पंजाब के बरनाला में अरुंधति रॉय और प्रोफेसर शेख शौकत हुसैन पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी और 1 जुलाई से 3 फौजदारी कानून लागू होने के विरोध में अलग-अलग संगठनों द्वारा मिल कर केंद्र सराकर के खिलाफ विशाल रोष प्रदर्शन किया। शहर के कचहरी चौक से लेकर डीसी दफ्तर तक रोष मार्च करके कानूनों की कॉपियां जला कर राष्ट्रपति ने नाम एक मांग पत्र सौंपा। नए कानून को बताया लोक विरोधी फैसला इस मौके संगठनों के नेता राजिंदर भदौड़, सोहन सिंह, बलौर सिंह और बिकर सिंह औलख ने कहा कि अरुंधति रॉय और प्रोफेसर शेख शौकत हुसैन के खिलाफ 14 साल पुराने भाषण को लेकर यूएपीए के तहत मंजूरी देकर केंद्र सरकार ने लोक विरोधी फैसला लिया है, जो बहुत निंदनीय है। ये फैसला देश के बुद्धिजीवियों की आवाज को दबाने का प्रयास है। नेताओं ने इसी तरह आज से नए नामों से लागू किए जा रहे काले कानूनों को बेहद खतरनाक बताया। नए कानून को वापस करने की मांग उन्होंने कहा कि इन कानूनों के साथ पुलिस को अपार शक्तियां मिल गई हैं। अब पहले पुलिस के पास किसी भी घटना को लेकर एफआईआर दर्ज करने का अधिकार था। परंतु अब संभावित घटनाओं को लेकर भी पुलिस केस दर्ज कर सकेगी। पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए किसी व्यक्ति को 15 दिनों के बजाय 90 दिनों तक हिरासत में रखना, पुलिस को न्यायाधीश द्वारा दी गई जमानत को रद्द करने का अधिकार देना, इन कानूनों को और अधिक कठोर बनाने की एक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अरुंधति रॉय और प्रोफेसर शेख शौकत हुसैन के खिलाफ केस को रद्द किया जाए और इन कानूनों को भी वापस लिया जाना चाहिए। पंजाब के बरनाला में अरुंधति रॉय और प्रोफेसर शेख शौकत हुसैन पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी और 1 जुलाई से 3 फौजदारी कानून लागू होने के विरोध में अलग-अलग संगठनों द्वारा मिल कर केंद्र सराकर के खिलाफ विशाल रोष प्रदर्शन किया। शहर के कचहरी चौक से लेकर डीसी दफ्तर तक रोष मार्च करके कानूनों की कॉपियां जला कर राष्ट्रपति ने नाम एक मांग पत्र सौंपा। नए कानून को बताया लोक विरोधी फैसला इस मौके संगठनों के नेता राजिंदर भदौड़, सोहन सिंह, बलौर सिंह और बिकर सिंह औलख ने कहा कि अरुंधति रॉय और प्रोफेसर शेख शौकत हुसैन के खिलाफ 14 साल पुराने भाषण को लेकर यूएपीए के तहत मंजूरी देकर केंद्र सरकार ने लोक विरोधी फैसला लिया है, जो बहुत निंदनीय है। ये फैसला देश के बुद्धिजीवियों की आवाज को दबाने का प्रयास है। नेताओं ने इसी तरह आज से नए नामों से लागू किए जा रहे काले कानूनों को बेहद खतरनाक बताया। नए कानून को वापस करने की मांग उन्होंने कहा कि इन कानूनों के साथ पुलिस को अपार शक्तियां मिल गई हैं। अब पहले पुलिस के पास किसी भी घटना को लेकर एफआईआर दर्ज करने का अधिकार था। परंतु अब संभावित घटनाओं को लेकर भी पुलिस केस दर्ज कर सकेगी। पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए किसी व्यक्ति को 15 दिनों के बजाय 90 दिनों तक हिरासत में रखना, पुलिस को न्यायाधीश द्वारा दी गई जमानत को रद्द करने का अधिकार देना, इन कानूनों को और अधिक कठोर बनाने की एक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अरुंधति रॉय और प्रोफेसर शेख शौकत हुसैन के खिलाफ केस को रद्द किया जाए और इन कानूनों को भी वापस लिया जाना चाहिए। पंजाब | दैनिक भास्कर
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हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट से बीजेपी की सांसद कंगना रनोट की फिल्म इमरजेंसी को लेकर चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा- जहां भी सिख इतिहास को लेकर दिखाया जाना है, उसके लिए पहले एसजीपीसी को फिल्म दिखाकर उनसे परमिशन ली जानी चाहिए थी। एसजीपीसी सिख समुदाय के लोगों की प्रमुख संस्था है। जिसके चलते ये परमिशन जरूरी थी। प्रोटोकॉल तो ये कहता है कि अगर उक्त फिल्म दिखानी ही थी तो पहले उन्हें अपनी फिल्म एसजीपीसी को दिखानी चाहिए थी। जिससे सिख धर्म को कोई दिक्कत न हो। एसजीपीसी ही डिसाइड करेगी और उनके सर्टिफिकेट के बाद ही फिल्म चल पाएगी। एसजीपीसी की बगैर परमिशन के बिना ना तो फिल्म चलेगी और ना ही चलने दी जाएगी।