बैठी एक महिला सरकारी व्यवस्था और मदद के बारे में पूछने पर बिफर पड़ीं। कहती हैं- कोई मदद नहीं मिली। हमारा सारा खेत चला गया। अब क्या खिलाएंगे, क्या खाएंगे? कुछ पता नहीं। हम गांव के प्रधान नेपाली के पास पहुंचे। वह कहते हैं- इस साल 200 एकड़ जमीन नदी में समा गई। 7 लोगों का घर बह गया। उन सबको मदद मिलेगी। बाकी लोगों के लिए भी प्रशासन की तरफ से खाने की व्यवस्था की जाती है। प्रशासन मुआवजे को लेकर आगे काम करेगा। तंबू में कट रही 15 परिवारों की जिंदगी बेला सिकटिया से निकलकर हम बिजुआ ब्लॉक के गुजारा गांव पहुंचे। यहां गांव जाने वाली सड़क बह गई है। स्थानीय प्रशासन ने नाव लगा दी है, जिससे लोग इधर से उधर आ-जा रहे हैं। यहां करीब 15 परिवारों के 100 से ज्यादा लोग बंधे पर ही जमे हैं, क्योंकि उनका घर बाढ़ में डूबा है। तंबू में रह रहीं राधिका कहती हैं- गांव में हमारा घर डूब गया। हमारे पास रहने के लिए कोई और व्यवस्था नहीं। इसलिए यहीं पन्नी के जरिए तंबू बनाकर अपने बच्चों के साथ रह रही हूं। दूसरे तंबू में बैठे बृजेश कहते हैं- 4-5 दिन से तो हम लोग यहां रह रहे हैं, लेकिन कुछ लोग अब वापस गांव में चले गए हैं। बरसात के बीच भी हम लोग यहीं रहते हैं। बंधे पर मौजूद मोहन सिंह से हमने पूछा कि क्या सरकारी कर्मचारी-अधिकारी आते हैं? वह कहते हैं- कभी आते हैं और कभी नहीं आते। हालांकि यहां सभी को सुबह और शाम प्रशासन की तरफ से पूड़ी-सब्जी या फिर खिचड़ी मिलती है। बाढ़ के बीच सड़क बह जाने से दिक्कत हो रही है। देखते हैं, कब ठीक होती है। जानवरों के लिए चारा लाना बना मुसीबत
इसके बाद हमारी टीम निघासन पहुंची। यहां 10 से ज्यादा गांव बाढ़ से बुरी तरह से प्रभावित हैं। हम तमोलिन का पुरवा जाने के लिए निकले। एक किलोमीटर पहले से ही सड़क पानी से भरी थी। हम पानी में उतरकर गांव के बीच पहुंचे। यहां हर व्यक्ति परेशान दिखा। सड़क पर पानी का बहाव इतना तेज है कि कई बार लोग बहकर खेत में चले जाते हैं। सिर पर पशुओं का चारा लेकर जा रहे गजोधर मिले। वह कहते हैं- इधर सारा पानी पलिया से आ रहा। यहां की स्थिति बहुत खराब है। सबसे ज्यादा दिक्कत पशुओं के चारे को लेकर हो रही है। बहुत दूर से लेकर आ रहे हैं। खाना भी घर पर पानी के बीच ही बन रहा। इस वक्त तो हर चीज में ही बहुत दिक्कत हो रही है। 47 करोड़ रुपए दिया जा चुका मुआवजा एसडीएफ विनोद गुप्ता बताते हैं- बाढ़ के बीच 5,927 किसानों का डेटा फीड हुआ था। 5,736 किसानों के खाते में पैसा पहुंच गया। 4 दिन पहले फिर से बाढ़ आने से इसमें 150 किसान बढ़े हैं। धान के लिए प्रति हेक्टेयर 17 हजार और गन्ने के लिए प्रति हेक्टेयर 22,500 रुपए मुआवजा निर्धारित है। अकेले गोला तहसील में 37 पक्के मकान, 42 झोपड़ी और 8 कच्चे मकान नदी में कटे हैं। इन सबको भी जल्द मुआवजा दिया जाएगा। ये भी पढ़ें… लखीमपुर में टाइगर का खौफ, बच्चों की पढ़ाई बंद; वनकर्मी पिंजरे के बाहर बांध रहे पाड़ा जिला- लखीमपुर खीरी, गांव- मूढ़ा जवाहर गांव, समय- रात 8 बजे गांव में जाने वाली सड़क के दोनों तरफ गन्ने के खेत हैं। सड़क किनारे झाड़ियां उगी हैं। इससे आधी सड़क ही चलने लायक दिखती है। गांव के एक छोर पर पूरी तरह सन्नाटा था। कोई भी बाहर नहीं दिख रहा था। हर कोई अपने घरों में कैद हो गया था। गांव के दूसरे छोर की तरफ जाने पर करीब 20 लोगों का एक ग्रुप दिखा। इनके हाथों में डंडे थे। ये बीच-बीच में पटाखे फोड़ रहे थे। पूछने पर बताया, यह इसलिए कर रहे ताकि बाघ गांव की तरफ न आए। इससे लोगों को भी सचेत कर रहे कि बाहर नहीं सोएं। घर के अंदर या फिर छत पर सोएं। यहां पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर