मुसलमानों में तलाक लेने पर हाई कोर्ट ने साफ कर दी स्थिति, बताया कैसे डिवोर्स पर रोक नहीं है

मुसलमानों में तलाक लेने पर हाई कोर्ट ने साफ कर दी स्थिति, बताया कैसे डिवोर्स पर रोक नहीं है

<p style=”text-align: justify;”><strong>High Court on Muslim Talaq:</strong> बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला द्वारा अपने पति एवं सास-ससुर के खिलाफ दायर मुकदमा खारिज करते हुए कहा है कि केवल &lsquo;तलाक-ए-बिद्दत&rsquo; (तत्काल तीन बार तलाक-तलाक बोलना) निषिद्ध किया गया है, न कि तलाक देने के पारंपरिक तरीके &lsquo;तलाक-ए-अहसन&rsquo; को. तलाक-ए-अहसन के तहत एक बार तलाक कहा जाता है, जिसके बाद महिला को इद्दत या तीन महीने की प्रतीक्षा अवधि से गुजरना पड़ता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने बुधवार को कहा कि मुस्लिम महिला (निकाह से संबंधित अधिकार का संरक्षण) अधिनियम के तहत तलाक की परिभाषा के दायरे में तलाक के वे रूप शामिल हैं जिनका तात्कालिक प्रभाव होता है या जो अपरिवर्तनीय तलाक होते हैं.&nbsp; न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और संजय देशमुख की खंडपीठ ने जलगांव में एक महिला द्वारा अपने पति एवं सास-ससुर के खिलाफ संबंधित अधिनियम की धारा-चार के तहत 2024 में दर्ज मामले को खारिज कर दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>तीन तलाक देने पर 3 साल की सजा</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>इस धारा के अनुसार, कोई भी मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को तत्काल तीन तलाक देता है उसे तीन साल तक की कैद की सजा हो सकती है. तलाक की इस प्रक्रिया को तलाक-ए-बिद्दत कहा जाता है. हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, &lsquo;&lsquo;अधिनियम के तहत, तलाक की परिभाषा में जो वर्णित किया गया है वह तात्कालिक और अपरिवर्तनीय है. तलाक का अर्थ है तलाक-ए-बिद्दत या तलाक का कोई अन्य रूप, जिसका तात्कालिक या अपरिवर्तनीय प्रभाव हो. तलाक के अन्य सभी रूपों पर प्रतिबंध या रोक नहीं है.&rsquo;&rsquo;</p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत ने कहा कि इस मामले में व्यक्ति ने अपनी पत्नी को तलाक-ए-अहसन दिया था, जो तलाक की घोषणा है. इसने कहा, &lsquo;&lsquo;अंतिम तलाकनामा घोषणा के तीन महीने बाद दिया गया था. तलाक-ए-अहसन का कानूनी प्रभाव केवल 90 दिनों के बाद लागू हुआ, जिसके दौरान दंपति ने सहवास फिर से शुरू नहीं किया था.&rsquo;&rsquo;</p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत ने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत तीन तलाक प्रतिबंधित है, न कि तलाक-ए-अहसन, ऐसी स्थिति में यदि व्यक्ति और उसके माता-पिता को मुकदमे का सामना करने के लिए कहा जाता है तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>2021 में शादी, 2023 में हो गए अलग</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>दंपति ने 2021 में शादी की थी. वे 2023 में अलग हो गए, और व्यक्ति ने गवाहों की मौजूदगी में दिसंबर 2023 में &lsquo;तलाक-ए-अहसन&rsquo; प्रक्रिया का इस्तेमाल किया. व्यक्ति ने अपनी याचिका में दावा किया था कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत, तलाक का यह तरीका दंडनीय नहीं है. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत उत्पीड़न के अपराध के लिए प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत ने कहा कि चूंकि प्राथमिकी तलाक के मुद्दे से संबंधित है, इसलिए यह केवल पति के खिलाफ है और ससुराल वालों को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता है. पीठ ने कहा, &lsquo;&lsquo;अगर उन लोगों के खिलाफ मामला जारी रखा जाता है तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.&rsquo;&rsquo;</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>यह भी पढ़ें-</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”><a href=”https://www.abplive.com/states/delhi-ncr/imam-umer-ahmed-ilyasi-reaction-on-pahalgam-terror-attack-masjid-madrasa-all-india-imam-organisation-2931929″><strong>Pahalgam Terror Attack: जुमे की नमाज से पहले इमाम उमर इलियासी का बड़ा बयान, ‘तमाम मस्जिदों और मदरसों से…'</strong></a></p> <p style=”text-align: justify;”><strong>High Court on Muslim Talaq:</strong> बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला द्वारा अपने पति एवं सास-ससुर के खिलाफ दायर मुकदमा खारिज करते हुए कहा है कि केवल &lsquo;तलाक-ए-बिद्दत&rsquo; (तत्काल तीन बार तलाक-तलाक बोलना) निषिद्ध किया गया है, न कि तलाक देने के पारंपरिक तरीके &lsquo;तलाक-ए-अहसन&rsquo; को. तलाक-ए-अहसन के तहत एक बार तलाक कहा जाता है, जिसके बाद महिला को इद्दत या तीन महीने की प्रतीक्षा अवधि से गुजरना पड़ता है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने बुधवार को कहा कि मुस्लिम महिला (निकाह से संबंधित अधिकार का संरक्षण) अधिनियम के तहत तलाक की परिभाषा के दायरे में तलाक के वे रूप शामिल हैं जिनका तात्कालिक प्रभाव होता है या जो अपरिवर्तनीय तलाक होते हैं.&nbsp; न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और संजय देशमुख की खंडपीठ ने जलगांव में एक महिला द्वारा अपने पति एवं सास-ससुर के खिलाफ संबंधित अधिनियम की धारा-चार के तहत 2024 में दर्ज मामले को खारिज कर दिया.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>तीन तलाक देने पर 3 साल की सजा</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>इस धारा के अनुसार, कोई भी मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को तत्काल तीन तलाक देता है उसे तीन साल तक की कैद की सजा हो सकती है. तलाक की इस प्रक्रिया को तलाक-ए-बिद्दत कहा जाता है. हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, &lsquo;&lsquo;अधिनियम के तहत, तलाक की परिभाषा में जो वर्णित किया गया है वह तात्कालिक और अपरिवर्तनीय है. तलाक का अर्थ है तलाक-ए-बिद्दत या तलाक का कोई अन्य रूप, जिसका तात्कालिक या अपरिवर्तनीय प्रभाव हो. तलाक के अन्य सभी रूपों पर प्रतिबंध या रोक नहीं है.&rsquo;&rsquo;</p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत ने कहा कि इस मामले में व्यक्ति ने अपनी पत्नी को तलाक-ए-अहसन दिया था, जो तलाक की घोषणा है. इसने कहा, &lsquo;&lsquo;अंतिम तलाकनामा घोषणा के तीन महीने बाद दिया गया था. तलाक-ए-अहसन का कानूनी प्रभाव केवल 90 दिनों के बाद लागू हुआ, जिसके दौरान दंपति ने सहवास फिर से शुरू नहीं किया था.&rsquo;&rsquo;</p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत ने कहा कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत तीन तलाक प्रतिबंधित है, न कि तलाक-ए-अहसन, ऐसी स्थिति में यदि व्यक्ति और उसके माता-पिता को मुकदमे का सामना करने के लिए कहा जाता है तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>2021 में शादी, 2023 में हो गए अलग</strong></p>
<p style=”text-align: justify;”>दंपति ने 2021 में शादी की थी. वे 2023 में अलग हो गए, और व्यक्ति ने गवाहों की मौजूदगी में दिसंबर 2023 में &lsquo;तलाक-ए-अहसन&rsquo; प्रक्रिया का इस्तेमाल किया. व्यक्ति ने अपनी याचिका में दावा किया था कि अधिनियम के प्रावधानों के तहत, तलाक का यह तरीका दंडनीय नहीं है. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत उत्पीड़न के अपराध के लिए प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाती है.</p>
<p style=”text-align: justify;”>अदालत ने कहा कि चूंकि प्राथमिकी तलाक के मुद्दे से संबंधित है, इसलिए यह केवल पति के खिलाफ है और ससुराल वालों को इसमें शामिल नहीं किया जा सकता है. पीठ ने कहा, &lsquo;&lsquo;अगर उन लोगों के खिलाफ मामला जारी रखा जाता है तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.&rsquo;&rsquo;</p>
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