महाकुंभ में किन्नर संतों का अद्भुत संसार:3 घंटे मेकअप में लगते हैं, 4 घंटे तप-साधना; ऐसा है किन्नर महामंडलेश्वर का जीवन

महाकुंभ में किन्नर संतों का अद्भुत संसार:3 घंटे मेकअप में लगते हैं, 4 घंटे तप-साधना; ऐसा है किन्नर महामंडलेश्वर का जीवन

गले में सोने के मोटे-मोटे हार, कलाई पर रुद्राक्ष, सोने और हीरे से बने ब्रेसलेट, कानों में कई तोले की ईयर-रिंग, नाक में कंटेंपरेरी नथ, माथे पर त्रिपुंड और लाल बिंदी… ये पहचान है आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की। आचार्य लक्ष्मी नारायण किन्नर अखाड़े की प्रमुख हैं। महाकुंभ-2025 के लिए किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़ा के साथ रथ-घोड़े, गाजे-बाजे के साथ पहले नगर और फिर छावनी प्रवेश कर गया है। अभी यहां अखाड़े में शामिल करीब एक हजार ‘किन्नर संत’ पहुंचे हैं। देश-विदेश से इनके आने का सिलसिला जारी है। संगम की रेत पर बसे आस्था के महाकुंभ में कैसा है किन्नर संतों का संसार? कुंभ को लेकर इनकी तैयारी क्या है? ऐसे तमाम सवालों के साथ दैनिक भास्कर की टीम किन्नर अखाड़े पहुंची। कुंभ क्षेत्र में हम आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से मिलने पहुंचे। तब उनके एक शिष्य ने बताया- आचार्य मेकअप कर रही हैं, टाइम लगेगा। हमने पूछा- कितना समय? जवाब मिला- करीब 3 घंटे। हमसे बात करने के बाद शिष्य मेकअप रूम गया। 2 मिनट में ही लौट कर बोला- आचार्य ने आपको बुलाया है। महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी माथे पर त्रिपुंड और लाल बिंदी लगाकर बैठी थीं। बगल में उनके सहायक अर्जुन खड़े थे। डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी बताती हैं- किन्नर श्रृंगार में ही अच्छे लगते हैं। हम अपने प्रभु के लिए श्रृंगार करते हैं। अमूमन हमारा श्रृंगार देखकर लोग पूछते हैं कि आप अपने साथ मेकअप आर्टिस्ट लेकर चलती हैं? मेरा जवाब होता है, इतने पैसे तो हमारे पास नहीं हैं कि मेकअप आर्टिस्ट लेकर चलें। हम लोगों ने खुद अपना मेकअप करना सीखा है। महामंडलेश्वर हर दिन दुल्हन की तरह सजती-संवरती हैं। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी बताती हैं- इसके लिए 3 घंटे लगते हैं। फिर हम अपने इसी स्वरूप के साथ आराध्य भगवान शिव की आराधना करते हैं। 4 घंटे तक भोलेनाथ की पूजा और प्रार्थना में लीन रहते हैं। यह सब 7 घंटे का है। कुंभ क्षेत्र में रहने के दौरान हर रोज यह साधना जारी रहेगी। इसके बाद ही भक्तों से भेंट करेंगे। किन्नर अखाड़े के अस्तित्व के लिए खूब संघर्ष किया
आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने महाकुंभ क्षेत्र में बसे किन्नरों के एक ऐसे संसार के बारे में बताया, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। वह बताती हैं- 13 अक्टूबर, 2015 को किन्नर अखाड़ा अस्तित्व में आया। वर्षों से समाज में किन्नर उपेक्षित ही रहे। लेकिन 2014 में सुप्रीम कोर्ट का नालसा जजमेंट आया। इसमें किन्नर (थर्ड जेंडर) को उन्हें अपना हक मिला। इसमें वह खुद इंटरविनर थीं। अखाड़े का गठन जितना आसान था, उसे आगे बढ़ाना और अस्तित्व में लाना उतना ही मुश्किल। अखाड़े का गठन करने के बाद हम उज्जैन के कलेक्टर के पास गए और इसके लिए आवेदन भी दिया। सभी 13 अखाड़े हमारे विरोध में खड़े हो गए
डॉ. त्रिपाठी कहती हैं- इस नए अखाड़े के बारे में जब सभी 13 अखाड़ों के पदाधिकारियों और साधु-संतों को जानकारी हुई, तो हमारे विरोध में खड़े हो गए। बहुत विवाद हुआ, पर मैं अडिग रही। सनातन धर्म में किन्नरों को उपदेवता की श्रेणी में रखते हैं। इसमें देव, दानव, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, अप्सरा, संत महात्मा आदि हैं। किन्नरों के लिए, देव दनुज किन्नर नर श्रेणी, सादर मजहिं सकल त्रिवेणी.. कहा गया है। किन्नरों का बहुत बड़ा स्थान है। उस स्थान को हासिल करने के लिए, उस स्थान पर किन्नरों को स्थापित करने के लिए हमने यह निर्णय लिया कि किन्नर अखाड़े को आगे बढ़ाना होगा। अब दूसरे देशों जैसे बैंकाक, मलेशिया, अमेरिका में भी किन्नर अखाड़े के गठन की मांग हो रही है। खास बात यह है कि इस अखाड़े में सिर्फ किन्नर या ट्रांसजेंडर ही नहीं, महिला-पुरुष भी शामिल होते हैं। यह सभी को साथ लेकर चलता है। दूसरे धर्म के लोग भी हमारे साथ आना चाहते हैं। जूना अखाड़े के संतों ने किन्नरों के लिए खोला दरवाजा
वह आगे कहती हैं- 2019 में हमें जूना अखाड़ा का सपोर्ट मिला। जूना अखाड़े के संरक्षक हरि गिरि महाराज से मुलाकात हुई। हमारा अनुबंध जूना अखाड़े के साथ हुआ। इसमें यह तय हुआ कि कुंभ-महाकुंभ में किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़े के साथ शाही स्नान करेगा। इसके बाद 2019 में साधु-संन्यासियों ने अपने दरवाजे हम किन्नरों के लिए खोल दिए। अब इस किन्नर अखाड़े की पहचान सिर्फ देश ही नहीं, पूरी दुनिया में होती है। महाकुंभ में मिलेगा ‘किन्नर आर्ट विलेज’
आचार्य लक्ष्मीनारायण बताती हैं- किन्नर अखाड़े के शिविर में इस बार किन्नर आर्ट विलेज भी तैयार किया जाएगा। इसमें पेंटिंग, मूर्तिकला, फोटोग्राफी रहेगी। किन्नर अखाड़ा का शिविर महाकुंभ के सेक्टर-16 संगम लोवर मार्ग के दाहिनी पटरी पर लग रहा है। हमारे कार्यक्रम 10 जनवरी से शुरू होंगे। शिविर में पौष पूर्णिमा (13 जनवरी) से लेकर महाशिवरात्रि (26 फरवरी) तक हर दिन पूजन, रुद्राभिषेक, हवन और सनातन धर्म को लेकर गोष्ठी सहित अन्य कार्यक्रम होंगे। फेसबुक और इंस्टाग्राम पर होते हैं लाखों फॉलोअर्स
किन्नर अखाड़े के संत बहुत ही हाईटेक होते हैं। डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के फेसबुक पर 1 लाख से ज्यादा और इंस्टाग्राम पर 80 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। इसी तरह किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर कौशल्यानंद गिरि, कल्याणी नंद गिरि, मोहनी नंद गिरि के अलावा पवित्रा नंद आदि के लाखों फॉलोअर्स हैं। कुंभ हो या महाकुंभ, सोशल मीडिया पर इनके रील्स भी सबसे ज्यादा वायरल होते हैं। आचार्य महामंडेश्वर के जरिए बदली किन्नरों के प्रति धारणा
किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने थर्ड जेंडरों से जुड़ी 2 किताबें भी लिखी हैं। पहली किताब ‘मी हिजड़ा- मी लक्ष्मी’ है। यह हिंदी, मराठी, इंग्लिश और गुजराती में है। इसी तरह दूसरी किताब ‘द रेड लिप्स्टिक मेनन माई लाइफ’ है। आचार्य कहती हैं कि इन किताबों के जरिए किन्नरों की असली दुनिया के बारे में बताया है। इससे किन्नरों के प्रति लोगों की धारणा भी बदली है। लोग कटाक्ष करते हैं, लेकिन इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। किन्नरों पर जर्मन प्रोडक्शन ने ‘थर्ड जेंडर बिटविन द लाइंस’ फिल्म बनाई। इसी तरह अक्षय कुमार की जो ‘लक्ष्मी’ फिल्म बनी थी, उसमें भी किन्नरों का संघर्षों दिखाया गया था। इसमें लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बतौर ब्रांड एंबेसडर सपोर्ट किया था। उन्होंने अक्षय कुमार के साथ इस फिल्म की ब्रांडिंग भी की थी। ‘स्कूल के बाथरूम में जाने से डरती थी’ दैनिक भास्कर से बातचीत में आचार्य महामंडलेश्वर उस समय भावुक हो गईं, जब वह अपने बचपन के दिनों को याद किया। उन्होंने अपने संघर्षों की कहानी भी बताई। उन्होंने कहा, ‘एक समय था कि सड़कों पर चलना भी मुश्किल था। लोग हिजड़ा बोलकर.. तालियां बजाकर हमें चिढ़ाते थे। मैं स्कूल में बाथरूम में जाने से डरती थी, डर रहता था कि मेरे साथ कुछ गलत न हो जाए। जब तक मैं स्ट्रॉन्ग नहीं हो गई, मैं उपेक्षित रही। वह कहती हैं- मां का दूध पीकर हर बच्चा बड़ा होता है उसी मां का दूध पीकर मैं भी बड़ी हुई हूं लेकिन कभी-कभी हमारा बचपन हमसे छीन लिया जाता है, इसके लिए दोषी समाज है, हम नहीं। भारत में किन्नरों का इतिहास
किन्नर समूह की प्राचीनता का जिक्र वेदों से लेकर रामायण काल तक है। रामायण में किन्नरों का उल्लेख मिलता है। करीब 3 हजार साल पहले रामायण में इनका एक महत्वपूर्ण प्रसंग प्रस्तुत किया गया है। जब भगवान राम अयोध्या से वनवास के लिए निकल रहे थे, तब पूरा राज्य उनके पीछे चल पड़ा। भगवान राम ने लोगों से कहा कि वे आंसू पोंछकर अपने-अपने घर लौट जाएं। तब अधिकतर लोग लौट गए। लेकिन कुछ लोग, जो ना पुरुष थे ना स्त्री, वहीं जंगल में रुक गए। वे भगवान राम के 14 साल के वनवास के दौरान वहीं रहे। फिर राम की वापसी के साथ ही राज्य में लौटे। इसी प्रसंग के आधार पर इन्हें किन्नर माना जाता है। महाभारत में भी किन्नरों का जिक्र है, जहां उन्हें अर्ध-मानव और अर्ध-अश्व कहा गया है। इससे पहले वेदों में भी 3 प्रकार के व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है, जो उनके स्वभाव पर निर्भर करते हैं। मुगलकाल में किन्नरों की भूमिका
मुगलकाल में किन्नर समूह का जिक्र पहले से कहीं ज्यादा विस्तार से मिलता है। कई मुगल लेखकों ने अपनी रचनाओं में किन्नरों की कहानियों को शामिल किया और तभी ‘हिजड़ा’ शब्द प्रचलित हुआ। मुगलों के दरबार में किन्नरों का महत्वपूर्ण स्थान था। वे हरम की देख-रेख और रखवाली का जिम्मा संभालते थे। यह प्रथा दिल्ली सल्तनत के समय से चली आ रही थी और मुगलों ने भी इसे अपनाया। इसके अलावा वे सेना और दरबार में नृत्य-संगीत का भी जिम्मा निभाते थे। अकबर के समय में किन्नरों का विशेष रूप से उल्लेख मिलता है। एक डच व्यापारी, फ्रांसिस्को पेल्सर्ट ने 17वीं सदी में मुगल दरबार में अपने अनुभव का जिक्र करते हुए बताया कि थर्ड जेंडर को इतनी शक्ति और सम्मान हासिल था कि वह उसके लिए आश्चर्यजनक था। इस अवधि में कई पेंटिंग्स भी मिलती हैं, जो मुगलकाल के किन्नरों को दर्शाती हैं। इनमें बहादुर शाह के दरबार के किन्नर ख्वास खान प्रमुख हैं। धारा-377 और किन्नरों का सामाजिक दर्जा
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा-377 को खत्म कर दिया, लेकिन इसकी शुरुआत 1864 में हुई थी। अंग्रेजों ने उस समय ब्रिटेन के बुगेरी एक्ट 1533 को भारत में लागू किया, जिससे समलैंगिकता को अपराध माना जाने लगा। इससे किन्नरों को उनके किन्नर होने की वजह से अपराधी माना जाने लगा। अंग्रेजी हुकूमत ने किन्नरों को गंदगी, बीमारी और संक्रमण फैलाने वाला मान लिया। उनके साथ छुआछूत किया जाने लगा। ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें सामाजिक नैतिकता का दुश्मन ठहराया और उन्हें अपने शासन के लिए खतरा बताया था।
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आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने महाकुंभ क्षेत्र में बसे किन्नरों के एक ऐसे संसार के बारे में बताया, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। वह बताती हैं- 13 अक्टूबर, 2015 को किन्नर अखाड़ा अस्तित्व में आया। वर्षों से समाज में किन्नर उपेक्षित ही रहे। लेकिन 2014 में सुप्रीम कोर्ट का नालसा जजमेंट आया। इसमें किन्नर (थर्ड जेंडर) को उन्हें अपना हक मिला। इसमें वह खुद इंटरविनर थीं। अखाड़े का गठन जितना आसान था, उसे आगे बढ़ाना और अस्तित्व में लाना उतना ही मुश्किल। अखाड़े का गठन करने के बाद हम उज्जैन के कलेक्टर के पास गए और इसके लिए आवेदन भी दिया। सभी 13 अखाड़े हमारे विरोध में खड़े हो गए
डॉ. त्रिपाठी कहती हैं- इस नए अखाड़े के बारे में जब सभी 13 अखाड़ों के पदाधिकारियों और साधु-संतों को जानकारी हुई, तो हमारे विरोध में खड़े हो गए। बहुत विवाद हुआ, पर मैं अडिग रही। सनातन धर्म में किन्नरों को उपदेवता की श्रेणी में रखते हैं। इसमें देव, दानव, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, अप्सरा, संत महात्मा आदि हैं। किन्नरों के लिए, देव दनुज किन्नर नर श्रेणी, सादर मजहिं सकल त्रिवेणी.. कहा गया है। किन्नरों का बहुत बड़ा स्थान है। उस स्थान को हासिल करने के लिए, उस स्थान पर किन्नरों को स्थापित करने के लिए हमने यह निर्णय लिया कि किन्नर अखाड़े को आगे बढ़ाना होगा। अब दूसरे देशों जैसे बैंकाक, मलेशिया, अमेरिका में भी किन्नर अखाड़े के गठन की मांग हो रही है। खास बात यह है कि इस अखाड़े में सिर्फ किन्नर या ट्रांसजेंडर ही नहीं, महिला-पुरुष भी शामिल होते हैं। यह सभी को साथ लेकर चलता है। दूसरे धर्म के लोग भी हमारे साथ आना चाहते हैं। जूना अखाड़े के संतों ने किन्नरों के लिए खोला दरवाजा
वह आगे कहती हैं- 2019 में हमें जूना अखाड़ा का सपोर्ट मिला। जूना अखाड़े के संरक्षक हरि गिरि महाराज से मुलाकात हुई। हमारा अनुबंध जूना अखाड़े के साथ हुआ। इसमें यह तय हुआ कि कुंभ-महाकुंभ में किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़े के साथ शाही स्नान करेगा। इसके बाद 2019 में साधु-संन्यासियों ने अपने दरवाजे हम किन्नरों के लिए खोल दिए। अब इस किन्नर अखाड़े की पहचान सिर्फ देश ही नहीं, पूरी दुनिया में होती है। महाकुंभ में मिलेगा ‘किन्नर आर्ट विलेज’
आचार्य लक्ष्मीनारायण बताती हैं- किन्नर अखाड़े के शिविर में इस बार किन्नर आर्ट विलेज भी तैयार किया जाएगा। इसमें पेंटिंग, मूर्तिकला, फोटोग्राफी रहेगी। किन्नर अखाड़ा का शिविर महाकुंभ के सेक्टर-16 संगम लोवर मार्ग के दाहिनी पटरी पर लग रहा है। हमारे कार्यक्रम 10 जनवरी से शुरू होंगे। शिविर में पौष पूर्णिमा (13 जनवरी) से लेकर महाशिवरात्रि (26 फरवरी) तक हर दिन पूजन, रुद्राभिषेक, हवन और सनातन धर्म को लेकर गोष्ठी सहित अन्य कार्यक्रम होंगे। फेसबुक और इंस्टाग्राम पर होते हैं लाखों फॉलोअर्स
किन्नर अखाड़े के संत बहुत ही हाईटेक होते हैं। डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के फेसबुक पर 1 लाख से ज्यादा और इंस्टाग्राम पर 80 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। इसी तरह किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर कौशल्यानंद गिरि, कल्याणी नंद गिरि, मोहनी नंद गिरि के अलावा पवित्रा नंद आदि के लाखों फॉलोअर्स हैं। कुंभ हो या महाकुंभ, सोशल मीडिया पर इनके रील्स भी सबसे ज्यादा वायरल होते हैं। आचार्य महामंडेश्वर के जरिए बदली किन्नरों के प्रति धारणा
किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने थर्ड जेंडरों से जुड़ी 2 किताबें भी लिखी हैं। पहली किताब ‘मी हिजड़ा- मी लक्ष्मी’ है। यह हिंदी, मराठी, इंग्लिश और गुजराती में है। इसी तरह दूसरी किताब ‘द रेड लिप्स्टिक मेनन माई लाइफ’ है। आचार्य कहती हैं कि इन किताबों के जरिए किन्नरों की असली दुनिया के बारे में बताया है। इससे किन्नरों के प्रति लोगों की धारणा भी बदली है। लोग कटाक्ष करते हैं, लेकिन इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। किन्नरों पर जर्मन प्रोडक्शन ने ‘थर्ड जेंडर बिटविन द लाइंस’ फिल्म बनाई। इसी तरह अक्षय कुमार की जो ‘लक्ष्मी’ फिल्म बनी थी, उसमें भी किन्नरों का संघर्षों दिखाया गया था। इसमें लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बतौर ब्रांड एंबेसडर सपोर्ट किया था। उन्होंने अक्षय कुमार के साथ इस फिल्म की ब्रांडिंग भी की थी। ‘स्कूल के बाथरूम में जाने से डरती थी’ दैनिक भास्कर से बातचीत में आचार्य महामंडलेश्वर उस समय भावुक हो गईं, जब वह अपने बचपन के दिनों को याद किया। उन्होंने अपने संघर्षों की कहानी भी बताई। उन्होंने कहा, ‘एक समय था कि सड़कों पर चलना भी मुश्किल था। लोग हिजड़ा बोलकर.. तालियां बजाकर हमें चिढ़ाते थे। मैं स्कूल में बाथरूम में जाने से डरती थी, डर रहता था कि मेरे साथ कुछ गलत न हो जाए। जब तक मैं स्ट्रॉन्ग नहीं हो गई, मैं उपेक्षित रही। वह कहती हैं- मां का दूध पीकर हर बच्चा बड़ा होता है उसी मां का दूध पीकर मैं भी बड़ी हुई हूं लेकिन कभी-कभी हमारा बचपन हमसे छीन लिया जाता है, इसके लिए दोषी समाज है, हम नहीं। भारत में किन्नरों का इतिहास
किन्नर समूह की प्राचीनता का जिक्र वेदों से लेकर रामायण काल तक है। रामायण में किन्नरों का उल्लेख मिलता है। करीब 3 हजार साल पहले रामायण में इनका एक महत्वपूर्ण प्रसंग प्रस्तुत किया गया है। जब भगवान राम अयोध्या से वनवास के लिए निकल रहे थे, तब पूरा राज्य उनके पीछे चल पड़ा। भगवान राम ने लोगों से कहा कि वे आंसू पोंछकर अपने-अपने घर लौट जाएं। तब अधिकतर लोग लौट गए। लेकिन कुछ लोग, जो ना पुरुष थे ना स्त्री, वहीं जंगल में रुक गए। वे भगवान राम के 14 साल के वनवास के दौरान वहीं रहे। फिर राम की वापसी के साथ ही राज्य में लौटे। इसी प्रसंग के आधार पर इन्हें किन्नर माना जाता है। महाभारत में भी किन्नरों का जिक्र है, जहां उन्हें अर्ध-मानव और अर्ध-अश्व कहा गया है। इससे पहले वेदों में भी 3 प्रकार के व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है, जो उनके स्वभाव पर निर्भर करते हैं। मुगलकाल में किन्नरों की भूमिका
मुगलकाल में किन्नर समूह का जिक्र पहले से कहीं ज्यादा विस्तार से मिलता है। कई मुगल लेखकों ने अपनी रचनाओं में किन्नरों की कहानियों को शामिल किया और तभी ‘हिजड़ा’ शब्द प्रचलित हुआ। मुगलों के दरबार में किन्नरों का महत्वपूर्ण स्थान था। वे हरम की देख-रेख और रखवाली का जिम्मा संभालते थे। यह प्रथा दिल्ली सल्तनत के समय से चली आ रही थी और मुगलों ने भी इसे अपनाया। इसके अलावा वे सेना और दरबार में नृत्य-संगीत का भी जिम्मा निभाते थे। अकबर के समय में किन्नरों का विशेष रूप से उल्लेख मिलता है। एक डच व्यापारी, फ्रांसिस्को पेल्सर्ट ने 17वीं सदी में मुगल दरबार में अपने अनुभव का जिक्र करते हुए बताया कि थर्ड जेंडर को इतनी शक्ति और सम्मान हासिल था कि वह उसके लिए आश्चर्यजनक था। इस अवधि में कई पेंटिंग्स भी मिलती हैं, जो मुगलकाल के किन्नरों को दर्शाती हैं। इनमें बहादुर शाह के दरबार के किन्नर ख्वास खान प्रमुख हैं। धारा-377 और किन्नरों का सामाजिक दर्जा
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध बताने वाली धारा-377 को खत्म कर दिया, लेकिन इसकी शुरुआत 1864 में हुई थी। अंग्रेजों ने उस समय ब्रिटेन के बुगेरी एक्ट 1533 को भारत में लागू किया, जिससे समलैंगिकता को अपराध माना जाने लगा। इससे किन्नरों को उनके किन्नर होने की वजह से अपराधी माना जाने लगा। अंग्रेजी हुकूमत ने किन्नरों को गंदगी, बीमारी और संक्रमण फैलाने वाला मान लिया। उनके साथ छुआछूत किया जाने लगा। ब्रिटिश अधिकारियों ने उन्हें सामाजिक नैतिकता का दुश्मन ठहराया और उन्हें अपने शासन के लिए खतरा बताया था।
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