हरियाणा के फरीदाबाद में लग रहे अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले पश्चिम बंगाल के आशीष मलाका शोलापीठ शिल्प से तैयार कलाकृतियों को लेकर आए है। जो मेले में आने वाले लोगों को खूब पसंद भी आ रही है। शोलापीठ शिल्प एक दूधिया सफेद स्पंज की लकड़ी है। जिसका उपयोग सजावटी सामान बनाने के लिए किया जाता है। शोलापीठ का उपयोग दुल्हन के जोड़ों के सिर के वस्त्र, माला और देवी-देवताओं की छवियों को बनाने के लिए किया जाता है, पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा पर इससे तैयार की गई दुर्गा की प्रतिमा की पूजा की जाती है। पानी के अंदर से निकलती है लकड़ी दूधिया रंग की सफेद स्पंज की लकड़ी तालाबों से पानी के अन्दर से निकाली जाती है, जिसको 2 महीने तक सुखाया जाता है। उसके बाद चाकू की मदद से उसको परत दर परत छीला जाता है इसके बाद इसमें रंग भरे जाते है। हस्तशिल्पी आशीष मलाका ने बताया कि एक 2 फिट की दुर्गा की प्रतिमा को तैयार करने में उनको 2 महीने लग जाते है। जिसकी कीमत 50 हजार रूपए तक होती है। पीढ़ियों से चली आ रही है कला शोलापीठ शिल्प की ये कला उनकी पीढ़ियों से चली आ रही है वो अपने परिवार की 5 वीं पीढ़ी है जो इस कला को आगे बढ़ा रहे है। आशीष मलाका अब तक 10 से ज्यादा देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं, जहां उनकी कलाकृतियों की अच्छी मांग रहती है। इस कला में आशीष मलाका को 1990 में नेशनल अवॉर्ड और 2008 में शिल्पगुरु अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है वह कोलकाता पश्चिम बंगाल के रहने वाले है। हरियाणा के फरीदाबाद में लग रहे अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड हस्तशिल्प मेले पश्चिम बंगाल के आशीष मलाका शोलापीठ शिल्प से तैयार कलाकृतियों को लेकर आए है। जो मेले में आने वाले लोगों को खूब पसंद भी आ रही है। शोलापीठ शिल्प एक दूधिया सफेद स्पंज की लकड़ी है। जिसका उपयोग सजावटी सामान बनाने के लिए किया जाता है। शोलापीठ का उपयोग दुल्हन के जोड़ों के सिर के वस्त्र, माला और देवी-देवताओं की छवियों को बनाने के लिए किया जाता है, पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा पर इससे तैयार की गई दुर्गा की प्रतिमा की पूजा की जाती है। पानी के अंदर से निकलती है लकड़ी दूधिया रंग की सफेद स्पंज की लकड़ी तालाबों से पानी के अन्दर से निकाली जाती है, जिसको 2 महीने तक सुखाया जाता है। उसके बाद चाकू की मदद से उसको परत दर परत छीला जाता है इसके बाद इसमें रंग भरे जाते है। हस्तशिल्पी आशीष मलाका ने बताया कि एक 2 फिट की दुर्गा की प्रतिमा को तैयार करने में उनको 2 महीने लग जाते है। जिसकी कीमत 50 हजार रूपए तक होती है। पीढ़ियों से चली आ रही है कला शोलापीठ शिल्प की ये कला उनकी पीढ़ियों से चली आ रही है वो अपने परिवार की 5 वीं पीढ़ी है जो इस कला को आगे बढ़ा रहे है। आशीष मलाका अब तक 10 से ज्यादा देशों में अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं, जहां उनकी कलाकृतियों की अच्छी मांग रहती है। इस कला में आशीष मलाका को 1990 में नेशनल अवॉर्ड और 2008 में शिल्पगुरु अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है वह कोलकाता पश्चिम बंगाल के रहने वाले है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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