बेटे को धूनी पर चढ़ा गए माता-पिता:महाकुंभ में 3 साल का बच्चा पाल रहे संत, अखाड़ा परिषद बोला- दान में बच्चे लेना गलत

बेटे को धूनी पर चढ़ा गए माता-पिता:महाकुंभ में 3 साल का बच्चा पाल रहे संत, अखाड़ा परिषद बोला- दान में बच्चे लेना गलत

तारीख: 27 फरवरी 2021, जगह: कुरुक्षेत्र (हरियाणा)। संतोष पुरी जी महाराज अपने शिविर में धूनी के पास बैठे थे। अचानक 3 महीने के बच्चे को गोद में लेकर एक दंपती आया। उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को पहले महाराज के चरणों में रखा, फिर उसे धूनी के पास अर्पित कर दिया। संतोष पुरी महाराज ने बच्चे के माथे पर तिलक लगाया। माता-पिता को प्रसाद देकर विदा कर दिया। महाराज ने तीन महीने के इस मासूम को श्रवण पुरी नाम दिया। अब श्रवण पुरी 3 साल के हो चुके हैं। वह अपने पहले महाकुंभ में शामिल होने अपने गुरु भाई अष्टकौशल महंत संत पुरी महाराज के साथ कुंभ क्षेत्र में आए हैं। अष्टकौशल महंत संत पुरी महाराज का पूरा दिन प्रभु भक्ति और श्रवण पुरी की परवरिश में गुजर रहा है। श्रवण पुरी की मासूमियत को देखते ही भक्तों की भीड़ उनके शिविर के सामने जमा हो जाती है। दैनिक भास्कर की टीम जब श्रवण पुरी से मिलने उनके आश्रम पहुंची, तो देखा कि वह संतों के लाडले बन चुके हैं। उनका मासूम चेहरा देखकर भक्तों की भीड़ मिलने के लिए उमड़ पड़ती है। श्रवण पुरी का पूरा दिन प्रभु भक्ति और अपने गुरु के साथ खेलने-कूदने में बीतता है। अष्टकौशल महंत ने बताया कि श्रवण पुरी जब सिर्फ 3 महीने के थे, तो उनके माता-पिता उन्हें धूनी (अग्निकुंड) के पास छोड़ गए थे। सिद्ध पीठ होने के कारण श्रद्धालु वहां आते हैं। संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर क्षमता अनुसार कुछ अर्पित करके जाते हैं। कई श्रद्धालु अपने दो या तीन बच्चों में से एक को दान देने की मन्नत भी मांगते हैं। हमारे इस गुरुभाई को भी उसके माता-पिता ने मन्नत पूरी होने पर धूनी पर अर्पित किया था। उन्होंने यह भी बताया कि उनके पास एक डेढ़ साल का मासूम भी है, जिसे धूनी पर अर्पित किया गया था। एक बच्चे को पालने के चैलेंज के सवाल पर अष्टकौशल महंत संत पुरी महाराज कहते हैं- शुरू में थोड़ी दिक्कत हुई। लेकिन, अब भक्तों के प्रयास से वे श्रवणपुरी का लालन-पालन आसानी से कर लेते हैं। श्रवण पुरी सुबह 5 बजे उठते हैं, स्नान करते हैं। आधे घंटे तक गुरु और प्रभु की भक्ति करते हैं। फिर दिनभर खेलते रहते हैं। बच्चे भगवान का रूप होते हैं, इसलिए सभी इनसे स्नेह करते हैं। वे यह भी बताते हैं कि श्रवण पुरी कभी रोते नहीं। स्कूल जाते हैं, धार्मिक शिक्षा भी ले रहे
बाल संत की शिक्षा भी शुरू हो चुकी है। वह स्कूल भी जाते हैं और आश्रम में धार्मिक शिक्षा भी ले रहे। महाराज जी का आदेश है कि बच्चे को संस्कृत की शिक्षा दी जाए। इसलिए जल्द ही हम इन्हें संस्कृत महाविद्यालय में दाखिला दिलवाने वाले हैं। वहां रहकर वे सनातन परंपरा का ज्ञान अर्जित करेंगे और विद्वान बनेंगे। अष्टकौशल बताते हैं- बाल संत के अंदर साधुओं जैसे चमत्कारी लक्षण दिखाई देने लगे हैं। उनके व्यवहार से ऐसा लगता है कि वह पिछले जीवन में भी संत या महापुरुष रहे होंगे। श्रद्धालु उनका दर्शन करने के लिए जूना अखाड़े में आ रहे हैं। उनका मानना है कि बच्चों के अंदर भगवान का वास होता है। इस बालक को देखकर उन्हें भगवान के दर्शन हो रहे हैं। उनका ध्यान पूजा-पाठ और जप-तप में भी लगा रहता है। चॉकलेट-टॉफी नहीं, फल खाना पसंद
महंत बताते हैं कि उन्हें फल खाना पसंद है। वे चॉकलेट या टॉफी के बजाय फल खाना पसंद करते हैं। इतना ही नहीं, तीन साल के इस बालक को अपने गुरुओं और गुरु भाइयों की पहचान है। वह उनके साथ रहना पसंद करते हैं। अष्टकौशल महाराज यह भी कहते हैं कि श्रवणपुरी के माता-पिता की जब कभी इच्छा होती है, उनसे मिलने आ जाते हैं। वे बच्चे की परवरिश देख खुश रहते हैं। कहते हैं कि इतनी सेवा उन्हें अपने घर पर नहीं मिलती। श्रवण पुरी गुरुजी के साथ ही सोते हैं। श्रवणपुरी के माता-पिता के बारे में बताते हुए अष्टकौशल कहते हैं कि वे एक संपन्न परिवार से हैं। घर पर गाड़ियों का काफिला और करोड़ों की प्रॉपर्टी है। बच्चे को धूनी पर चढ़ाने के खिलाफ अखाड़ा परिषद
बच्चों को मंदिर में चढ़ाने की प्रथा पर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने बताया यह परंपरा उचित नहीं है। गरीब परिवारों के बच्चे ही अक्सर इस परंपरा का हिस्सा बनते हैं, जबकि संपन्न परिवारों के बच्चे इस प्रथा से दूर रहते हैं। हालांकि, श्रवण पुरी के लिए कहा जा रहा है कि वे एक संपन्न परिवार से हैं। ऐसे बच्चों के माता-पिता, जिनके पास खाने-पीने के लिए भी साधन नहीं होते, वे अपने बच्चों को मंदिरों में चढ़ाते हैं। हम हमेशा कोशिश करते हैं कि ऐसे बच्चों का ध्यान रखा जाए और उन्हें शिक्षा दी जाए। महाराज जी ने कहा कि जब बच्चे बड़े होते हैं, तो उनकी इच्छानुसार यदि वे साधु बनना चाहते हैं, तभी उन्हें दीक्षा दी जाती है। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष ने कहा, जब माता-पिता अपनी इच्छानुसार बच्चों को मंदिर में देने का निर्णय लेते हैं, तो वे उस पर रोक नहीं लगा सकते। ऐसे में यह स्पष्ट है कि अखाड़ा परिषद इस प्रथा के खिलाफ है, लेकिन बच्चों के माता-पिता की इच्छा का सम्मान भी करती है। —————————– यह खबर भी पढ़ें योगी के संगम स्नान का VIDEO, CM को घेरकर 54 मंत्रियों ने पानी की बौछार कर दी, जमकर हुई हंसी-ठिठोली CM योगी अपने 54 मंत्रियों के साथ बुधवार दोपहर संगम पहुंचे। यहां मंत्रोच्चार के बीच सभी ने एक साथ संगम में डुबकी लगाई। फिर सूर्य को अर्घ्य दिया। सभी ने ध्यान लगाकर गंगा की स्तुति की। यहां पढ़ें पूरी खबर तारीख: 27 फरवरी 2021, जगह: कुरुक्षेत्र (हरियाणा)। संतोष पुरी जी महाराज अपने शिविर में धूनी के पास बैठे थे। अचानक 3 महीने के बच्चे को गोद में लेकर एक दंपती आया। उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को पहले महाराज के चरणों में रखा, फिर उसे धूनी के पास अर्पित कर दिया। संतोष पुरी महाराज ने बच्चे के माथे पर तिलक लगाया। माता-पिता को प्रसाद देकर विदा कर दिया। महाराज ने तीन महीने के इस मासूम को श्रवण पुरी नाम दिया। अब श्रवण पुरी 3 साल के हो चुके हैं। वह अपने पहले महाकुंभ में शामिल होने अपने गुरु भाई अष्टकौशल महंत संत पुरी महाराज के साथ कुंभ क्षेत्र में आए हैं। अष्टकौशल महंत संत पुरी महाराज का पूरा दिन प्रभु भक्ति और श्रवण पुरी की परवरिश में गुजर रहा है। श्रवण पुरी की मासूमियत को देखते ही भक्तों की भीड़ उनके शिविर के सामने जमा हो जाती है। दैनिक भास्कर की टीम जब श्रवण पुरी से मिलने उनके आश्रम पहुंची, तो देखा कि वह संतों के लाडले बन चुके हैं। उनका मासूम चेहरा देखकर भक्तों की भीड़ मिलने के लिए उमड़ पड़ती है। श्रवण पुरी का पूरा दिन प्रभु भक्ति और अपने गुरु के साथ खेलने-कूदने में बीतता है। अष्टकौशल महंत ने बताया कि श्रवण पुरी जब सिर्फ 3 महीने के थे, तो उनके माता-पिता उन्हें धूनी (अग्निकुंड) के पास छोड़ गए थे। सिद्ध पीठ होने के कारण श्रद्धालु वहां आते हैं। संतान प्राप्ति के लिए मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर क्षमता अनुसार कुछ अर्पित करके जाते हैं। कई श्रद्धालु अपने दो या तीन बच्चों में से एक को दान देने की मन्नत भी मांगते हैं। हमारे इस गुरुभाई को भी उसके माता-पिता ने मन्नत पूरी होने पर धूनी पर अर्पित किया था। उन्होंने यह भी बताया कि उनके पास एक डेढ़ साल का मासूम भी है, जिसे धूनी पर अर्पित किया गया था। एक बच्चे को पालने के चैलेंज के सवाल पर अष्टकौशल महंत संत पुरी महाराज कहते हैं- शुरू में थोड़ी दिक्कत हुई। लेकिन, अब भक्तों के प्रयास से वे श्रवणपुरी का लालन-पालन आसानी से कर लेते हैं। श्रवण पुरी सुबह 5 बजे उठते हैं, स्नान करते हैं। आधे घंटे तक गुरु और प्रभु की भक्ति करते हैं। फिर दिनभर खेलते रहते हैं। बच्चे भगवान का रूप होते हैं, इसलिए सभी इनसे स्नेह करते हैं। वे यह भी बताते हैं कि श्रवण पुरी कभी रोते नहीं। स्कूल जाते हैं, धार्मिक शिक्षा भी ले रहे
बाल संत की शिक्षा भी शुरू हो चुकी है। वह स्कूल भी जाते हैं और आश्रम में धार्मिक शिक्षा भी ले रहे। महाराज जी का आदेश है कि बच्चे को संस्कृत की शिक्षा दी जाए। इसलिए जल्द ही हम इन्हें संस्कृत महाविद्यालय में दाखिला दिलवाने वाले हैं। वहां रहकर वे सनातन परंपरा का ज्ञान अर्जित करेंगे और विद्वान बनेंगे। अष्टकौशल बताते हैं- बाल संत के अंदर साधुओं जैसे चमत्कारी लक्षण दिखाई देने लगे हैं। उनके व्यवहार से ऐसा लगता है कि वह पिछले जीवन में भी संत या महापुरुष रहे होंगे। श्रद्धालु उनका दर्शन करने के लिए जूना अखाड़े में आ रहे हैं। उनका मानना है कि बच्चों के अंदर भगवान का वास होता है। इस बालक को देखकर उन्हें भगवान के दर्शन हो रहे हैं। उनका ध्यान पूजा-पाठ और जप-तप में भी लगा रहता है। चॉकलेट-टॉफी नहीं, फल खाना पसंद
महंत बताते हैं कि उन्हें फल खाना पसंद है। वे चॉकलेट या टॉफी के बजाय फल खाना पसंद करते हैं। इतना ही नहीं, तीन साल के इस बालक को अपने गुरुओं और गुरु भाइयों की पहचान है। वह उनके साथ रहना पसंद करते हैं। अष्टकौशल महाराज यह भी कहते हैं कि श्रवणपुरी के माता-पिता की जब कभी इच्छा होती है, उनसे मिलने आ जाते हैं। वे बच्चे की परवरिश देख खुश रहते हैं। कहते हैं कि इतनी सेवा उन्हें अपने घर पर नहीं मिलती। श्रवण पुरी गुरुजी के साथ ही सोते हैं। श्रवणपुरी के माता-पिता के बारे में बताते हुए अष्टकौशल कहते हैं कि वे एक संपन्न परिवार से हैं। घर पर गाड़ियों का काफिला और करोड़ों की प्रॉपर्टी है। बच्चे को धूनी पर चढ़ाने के खिलाफ अखाड़ा परिषद
बच्चों को मंदिर में चढ़ाने की प्रथा पर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी ने बताया यह परंपरा उचित नहीं है। गरीब परिवारों के बच्चे ही अक्सर इस परंपरा का हिस्सा बनते हैं, जबकि संपन्न परिवारों के बच्चे इस प्रथा से दूर रहते हैं। हालांकि, श्रवण पुरी के लिए कहा जा रहा है कि वे एक संपन्न परिवार से हैं। ऐसे बच्चों के माता-पिता, जिनके पास खाने-पीने के लिए भी साधन नहीं होते, वे अपने बच्चों को मंदिरों में चढ़ाते हैं। हम हमेशा कोशिश करते हैं कि ऐसे बच्चों का ध्यान रखा जाए और उन्हें शिक्षा दी जाए। महाराज जी ने कहा कि जब बच्चे बड़े होते हैं, तो उनकी इच्छानुसार यदि वे साधु बनना चाहते हैं, तभी उन्हें दीक्षा दी जाती है। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष ने कहा, जब माता-पिता अपनी इच्छानुसार बच्चों को मंदिर में देने का निर्णय लेते हैं, तो वे उस पर रोक नहीं लगा सकते। ऐसे में यह स्पष्ट है कि अखाड़ा परिषद इस प्रथा के खिलाफ है, लेकिन बच्चों के माता-पिता की इच्छा का सम्मान भी करती है। —————————– यह खबर भी पढ़ें योगी के संगम स्नान का VIDEO, CM को घेरकर 54 मंत्रियों ने पानी की बौछार कर दी, जमकर हुई हंसी-ठिठोली CM योगी अपने 54 मंत्रियों के साथ बुधवार दोपहर संगम पहुंचे। यहां मंत्रोच्चार के बीच सभी ने एक साथ संगम में डुबकी लगाई। फिर सूर्य को अर्घ्य दिया। सभी ने ध्यान लगाकर गंगा की स्तुति की। यहां पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर