बरेली हिंसा, 5 महीने बाद भी महिला-बच्चे भटक रहे:कूड़े से सड़ी सब्जियां बीनकर बच्चे पाल रही मां; 14 घरों पर चला था बुलडोजर

बरेली हिंसा, 5 महीने बाद भी महिला-बच्चे भटक रहे:कूड़े से सड़ी सब्जियां बीनकर बच्चे पाल रही मां; 14 घरों पर चला था बुलडोजर

करीब 36 साल की महिला मंडी में सब्जी बीन रही है। ये वो सब्जियां हैं, जिन्हें आढ़ती खराब होने पर बाहर फेंक देते हैं। ये महिला इन सब्जियों को इकट्ठा करती है। कुछ अच्छी सब्जियों को 50-100 रुपए में बेच देती है। बची हुई खराब सब्जियां घर ले जाती है और उन्हें बनाकर बच्चों का पेट भरती है। इस महिला का नाम है शहरबानो। बरेली में 22 जुलाई 2024 को इनका मकान बुलडोजर से ढहा दिया गया। दो समुदायों की हिंसा में पति जेल चला गया। तभी से शहरबानो और उनके बच्चे सड़क पर हैं। ससुराल के गांव की एक महिला ने अपने घर का एक कमरा तो रहने के लिए दे दिया, पर खाने के लिए पैसे कहां से आएं? इसलिए शहरबानो हर रोज सब्जी मंडी जाकर ये काम करती हैं। शहरबानो की तरह कुल 14 घर अवैध बताकर तोड़े गए थे। हिंसा के आरोपी पुरुष जेल में बंद हैं। उनके घर की महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। बुलडोजर एक्शन के शिकार हुए परिवार पिछले दिनों बरेली जोन के ADG से भी मिले, गांव वापस जाने की इच्छा जताई। स्थानीय सपाइयों ने भी इस प्रकरण में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को चिट्ठी लिखी है। इस हिंसा के ठीक 5 महीने बाद दैनिक भास्कर ग्राउंड जीरो पर पहुंचा। ऐसे परिवारों की हालत जानी। केस का स्टेटस पता किया। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… सबसे पहले पूरा मामला समझिए मोहर्रम जुलूस के 2 दिन बाद हिंसा, एक की हुई थी मौत : बरेली जिले के गौसगंज गांव में 17 जुलाई, 2024 को मोहर्रम जुलूस निकाला जा रहा था। इस दौरान मंदिर के सामने ढोल बजाने पर झगड़ा हुआ। हिंदू पक्ष ने इसे नई परंपरा बताया। उस वक्त मामला शांत हो गया। 2 दिन बाद 19 जुलाई की रात दोनों संप्रदाय के लोग भिड़ गए। जमकर मारपीट हुई। इस खूनी संघर्ष में एक शख्स तेजपाल की मौत हो गई, जबकि कई लोग घायल हो गए। इस विवाद में पुलिस ने 2 FIR दर्ज कीं, जिनमें 50 लोग नामजद किए गए। मुख्य आरोपी बख्तावर को बनाया गया। फिलहाल सभी आरोपी जेल में बंद हैं। अभी तक किसी को जमानत नहीं मिल सकी है। 6 नवंबर, 2024 को बरेली पुलिस-प्रशासन ने बख्तावर पर NSA (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) लगा दिया। इस मामले के बाद जिला प्रशासन ने आरोपियों के मकानों का सर्वे कराया। प्रशासन के मुताबिक, 14 मकान ग्राम समाज की सरकारी जमीन पर बने थे। 22 जुलाई, 2024 को ऐसे 14 मकानों को बुलडोजर चलाकर ढहा दिया गया। इसके बाद ये सभी परिवार सड़क पर आ गए। 50 से ज्यादा परिवार दहशत के चलते गांव छोड़कर चले गए। अब इन परिवारों का दर्द पढ़िए- पति ने जुर्म किया तो पुलिस उन्हें सजा दे, हम क्यों भुगतें?
