साल 1989, चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर डिप्टी प्राइम मिनिस्टर बने और बेटे ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनवा दिया। तब ओम प्रकाश चौटाला विधायक नहीं थे। उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना था। ओमप्रकाश चौटाला, रोहतक जिले की महम सीट से उपचुनाव में उतरे। ये वो सीट थी जहां से लगातार तीन बार देवीलाल जीत चुके थे। जब चुनाव हुआ तो महम सीट हिंसा की भेंट चढ़ गई। 10 लोगों की जान चली गई। चुनाव रद्द हो गया। महम कांड की आंच चौटाला परिवार तक पहुंची। इधर, अप्रैल 1990, जनता दल में नए अध्यक्ष को लेकर गहमागहमी शुरू हो चुकी थी। रेस में दो नाम सबसे आगे थे। पहला- एसआर बोम्मई का, जिन्हें समाजवादी नेता चंद्रशेखर का समर्थन था। दूसरा- एस जयपाल रेड्डी का, जिनके खेमे में रामकृष्ण हेगड़े और अजीत सिंह जैसे नेता थे। देवीलाल, बोम्मई का समर्थन कर रहे थे। उन्हें लगता था कि बोम्मई अध्यक्ष बनते हैं, तो ओमप्रकाश चौटाला की कुर्सी बच जाएगी। उधर, रेड्डी को आशंका थी कि प्रधानमंत्री वीपी सिंह उनका साथ नहीं देंगे। इसी असमंजस में उन्होंने दावेदारी छोड़ दी। 19 मई को बोम्मई जनता दल के निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए गए। इस बीच महम कांड का शोर संसद तक पहुंच गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी चौटाला के इस्तीफे की मांग कर डाली। वीपी सिंह को आनन-फानन में मंत्रिमंडल की बैठक बुलानी पड़ी। देवीलाल की हाजिरी में बोम्मई ने चौटाला से इस्तीफा मांग लिया। 22 मई को ओमप्रकाश चौटाला ने इस्तीफा दे दिया। अब देवीलाल को ऐसे नेता की जरूरत थी, जो हरियाणा का मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन सरकार की बागडोर उनके पास ही रहे। देवीलाल के छोटे बेटे रणजीत चौटाला भी सीएम की रेस में थे, लेकिन ओमप्रकाश को डर था कि रणजीत मुख्यमंत्री बन गए, तो बाद में वे इस्तीफा नहीं देंगे। ऐसे में डिप्टी सीएम बनारसी दास गुप्ता का नाम तय किया गया। वे देवीलाल और ओमप्रकाश दोनों के करीबी थे। 22 मई 1990 को बनारसी दास गुप्ता दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के चौथे एपिसोड में बनारसी दास गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने की कहानी और उनसे जुड़े किस्से… बनारसी दास गुप्ता का जन्म 5 नवंबर 1917 को पंजाब की जींद रियासत के एक छोटे से गांव में हुआ। पिता रामस्वरूप गुप्ता गांव में दुकान चलाते थे और खेती भी करते थे। उनकी मौसी की कोई संतान नहीं थी। इसलिए वे कुछ सालों तक अपनी मौसी के पास रहे, लेकिन जब उनको बेटा हुआ तो बनारसी दास माता-पिता के पास लौट आए। बनारसी दास की तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई गांव में ही हुई। उन दिनों स्कूल में दलित बच्चों को अन्य बच्चों से अलग बिठाया जाता था। वे इसका विरोध करते और उनके साथ ही बैठते। आठवीं के बाद वे पिलानी के बिड़ला कॉलेज में एडमिशन लेने पहुंचे। जब फीस जमा करने की बारी आई तो बनारसी दास ने 100 रुपए का नोट दिया। नोट किनारे से फटा था, मुनीम ने नोट लेने से मना कर दिया। बनारसी दास के पास सिर्फ उतने ही रुपए थे। पूरा दिन उन्होंने सड़क पर बिताया। शाम को कॉलेज के मालिक घनश्यामदास बिड़ला ने उन्हें देखा और कारण पूछा। तब बनारसी दास ने उन्हें पूरा किस्सा बताया। इसके बाद उन्हें एडमिशन मिल गया। बिड़ला कॉलेज से 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद वे पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में उतर गए। उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ साल जेल में भी रहे। बंटवारे के दौरान पत्नी को लेने लाहौर पहुंचे, सीट के नीचे छिपकर लौटे 28 फरवरी 1941, बनारसी दास की शादी भिवानी जिले के तिगराणा गांव की द्रौपदी गुप्ता से हुई। उन्होंने अपनी शादी में भी आजादी के नारे लगाए। बनारसी दास के मित्र और उन पर तीन-तीन किताबें लिखने वाले डॉ. निरजंन रोहिल्ला उनकी शादी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं- ‘बंटवारे के समय बनारसी दास की पत्नी लाहौर के कॉलेज में पढ़ रही थीं। उस वक्त दोनों तरफ कत्लेआम मचा हुआ था। बनारसी दास के पिता ने उनसे कहा कि वे लाहौर जाकर द्रौपदी को लेकर आएं। बनारसी दास लाहौर के लिए निकल पड़े। वे पहले भटिंडा पहुंचे, लेकिन लाहौर जाने वाली ट्रेन में कत्लेआम देखकर उन्होंने ट्रेन से जाने का प्लान कैंसिल कर दिया। वे ट्रक से लाहौर के लिए निकल गए। रात के अंधेरे में जैसे-तैसे वे द्रौपदी को ढूंढने में कामयाब रहे। उन्होंने पूरी रात स्टेशन के पास जंगल में बिताई। सुबह भटिंडा के लिए ट्रेन पकड़ी और सीट के नीचे छिपकर पत्नी के साथ भारत पहुंचे।’ जींद रियासत को देश में मिलाने के लिए जेल गए जींद रियासत को भारत में मिलाने में उनकी बड़ी भूमिका रही। उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 1946 में राजनीतिक हालात बदले तो वे जेल से बाहर आए। इस दौरान जींद के महाराजा ने सीमित मताधिकार से चुने गए 65 सदस्यों की विधानसभा का गठन किया। बनारसी दास जींद से निर्विरोध सदस्य चुने गए। आजादी के बाद बनारसीदास और उनके साथियों ने जींद रियासत का पंजाब में विलय करने के लिए संघर्ष किया। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद पंजाब की सभी रियासतों को मिलाकर पेप्सू यूनियन बनाया गया। आगे चलकर पंजाब में इसका विलय कर दिया गया। रियासती प्रजामंडलों का कांग्रेस में विलय कर दिया। बनारसी दास भी कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस में शामिल होने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने भिवानी को कार्यक्षेत्र बनाया। राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के बैनर तले मजदूरों को संगठित किया। इस दौरान उन्होंने 17 दिन तक अनशन भी किया। वे 1953 से 1960 तक जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1953 में ही भिवानी नगरपालिका के पहले गैर सरकारी अध्यक्ष चुने गए। 1968 में बनारसीदास भिवानी से कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बने। 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 81 में से 52 सीटें जीतीं। बनारसी दास फिर विधायक बने। बंसीलाल दोबारा मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के बाद बंसीलाल ने बनारसी दास को स्पीकर बनाया। बंसीलाल को इंदिरा का बुलावा और बनारसी दास सीएम बन गए स्पीकर बनने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने विधानसभा का सारा काम हिंदी में करने का आदेश दिया। इससे वे चर्चा में आ गए। यह पहला मौका था जब किसी विधानसभा में सारा काम हिंदी में करने का आदेश जारी हुआ था। 1973 में उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और बंसीलाल मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। उन्हें बिजली, सिंचाई, कृषि, सहकारिता, स्वास्थ्य और नागरिक प्रशासन मंत्रालय मिला। इसी बीच इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने बंसीलाल को दिल्ली बुला लिया। बंसीलाल हरियाणा की कमान अपने किसी करीबी को सौंपना चाहते थे। उन्होंने बनारसी दास को मुफीद माना। इस तरह 1 दिसंबर 1975 को बनारसी दास गुप्ता पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि इस दौरान उन पर डमी सीएम होने का आरोप भी लगा। कहा जाता है कि भले ही बंसीलाल दिल्ली में रक्षा मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे, लेकिन हरियाणा में हर फैसले में उनकी और उनके बेटे सुरेंद्र की दखल रहती थी। 1977 में कांग्रेस को 3 सीटें मिलीं, बनारसी दास ने पाला बदल लिया 1977 में इमरजेंसी हटने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 3 सीटों पर सिमट गई। बनारसी दास भी चुनाव हार गए। जनता पार्टी 75 सीटों के साथ सत्ता में आई। चौधरी देवीलाल मुख्यमंत्री बने। हालांकि दो साल बाद ही उनकी जगह भजनलाल को सीएम बना दिया गया। 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोगोंवाल के बीच पंजाब में समझौता हुआ। इसमें चंड़ीगढ़ और रावी-व्यास के जल बंटवारे से जुड़ा मामला शामिल था। इसे लेकर हरियाणा में काफी आक्रोश था। देवीलाल ने 18 विधायकों के साथ विधानसभा से इस्तीफा देकर ‘न्याय युद्ध’ छेड़ दिया। बनारसी दास ने कांग्रेस को आंदोलन में शामिल होने की सलाह दी, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। इसके बाद बनारसी दास कांग्रेस छोड़कर चौधरी देवीलाल के साथ आ गए। 1987 में विधानसभा चुनाव हुए तो चौधरी देवीलाल को 60 सीटें मिलीं। देवीलाल मुख्यमंत्री बने और बनारसी दास गुप्ता को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। ओमप्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा, बनारसी दास पर कठपुतली सीएम का ठप्पा लगा दो साल बाद केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार बनी, तो देवीलाल को उप प्रधानमंत्री बनाया गया। देवीलाल राज्य की सत्ता बेटे ओमप्रकाश चौटाला को सौंप कर दिल्ली की तरफ बढ़ गए। चौटाला सीएम बने तो वे विधायक नहीं थे। उन्होंने महम सीट पर उपचुनाव में पर्चा भर दिया। खाप पंचायतों ने इसका विरोध किया और देवीलाल के करीबी रहे आनंद सिंह दांगी को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर समर्थन दे दिया। 27 फरवरी, 1990 को महम में वोटिंग हुई। आनंद सिंह दांगी ने चुनाव आयोग से आठ वोटिंग सेंटर्स पर बूथ कैप्चरिंग की शिकायत की। अगले दिन यानी 28 फरवरी को उन आठ बूथों पर फिर से वोटिंग हुई। उस दौरान भी भारी हिंसा हुई। भीड़ ने बचाव में जुटी CRPF के एक जवान की हत्या कर दी। इसके बाद सुरक्षाबलों ने भीड़ पर गोलियां चला दीं जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- महम हिंसा के बाद जनता दल में अजीत सिंह, अरुण नेहरू, जॉर्ज फर्नांडिस और रामकृष्ण हेगड़े जैसे नेताओं ने वीपी सिंह पर चौटाला को हटाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। 3 मार्च को एक बैठक में देवीलाल और अजीत सिंह में जमकर गाली-गलौज हुई। इसी रात एक और बैठक हुई इसमें जनता दल शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए। बैठक में उत्तर प्रदेश के सीएम मुलायम सिंह यादव, बिहार के सीएम लालू प्रसाद यादव और ओडिशा के सीएम बीजू पटनायक ने चौटाला को हटाने की वकालत की। देवीलाल के खास शरद यादव भी चौटाला को हटाने के पक्ष में थे। हालांकि बैठक में कोई फैसला नहीं हो सका। अब इसका फैसला करने का जिम्मा एक कमेटी को सौंप गया। कमेटी में अजीत सिंह, जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, अरुण नेहरू और यशवंत सिन्हा शामिल थे। 4 मार्च को कमेटी ने तय किया कि पार्टी चुनाव आयोग से महम सीट पर फिर से वोटिंग कराने को कहे। साथ ही चौटाला इस्तीफा दें। आखिरकार 22 मई 1990 को चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। उसी दिन देवीलाल ने अपने करीबी और तब डिप्टी सीएम रहे बनारसी दास गुप्ता को सीएम बनाया। हालांकि दो महीने के भीतर ही ओमप्रकाश चौटाला दरबान कलां सीट से उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए। उन्होंने बनारसी दास गुप्ता से इस्तीफा ले लिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए। बनारसी दास गुप्ता 51 दिन ही सीएम रह सके। बनारसी दास गुप्ता को गोली लगी, बाल-बाल बचे इसके बाद बनारसी दास गुप्ता के देवीलाल से वैचारिक मतभेद बढ़ गए। वे सक्रिय राजनीति से अलग-थलग रहने लगे थे। 23 सितंबर 1990 की बात है। बनारसी दास भिवानी में महाराजा अग्रसेन जयंती समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इसी दौरान अचानक उन पर फायरिंग हो गई। गोली उनके सीने को चीरती हुई पार निकल गई। हालांकि लंबे इलाज के बाद वे ठीक हो गए। इस घटना ने बनारसी दास को फिर से राजनीति में एक्टिव होने की ऊर्जा दे दी। राजीव गांधी के कहने पर बनारसी दास कांग्रेस में शामिल हो गए। 1996 में भजनलाल सरकार के दौरान उन्हें राज्यसभा भेजा गया। कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्होंने राजनीति से रिटायरमेंट ले लिया और समाजसेवा की तरफ बढ़ गए। 29 अगस्त 2007 को बनारसी दास का निधन हो गया। साल 1989, चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर डिप्टी प्राइम मिनिस्टर बने और बेटे ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनवा दिया। तब ओम प्रकाश चौटाला विधायक नहीं थे। उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना था। ओमप्रकाश चौटाला, रोहतक जिले की महम सीट से उपचुनाव में उतरे। ये वो सीट थी जहां से लगातार तीन बार देवीलाल जीत चुके थे। जब चुनाव हुआ तो महम सीट हिंसा की भेंट चढ़ गई। 10 लोगों की जान चली गई। चुनाव रद्द हो गया। महम कांड की आंच चौटाला परिवार तक पहुंची। इधर, अप्रैल 1990, जनता दल में नए अध्यक्ष को लेकर गहमागहमी शुरू हो चुकी थी। रेस में दो नाम सबसे आगे थे। पहला- एसआर बोम्मई का, जिन्हें समाजवादी नेता चंद्रशेखर का समर्थन था। दूसरा- एस जयपाल रेड्डी का, जिनके खेमे में रामकृष्ण हेगड़े और अजीत सिंह जैसे नेता थे। देवीलाल, बोम्मई का समर्थन कर रहे थे। उन्हें लगता था कि बोम्मई अध्यक्ष बनते हैं, तो ओमप्रकाश चौटाला की कुर्सी बच जाएगी। उधर, रेड्डी को आशंका थी कि प्रधानमंत्री वीपी सिंह उनका साथ नहीं देंगे। इसी असमंजस में उन्होंने दावेदारी छोड़ दी। 19 मई को बोम्मई जनता दल के निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए गए। इस बीच महम कांड का शोर संसद तक पहुंच गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी चौटाला के इस्तीफे की मांग कर डाली। वीपी सिंह को आनन-फानन में मंत्रिमंडल की बैठक बुलानी पड़ी। देवीलाल की हाजिरी में बोम्मई ने चौटाला से इस्तीफा मांग लिया। 22 मई को ओमप्रकाश चौटाला ने इस्तीफा दे दिया। अब देवीलाल को ऐसे नेता की जरूरत थी, जो हरियाणा का मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन सरकार की बागडोर उनके पास ही रहे। देवीलाल के छोटे बेटे रणजीत चौटाला भी सीएम की रेस में थे, लेकिन ओमप्रकाश को डर था कि रणजीत मुख्यमंत्री बन गए, तो बाद में वे इस्तीफा नहीं देंगे। ऐसे में डिप्टी सीएम बनारसी दास गुप्ता का नाम तय किया गया। वे देवीलाल और ओमप्रकाश दोनों के करीबी थे। 22 मई 1990 को बनारसी दास गुप्ता दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के चौथे एपिसोड में बनारसी दास गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने की कहानी और उनसे जुड़े किस्से… बनारसी दास गुप्ता का जन्म 5 नवंबर 1917 को पंजाब की जींद रियासत के एक छोटे से गांव में हुआ। पिता रामस्वरूप गुप्ता गांव में दुकान चलाते थे और खेती भी करते थे। उनकी मौसी की कोई संतान नहीं थी। इसलिए वे कुछ सालों तक अपनी मौसी के पास रहे, लेकिन जब उनको बेटा हुआ तो बनारसी दास माता-पिता के पास लौट आए। बनारसी दास की तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई गांव में ही हुई। उन दिनों स्कूल में दलित बच्चों को अन्य बच्चों से अलग बिठाया जाता था। वे इसका विरोध करते और उनके साथ ही बैठते। आठवीं के बाद वे पिलानी के बिड़ला कॉलेज में एडमिशन लेने पहुंचे। जब फीस जमा करने की बारी आई तो बनारसी दास ने 100 रुपए का नोट दिया। नोट किनारे से फटा था, मुनीम ने नोट लेने से मना कर दिया। बनारसी दास के पास सिर्फ उतने ही रुपए थे। पूरा दिन उन्होंने सड़क पर बिताया। शाम को कॉलेज के मालिक घनश्यामदास बिड़ला ने उन्हें देखा और कारण पूछा। तब बनारसी दास ने उन्हें पूरा किस्सा बताया। इसके बाद उन्हें एडमिशन मिल गया। बिड़ला कॉलेज से 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद वे पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में उतर गए। उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ साल जेल में भी रहे। बंटवारे के दौरान पत्नी को लेने लाहौर पहुंचे, सीट के नीचे छिपकर लौटे 28 फरवरी 1941, बनारसी दास की शादी भिवानी जिले के तिगराणा गांव की द्रौपदी गुप्ता से हुई। उन्होंने अपनी शादी में भी आजादी के नारे लगाए। बनारसी दास के मित्र और उन पर तीन-तीन किताबें लिखने वाले डॉ. निरजंन रोहिल्ला उनकी शादी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं- ‘बंटवारे के समय बनारसी दास की पत्नी लाहौर के कॉलेज में पढ़ रही थीं। उस वक्त दोनों तरफ कत्लेआम मचा हुआ था। बनारसी दास के पिता ने उनसे कहा कि वे लाहौर जाकर द्रौपदी को लेकर आएं। बनारसी दास लाहौर के लिए निकल पड़े। वे पहले भटिंडा पहुंचे, लेकिन लाहौर जाने वाली ट्रेन में कत्लेआम देखकर उन्होंने ट्रेन से जाने का प्लान कैंसिल कर दिया। वे ट्रक से लाहौर के लिए निकल गए। रात के अंधेरे में जैसे-तैसे वे द्रौपदी को ढूंढने में कामयाब रहे। उन्होंने पूरी रात स्टेशन के पास जंगल में बिताई। सुबह भटिंडा के लिए ट्रेन पकड़ी और सीट के नीचे छिपकर पत्नी के साथ भारत पहुंचे।’ जींद रियासत को देश में मिलाने के लिए जेल गए जींद रियासत को भारत में मिलाने में उनकी बड़ी भूमिका रही। उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 1946 में राजनीतिक हालात बदले तो वे जेल से बाहर आए। इस दौरान जींद के महाराजा ने सीमित मताधिकार से चुने गए 65 सदस्यों की विधानसभा का गठन किया। बनारसी दास जींद से निर्विरोध सदस्य चुने गए। आजादी के बाद बनारसीदास और उनके साथियों ने जींद रियासत का पंजाब में विलय करने के लिए संघर्ष किया। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद पंजाब की सभी रियासतों को मिलाकर पेप्सू यूनियन बनाया गया। आगे चलकर पंजाब में इसका विलय कर दिया गया। रियासती प्रजामंडलों का कांग्रेस में विलय कर दिया। बनारसी दास भी कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस में शामिल होने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने भिवानी को कार्यक्षेत्र बनाया। राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के बैनर तले मजदूरों को संगठित किया। इस दौरान उन्होंने 17 दिन तक अनशन भी किया। वे 1953 से 1960 तक जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1953 में ही भिवानी नगरपालिका के पहले गैर सरकारी अध्यक्ष चुने गए। 1968 में बनारसीदास भिवानी से कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बने। 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 81 में से 52 सीटें जीतीं। बनारसी दास फिर विधायक बने। बंसीलाल दोबारा मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के बाद बंसीलाल ने बनारसी दास को स्पीकर बनाया। बंसीलाल को इंदिरा का बुलावा और बनारसी दास सीएम बन गए स्पीकर बनने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने विधानसभा का सारा काम हिंदी में करने का आदेश दिया। इससे वे चर्चा में आ गए। यह पहला मौका था जब किसी विधानसभा में सारा काम हिंदी में करने का आदेश जारी हुआ था। 1973 में उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और बंसीलाल मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। उन्हें बिजली, सिंचाई, कृषि, सहकारिता, स्वास्थ्य और नागरिक प्रशासन मंत्रालय मिला। इसी बीच इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने बंसीलाल को दिल्ली बुला लिया। बंसीलाल हरियाणा की कमान अपने किसी करीबी को सौंपना चाहते थे। उन्होंने बनारसी दास को मुफीद माना। इस तरह 1 दिसंबर 1975 को बनारसी दास गुप्ता पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि इस दौरान उन पर डमी सीएम होने का आरोप भी लगा। कहा जाता है कि भले ही बंसीलाल दिल्ली में रक्षा मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे, लेकिन हरियाणा में हर फैसले में उनकी और उनके बेटे सुरेंद्र की दखल रहती थी। 1977 में कांग्रेस को 3 सीटें मिलीं, बनारसी दास ने पाला बदल लिया 1977 में इमरजेंसी हटने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 3 सीटों पर सिमट गई। बनारसी दास भी चुनाव हार गए। जनता पार्टी 75 सीटों के साथ सत्ता में आई। चौधरी देवीलाल मुख्यमंत्री बने। हालांकि दो साल बाद ही उनकी जगह भजनलाल को सीएम बना दिया गया। 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोगोंवाल के बीच पंजाब में समझौता हुआ। इसमें चंड़ीगढ़ और रावी-व्यास के जल बंटवारे से जुड़ा मामला शामिल था। इसे लेकर हरियाणा में काफी आक्रोश था। देवीलाल ने 18 विधायकों के साथ विधानसभा से इस्तीफा देकर ‘न्याय युद्ध’ छेड़ दिया। बनारसी दास ने कांग्रेस को आंदोलन में शामिल होने की सलाह दी, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। इसके बाद बनारसी दास कांग्रेस छोड़कर चौधरी देवीलाल के साथ आ गए। 1987 में विधानसभा चुनाव हुए तो चौधरी देवीलाल को 60 सीटें मिलीं। देवीलाल मुख्यमंत्री बने और बनारसी दास गुप्ता को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। ओमप्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा, बनारसी दास पर कठपुतली सीएम का ठप्पा लगा दो साल बाद केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार बनी, तो देवीलाल को उप प्रधानमंत्री बनाया गया। देवीलाल राज्य की सत्ता बेटे ओमप्रकाश चौटाला को सौंप कर दिल्ली की तरफ बढ़ गए। चौटाला सीएम बने तो वे विधायक नहीं थे। उन्होंने महम सीट पर उपचुनाव में पर्चा भर दिया। खाप पंचायतों ने इसका विरोध किया और देवीलाल के करीबी रहे आनंद सिंह दांगी को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर समर्थन दे दिया। 27 फरवरी, 1990 को महम में वोटिंग हुई। आनंद सिंह दांगी ने चुनाव आयोग से आठ वोटिंग सेंटर्स पर बूथ कैप्चरिंग की शिकायत की। अगले दिन यानी 28 फरवरी को उन आठ बूथों पर फिर से वोटिंग हुई। उस दौरान भी भारी हिंसा हुई। भीड़ ने बचाव में जुटी CRPF के एक जवान की हत्या कर दी। इसके बाद सुरक्षाबलों ने भीड़ पर गोलियां चला दीं जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- महम हिंसा के बाद जनता दल में अजीत सिंह, अरुण नेहरू, जॉर्ज फर्नांडिस और रामकृष्ण हेगड़े जैसे नेताओं ने वीपी सिंह पर चौटाला को हटाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। 3 मार्च को एक बैठक में देवीलाल और अजीत सिंह में जमकर गाली-गलौज हुई। इसी रात एक और बैठक हुई इसमें जनता दल शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए। बैठक में उत्तर प्रदेश के सीएम मुलायम सिंह यादव, बिहार के सीएम लालू प्रसाद यादव और ओडिशा के सीएम बीजू पटनायक ने चौटाला को हटाने की वकालत की। देवीलाल के खास शरद यादव भी चौटाला को हटाने के पक्ष में थे। हालांकि बैठक में कोई फैसला नहीं हो सका। अब इसका फैसला करने का जिम्मा एक कमेटी को सौंप गया। कमेटी में अजीत सिंह, जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, अरुण नेहरू और यशवंत सिन्हा शामिल थे। 4 मार्च को कमेटी ने तय किया कि पार्टी चुनाव आयोग से महम सीट पर फिर से वोटिंग कराने को कहे। साथ ही चौटाला इस्तीफा दें। आखिरकार 22 मई 1990 को चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। उसी दिन देवीलाल ने अपने करीबी और तब डिप्टी सीएम रहे बनारसी दास गुप्ता को सीएम बनाया। हालांकि दो महीने के भीतर ही ओमप्रकाश चौटाला दरबान कलां सीट से उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए। उन्होंने बनारसी दास गुप्ता से इस्तीफा ले लिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए। बनारसी दास गुप्ता 51 दिन ही सीएम रह सके। बनारसी दास गुप्ता को गोली लगी, बाल-बाल बचे इसके बाद बनारसी दास गुप्ता के देवीलाल से वैचारिक मतभेद बढ़ गए। वे सक्रिय राजनीति से अलग-थलग रहने लगे थे। 23 सितंबर 1990 की बात है। बनारसी दास भिवानी में महाराजा अग्रसेन जयंती समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इसी दौरान अचानक उन पर फायरिंग हो गई। गोली उनके सीने को चीरती हुई पार निकल गई। हालांकि लंबे इलाज के बाद वे ठीक हो गए। इस घटना ने बनारसी दास को फिर से राजनीति में एक्टिव होने की ऊर्जा दे दी। राजीव गांधी के कहने पर बनारसी दास कांग्रेस में शामिल हो गए। 1996 में भजनलाल सरकार के दौरान उन्हें राज्यसभा भेजा गया। कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्होंने राजनीति से रिटायरमेंट ले लिया और समाजसेवा की तरफ बढ़ गए। 29 अगस्त 2007 को बनारसी दास का निधन हो गया। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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हरियाणा में आज भी बारिश के आसार नहीं:रात को पश्चिमी विक्षोभ होगा सक्रिय: 22 से 24 जुलाई तक मौसम में बदलाव, मानसून की बनेगी सक्रियता
हरियाणा में आज भी बारिश के आसार नहीं:रात को पश्चिमी विक्षोभ होगा सक्रिय: 22 से 24 जुलाई तक मौसम में बदलाव, मानसून की बनेगी सक्रियता हरियाणा में अभी तक मानसून पूरी तरह सक्रिय नहीं हुआ है। लोगों को इस उमस भरी गर्मी से निजात पाने के लिए बरसात का इंतजार है। लेकिन, अभी ये इंतजार खत्म होता नजर नहीं आ रहा है। आज यानी 21 जुलाई को भी दिनभर गर्मी ही रहने वाली है। लेकिन मौसम विभाग के अनुमान के अनुसार एक कमजोर पश्चिमी विक्षोभ 21 जुलाई रात को सक्रिय होगा। जिसके चलते 22-24 जुलाई के दौरान मौसम में बदलाव और मानसून में सक्रियता की संभावना बन रही है। इस दौरान हरियाणा में अधिकतर स्थानों पर तेज गति से हवाएं चलने और गरज -चमक के साथ हल्की से मध्यम बारिश और बूंदाबांदी की संभावना बन रही है। सुस्त मानसून कल से होगा सक्रिय
पिछले कुछ दिन से सुस्त मानसून में सोमवार से सक्रियता आने की संभावना है। 22 से 24 जुलाई के दौरान मौसम में बदलाव और मानसून में सक्रियता दिखाई देगी। मौसम विभाग के अनुसार हरियाणा में मानसून कमजोर और सुस्त पड़ा हुआ है। राज्य में मानसून बारिश के आंकड़ों में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। एक जुलाई से 20 जुलाई के दौरान हरियाणा राज्य के केवल चार जिलों में सामान्य से अधिक बारिश हुई है। इनमें महेंद्रगढ़ में सामान्य से 27 प्रतिशत, सिरसा में 14 प्रतिशत, फतेहाबाद में 25 प्रतिशत और नूंह मेवात में 34 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज हुई है। शेष हरियाणा के 18 जिलों में सामान्य से कम मानसून गतिविधियों को दर्ज किया गया है।
हरियाणा में पत्नी की गला दबाकर हत्या:घर से भागकर की लव मैरिज; भाई बोला- शक्ल नहीं देखेंगे, इसने समाज में हमारी नाक कटाई
हरियाणा में पत्नी की गला दबाकर हत्या:घर से भागकर की लव मैरिज; भाई बोला- शक्ल नहीं देखेंगे, इसने समाज में हमारी नाक कटाई हरियाणा के सोनीपत में युवक ने रात को अपनी पत्नी की गला घोंट कर हत्या कर दी। दोनों के बीच झगड़ा हुआ था। दोनों ने करीब 8 साल पहले घर से भाग कर लव मैरिज की थी। अब दो सप्ताह पहले ही दोनों हिसार से सोनीपत के गांव बैंयापुर खुर्द में रहने के लिए आए थे। महिला दो बच्चों की मां थी। पुलिस ने पति पर हत्या का केस दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी है। मृतका के परिजनों ने बेटी की हत्या की सूचना पर आने से मना कर दिया। बोले कि लव मैरिज कर उनकी नाक कटवा दी थी। सोनीपत के मल्हामाजरा निवासी नंबरदार राजेश कुमार ने पुलिस को बताया कि उसकी बुआ कमला के बेटे रवि पुत्र प्रेम निवासी बैयापुर खुर्द ने वर्ष 2016 मे महमूदपुर गांव की मोनिका से घर से भागकर घरवालों की मर्जी के खिलाफ लव मैरिज कर ली थी। रवि शादी के बाद अपनी पत्नी को लेकर हिसार चला गया था। करीब 7 साल से वह हिसार मे किराये के मकान में रहे। शादी के बाद वह दो लड़कों का पिता है। रात को दोनों में हुआ झगड़ा
राजेश नंबरदार ने बताया कि रवि अब 15 दिन पहले अपनी पत्नी मोनिका व दोनों बच्चों के साथ अपने गांव बैंयापुर खुर्द मे रहने आया था। बीती रात (16जून) को रात को 11.30 बजे उसके फूफा प्रेम का फोन आया कि भाई रवि व उसकी पत्नी मोनिका का आपस मे किसी बात को लेकर लडाई झगड़ा हो गया था। रवि ने आवेश मे आकर अपनी पत्नी मोनिका की गला दबाकर हत्या कर दी है। बैड पर मिला महिला का शव
राजेश के अनुसार इसके बाद वह अपने चचेरे भाई धर्मवीर व राजेन्द्र निवासी मल्हा माजरा को साथ लेकर बैंयापुर खुर्द आ गए थे। उन्होंने अपनी बुआ के मकान पर जाकर देखा तो मोनिका वहां मृत हालात मे बैड पर पड़ी हुई थी। उन्होंने डायल 112 पर फोन कर वारदात की सूचना पुलिस को दी। उसने पुलिस को बताया कि उसकी बुआ के लड़के रवि ने अपनी पत्नी मोनिका की गला दबाकर हत्या की है। थाना सदर सोनीपत के ASI मनोज कुमार के अनुसार उनको गांव बैंयापुर खुर्द गांव में महिला की हत्या की सूचना मिली थी। वह पुलिस टीम के साथ कार्रवाई के लिए रवि के मकान पर पहुंचा। मकान के अंदर बैड पर रवि की पत्नी मोनिका का शव पड़ा था। पुलिस को सूचना देने वाला राजेश कुमार मौके पर ही मिला। मायके वालों का आने से इनकार, कहा-हमारा कोई वास्ता नहीं
इसके बाद मृतक मोनिका के भाई सोमबीर निवासी महमूदपुर काे फोन करके बहन की हत्या की सूचना दी गई। साथ ही फोरेंसिक टीम को मौके पर बुलाया गया। बार-बार उनको फोन किया गया, लेकिन परिजनों ने आने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि उनकी लड़की ने लव मैरिज कर रखी है। उनकी समाज में नाक कटवा दी। हम नही आएंगे, हमारा मोनिका से कोई लेना-देना नही है। केस दर्ज, पति फरार
इसके बाद पुलिस ने राजेश नंबरदार की शिकायत पर उसकी बुआ के लड़के रवि के खिलाफ धारा 302 में हत्या का केस दर्ज किया। पुलिस आज शव का नागरिक अस्पताल में पोस्टमॉर्टम कराएगी। पुलिस की छानबीन जारी है। हत्यारोपी पति रवि अभी फरार है।
रोहतक में महिला आयोग की चेयरपर्सन ने सुनी शिकायतें:रेनू भाटिया के सामने यौन पीड़िता-आरोपी में तनातनी; रुपए के लेनदेन का निकला विवाद
रोहतक में महिला आयोग की चेयरपर्सन ने सुनी शिकायतें:रेनू भाटिया के सामने यौन पीड़िता-आरोपी में तनातनी; रुपए के लेनदेन का निकला विवाद हरियाणा राज्य महिला आयोग की चेयरपर्सन रेनू भाटिया मंगलवार को रोहतक पहुंची। इस दौरान उन्होंने शिकायतें सुनी। उनके समक्ष 8 मामले रखे गए, जिनमें से 4 शिकायतें महिला उत्पीड़न से संबंधित थी। वहीं एक शिकायत यौन उत्पीड़न, एक शिकायत दहेज के लिए उत्पीड़न व 2 शिकायत घरेलू हिंसा से संबंधित थी। इन शिकायतों की सुनवाई के साथ-साथ मौके पर समाधान का प्रयास भी किया गया। यौन उत्पीड़न की एक शिकायत पर पीड़ित महिला व आरोपी के बीच बैठक में तनातनी हो गई। महिला इस मामले में चेयरपर्सन से भी भीड़ गई। रेनू भाटिया ने कहा कि हर शिकायत सच्ची नहीं होती, वे इसमें समाधान करा रहे हैं। इस दौरान एक महिला अपनी बेटी के घर से भागने के मामले में उचित कार्रवाई की मांग लेकर पहुंची। वहीं महिला अपनी पीड़ा बताते हुए भावुक हो गई। इधर, महिला ने कहा कि उसका केस रोहतक में था, इसके बाद भिवानी ट्रांसफर कर दिया। लेकिन उसकी सुनवाई कहीं पर भी नहीं हुई। जिसको देखते हुए महिला आयोग की चेयरपर्सन रेनू भाटिया ने मामले को भिवानी ट्रांसफर कर दिया। क्योंकि पीड़ित महिला भिवानी की रहने वाली थी। ताकि कार्रवाई करवाने में परेशानी ना हो। चेयरपर्सन रेनू भाटिया के समक्ष महम थाने से संबंधित लूट के मामले में पीड़िता भी पेश हुई। जिन्होंने जून माह में अपनी शिकायत महिला आयोग को भेजी थी। शिकायत थी कि महिला पर जानलेवा हमला करके लूट की गई थी। इस मामले में पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया और उनसे लूटा गया सामान भी बरामद नहीं किया। हालांकि फिलहाल पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। इसके बाद मामले से पीड़ित पक्ष संतुष्ट दिखा तो महिला आयोग की चेयरपर्सन रेनू भाटिया ने मामले का निपटारा किया और पूछा की कार्रवाई से संतुष्ट हैं। चेयरपर्सन के सामने तनातनी
महिला आयोग की चेयरपर्सन रेनू भाटिया के समय एक पीड़ित महिला ने यौन उत्पीड़न की शिकायत दी। इस मामले में दोनों पक्ष सुनवाई में शामिल होने के लिए आए हुए थे। सुनवाई के दौरान चेयरपर्सन के समक्ष काफी तनातनी का माहौल बना रहा। काफी समय तक माहौल गर्म रहा। यहां तक कि पीड़ित महिला अपनी बात रखते हुए महिला आयोग की चेयरपर्सन से भी भिड़ गई। हालांकि चेयरपर्सन ने मामले में काफी देर तक दोनों पक्षों को सुना। वहीं महिला आयोग की चेयरपर्सन रेनू भाटिया ने कहा कि यह मामला प्राथमिक दृष्टि से पैसों के लेनदेन का निकलकर आया है। क्योंकि पीड़ित महिला द्वारा दावा किया गया कि उसने करीब 76 लाख रुपए आरोपी को दिए हैं। जबकि आरोपी ने 1 करोड़ से अधिक राशि लौटाने की बात की। जिसका रिकार्ड भी चेयरपर्सन के समक्ष पेश किया। व्यक्ति बोला- 15 लाख रुपए दे चुका वहीं महिला अब कह रही है कि उसके साढ़े 5 लाख रुपए बकाया है, जबकि आरोपी व्यक्ति ने कहा कि वह पहले ही करीब 15 लाख रुपए अधिक दे चुका है। हालांकि महिला आयोग की चेयरपर्सन ने पुलिस को निर्देश दिए कि दोनों पक्षों को बुलाकर इस मामले का निपटारा दिया जाए। जिसके लिए पुलिस को 2 दिन का समय दिया गया। वहीं दो दिन बाद रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा।