हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में एक ऐतिहासिक खोज हुई है। यहां पहली बार यूरोपियन रेड एडमिरल तितली को देखा गया है। तितली विशेषज्ञ लविश गरलानी ने थाथरना हिल टॉप पर 2500 मीटर की ऊंचाई पर इस तितली को देखा। गरलानी 2009 से पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में तितलियों का अध्ययन कर रहे हैं। यूरोपियन रेड एडमिरल तितली उत्तर अमेरिका और मध्य एशिया में आम तौर पर पाई जाती है। दक्षिण एशिया में इसे पहली बार 1929 में बलूचिस्तान में इसे देखा गया था। इसके बाद 93 साल बाद 2022 में पाकिस्तान के चितराल क्षेत्र में इसे दोबारा देखा गया। चीन, मंगोलिया या अफगानिस्तान में अभी तक इस तितली का कोई पक्का रिकॉर्ड नहीं है। यह तितली भारतीय रेड एडमिरल से मिलती-जुलती है। लेकिन इसके ऊपरी पंखों पर गहरे क्रिमसन-लाल रंग की एक पतली पट्टी होती है। भारतीय रेड एडमिरल में यह पट्टी हल्की और चौड़ी होती है। यूरोपियन रेड एडमिरल के पंख पर एक खास बिंदू भी होता है, जो भारतीय प्रजाति में नहीं मिलता। बिच्छू बूटी पर पलते हैं लारवा
इस तितली के लारवा बिच्छू बूटी पर पलते हैं। यह पौधा पश्चिमी हिमालय में बड़ी मात्रा में मिलता है। यही कारण हो सकता है कि यह तितली यहां तक आई। अभी यह कहना मुश्किल है कि यह तितली यहां स्थायी रूप से रहेगी या फिर यह अस्थायी प्रवास है। डलहौजी वन मंडल के भटियात वन रेंज के अधिकारी संजीव कुमार ने बताया कि इस खोज के बाद हिमाचल प्रदेश में तितलियों की कुल संख्या बढ़कर 440 हो गई है। दैनिक भास्कर से बातचीत में लविश गरलानी ने बताया कि यूरोपियन रेड एडमिरल, भारतीय रेड एडमिरल और इंडियन टॉरटॉयजशेल के समान आवास और पौधों पर निर्भर है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि स्थानीय प्रजातियां इस नए आगंतुक के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देती हैं। इस रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि यह तितली भारत में पहले से अधिक व्यापक रूप से फैली हो सकती है, खासकर जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में। भविष्य में यह प्रजाति उत्तराखंड और नेपाल सीमा तक पाई जा सकती है, यदि इस क्षेत्र में और गहन सर्वेक्षण किए जाएं। कौन है लविश गरलानी
लविश गरलानी वर्ष 2009 से हिमाचल प्रदेश की तितलियों का गहन अध्ययन कर रहे हैं। उनकी यह यात्रा एक फोटोग्राफी शौक के रूप में शुरू हुई, जो बाद में तितली अनुसंधान में उनके करियर में बदल गई। वे वर्तमान में हिमाचल प्रदेश वन विभाग में तकनीकी सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं, और तितलियों से संबंधित परियोजनाओं में सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने डलहौज़ी वन मंडल के भटियात वन परिक्षेत्र में प्रदेश के पहले बटरफ्लाई म्यूजियम की स्थापना में अहम भूमिका निभाई है। वर्ष 2024 में प्रकाशित उनकी पुस्तक “हिमाचल प्रदेश की तितलियों की विस्तृत सूची” को राज्य के तितली-विज्ञान में एक मील का पत्थर माना जाता है। गरलानी के कई शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में एक ऐतिहासिक खोज हुई है। यहां पहली बार यूरोपियन रेड एडमिरल तितली को देखा गया है। तितली विशेषज्ञ लविश गरलानी ने थाथरना हिल टॉप पर 2500 मीटर की ऊंचाई पर इस तितली को देखा। गरलानी 2009 से पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में तितलियों का अध्ययन कर रहे हैं। यूरोपियन रेड एडमिरल तितली उत्तर अमेरिका और मध्य एशिया में आम तौर पर पाई जाती है। दक्षिण एशिया में इसे पहली बार 1929 में बलूचिस्तान में इसे देखा गया था। इसके बाद 93 साल बाद 2022 में पाकिस्तान के चितराल क्षेत्र में इसे दोबारा देखा गया। चीन, मंगोलिया या अफगानिस्तान में अभी तक इस तितली का कोई पक्का रिकॉर्ड नहीं है। यह तितली भारतीय रेड एडमिरल से मिलती-जुलती है। लेकिन इसके ऊपरी पंखों पर गहरे क्रिमसन-लाल रंग की एक पतली पट्टी होती है। भारतीय रेड एडमिरल में यह पट्टी हल्की और चौड़ी होती है। यूरोपियन रेड एडमिरल के पंख पर एक खास बिंदू भी होता है, जो भारतीय प्रजाति में नहीं मिलता। बिच्छू बूटी पर पलते हैं लारवा
इस तितली के लारवा बिच्छू बूटी पर पलते हैं। यह पौधा पश्चिमी हिमालय में बड़ी मात्रा में मिलता है। यही कारण हो सकता है कि यह तितली यहां तक आई। अभी यह कहना मुश्किल है कि यह तितली यहां स्थायी रूप से रहेगी या फिर यह अस्थायी प्रवास है। डलहौजी वन मंडल के भटियात वन रेंज के अधिकारी संजीव कुमार ने बताया कि इस खोज के बाद हिमाचल प्रदेश में तितलियों की कुल संख्या बढ़कर 440 हो गई है। दैनिक भास्कर से बातचीत में लविश गरलानी ने बताया कि यूरोपियन रेड एडमिरल, भारतीय रेड एडमिरल और इंडियन टॉरटॉयजशेल के समान आवास और पौधों पर निर्भर है। ऐसे में यह देखना रोचक होगा कि स्थानीय प्रजातियां इस नए आगंतुक के प्रति कैसी प्रतिक्रिया देती हैं। इस रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि यह तितली भारत में पहले से अधिक व्यापक रूप से फैली हो सकती है, खासकर जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में। भविष्य में यह प्रजाति उत्तराखंड और नेपाल सीमा तक पाई जा सकती है, यदि इस क्षेत्र में और गहन सर्वेक्षण किए जाएं। कौन है लविश गरलानी
लविश गरलानी वर्ष 2009 से हिमाचल प्रदेश की तितलियों का गहन अध्ययन कर रहे हैं। उनकी यह यात्रा एक फोटोग्राफी शौक के रूप में शुरू हुई, जो बाद में तितली अनुसंधान में उनके करियर में बदल गई। वे वर्तमान में हिमाचल प्रदेश वन विभाग में तकनीकी सलाहकार के रूप में कार्यरत हैं, और तितलियों से संबंधित परियोजनाओं में सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने डलहौज़ी वन मंडल के भटियात वन परिक्षेत्र में प्रदेश के पहले बटरफ्लाई म्यूजियम की स्थापना में अहम भूमिका निभाई है। वर्ष 2024 में प्रकाशित उनकी पुस्तक “हिमाचल प्रदेश की तितलियों की विस्तृत सूची” को राज्य के तितली-विज्ञान में एक मील का पत्थर माना जाता है। गरलानी के कई शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। हिमाचल | दैनिक भास्कर
