यूपी उपचुनाव तय करेगा आकाश का कद:जीत दिला पाए तो 2027 में लीड करेंगे; बसपा ने बदली रणनीति, दलित-युवाओं पर फोकस

यूपी उपचुनाव तय करेगा आकाश का कद:जीत दिला पाए तो 2027 में लीड करेंगे; बसपा ने बदली रणनीति, दलित-युवाओं पर फोकस

बसपा सुप्रीमो मायावती ने उपचुनाव में पूरी ताकत झोंक रखी है। रोज नए फैसले ले रही हैं। बसपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भतीजे आकाश आनंद का कद बढ़ा दिया। यूपी में होने वाले उपचुनाव में उन्होंने आकाश को सभी 10 सीटों की जिम्मेदारी दी। साथ ही आकाश को हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव का प्रभारी भी बनाया। आकाश की अब उन सभी पदों पर वापसी हो गई, जिनसे उन्हें लोकसभा चुनाव के दौरान हटाया गया था। बैठक में मायावती ने पदाधिकारियों के सामने ऐलान किया, उपचुनाव आकाश का कद और भविष्य दोनों तय करेंगे। मायावती ने साफ संकेत दिया कि उपचुनाव में पार्टी खाता खोलने में कामयाब हुई, तो आकाश को 2027 के विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसके बाद से आकाश अपनी पुरानी फॉर्म में लौट आए हैं। वह पार्टी की मशीनरी को दुरुस्त करने में लगे हैं। लोकसभा चुनाव में पार्टी के नंबर दो फेस आकाश आनंद को मायावती ने सभी दायित्व से हटा दिया था। चुनाव प्रचार के दौरान केंद्र और राज्य सरकार पर टिप्पणी के बाद बसपा सुप्रीमो ने यह कड़ा कदम उठाया था। उस समय उन्होंने कहा था- आकाश अभी मैच्योर नहीं हैं। अब आपको बताते हैं आकाश आनंद को क्यों मेन स्ट्रीम में वापस लाया गया… दलितों के साथ युवाओं को भी पार्टी से जोड़ने की कवायद
दलितों को लेकर मायावती की सोच थी, वे बसपा छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। पार्टी सुप्रीमो को यह सोच 2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में भारी पड़ी। पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। पार्टी के कई उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। मायावती को अब यह बात समझ में आ गई है कि दलित और युवा दोनों का साथ जरूरी है। इसी को देखते हुए उन्होंने एक बार फिर भतीजे को आगे किया। वह आकाश आनंद के जरिए अपने वोट बैंक से युवाओं को भी जोड़ना चाहती हैं। अखिलेश VS आकाश आनंद का नरेटिव सेट कर रहीं मायावती
बसपा सुप्रीमो मायावती को अहसास हो चुका है कि पार्टी को फिर से मुख्य धारा में लाने के लिए युवाओं का साथ होना जरूरी है। यही वजह है, आकाश आनंद को एक बार फिर से मेन स्ट्रीम में वापस लाया गया। सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुकाबले की बात की जाए, तो बसपा से आकाश आनंद सबसे युवा और पढ़े-लिखे लीडर के तौर पर जाने जाते हैं। मायावती अपने भतीजे को आगे कर अखिलेश VS आकाश का नरेटिव सेट करना चाहती हैं। वह जानती हैं, पार्टी को फिर से मजबूत करने के लिए दलित वर्ग के युवाओं का साथ जरूरी है। यही वजह है, मायावती ने आकाश आनंद को उनके सभी अधिकार वापस कर दिए। ताकि पार्टी एक बार फिर से बूथ लेवल तक युवाओं के बीच में अपनी पहुंच बना सके। स्ट्रैटजी और एनालिसिस पर फोकस करते हैं आकाश आनंद
राजनीति के जानकारों का कहना है, पार्टी ने अपनी चुनावी रणनीति में बहुत बदलाव किया है। आकाश उन युवा नेताओं में हैं, जिनकी सोशल मीडिया पर भी अपने समाज में अच्छी-खासी फैन फॉलोइंग है। आकाश स्ट्रैटजी और एनालिसिस पर फोकस करते हैं। बसपा में समाज के मूवमेंट को सोशल मीडिया के जरिए भी जन-जन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी आकाश आनंद के कंधों पर ही है। ऐसे में पार्टी का मानना है कि आकाश एक एनर्जेटिक लीडर के तौर पर सामने आ सकते हैं। युवाओं के बीच सोशल मीडिया के जरिए अच्छी पकड़ बना सकते हैं। चंद्रशेखर से मुकाबले के लिए मायावती के ट्रंप कार्ड हैं आकाश…
लोकसभा चुनाव में आजाद पार्टी के चंद्रशेखर भी बसपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हुए थे। पहले बसपा को ही दलित हितैषी पार्टी माना जाता था। अब चंद्रशेखर दलितों की आवाज उठा रहे हैं। वह यह साबित करने में जुटे हैं कि यूपी में आजाद समाज पार्टी ही दलितों की सच्ची हितैषी है। वरिष्ठ पत्रकार नवल कांत सिन्हा कहते हैं- चंद्रशेखर को काउंटर करने के लिए मायावती ने लोकसभा चुनाव से पहले आकाश आनंद को जिम्मेदारी दी थी। हालांकि चंद्रशेखर ने नगीना लोकसभा सीट से जीत हासिल की। अब मायावती ने चंद्रशेखर से मुकाबले के लिए फिर आकाश आनंद को ट्रंप कार्ड बनाया है। वह आकाश के जरिए युवाओं के बीच पकड़ बनाना चाहती हैं। मैसेज देना चाहती हैं कि बसपा ही दलितों की सच्ची हितैषी है। तीन बड़ी वजह, क्यों बदलनी पड़ी मायावती को रणनीति… 1- बसपा संदेश देना चाहती है, उसने मैदान नहीं छोड़ा
बसपा में कार्यकर्ताओं से मिली रिपोर्ट के आधार पर संगठन के काम से जुड़े लोगों को हटाया-बैठाया जा रहा है। इससे पार्टी अपने कोर मतदाताओं को यह संदेश देना चाहती है कि उसने अभी मैदान नहीं छोड़ा है। आज भी उनके मुद्दों के लिए संघर्ष कर रही है। उन्हें उठा रही है। चाहे SC-ST के आरक्षण की बात हो या फिर महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा। बसपा को उम्मीद है, वोटर उसके पास लौट आएंगे जो सपा और कांग्रेस के पाले में चले गए हैं। 2- आरक्षण के मुद्दे के साथ दलितों का विश्वास जीतना
यूपी में बसपा को भाजपा से ज्यादा नुकसान कांग्रेस और सपा के गठबंधन ने पहुंचाया। बीते लोकसभा चुनाव में इंडी गठबंधन ने ‘आरक्षण’ और ‘संविधान पर खतरा’ को मुद्दा बनाया। दोनों दलों ने कहा, अगर भाजपा फिर सत्ता में आई तो आरक्षण और संविधान दोनों को खत्म कर देगी। ये दोनों मुद्दे दलितों के दिल के करीब हैं। कांग्रेस और सपा की इस कोशिश का उन्हें फायदा भी मिला। जब परिणाम आया, तो दोनों ने यूपी की 80 में 43 सीटों पर कब्जा जमा लिया। संविधान और आरक्षण को मुद्दा बनाने से दलितों के एक बड़े तबके का वोट सपा-कांग्रेस की ओर चला गया। यूपी में दलितों की आबादी 20 फीसदी से ज्यादा है। इसे बसपा का कोर वोट बैंक माना जाता है। लेकिन, यही वोट बैंक धीरे-धीरे उसके हाथ से खिसकता जा रहा है। उसी को वापस पाने में बसपा जुटी है। 3- टिकट बांटने की रणनीति में बदलाव
बसपा ने पिछले कुछ चुनावों में मुसलमानों को टिकट देने में काफी उदारता बरती, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। यही वजह है, बसपा ने अब टिकट बांटने की अपनी रणनीति में बदलाव किया है। यह उपचुनाव में दिख भी रहा है। उसने उपचुनाव के लिए अब तक 5 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं। सिर्फ एक मुस्लिम को उम्मीदवार बनाया है। इसके जरिए पार्टी ने मुसलमानों को कम टिकट देने के संकेत दिए हैं। उपचुनाव में मिल्कीपुर सबसे हॉट सीट मानी जा रही है। यह फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत आती है। सपा के अवधेश प्रसाद ने लोकसभा चुनाव में फैजाबाद सीट से जीत दर्ज की। उनकी इस जीत की चर्चा देश और दुनिया में हुई। उपचुनाव में बसपा ने मिल्कीपुर में अपने पुराने कार्यकर्ता राजकुमार कोरी पर भरोसा जताया है। वहीं, मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट पर बसपा ने चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के नेता शाह नजर को तोड़कर अपना उम्मीदवार बनाया। मझवां सीट से बसपा सुप्रीमो ने ब्राह्मण चेहरे दीपू तिवारी पर भरोसा जताया। अंबेडकर नगर की कटेहरी विधानसभा से कुर्मी चेहरे के तौर पर अमित वर्मा और फूलपुर से शिव बरन पासी को मैदान में उतारा है। क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल कहते हैं- बसपा में सेकेंड लाइन ऑफ लीडरशिप कभी बन नहीं पाई। या यूं कहें राजनीतिक फैसले लेने का होल्ड मायावती अपने हाथ में रखना चाहती थीं। यही वजह रही कि कुछ सीनियर नेता पार्टी से निकलते गए। मायावती ने जब आकाश को उत्तराधिकारी बनाया तो यह बात और साफ हो गई कि वह दूसरे लोगों पर ज्यादा भरोसा नहीं करती हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान आकाश के बयान पर हंगामा मचा था, जिसकी वजह से उन्हें हटाया गया। लेकिन, पार्टी देश और प्रदेश में हाशिए पर आ गई। ऐसे में पार्टी ने कोई बड़ा डिसीजन नहीं लिया, तो और भी मुश्किल हो जाएगी। आकाश का नाम फिर आगे कर मायावती ने सभी नेताओं के संशय को हमेशा के लिए दूर कर दिया। पार्टी के सीनियर नेताओं को भी साफ हो गया है कि उन्हें मायावती और आकाश आनंद के निर्देशों पर ही काम करना होगा। वरिष्ठ पत्रकार नवल कांत सिन्हा कहते हैं- आकाश आनंद को आगे करने के पीछे कई कारण हैं। बसपा लगातार असफलता झेल रही है। काफी समय से चर्चा चल रही थी कि फेस चेंज होना चाहिए। चंद्रशेखर दलितों का बड़ा नेता बनकर उभरे हैं। ऐसे में पार्टी को एक यूथ की जरूरत थी। बसपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया- आकाश आनंद ही बसपा के भविष्य हैं। फिर से यूथ के बीच में अपनी पकड़ बनाने के लिए मायावती ने उन्हें उत्तराधिकारी के तौर पर जिम्मेदारियां सौंपी हैं। यह खबर भी पढ़ें मायावती 5 साल और बसपा अध्यक्ष रहेंगी; भतीजे आकाश आनंद का कद बढ़ाया, 4 राज्यों का चुनाव प्रभारी बनाया मायावती एक बार फिर बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गई हैं। वह अगले 5 साल तक यानी 2029 तक पार्टी की मुखिया रहेंगी। भतीजे आकाश आनंद का भी पार्टी में कद बढ़ाया गया है। उनको 4 चुनावी राज्यों की जिम्मेदारी दी गई है। पढ़ें पूरी खबर बसपा सुप्रीमो मायावती ने उपचुनाव में पूरी ताकत झोंक रखी है। रोज नए फैसले ले रही हैं। बसपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भतीजे आकाश आनंद का कद बढ़ा दिया। यूपी में होने वाले उपचुनाव में उन्होंने आकाश को सभी 10 सीटों की जिम्मेदारी दी। साथ ही आकाश को हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव का प्रभारी भी बनाया। आकाश की अब उन सभी पदों पर वापसी हो गई, जिनसे उन्हें लोकसभा चुनाव के दौरान हटाया गया था। बैठक में मायावती ने पदाधिकारियों के सामने ऐलान किया, उपचुनाव आकाश का कद और भविष्य दोनों तय करेंगे। मायावती ने साफ संकेत दिया कि उपचुनाव में पार्टी खाता खोलने में कामयाब हुई, तो आकाश को 2027 के विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसके बाद से आकाश अपनी पुरानी फॉर्म में लौट आए हैं। वह पार्टी की मशीनरी को दुरुस्त करने में लगे हैं। लोकसभा चुनाव में पार्टी के नंबर दो फेस आकाश आनंद को मायावती ने सभी दायित्व से हटा दिया था। चुनाव प्रचार के दौरान केंद्र और राज्य सरकार पर टिप्पणी के बाद बसपा सुप्रीमो ने यह कड़ा कदम उठाया था। उस समय उन्होंने कहा था- आकाश अभी मैच्योर नहीं हैं। अब आपको बताते हैं आकाश आनंद को क्यों मेन स्ट्रीम में वापस लाया गया… दलितों के साथ युवाओं को भी पार्टी से जोड़ने की कवायद
दलितों को लेकर मायावती की सोच थी, वे बसपा छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। पार्टी सुप्रीमो को यह सोच 2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में भारी पड़ी। पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। पार्टी के कई उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। मायावती को अब यह बात समझ में आ गई है कि दलित और युवा दोनों का साथ जरूरी है। इसी को देखते हुए उन्होंने एक बार फिर भतीजे को आगे किया। वह आकाश आनंद के जरिए अपने वोट बैंक से युवाओं को भी जोड़ना चाहती हैं। अखिलेश VS आकाश आनंद का नरेटिव सेट कर रहीं मायावती
बसपा सुप्रीमो मायावती को अहसास हो चुका है कि पार्टी को फिर से मुख्य धारा में लाने के लिए युवाओं का साथ होना जरूरी है। यही वजह है, आकाश आनंद को एक बार फिर से मेन स्ट्रीम में वापस लाया गया। सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुकाबले की बात की जाए, तो बसपा से आकाश आनंद सबसे युवा और पढ़े-लिखे लीडर के तौर पर जाने जाते हैं। मायावती अपने भतीजे को आगे कर अखिलेश VS आकाश का नरेटिव सेट करना चाहती हैं। वह जानती हैं, पार्टी को फिर से मजबूत करने के लिए दलित वर्ग के युवाओं का साथ जरूरी है। यही वजह है, मायावती ने आकाश आनंद को उनके सभी अधिकार वापस कर दिए। ताकि पार्टी एक बार फिर से बूथ लेवल तक युवाओं के बीच में अपनी पहुंच बना सके। स्ट्रैटजी और एनालिसिस पर फोकस करते हैं आकाश आनंद
राजनीति के जानकारों का कहना है, पार्टी ने अपनी चुनावी रणनीति में बहुत बदलाव किया है। आकाश उन युवा नेताओं में हैं, जिनकी सोशल मीडिया पर भी अपने समाज में अच्छी-खासी फैन फॉलोइंग है। आकाश स्ट्रैटजी और एनालिसिस पर फोकस करते हैं। बसपा में समाज के मूवमेंट को सोशल मीडिया के जरिए भी जन-जन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी आकाश आनंद के कंधों पर ही है। ऐसे में पार्टी का मानना है कि आकाश एक एनर्जेटिक लीडर के तौर पर सामने आ सकते हैं। युवाओं के बीच सोशल मीडिया के जरिए अच्छी पकड़ बना सकते हैं। चंद्रशेखर से मुकाबले के लिए मायावती के ट्रंप कार्ड हैं आकाश…
लोकसभा चुनाव में आजाद पार्टी के चंद्रशेखर भी बसपा के लिए बड़ी चुनौती साबित हुए थे। पहले बसपा को ही दलित हितैषी पार्टी माना जाता था। अब चंद्रशेखर दलितों की आवाज उठा रहे हैं। वह यह साबित करने में जुटे हैं कि यूपी में आजाद समाज पार्टी ही दलितों की सच्ची हितैषी है। वरिष्ठ पत्रकार नवल कांत सिन्हा कहते हैं- चंद्रशेखर को काउंटर करने के लिए मायावती ने लोकसभा चुनाव से पहले आकाश आनंद को जिम्मेदारी दी थी। हालांकि चंद्रशेखर ने नगीना लोकसभा सीट से जीत हासिल की। अब मायावती ने चंद्रशेखर से मुकाबले के लिए फिर आकाश आनंद को ट्रंप कार्ड बनाया है। वह आकाश के जरिए युवाओं के बीच पकड़ बनाना चाहती हैं। मैसेज देना चाहती हैं कि बसपा ही दलितों की सच्ची हितैषी है। तीन बड़ी वजह, क्यों बदलनी पड़ी मायावती को रणनीति… 1- बसपा संदेश देना चाहती है, उसने मैदान नहीं छोड़ा
बसपा में कार्यकर्ताओं से मिली रिपोर्ट के आधार पर संगठन के काम से जुड़े लोगों को हटाया-बैठाया जा रहा है। इससे पार्टी अपने कोर मतदाताओं को यह संदेश देना चाहती है कि उसने अभी मैदान नहीं छोड़ा है। आज भी उनके मुद्दों के लिए संघर्ष कर रही है। उन्हें उठा रही है। चाहे SC-ST के आरक्षण की बात हो या फिर महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा। बसपा को उम्मीद है, वोटर उसके पास लौट आएंगे जो सपा और कांग्रेस के पाले में चले गए हैं। 2- आरक्षण के मुद्दे के साथ दलितों का विश्वास जीतना
यूपी में बसपा को भाजपा से ज्यादा नुकसान कांग्रेस और सपा के गठबंधन ने पहुंचाया। बीते लोकसभा चुनाव में इंडी गठबंधन ने ‘आरक्षण’ और ‘संविधान पर खतरा’ को मुद्दा बनाया। दोनों दलों ने कहा, अगर भाजपा फिर सत्ता में आई तो आरक्षण और संविधान दोनों को खत्म कर देगी। ये दोनों मुद्दे दलितों के दिल के करीब हैं। कांग्रेस और सपा की इस कोशिश का उन्हें फायदा भी मिला। जब परिणाम आया, तो दोनों ने यूपी की 80 में 43 सीटों पर कब्जा जमा लिया। संविधान और आरक्षण को मुद्दा बनाने से दलितों के एक बड़े तबके का वोट सपा-कांग्रेस की ओर चला गया। यूपी में दलितों की आबादी 20 फीसदी से ज्यादा है। इसे बसपा का कोर वोट बैंक माना जाता है। लेकिन, यही वोट बैंक धीरे-धीरे उसके हाथ से खिसकता जा रहा है। उसी को वापस पाने में बसपा जुटी है। 3- टिकट बांटने की रणनीति में बदलाव
बसपा ने पिछले कुछ चुनावों में मुसलमानों को टिकट देने में काफी उदारता बरती, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। यही वजह है, बसपा ने अब टिकट बांटने की अपनी रणनीति में बदलाव किया है। यह उपचुनाव में दिख भी रहा है। उसने उपचुनाव के लिए अब तक 5 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं। सिर्फ एक मुस्लिम को उम्मीदवार बनाया है। इसके जरिए पार्टी ने मुसलमानों को कम टिकट देने के संकेत दिए हैं। उपचुनाव में मिल्कीपुर सबसे हॉट सीट मानी जा रही है। यह फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत आती है। सपा के अवधेश प्रसाद ने लोकसभा चुनाव में फैजाबाद सीट से जीत दर्ज की। उनकी इस जीत की चर्चा देश और दुनिया में हुई। उपचुनाव में बसपा ने मिल्कीपुर में अपने पुराने कार्यकर्ता राजकुमार कोरी पर भरोसा जताया है। वहीं, मुजफ्फरनगर की मीरापुर सीट पर बसपा ने चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के नेता शाह नजर को तोड़कर अपना उम्मीदवार बनाया। मझवां सीट से बसपा सुप्रीमो ने ब्राह्मण चेहरे दीपू तिवारी पर भरोसा जताया। अंबेडकर नगर की कटेहरी विधानसभा से कुर्मी चेहरे के तौर पर अमित वर्मा और फूलपुर से शिव बरन पासी को मैदान में उतारा है। क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल कहते हैं- बसपा में सेकेंड लाइन ऑफ लीडरशिप कभी बन नहीं पाई। या यूं कहें राजनीतिक फैसले लेने का होल्ड मायावती अपने हाथ में रखना चाहती थीं। यही वजह रही कि कुछ सीनियर नेता पार्टी से निकलते गए। मायावती ने जब आकाश को उत्तराधिकारी बनाया तो यह बात और साफ हो गई कि वह दूसरे लोगों पर ज्यादा भरोसा नहीं करती हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान आकाश के बयान पर हंगामा मचा था, जिसकी वजह से उन्हें हटाया गया। लेकिन, पार्टी देश और प्रदेश में हाशिए पर आ गई। ऐसे में पार्टी ने कोई बड़ा डिसीजन नहीं लिया, तो और भी मुश्किल हो जाएगी। आकाश का नाम फिर आगे कर मायावती ने सभी नेताओं के संशय को हमेशा के लिए दूर कर दिया। पार्टी के सीनियर नेताओं को भी साफ हो गया है कि उन्हें मायावती और आकाश आनंद के निर्देशों पर ही काम करना होगा। वरिष्ठ पत्रकार नवल कांत सिन्हा कहते हैं- आकाश आनंद को आगे करने के पीछे कई कारण हैं। बसपा लगातार असफलता झेल रही है। काफी समय से चर्चा चल रही थी कि फेस चेंज होना चाहिए। चंद्रशेखर दलितों का बड़ा नेता बनकर उभरे हैं। ऐसे में पार्टी को एक यूथ की जरूरत थी। बसपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया- आकाश आनंद ही बसपा के भविष्य हैं। फिर से यूथ के बीच में अपनी पकड़ बनाने के लिए मायावती ने उन्हें उत्तराधिकारी के तौर पर जिम्मेदारियां सौंपी हैं। यह खबर भी पढ़ें मायावती 5 साल और बसपा अध्यक्ष रहेंगी; भतीजे आकाश आनंद का कद बढ़ाया, 4 राज्यों का चुनाव प्रभारी बनाया मायावती एक बार फिर बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनी गई हैं। वह अगले 5 साल तक यानी 2029 तक पार्टी की मुखिया रहेंगी। भतीजे आकाश आनंद का भी पार्टी में कद बढ़ाया गया है। उनको 4 चुनावी राज्यों की जिम्मेदारी दी गई है। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर