‘वेस्ट यूपी अलग राज्य बने, ये मांग नहीं जरूरत है। बात पूरब-पश्चिम की नहीं, जनसुविधाओं और विकास की है। इसमें पूरब-पश्चिम और जाति-धर्म की लड़ाई न हो, बैठकर बात की जाए और इस मांग को पूरा किया जाए। मैं सरकार तक इस बात को पहुंचाऊंगा।’ पूर्व भाजपा सांसद संजीव बालियान के 9 सितंबर को दिए इस बयान ने एक बार फिर यूपी के विभाजन मुद्दे को हवा दे दी। किसान नेता भी उनके समर्थन में उतर आए हैं। नरेश टिकैत ने तो राज्य को चार हिस्सों में बांटने तक की वकालत कर दी। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी राज्य को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव विधानसभा में दिया था। भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कब-कब ऐसी मांग उठती रही। सियासी दलों का इसे लेकर क्या स्टैंड रहा? कितनी संभावना है बंटवारे की? पहले जानिए बालियान का ‘वेस्ट यूपी-अलग राज्य’ को लेकर तर्क
संजीव बालियान का तर्क है, यूपी सबसे बड़ा राज्य है जिसकी आबादी करीब 25 करोड़ है। आकार की वजह से अन्य राज्यों की तुलना में ये पिछड़ा है। इसके विभाजन से यूपी और पश्चिमी यूपी दोनों को फायदा होगा। पश्चिमी यूपी को अलग राज्य बनाए जाने से यहां जनसुविधाएं बढ़ेंगी। क्षेत्र का विकास होगा। बालियान यहीं नहीं रुके, उन्होंने ये तक कहा कि तेलंगाना एवं उत्तराखंड की तरह युवाओं को आंदोलन के लिए आगे आना होगा। युवा जुड़ेंगे, तो पश्चिम प्रदेश अलग बनेगा। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है, जब उन्होंने पश्चिमी यूपी को अलग राज्य बनाए जाने की मांग उठाई। 2023 में भी उन्होंने ऐसा ही बयान दिया था। तब बलियान ने कहा था, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आबादी 8 करोड़ है। हाईकोर्ट यहां से 750 किलोमीटर दूर है। इसलिए यह मांग पूरी तरह से जायज है। पश्चिमी यूपी अलग राज्य बनना चाहिए। मेरठ को इसकी राजधानी बनाना चाहिए। बालियान के बयान पर भाजपा का क्या स्टैंड?
संजीव बालियान का अलग राज्य को लेकर बयान कुछ भी हो, लेकिन पार्टी इससे इत्तेफाक नहीं रखती। बालियान के बयान पर सरधना के पूर्व विधायक संगीत सोम ने साफ किया, ये पार्टी का मुद्दा नहीं। ये उनका व्यक्तिगत एजेंडा हो सकता है। इसके लिए तर्क ये दिया कि पार्टी का मुद्दा होता तो आधिकारिक बयान आता। मायावती ने दिया था यूपी को 4 भाग में बांटने का प्रपोजल
बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अप्रैल 2024 में कहा था कि अगर उनकी पार्टी केंद्र में सत्ता में आती है, तो पश्चिमी यूपी को अलग राज्य बनाने के लिए ठोस कदम उठाएगी। ऐसा पहली बार नहीं था, जब मायावती ने यूपी के विभाजन को लेकर बयान दिया था। मायावती यूपी को चार राज्यों में बांटने की वकालत कर चुकी हैं। वह जब 2011 में मुख्यमंत्री थीं, तब प्रदेश को 4 भागों में बांटने का प्रस्ताव विधानसभा में लाई थीं। इसके मुताबिक, संपूर्ण यूपी को हरित प्रदेश (पश्चिमी भाग), अवध प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल में बांटा जाना था। मायावती के ब्लूप्रिंट के मुताबिक, पूर्वांचल में गोरखपुर समेत राज्य के 22 पूर्वी जिले शामिल होंगे। राजधानी लखनऊ अवध प्रदेश का हिस्सा होगा। पश्चिम प्रदेश या हरित प्रदेश में मेरठ और गाजियाबाद शामिल होंगे और बुंदेलखंड में सात जिले होंगे। सपा ने ‘अखंड उत्तर प्रदेश’ का नारा दिया
मायावती के इस प्रस्ताव का विधानसभा में सपा ने विरोध किया। भाजपा, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सपा का साथ दिया। बाद में ‘अखंड उत्तर प्रदेश’ का नारा बुलंद करने वाली सपा की सरकार बनी। तब से किसी भी पार्टी ने खुलकर इस मुद्दे को उठाने की हिम्मत नहीं की। हालांकि, आजाद समाज पार्टी के नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने संसद में इस मुद्दे को उठाया था। प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन का कहना है- पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इस संबंध में एक बार प्रस्ताव रखा था। लेकिन, उसके बाद किसी सरकार ने इस बारे में कोई बात नहीं की। पहले जब टेक्नोलॉजी नहीं थी और यातायात के इतने साधन नहीं थे, तब कहा जाता था कि बड़ा राज्य होने के कारण योजनाओं की मॉनिटरिंग नहीं हो पाती। अफसर समय पर लखनऊ बैठक में नहीं पहुंच पाते, डाक पहुंचने में समय लगता है। लेकिन, अब टेक्नोलॉजी बहुत आगे हो गई है। वीडियो कॉन्फ्रेंस से मीटिंग आसान हो गई है। वॉट्सऐप से पत्र एक पल में पहुंच जाते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि यूपी के टुकड़े कर छोटे राज्य बनाने की कोई जरूरत नहीं है। पहले झारखंड, छत्तीसगढ़ या उत्तराखंड जो छोटे राज्य बने, उनमें भी कोई खास विकास देखने को नहीं मिला। कितनी संभावना है बंटवारे की?
सितंबर, 2019 में सोशल मीडिया पर एक लिस्ट वायरल हुई। इसमें दावा किया गया कि यूपी को तीन राज्यों में बांटा जाने वाला है। इनका नाम होगा उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल। पहले की राजधानी लखनऊ, दूसरे की प्रयागराज और तीसरे की गोरखपुर होगी। उस समय योगी सरकार ने साफ किया था कि उत्तर प्रदेश के बंटवारे की कोई योजना नहीं है। यूपी सरकार के सामने इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं है। सोशल मीडिया पर इससे संबंधित जो भी खबरें घूम रही हैं, वो फर्जी हैं। लोग ऐसी अफवाहों पर ध्यान न दें। वहीं, गृह मंत्रालय की ओर से एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक मीडिया ग्रुप से बात करते हुए इनकार किया था कि यूपी के बंटवारे की कोई योजना बनाई गई है। उन्होंने कहा था, केंद्र सरकार के सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं आया है। सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही लिस्ट फर्जी है। प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव अतुल गुप्ता का कहना है- यूपी के टुकड़े कर पहले पश्चिमी यूपी और बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की राजनीतिक मांग होती रही है। लेकिन, मेरा मानना है कि पश्चिमी यूपी को यदि अलग राज्य बनाया जाता है तो पश्चिमी यूपी को तो फायदा होगा। लेकिन, बुंदेलखंड और पूर्वांचल के पिछड़े क्षेत्र को नुकसान हो सकता है। पूर्वांचल और बुंदेलखंड को तभी फायदा होगा, जब केंद्र सरकार उनके लिए कोई विशेष आर्थिक पैकेज दे। वैसे यूपी के टुकड़े कर छोटे राज्य बनाने की फिलहाल कोई आवश्यकता नजर नहीं आ रही है। यूपी का क्या इतिहास?
देश को आजादी मिलने से पहले राज्य में प्रांत शामिल थे, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत’ कहा जाता था। भारत सरकार अधिनियम 1935 से इसे छोटा करके संयुक्त प्रांत (United Provinces) कर दिया गया। बाद में इसका नाम बदलकर उत्तर प्रदेश कर दिया गया (क्योंकि ‘प्रांत’ शब्द गणतंत्र के विचार के साथ फिट नहीं बैठता था)। 9 नवंबर, 2000 को हुआ था विभाजन
यूपी का पहला विभाजन 9 नवंबर, 2000 को हुआ। 51,125 वर्ग किमी क्षेत्र अलग कर उत्तरांचल देश का 27वां राज्य बना। जनवरी, 2007 में नए राज्य ने अपना नाम बदलकर उत्तराखंड कर लिया। विभाजन के पीछे बड़ी वजह बेरोजगारी, पीने के पानी की समस्या, गरीबी थी। यही वजह थी कि यहां के लोगों ने अलग राज्य की मांग उठाई। 1990 में इस मांग ने जोर पकड़ा। अक्टूबर, 1994 में मुजफ्फरनगर में इसे लेकर हुए प्रदर्शन में पुलिस की गोलीबारी में 40 लोग मारे गए। बाद में 24 सितंबर, 1998 को उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक पारित किया। फिर भारत सरकार ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 पारित किया। इसके बाद 9 नवंबर, 2000 को उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य बना। ये भी पढ़ें… योगी से ज्यादा मुलायम सरकार में हुए एनकाउंटर; अखिलेश STF को बता रहे- सरेआम ठोको फोर्स ‘सरेआम ठोको फोर्स’ में तैनात लोगों का आंकड़ा बता रहा है कि ये तथाकथित ‘विशेष कार्य बल’ (विकाब) कुछ बलशाली कृपा-प्राप्त लोगों का ‘व्यक्तिगत बल’ बनकर रह गया है ‘योगी जी अपनी STF को जान लें। लोग तो यहां तक चर्चा कर रहे कि STF का मतलब- स्पेशल ठाकुर फोर्स है। STF क्या दिखाना चाहती है? कोई अपराधी है तो उसके लिए न्यायालय है। ‘ ये दोनों बयान STF को टारगेट करते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दिए हैं। पढ़ें पूरी खबर… ‘वेस्ट यूपी अलग राज्य बने, ये मांग नहीं जरूरत है। बात पूरब-पश्चिम की नहीं, जनसुविधाओं और विकास की है। इसमें पूरब-पश्चिम और जाति-धर्म की लड़ाई न हो, बैठकर बात की जाए और इस मांग को पूरा किया जाए। मैं सरकार तक इस बात को पहुंचाऊंगा।’ पूर्व भाजपा सांसद संजीव बालियान के 9 सितंबर को दिए इस बयान ने एक बार फिर यूपी के विभाजन मुद्दे को हवा दे दी। किसान नेता भी उनके समर्थन में उतर आए हैं। नरेश टिकैत ने तो राज्य को चार हिस्सों में बांटने तक की वकालत कर दी। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी राज्य को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव विधानसभा में दिया था। भास्कर एक्सप्लेनर में जानेंगे कब-कब ऐसी मांग उठती रही। सियासी दलों का इसे लेकर क्या स्टैंड रहा? कितनी संभावना है बंटवारे की? पहले जानिए बालियान का ‘वेस्ट यूपी-अलग राज्य’ को लेकर तर्क
संजीव बालियान का तर्क है, यूपी सबसे बड़ा राज्य है जिसकी आबादी करीब 25 करोड़ है। आकार की वजह से अन्य राज्यों की तुलना में ये पिछड़ा है। इसके विभाजन से यूपी और पश्चिमी यूपी दोनों को फायदा होगा। पश्चिमी यूपी को अलग राज्य बनाए जाने से यहां जनसुविधाएं बढ़ेंगी। क्षेत्र का विकास होगा। बालियान यहीं नहीं रुके, उन्होंने ये तक कहा कि तेलंगाना एवं उत्तराखंड की तरह युवाओं को आंदोलन के लिए आगे आना होगा। युवा जुड़ेंगे, तो पश्चिम प्रदेश अलग बनेगा। हालांकि ऐसा पहली बार नहीं है, जब उन्होंने पश्चिमी यूपी को अलग राज्य बनाए जाने की मांग उठाई। 2023 में भी उन्होंने ऐसा ही बयान दिया था। तब बलियान ने कहा था, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आबादी 8 करोड़ है। हाईकोर्ट यहां से 750 किलोमीटर दूर है। इसलिए यह मांग पूरी तरह से जायज है। पश्चिमी यूपी अलग राज्य बनना चाहिए। मेरठ को इसकी राजधानी बनाना चाहिए। बालियान के बयान पर भाजपा का क्या स्टैंड?
संजीव बालियान का अलग राज्य को लेकर बयान कुछ भी हो, लेकिन पार्टी इससे इत्तेफाक नहीं रखती। बालियान के बयान पर सरधना के पूर्व विधायक संगीत सोम ने साफ किया, ये पार्टी का मुद्दा नहीं। ये उनका व्यक्तिगत एजेंडा हो सकता है। इसके लिए तर्क ये दिया कि पार्टी का मुद्दा होता तो आधिकारिक बयान आता। मायावती ने दिया था यूपी को 4 भाग में बांटने का प्रपोजल
बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अप्रैल 2024 में कहा था कि अगर उनकी पार्टी केंद्र में सत्ता में आती है, तो पश्चिमी यूपी को अलग राज्य बनाने के लिए ठोस कदम उठाएगी। ऐसा पहली बार नहीं था, जब मायावती ने यूपी के विभाजन को लेकर बयान दिया था। मायावती यूपी को चार राज्यों में बांटने की वकालत कर चुकी हैं। वह जब 2011 में मुख्यमंत्री थीं, तब प्रदेश को 4 भागों में बांटने का प्रस्ताव विधानसभा में लाई थीं। इसके मुताबिक, संपूर्ण यूपी को हरित प्रदेश (पश्चिमी भाग), अवध प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल में बांटा जाना था। मायावती के ब्लूप्रिंट के मुताबिक, पूर्वांचल में गोरखपुर समेत राज्य के 22 पूर्वी जिले शामिल होंगे। राजधानी लखनऊ अवध प्रदेश का हिस्सा होगा। पश्चिम प्रदेश या हरित प्रदेश में मेरठ और गाजियाबाद शामिल होंगे और बुंदेलखंड में सात जिले होंगे। सपा ने ‘अखंड उत्तर प्रदेश’ का नारा दिया
मायावती के इस प्रस्ताव का विधानसभा में सपा ने विरोध किया। भाजपा, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सपा का साथ दिया। बाद में ‘अखंड उत्तर प्रदेश’ का नारा बुलंद करने वाली सपा की सरकार बनी। तब से किसी भी पार्टी ने खुलकर इस मुद्दे को उठाने की हिम्मत नहीं की। हालांकि, आजाद समाज पार्टी के नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद ने संसद में इस मुद्दे को उठाया था। प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन का कहना है- पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने इस संबंध में एक बार प्रस्ताव रखा था। लेकिन, उसके बाद किसी सरकार ने इस बारे में कोई बात नहीं की। पहले जब टेक्नोलॉजी नहीं थी और यातायात के इतने साधन नहीं थे, तब कहा जाता था कि बड़ा राज्य होने के कारण योजनाओं की मॉनिटरिंग नहीं हो पाती। अफसर समय पर लखनऊ बैठक में नहीं पहुंच पाते, डाक पहुंचने में समय लगता है। लेकिन, अब टेक्नोलॉजी बहुत आगे हो गई है। वीडियो कॉन्फ्रेंस से मीटिंग आसान हो गई है। वॉट्सऐप से पत्र एक पल में पहुंच जाते हैं। इसलिए मेरा मानना है कि यूपी के टुकड़े कर छोटे राज्य बनाने की कोई जरूरत नहीं है। पहले झारखंड, छत्तीसगढ़ या उत्तराखंड जो छोटे राज्य बने, उनमें भी कोई खास विकास देखने को नहीं मिला। कितनी संभावना है बंटवारे की?
सितंबर, 2019 में सोशल मीडिया पर एक लिस्ट वायरल हुई। इसमें दावा किया गया कि यूपी को तीन राज्यों में बांटा जाने वाला है। इनका नाम होगा उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल। पहले की राजधानी लखनऊ, दूसरे की प्रयागराज और तीसरे की गोरखपुर होगी। उस समय योगी सरकार ने साफ किया था कि उत्तर प्रदेश के बंटवारे की कोई योजना नहीं है। यूपी सरकार के सामने इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं है। सोशल मीडिया पर इससे संबंधित जो भी खबरें घूम रही हैं, वो फर्जी हैं। लोग ऐसी अफवाहों पर ध्यान न दें। वहीं, गृह मंत्रालय की ओर से एक वरिष्ठ अधिकारी ने एक मीडिया ग्रुप से बात करते हुए इनकार किया था कि यूपी के बंटवारे की कोई योजना बनाई गई है। उन्होंने कहा था, केंद्र सरकार के सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं आया है। सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही लिस्ट फर्जी है। प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव अतुल गुप्ता का कहना है- यूपी के टुकड़े कर पहले पश्चिमी यूपी और बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की राजनीतिक मांग होती रही है। लेकिन, मेरा मानना है कि पश्चिमी यूपी को यदि अलग राज्य बनाया जाता है तो पश्चिमी यूपी को तो फायदा होगा। लेकिन, बुंदेलखंड और पूर्वांचल के पिछड़े क्षेत्र को नुकसान हो सकता है। पूर्वांचल और बुंदेलखंड को तभी फायदा होगा, जब केंद्र सरकार उनके लिए कोई विशेष आर्थिक पैकेज दे। वैसे यूपी के टुकड़े कर छोटे राज्य बनाने की फिलहाल कोई आवश्यकता नजर नहीं आ रही है। यूपी का क्या इतिहास?
देश को आजादी मिलने से पहले राज्य में प्रांत शामिल थे, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत’ कहा जाता था। भारत सरकार अधिनियम 1935 से इसे छोटा करके संयुक्त प्रांत (United Provinces) कर दिया गया। बाद में इसका नाम बदलकर उत्तर प्रदेश कर दिया गया (क्योंकि ‘प्रांत’ शब्द गणतंत्र के विचार के साथ फिट नहीं बैठता था)। 9 नवंबर, 2000 को हुआ था विभाजन
यूपी का पहला विभाजन 9 नवंबर, 2000 को हुआ। 51,125 वर्ग किमी क्षेत्र अलग कर उत्तरांचल देश का 27वां राज्य बना। जनवरी, 2007 में नए राज्य ने अपना नाम बदलकर उत्तराखंड कर लिया। विभाजन के पीछे बड़ी वजह बेरोजगारी, पीने के पानी की समस्या, गरीबी थी। यही वजह थी कि यहां के लोगों ने अलग राज्य की मांग उठाई। 1990 में इस मांग ने जोर पकड़ा। अक्टूबर, 1994 में मुजफ्फरनगर में इसे लेकर हुए प्रदर्शन में पुलिस की गोलीबारी में 40 लोग मारे गए। बाद में 24 सितंबर, 1998 को उत्तर प्रदेश विधानसभा और विधान परिषद ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक पारित किया। फिर भारत सरकार ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2000 पारित किया। इसके बाद 9 नवंबर, 2000 को उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य बना। ये भी पढ़ें… योगी से ज्यादा मुलायम सरकार में हुए एनकाउंटर; अखिलेश STF को बता रहे- सरेआम ठोको फोर्स ‘सरेआम ठोको फोर्स’ में तैनात लोगों का आंकड़ा बता रहा है कि ये तथाकथित ‘विशेष कार्य बल’ (विकाब) कुछ बलशाली कृपा-प्राप्त लोगों का ‘व्यक्तिगत बल’ बनकर रह गया है ‘योगी जी अपनी STF को जान लें। लोग तो यहां तक चर्चा कर रहे कि STF का मतलब- स्पेशल ठाकुर फोर्स है। STF क्या दिखाना चाहती है? कोई अपराधी है तो उसके लिए न्यायालय है। ‘ ये दोनों बयान STF को टारगेट करते हुए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दिए हैं। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर