हरियाणा विधानसभा के तीन महीने बाद होने वाले चुनाव को लेकर सियासी पारा गरमाने लगा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा से 5 सीटें छीनकर कांग्रेस उत्साहित है। ऐसे में BJP अपनी रणनीति बदलने पर सोचने को मजबूर हो गई है। अगर ऐसा हुआ तो BJP में कई पूर्व विधायकों, मौजूदा मंत्रियों और 2019 में हार चुके नेताओं के अरमानों पर पानी फिर सकता है। दस साल से सत्ता में बैठी BJP में टिकट के लिए सबसे अधिक मारामारी दिख रही है। पार्टी के कई दिग्गज अपने ज्यादा से ज्यादा करीबियों को टिकट दिलाने के लिए अभी से एक्टिव हो गए हैं। ऐसे में गुरुग्राम जिले की बादशाहपुर सीट पर एक बार फिर पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर और केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह आमने-सामने हो सकते हैं। बादशाहपुर विधानसभा हलके में भाजपा का टिकट चाहने वालों के बीच होर्डिंग्स वॉर दिख रही है। तमाम नेता अपने-अपने आकाओं की फोटो वाले पोस्टर-होर्डिंग्स लगाकर चुनावी दंगल में कूद चुके हैं। पार्टी ने भी मौजूदा विधायकों-मंत्रियों के अलावा 2019 का विधानसभा चुनाव हार चुके नेताओं की जगह नए चेहरों की तलाश शुरू कर दी है। इसकी वजह से कई नेताओं की नींद उड़ चुकी है। बेटी के लिए सेफ सीट चाह रहे राव BJP के कई बड़े नेताओं की नजरें बादशाहपुर विधानसभा सीट पर टिकी हैं। गुरुग्राम के सांसद राव इंद्रजीत सिंह खुले मंच से कह चुके हैं कि इस बार वह अपनी बेटी आरती राव को हर हाल में चुनाव लड़वाएंगे। राव ने फिलहाल क्लियर नहीं किया कि आरती किस सीट से चुनाव लड़ेगी लेकिन बताया जा रहा है कि बादशाहपुर उनके लिए सबसे सेफ सीट हो सकती है। हालांकि आरती खुद अटेली सीट से चुनाव लड़ने की बात भी कह चुकी है। इंद्रजीत गुट की प्रेशर पॉलिटिक्स आरती और उनके पिता राव इंद्रजीत सिंह जिस तरह पूरी अहीरवाल बेल्ट में एक्टिव हैं, उसकी वजह से BJP संगठन प्रेशर में नजर आ रहा है। दरअसल इस बार राव इंद्रजीत भजपा संगठन से भी दो-दो हाथ करने के मूड में नजर आ रहे हैं। यूं तो BJP में टिकटों का फैसला केंद्रीय चुनाव समिति करती है लेकिन राव खेमे ने प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू कर दी है। दरअसल 2019 के विधानसभा चुनाव में राव इंद्रजीत के लाख प्रयासों के बावजूद BJP ने आरती राव को टिकट नहीं दिया क्योंकि तत्कालीन सीएम मनोहर लाल खट्टर इसके पक्ष में नहीं थे। राव पहली बार सांसद बने खट्टर को केंद्रीय मंत्री और खुद को 5 बार का सांसद होने के बावजूद राज्यमंत्री बनाए जाने से भी नाराज हैं। इस बार वह हर हाल में अपनी बेटी के लिए टिकट चाहते हैं और इसी वजह से अभी से खुलकर सार्वजनिक सभाओं में बिना नाम लिए खट्टर पर निशाना साध रहे हैं। जवाहर की सारी उम्मीदें खट्टर पर हरियाणा के पूर्व सीएम और मौजूदा केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के ओएसडी रह चुके जवाहर यादव पहले ही बादशाहपुर सीट से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। जवाहर को लगता है कि खट्टर की पैरवी से उन्हें टिकट मिल ही जाएगा। BJP में जवाहर यादव और आरती राव के अलावा बादशाहपुर से टिकट के लगभग आधा दर्जन दावेदार और भी हैं। इनमें पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह, 2019 में चुनाव हार चुके मनीष यादव, पूर्व मेयर विमल यादव, बेगराज यादव भी शामिल हैं। मनीष साबित हो चुके फिसड्डी, नरबीर के चांस कम राव नरबीर सिंह 2014 में बादशाहपुर से चुनाव जीतकर मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई वाली सरकार में मंत्री बने। 2019 में राव इंद्रजीत सिंह के विरोध के चलते राव नरबीर का टिकट कट गया। तब BJP संगठन में अपनी पकड़ का फायदा उठाते हुए मनीष यादव टिकट पाने में कामयाब रहे लेकिन वह निर्दलीय कैंडिडेट राकेश दौलताबाद से मात खा गए। 2019 में मनीष यादव की पैरवी करने वाले आज की तारीख में हरियाणा से बाहर हो चुके हैं। दूसरी ओर राव नरबीर सिंह की बात करें तो 2019 में सीटिंग विधायक होते हुए उनका टिकट कट गया। उनके समधि और महेंद्रगढ़ से कांग्रेस विधायक राव दान सिंह पर ED का शिकंजा कसता दिख रहा है। ऐसे में चर्चा है कि राव नरबीर सिंह किसी भी समय भाजपा छोड़कर कांग्रेस के पाले में जा सकते हैं। वैसे भी दल बदलना नरबीर सिंह के लिए नई बात नहीं है। कांग्रेस में भी आधा दर्जन दावेदार दूसरी ओर कांग्रेस की बात करें तो यहां रोहताश खटाना, राव कमलबीर सिंह और राजेश यादव के नाम सामने आ रहे हैं। 2019 में निर्दलीय चुनाव जीतने वाले स्व. राकेश दौलताबाद की जगह उनकी पत्नी भी सहानुभूति लहर के सहारे चुनावी रण पार करना चाहती हैं। उनके कांग्रेस में जाने की अटकलें हैं। कमलबीर सिंह भले ही राहुल कैंप से जुड़े हों लेकिन 2019 में 5% वोट भी नहीं ले पाने से उनका दावा कमजोर दिख रहा है। आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता बीर सिंह उर्फ बीरू सरपंच भी क्षेत्र में लगातार एक्टिव हैं। बीर सिंह कह चुके हैं कि वह चुनाव हर हाल में लड़ेंगे। अब ये चुनाव AAP के टिकट पर होगा या फिर निर्दलीय? इसका फैसला उनके समर्थक करेंगे। यादव वोटर्स का दबदबा बादशाहपुर सीट पर यादव वोटर्स का दबदबा है। करीब सवा चार लाख मतदाताओं वाली इस सीट में 2019 में निर्दलीय कैंडिडेट राकेश दौलताबाद ने 47% वोट लेकर जीत दर्ज की थी। मोदी लहर के बावजूद उस समय BJP के टिकट पर चुनावी दंगल में उतरे मनीष यादव को महज 42.58% वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर बसपा के महाबीर रहे और कांग्रेस के कमलबीर सिंह को मात्र 4.67% वोट मिले। हरियाणा विधानसभा के तीन महीने बाद होने वाले चुनाव को लेकर सियासी पारा गरमाने लगा है। लोकसभा चुनाव में भाजपा से 5 सीटें छीनकर कांग्रेस उत्साहित है। ऐसे में BJP अपनी रणनीति बदलने पर सोचने को मजबूर हो गई है। अगर ऐसा हुआ तो BJP में कई पूर्व विधायकों, मौजूदा मंत्रियों और 2019 में हार चुके नेताओं के अरमानों पर पानी फिर सकता है। दस साल से सत्ता में बैठी BJP में टिकट के लिए सबसे अधिक मारामारी दिख रही है। पार्टी के कई दिग्गज अपने ज्यादा से ज्यादा करीबियों को टिकट दिलाने के लिए अभी से एक्टिव हो गए हैं। ऐसे में गुरुग्राम जिले की बादशाहपुर सीट पर एक बार फिर पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर और केंद्रीय राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह आमने-सामने हो सकते हैं। बादशाहपुर विधानसभा हलके में भाजपा का टिकट चाहने वालों के बीच होर्डिंग्स वॉर दिख रही है। तमाम नेता अपने-अपने आकाओं की फोटो वाले पोस्टर-होर्डिंग्स लगाकर चुनावी दंगल में कूद चुके हैं। पार्टी ने भी मौजूदा विधायकों-मंत्रियों के अलावा 2019 का विधानसभा चुनाव हार चुके नेताओं की जगह नए चेहरों की तलाश शुरू कर दी है। इसकी वजह से कई नेताओं की नींद उड़ चुकी है। बेटी के लिए सेफ सीट चाह रहे राव BJP के कई बड़े नेताओं की नजरें बादशाहपुर विधानसभा सीट पर टिकी हैं। गुरुग्राम के सांसद राव इंद्रजीत सिंह खुले मंच से कह चुके हैं कि इस बार वह अपनी बेटी आरती राव को हर हाल में चुनाव लड़वाएंगे। राव ने फिलहाल क्लियर नहीं किया कि आरती किस सीट से चुनाव लड़ेगी लेकिन बताया जा रहा है कि बादशाहपुर उनके लिए सबसे सेफ सीट हो सकती है। हालांकि आरती खुद अटेली सीट से चुनाव लड़ने की बात भी कह चुकी है। इंद्रजीत गुट की प्रेशर पॉलिटिक्स आरती और उनके पिता राव इंद्रजीत सिंह जिस तरह पूरी अहीरवाल बेल्ट में एक्टिव हैं, उसकी वजह से BJP संगठन प्रेशर में नजर आ रहा है। दरअसल इस बार राव इंद्रजीत भजपा संगठन से भी दो-दो हाथ करने के मूड में नजर आ रहे हैं। यूं तो BJP में टिकटों का फैसला केंद्रीय चुनाव समिति करती है लेकिन राव खेमे ने प्रेशर पॉलिटिक्स शुरू कर दी है। दरअसल 2019 के विधानसभा चुनाव में राव इंद्रजीत के लाख प्रयासों के बावजूद BJP ने आरती राव को टिकट नहीं दिया क्योंकि तत्कालीन सीएम मनोहर लाल खट्टर इसके पक्ष में नहीं थे। राव पहली बार सांसद बने खट्टर को केंद्रीय मंत्री और खुद को 5 बार का सांसद होने के बावजूद राज्यमंत्री बनाए जाने से भी नाराज हैं। इस बार वह हर हाल में अपनी बेटी के लिए टिकट चाहते हैं और इसी वजह से अभी से खुलकर सार्वजनिक सभाओं में बिना नाम लिए खट्टर पर निशाना साध रहे हैं। जवाहर की सारी उम्मीदें खट्टर पर हरियाणा के पूर्व सीएम और मौजूदा केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के ओएसडी रह चुके जवाहर यादव पहले ही बादशाहपुर सीट से चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतर चुके हैं। जवाहर को लगता है कि खट्टर की पैरवी से उन्हें टिकट मिल ही जाएगा। BJP में जवाहर यादव और आरती राव के अलावा बादशाहपुर से टिकट के लगभग आधा दर्जन दावेदार और भी हैं। इनमें पूर्व मंत्री राव नरबीर सिंह, 2019 में चुनाव हार चुके मनीष यादव, पूर्व मेयर विमल यादव, बेगराज यादव भी शामिल हैं। मनीष साबित हो चुके फिसड्डी, नरबीर के चांस कम राव नरबीर सिंह 2014 में बादशाहपुर से चुनाव जीतकर मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई वाली सरकार में मंत्री बने। 2019 में राव इंद्रजीत सिंह के विरोध के चलते राव नरबीर का टिकट कट गया। तब BJP संगठन में अपनी पकड़ का फायदा उठाते हुए मनीष यादव टिकट पाने में कामयाब रहे लेकिन वह निर्दलीय कैंडिडेट राकेश दौलताबाद से मात खा गए। 2019 में मनीष यादव की पैरवी करने वाले आज की तारीख में हरियाणा से बाहर हो चुके हैं। दूसरी ओर राव नरबीर सिंह की बात करें तो 2019 में सीटिंग विधायक होते हुए उनका टिकट कट गया। उनके समधि और महेंद्रगढ़ से कांग्रेस विधायक राव दान सिंह पर ED का शिकंजा कसता दिख रहा है। ऐसे में चर्चा है कि राव नरबीर सिंह किसी भी समय भाजपा छोड़कर कांग्रेस के पाले में जा सकते हैं। वैसे भी दल बदलना नरबीर सिंह के लिए नई बात नहीं है। कांग्रेस में भी आधा दर्जन दावेदार दूसरी ओर कांग्रेस की बात करें तो यहां रोहताश खटाना, राव कमलबीर सिंह और राजेश यादव के नाम सामने आ रहे हैं। 2019 में निर्दलीय चुनाव जीतने वाले स्व. राकेश दौलताबाद की जगह उनकी पत्नी भी सहानुभूति लहर के सहारे चुनावी रण पार करना चाहती हैं। उनके कांग्रेस में जाने की अटकलें हैं। कमलबीर सिंह भले ही राहुल कैंप से जुड़े हों लेकिन 2019 में 5% वोट भी नहीं ले पाने से उनका दावा कमजोर दिख रहा है। आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता बीर सिंह उर्फ बीरू सरपंच भी क्षेत्र में लगातार एक्टिव हैं। बीर सिंह कह चुके हैं कि वह चुनाव हर हाल में लड़ेंगे। अब ये चुनाव AAP के टिकट पर होगा या फिर निर्दलीय? इसका फैसला उनके समर्थक करेंगे। यादव वोटर्स का दबदबा बादशाहपुर सीट पर यादव वोटर्स का दबदबा है। करीब सवा चार लाख मतदाताओं वाली इस सीट में 2019 में निर्दलीय कैंडिडेट राकेश दौलताबाद ने 47% वोट लेकर जीत दर्ज की थी। मोदी लहर के बावजूद उस समय BJP के टिकट पर चुनावी दंगल में उतरे मनीष यादव को महज 42.58% वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर बसपा के महाबीर रहे और कांग्रेस के कमलबीर सिंह को मात्र 4.67% वोट मिले। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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