हम सबसे पहले बरेली जिले के मुंडिया अहमद गांव पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात शहरबानो नाम की महिला से हुई। शहरबानो के पति हनीफ इसी हिंसा में जेल में बंद हैं। शहरबानो ने बताया- 5 साल पहले 90 गज का वो मकान हमने एक लाख रुपए में खरीदा था। उसमें एक कमरा था। उसके आगे छप्पर पड़ा था। हमारा पूरा परिवार ईंट-भट्ठे पर मजदूरी करता था। उस रात पति को पुलिस उठाकर ले गई। इसके बाद हम डर के मारे भाग गए। हमसे कहा गया कि अगर मरना नहीं है, तो यहां से भाग जाओ। मैं अपने बच्चों को लेकर घर से निकल गई। सारा सामान घर में पड़ा रह गया। बाद में पता चला कि हमारा घर बुलडोजर से ढहा दिया गया है। शहरबानो बताती हैं- मैं वहां से भागकर अपनी ससुराल मुंडिया अहमद गांव आ गई। यहां एक महिला ने मुझ पर रहम खाते हुए अपने घर का एक कमरा दे दिया। वो मुझसे किराया भी नहीं लेती। अब मेरे पास कमाई का कोई जरिया नहीं है। घर में 17 साल की बेटी हिना, 14 साल मुस्कान और 10 साल का बेटा फरमान रहते हैं। बच्चों का पेट भरने के लिए मैं रोजाना सुबह 4 बजे उठती हूं। 8 किलोमीटर पैदल चल कर डेला पीर की सब्जी मंडी पहुंचती हूं। वहां से सड़ी हुई सब्जियां इकट्ठा करती हूं। फिर उन्हें लाकर बच्चों का पेट भरती हूं। बेटा जेल में बंद, मां को अपनी जान की फिक्र
यहां से हम सीधे हाफिजगंज थाना क्षेत्र के लवेड़ा गांव आए। यहां अपनी बहन के घर में पनाह ले रही रुखसाना का बेटा यासीन भी इसी हिंसा में जेल में बंद है। रुखसाना बताती हैं- 200 गज के मकान में 4 कमरे थे। हम पापड़ और कुरकुरे बेचने का काम घर से ही करते थे। सब कुछ अच्छा चल रहा था। गांव में हिंसा के बाद पुलिस मेरे बेटे को पकड़कर ले गई। पुलिस उस वक्त घरों में घुसकर महिलाओं को भी पकड़कर ले जा रही थी। इसलिए डर के मारे मैं अपने बच्चों को लेकर गांव से निकल गई। मैं सबसे पहले रहपुरा गांव में 15 दिन तक भाई के पास रही। फिर कुछ दिन शादीशुदा बेटी की ससुराल में रही। अब एक महीने से अपनी बहन अफसाना के घर में रह रही हूं। पापड़ का काम बंद हो गया है। इसलिए बेटे सिलाई मशीन चलाने का काम सीख रहे हैं। पता नहीं, हमारा घर किस हालत में है। हमारे घर का सामान कहां गया? हालात इतने बुरे हैं कि हम उस घर को देखने भी नहीं जा सकते। हमें अपनी जान जाने का भी डर है। हम पर कोई मुकदमा नहीं, फिर भी घर छोड़ना पड़ा
बरेली के जोगी नवादा इलाके में किराए के मकान में रह रहीं फरजाना बताती हैं- हमारे ऊपर कोई मुकदमा भी दर्ज नहीं था। लेकिन, गांव में उस वक्त ऐसा माहौल बन गया कि हमें अपना घर छोड़ना पड़ा। हमें ये भी नहीं पता कि उस वक्त हमारा भी मकान तोड़ा गया था या नहीं? अब वो मकान कैसी हालत में है? हमने एक-दो बार गौसगंज गांव जाकर अपना मकान देखने की हिम्मत जुटाई, तो पता चला कि वहां दूसरे पक्ष के लोग डरा-धमका रहे हैं। जेल भिजवाने की धमकी दे रहे हैं। इसलिए हम दोबारा अपना घर देखने नहीं गए। फरजाना बताती हैं- गांव में हिंसा के बाद पुलिस एक तरफ से मुस्लिमों के घरों में घुसकर सबको उठा रही थी। इसलिए हम भाग निकले थे। अब हम एक किराए के घर में रह रहे हैं। पति रहमत अली मजदूरी करते हैं। रोजाना 300-400 रुपए कमा लेते हैं। उसी से हम गुजारा कर रहे हैं। भाई मोहम्मद बकत अली ने बर्तन, बिस्तर दे दिए हैं। हिंसा के मुख्य आरोपी पर लगा NSA
इस हिंसा का मुख्य आरोपी बख्तावर, उसके दोनों बेटे इशरफ और आसिफ अभी जेल में बंद हैं। 6 नवंबर को ही पुलिस ने बख्तावर पर NSA लगाया है। बख्तावर की पत्नी शाहजहां फिलहाल अपनी शादीशुदा बेटी नूरबी की ससुराल में रह रही हैं। इससे पहले वो कुछ दिन तक अपने भाई के पास रहीं। शाहजहां इसी तरह 15 से 20 दिन के लिए अपनी रिश्तेदारियों में जाकर पनाह लेती हैं। फिर एक जगह से दूसरी जगह पहुंच जाती हैं। बख्तावर के भाई का कहना है कि बख्तावर के जेल जाने के बाद उनका परिवार बुरे हाल में रह रहा है। कभी कुछ दिन कहीं, कभी कहीं रहता है। क्योंकि गांव में मुस्लिमों को रहने नहीं दिया गया। इसके बाद वो परिवार वहां से पलायन करके इधर-उधर रह रहे हैं। घर छोड़कर दूसरी जगहों पर रह रहे तमाम परिवार
इस कार्रवाई में 14 घर तोड़े गए, जबकि 50 लोगों पर FIR हुई। लोग बताते हैं कि 50 में से ज्यादातर परिवारों को गौसगंज गांव छोड़ना पड़ गया। वहां के हालात ऐसे हो गए कि गांव में रहने नहीं दिया गया। ये परिवार आज बरेली जिले के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे हैं। इन परिवारों में बुलडोजर एक्शन को लेकर गुस्सा है। इनका कहना है कि हमें उन घरों में रहते हुए पूरी जिंदगी बीत गई। बुलडोजर चलाने से पहले कोई नोटिस तक नहीं दिया गया। एडीजी से मिले परिवार, बोले- हम गांव जाना चाहते हैं
बरेली हिंसा में जिन लोगों के घर बुलडोजर से ढहाए गए, ऐसे कई परिवार 21 नवंबर, 2024 को एडीजी जोन रमित शर्मा से मिले। इन परिवारों ने कहा कि हम उस वक्त डर के चलते गांव छोड़कर भाग गए थे। अब हम वापस गांव जाना चाहते हैं। हमारे घरों का सामान भी लूटा जा चुका है। इस पर एडीजी रमित शर्मा ने कहा, ‘मैं पहले इस मामले में एसएसपी बरेली से रिपोर्ट लूंगा, उसके बाद ही आगे कोई कदम बढ़ाया जाएगा।’ पीड़ित परिवार सपा कार्यकर्ताओं के साथ डीएम से भी मिल चुके हैं। 8 दिसंबर 2024 को बरेली के सपा महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी ने अखिलेश यादव को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने पूरा प्रकरण बताया। साथ ही मांग की है कि घटना की निष्पक्ष जांच के लिए सपा का एक डेलिगेशन बरेली भेजा जाए। ताकि उन 50 परिवारों को न्याय मिल सके। सूत्रों ने बताया कि अखिलेश यादव ने पूरे मामले में पुलिस के उच्च अफसरों से बातचीत की है और बेघर परिवारों की घर वापसी कराने के लिए कहा है। फिलहाल इस गांव में PAC तैनात है। दोनों पक्षों में शांति बहाली के प्रयास पुलिस की तरफ से किए जा रहे हैं। SP बोले– लोग आकर रहें, पुलिस सुरक्षा देगी
बरेली के SP ग्रामीण मुकेश चंद्र मिश्रा ने बताया- इस हिंसा में करीब 50 लोगों पर FIR हुई थी। आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उस वक्त पुलिस लगातार दबिश दे रही थी। इस वजह से आरोपियों के परिवारवाले खुद ही अपने घर छोड़कर चले गए थे। अब लगभग सभी आरोपी पकड़े जा चुके हैं और जेल में हैं। उनके परिजन अपनी इच्छानुसार गांव में आकर रह सकते हैं। पुलिस उन्हें सुरक्षा देगी। इसके लिए गांव में पुलिस चौकी बना दी गई है। CCTV भी लगवा दिए हैं। जो आरोपी अभी फरार हैं, उनकी तलाश में दबिश दी जाती रहेगी। ————— ये खबर भी पढ़ें… संभल में मंदिर-मस्जिद विवाद, 88 साल में 16 दंगे, योगी ने कहा-कल्कि का अवतार होगा; सियासत और 2027 का कनेक्शन? संभल में 24 नवंबर को जामा मस्जिद में सर्वे के दौरान भड़की हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गई। तब से संभल राजनीति के केंद्र में है। ऐसा पहली बार नहीं है। संभल में दंगों का लंबा इतिहास रहा है। मस्जिद और मंदिर की यह लड़ाई कई शताब्दियों से चली आ रही है। संभल जामा मस्जिद के मंदिर होने को लेकर मुरादाबाद कोर्ट में पहला दावा 1878 में छेदा सिंह नाम के व्यक्ति ने किया था। तब इस केस को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। अब मामला फिर सामने है। संभल में दंगों का इतिहास रखकर क्या विधानसभा-2027 की तैयारी है? क्या कल्कि अवतार में भाजपा को भविष्य दिख रहा है? पढ़ें पूरी खबर करीब 36 साल की महिला मंडी में सब्जी बीन रही है। ये वो सब्जियां हैं, जिन्हें आढ़ती खराब होने पर बाहर फेंक देते हैं। ये महिला इन सब्जियों को इकट्ठा करती है। कुछ अच्छी सब्जियों को 50-100 रुपए में बेच देती है। बची हुई खराब सब्जियां घर ले जाती है और उन्हें बनाकर बच्चों का पेट भरती है। इस महिला का नाम है शहरबानो। बरेली में 22 जुलाई 2024 को इनका मकान बुलडोजर से ढहा दिया गया। दो समुदायों की हिंसा में पति जेल चला गया। तभी से शहरबानो और उनके बच्चे सड़क पर हैं। ससुराल के गांव की एक महिला ने अपने घर का एक कमरा तो रहने के लिए दे दिया, पर खाने के लिए पैसे कहां से आएं? इसलिए शहरबानो हर रोज सब्जी मंडी जाकर ये काम करती हैं। शहरबानो की तरह कुल 14 घर अवैध बताकर तोड़े गए थे। हिंसा के आरोपी पुरुष जेल में बंद हैं। उनके घर की महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। बुलडोजर एक्शन के शिकार हुए परिवार पिछले दिनों बरेली जोन के ADG से भी मिले, गांव वापस जाने की इच्छा जताई। स्थानीय सपाइयों ने भी इस प्रकरण में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को चिट्ठी लिखी है। इस हिंसा के ठीक 5 महीने बाद दैनिक भास्कर ग्राउंड जीरो पर पहुंचा। ऐसे परिवारों की हालत जानी। केस का स्टेटस पता किया। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… सबसे पहले पूरा मामला समझिए मोहर्रम जुलूस के 2 दिन बाद हिंसा, एक की हुई थी मौत : बरेली जिले के गौसगंज गांव में 17 जुलाई, 2024 को मोहर्रम जुलूस निकाला जा रहा था। इस दौरान मंदिर के सामने ढोल बजाने पर झगड़ा हुआ। हिंदू पक्ष ने इसे नई परंपरा बताया। उस वक्त मामला शांत हो गया। 2 दिन बाद 19 जुलाई की रात दोनों संप्रदाय के लोग भिड़ गए। जमकर मारपीट हुई। इस खूनी संघर्ष में एक शख्स तेजपाल की मौत हो गई, जबकि कई लोग घायल हो गए। इस विवाद में पुलिस ने 2 FIR दर्ज कीं, जिनमें 50 लोग नामजद किए गए। मुख्य आरोपी बख्तावर को बनाया गया। फिलहाल सभी आरोपी जेल में बंद हैं। अभी तक किसी को जमानत नहीं मिल सकी है। 6 नवंबर, 2024 को बरेली पुलिस-प्रशासन ने बख्तावर पर NSA (राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम) लगा दिया। इस मामले के बाद जिला प्रशासन ने आरोपियों के मकानों का सर्वे कराया। प्रशासन के मुताबिक, 14 मकान ग्राम समाज की सरकारी जमीन पर बने थे। 22 जुलाई, 2024 को ऐसे 14 मकानों को बुलडोजर चलाकर ढहा दिया गया। इसके बाद ये सभी परिवार सड़क पर आ गए। 50 से ज्यादा परिवार दहशत के चलते गांव छोड़कर चले गए। अब इन परिवारों का दर्द पढ़िए- पति ने जुर्म किया तो पुलिस उन्हें सजा दे, हम क्यों भुगतें?
हम सबसे पहले बरेली जिले के मुंडिया अहमद गांव पहुंचे। यहां हमारी मुलाकात शहरबानो नाम की महिला से हुई। शहरबानो के पति हनीफ इसी हिंसा में जेल में बंद हैं। शहरबानो ने बताया- 5 साल पहले 90 गज का वो मकान हमने एक लाख रुपए में खरीदा था। उसमें एक कमरा था। उसके आगे छप्पर पड़ा था। हमारा पूरा परिवार ईंट-भट्ठे पर मजदूरी करता था। उस रात पति को पुलिस उठाकर ले गई। इसके बाद हम डर के मारे भाग गए। हमसे कहा गया कि अगर मरना नहीं है, तो यहां से भाग जाओ। मैं अपने बच्चों को लेकर घर से निकल गई। सारा सामान घर में पड़ा रह गया। बाद में पता चला कि हमारा घर बुलडोजर से ढहा दिया गया है। शहरबानो बताती हैं- मैं वहां से भागकर अपनी ससुराल मुंडिया अहमद गांव आ गई। यहां एक महिला ने मुझ पर रहम खाते हुए अपने घर का एक कमरा दे दिया। वो मुझसे किराया भी नहीं लेती। अब मेरे पास कमाई का कोई जरिया नहीं है। घर में 17 साल की बेटी हिना, 14 साल मुस्कान और 10 साल का बेटा फरमान रहते हैं। बच्चों का पेट भरने के लिए मैं रोजाना सुबह 4 बजे उठती हूं। 8 किलोमीटर पैदल चल कर डेला पीर की सब्जी मंडी पहुंचती हूं। वहां से सड़ी हुई सब्जियां इकट्ठा करती हूं। फिर उन्हें लाकर बच्चों का पेट भरती हूं। बेटा जेल में बंद, मां को अपनी जान की फिक्र
यहां से हम सीधे हाफिजगंज थाना क्षेत्र के लवेड़ा गांव आए। यहां अपनी बहन के घर में पनाह ले रही रुखसाना का बेटा यासीन भी इसी हिंसा में जेल में बंद है। रुखसाना बताती हैं- 200 गज के मकान में 4 कमरे थे। हम पापड़ और कुरकुरे बेचने का काम घर से ही करते थे। सब कुछ अच्छा चल रहा था। गांव में हिंसा के बाद पुलिस मेरे बेटे को पकड़कर ले गई। पुलिस उस वक्त घरों में घुसकर महिलाओं को भी पकड़कर ले जा रही थी। इसलिए डर के मारे मैं अपने बच्चों को लेकर गांव से निकल गई। मैं सबसे पहले रहपुरा गांव में 15 दिन तक भाई के पास रही। फिर कुछ दिन शादीशुदा बेटी की ससुराल में रही। अब एक महीने से अपनी बहन अफसाना के घर में रह रही हूं। पापड़ का काम बंद हो गया है। इसलिए बेटे सिलाई मशीन चलाने का काम सीख रहे हैं। पता नहीं, हमारा घर किस हालत में है। हमारे घर का सामान कहां गया? हालात इतने बुरे हैं कि हम उस घर को देखने भी नहीं जा सकते। हमें अपनी जान जाने का भी डर है। हम पर कोई मुकदमा नहीं, फिर भी घर छोड़ना पड़ा
बरेली के जोगी नवादा इलाके में किराए के मकान में रह रहीं फरजाना बताती हैं- हमारे ऊपर कोई मुकदमा भी दर्ज नहीं था। लेकिन, गांव में उस वक्त ऐसा माहौल बन गया कि हमें अपना घर छोड़ना पड़ा। हमें ये भी नहीं पता कि उस वक्त हमारा भी मकान तोड़ा गया था या नहीं? अब वो मकान कैसी हालत में है? हमने एक-दो बार गौसगंज गांव जाकर अपना मकान देखने की हिम्मत जुटाई, तो पता चला कि वहां दूसरे पक्ष के लोग डरा-धमका रहे हैं। जेल भिजवाने की धमकी दे रहे हैं। इसलिए हम दोबारा अपना घर देखने नहीं गए। फरजाना बताती हैं- गांव में हिंसा के बाद पुलिस एक तरफ से मुस्लिमों के घरों में घुसकर सबको उठा रही थी। इसलिए हम भाग निकले थे। अब हम एक किराए के घर में रह रहे हैं। पति रहमत अली मजदूरी करते हैं। रोजाना 300-400 रुपए कमा लेते हैं। उसी से हम गुजारा कर रहे हैं। भाई मोहम्मद बकत अली ने बर्तन, बिस्तर दे दिए हैं। हिंसा के मुख्य आरोपी पर लगा NSA
इस हिंसा का मुख्य आरोपी बख्तावर, उसके दोनों बेटे इशरफ और आसिफ अभी जेल में बंद हैं। 6 नवंबर को ही पुलिस ने बख्तावर पर NSA लगाया है। बख्तावर की पत्नी शाहजहां फिलहाल अपनी शादीशुदा बेटी नूरबी की ससुराल में रह रही हैं। इससे पहले वो कुछ दिन तक अपने भाई के पास रहीं। शाहजहां इसी तरह 15 से 20 दिन के लिए अपनी रिश्तेदारियों में जाकर पनाह लेती हैं। फिर एक जगह से दूसरी जगह पहुंच जाती हैं। बख्तावर के भाई का कहना है कि बख्तावर के जेल जाने के बाद उनका परिवार बुरे हाल में रह रहा है। कभी कुछ दिन कहीं, कभी कहीं रहता है। क्योंकि गांव में मुस्लिमों को रहने नहीं दिया गया। इसके बाद वो परिवार वहां से पलायन करके इधर-उधर रह रहे हैं। घर छोड़कर दूसरी जगहों पर रह रहे तमाम परिवार
इस कार्रवाई में 14 घर तोड़े गए, जबकि 50 लोगों पर FIR हुई। लोग बताते हैं कि 50 में से ज्यादातर परिवारों को गौसगंज गांव छोड़ना पड़ गया। वहां के हालात ऐसे हो गए कि गांव में रहने नहीं दिया गया। ये परिवार आज बरेली जिले के अलग-अलग हिस्सों में रह रहे हैं। इन परिवारों में बुलडोजर एक्शन को लेकर गुस्सा है। इनका कहना है कि हमें उन घरों में रहते हुए पूरी जिंदगी बीत गई। बुलडोजर चलाने से पहले कोई नोटिस तक नहीं दिया गया। एडीजी से मिले परिवार, बोले- हम गांव जाना चाहते हैं
बरेली हिंसा में जिन लोगों के घर बुलडोजर से ढहाए गए, ऐसे कई परिवार 21 नवंबर, 2024 को एडीजी जोन रमित शर्मा से मिले। इन परिवारों ने कहा कि हम उस वक्त डर के चलते गांव छोड़कर भाग गए थे। अब हम वापस गांव जाना चाहते हैं। हमारे घरों का सामान भी लूटा जा चुका है। इस पर एडीजी रमित शर्मा ने कहा, ‘मैं पहले इस मामले में एसएसपी बरेली से रिपोर्ट लूंगा, उसके बाद ही आगे कोई कदम बढ़ाया जाएगा।’ पीड़ित परिवार सपा कार्यकर्ताओं के साथ डीएम से भी मिल चुके हैं। 8 दिसंबर 2024 को बरेली के सपा महानगर अध्यक्ष शमीम खां सुल्तानी ने अखिलेश यादव को एक पत्र लिखा। इसमें उन्होंने पूरा प्रकरण बताया। साथ ही मांग की है कि घटना की निष्पक्ष जांच के लिए सपा का एक डेलिगेशन बरेली भेजा जाए। ताकि उन 50 परिवारों को न्याय मिल सके। सूत्रों ने बताया कि अखिलेश यादव ने पूरे मामले में पुलिस के उच्च अफसरों से बातचीत की है और बेघर परिवारों की घर वापसी कराने के लिए कहा है। फिलहाल इस गांव में PAC तैनात है। दोनों पक्षों में शांति बहाली के प्रयास पुलिस की तरफ से किए जा रहे हैं। SP बोले– लोग आकर रहें, पुलिस सुरक्षा देगी
बरेली के SP ग्रामीण मुकेश चंद्र मिश्रा ने बताया- इस हिंसा में करीब 50 लोगों पर FIR हुई थी। आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए उस वक्त पुलिस लगातार दबिश दे रही थी। इस वजह से आरोपियों के परिवारवाले खुद ही अपने घर छोड़कर चले गए थे। अब लगभग सभी आरोपी पकड़े जा चुके हैं और जेल में हैं। उनके परिजन अपनी इच्छानुसार गांव में आकर रह सकते हैं। पुलिस उन्हें सुरक्षा देगी। इसके लिए गांव में पुलिस चौकी बना दी गई है। CCTV भी लगवा दिए हैं। जो आरोपी अभी फरार हैं, उनकी तलाश में दबिश दी जाती रहेगी। ————— ये खबर भी पढ़ें… संभल में मंदिर-मस्जिद विवाद, 88 साल में 16 दंगे, योगी ने कहा-कल्कि का अवतार होगा; सियासत और 2027 का कनेक्शन? संभल में 24 नवंबर को जामा मस्जिद में सर्वे के दौरान भड़की हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गई। तब से संभल राजनीति के केंद्र में है। ऐसा पहली बार नहीं है। संभल में दंगों का लंबा इतिहास रहा है। मस्जिद और मंदिर की यह लड़ाई कई शताब्दियों से चली आ रही है। संभल जामा मस्जिद के मंदिर होने को लेकर मुरादाबाद कोर्ट में पहला दावा 1878 में छेदा सिंह नाम के व्यक्ति ने किया था। तब इस केस को कोर्ट ने खारिज कर दिया था। अब मामला फिर सामने है। संभल में दंगों का इतिहास रखकर क्या विधानसभा-2027 की तैयारी है? क्या कल्कि अवतार में भाजपा को भविष्य दिख रहा है? पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर