20 फरवरी को प्रदेश का बजट पेश होगा। इस बार बजट का आकार करीब 8.50 लाख करोड़ रहने का अनुमान है। बजट किसी भी सरकार की आर्थिक नीति का विश्लेषण है कि वह कितना जल्द डेवलपमेंट स्टेट बनना चाहता है। बजट इसका एक रोडमैप है। विशेषज्ञों की राय में उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को आगे बढ़ना है तो बजट में 3 सेक्टर कृषि, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) और कैपिटल स्ट्रक्चर पर फोकस करना चाहिए। तभी हम प्रदेश की अर्थव्यवस्था को अगले दो साल में 1 ट्रिलियन डालर तक ले जा पाएंगे। सवाल है, किसी राज्य का बजट कैसे तैयार होता है? कितने महीने पहले इसकी प्रक्रिया शुरू होती है? अलग-अलग विभागों को किस आधार पर राशि आवंटित होती है? बजट से प्रदेश के किसानों, व्यापारियों, महिलाएं, युवा, उद्योगपतियों और छोटे उद्योग-धंधों से जुड़े लोगों की अपेक्षाएं क्या हैं? उनके सुझाव, जिससे बजट समावेशी और विकासोन्मुखी बन पाए। दैनिक भास्कर ने अलग-अलग क्षेत्र के 7 एक्सपर्ट से चर्चा की। पढ़िए हमारी खास पहल बजट पर टॉक शो… 4 महीने पहले बजट बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन के मुताबिक, 1997-98 में वित्त सचिव रहते हुए दो बार बजट बनाने का अनुभव है। तब पहली बार विभाग के लोगों ने सीडी से बजट का एनालिसिस किया था। बजट की प्रक्रिया तीन-चार महीने पहले से शुरू हो जाती है। वित्त विभाग सबसे पहले अलग-अलग विभागों से प्रस्ताव मांगता है। प्रस्ताव देने वाले विभाग देखते हैं कि पिछले साल उनका क्या बजट था? उसमें कितना खर्च हुआ? प्रस्ताव में पिछले साल का बजट इस्टीमेट, रिवाइज इस्टीमेट और अगले साल का बजट इस्टीमेट शामिल रहता है। किसी भी बजट के लिए जरूरी होता है कि हमारे संसाधन क्या हैं? यूपी को आबादी के अनुसार केंद्र सरकार से लगभग 17 फीसदी राशि केंद्र के टैक्स पूल से मिलती है। दूसरा हमारे खुद के संसाधन क्या हैं? उसे बजट के अनुसार कैसे बढ़ाएं? पहले सेल्स टैक्स था, अब जीएसटी आ गया है। राज्य को उसका जीएसटी शेयर मिल जाता है। पिछले वित्त कमीशन की सिफारिश पर भारत सरकार ने राज्यों का टैक्स पूल 32 से बढ़ाकर 42 फीसदी कर दिया है। लेकिन, उन्होंने टैक्स पूल की राशि बढ़ाकर एक खेल कर दिया। पहले केंद्र की स्कीम को या तो खत्म कर दिया या फिर उसका अंशदान कम कर दिया। 2015-16 में इसकी वजह से यूपी को 8000 करोड़ रुपए कम मिले थे। बजट के लिए दूसरा संसाधन राज्य के टैक्सेस हैं। इससे कितना रेवन्यू मिल सकता है? दूसरे नॉन रेवन्यू वाले सेक्टर से कितना टैक्स और मिल सकता है? इसके लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया जाता है। इसके बाद आता है कि बजट में अलग-अलग विभागों को राशि कितनी दिया जाए। तो एफएआरबीएम (फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट) का एक्ट कहता है कि बजट बनाते समय फिजिकल डेफिसिटी 3 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इससे पता चलता है कि हम किस सीमा तक खर्च कर सकते हैं। इसके आधार पर विभागों को बजट आवंटित किया जाता है। सरकार के प्राथमिकता वाले सेक्टर का बजट बढ़ा दिया जाता है। वहीं दूसरे का सामान्य रखते हैं। प्रदेश की 46 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है। ऐसे में कृषि पर फोकस बढ़ाना होगा। दूसरा एमएसएमई सेक्टर है, जो रोजगार उपलब्ध कराते हैं। इसमें कई छोटे उद्योग बंद होते जा रहे हैं। ये नॉन फार्मर सेक्टर हैं और रजिस्टर्ड भी नहीं हैं। इसकी वजह से इन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा भी नहीं मिल रहा है। इसे बचाने के लिए सरकार को फोकस करना चाहिए। तीसरा कैपिटल स्ट्रक्चर पर फोकस करना चाहिए। बजट में इन्फ्रास्ट्रक्चर, पावर सेक्टर, पुल, सड़क, सिंचाई पर कितना खर्च कर रहे हैं? इस पर जितना खर्च करेंगे, उतना नया रोजगार मिलेगा। प्रदेश में आज भी सबसे ज्यादा रोजगार कृषि सेक्टर से मिल रहा है। इसके बावजूद कृषि यूपी सरकार बजट का लगभग 3 फीसदी ही खर्च करती है। किसान नेता हरनाम सिंह वर्मा के मुताबिक, किसान इस प्रदेश और देश की रीढ़ हैं। सबसे ज्यादा रोजगार कृषि में है, लेकिन दुर्भाग्य है कि इसके ही आंकड़े नहीं हैं। इस प्रदेश को खुशहाल करना है तो कृषि को बढ़ावा देना होगा। क्या कारण है कि एक दाने से 100 दाने गेहूं पैदा करने वाला किसान जान दे रहा है। लेकिन, उसके ही एक किलो गेहूं से 900 ग्राम का दलिया बनाकर बेचने वाला व्यापारी सुखी है। फर्क बस इतना है कि व्यापारी को उसकी कीमत तय करने का अधिकार है। किसान को अपनी उपज सरकार के समर्थन मूल्य पर बेचने की मजबूरी है। 1967 में 12 ग्राम सोने की कीमत 3 क्विंटल गेहूं के बराबर थी। तब 12 ग्राम का एक तोला होता था। 220 रुपए में एक तोला सोना मिल जाता था। आज क्या 3 क्विंटल गेहूं में कोई किसान एक तोला सोना खरीद सकता है? सरकार के अधीन काम करने वाले गन्ना शोध संस्थानों की रिपोर्ट है कि एक क्विंटल गन्ना पैदा करने की लागत 450 रुपए है। लेकिन, सरकार एक क्विंटल गन्ना की कीमत किसानों को 370 रुपए दे रही है। बिजली सेक्टर को बजट से क्या चाहिए
प्रदेश के 42 जिलों की बिजली को प्राइवेट सेक्टर के हाथों में देने की तैयारी है। देश में यूपी ऐसा इकलौता राज्य है, जहां अभी भी रोस्टर से बिजली दी जा रही है। कृषि को छोड़कर पूरे देश में 24 घंटे बिजली देने का कानून बन गया। लेकिन, अभी भी सबसे कम बिजली ग्रामीण क्षेत्रों को यूपी में मिल रही है। यूपी राज्य उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि पूरे देश में यूपी में सबसे कम प्रति व्यक्ति बिजली खपत 629 यूनिट है। जबकि देश में औसत प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 1300 यूनिट है। यूपी में कम बिजली खपत के दो ही कारण हैं। पहला या तो यहां के लोगों को जरूरत से कम बिजली मिल रही है या फिर बिजली महंगी मिल रही है। सरकार प्रदेश के बिजली सेक्टर को प्राइवेट हाथों में सौंपकर सुधारना चाहती है। जबकि इस तरह का प्रयास 2014-15 में हुआ था, जो फिजिबल रिपोर्ट के आधार पर खारिज कर दिया गया। बिजली का सुधार सार्वजनिक क्षेत्र में रखकर ही किया जा सकता है। तभी इस पर सरकार का नियंत्रण होगा। जब किसी व्यापारी के हाथों में बिजली होगी, तो उसका उद्देश्य सिर्फ फायदा कमाने पर रहेगा। प्रदेश में बिजली की खपत के अनुसार ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क ही नहीं है। ऐसे में इन दोनों सेक्टर में सुधार की जरूरत है। ये बिना सरकारी मदद के नहीं हो सकता। देश में 4.50 लाख मेगावाट बिजली की उपलब्धता है। जबकि मांग सिर्फ 2.50 लाख मेगावाट की है। इसके बावजूद हम लोगों को 24 घंटे बिजली नहीं दे पा रहे हैं। अवधेश कुमार वर्मा कहते हैं- प्रदेश के किसानों को हम फ्री बिजली देने का ढिंढोरा पीटते रहते हैं। जबकि सच्चाई ये है कि 1350 यूनिट से अधिक खपत पर सब्सिडी बंद करने का नियम बना रखा है। बजट से व्यापारियों को क्या है उम्मीद
केंद्र हो या राज्य सरकार, व्यापारियों का दर्द वो समझना ही नहीं चाहते। जबकि ई-कॉमर्स के चलते व्यापार सिमट रहा है। इंस्पेक्टर राज के चंगुल में व्यापारियों को इस कदर फंसा दिया गया है कि जीएसटी और इनकम टैक्स के अलावा उन्हें वर्तमान में 19 तरीके के टैक्स देने पड़ रहे हैं। लखनऊ व्यापार मंडल के अध्यक्ष अमरनाथ मिश्रा के मुताबिक, व्यापारियों को प्रोत्साहन नहीं देंगे तो वह माइग्रेट कर जाएगा। राज्य का राजस्व घट जाएगा। इस प्रदेश की सच्चाई ये है कि यहां व्यवसायिक प्रोडक्शन महज 5 फीसदी है। 95 फीसदी माल बाहर के राज्य से आता है। यूपी में सिर्फ ट्रेडिंग अधिक होती है। ऑनलाइन व्यापार के चलते खुदरा व्यापार डूब रहा है। कृषि के बाद व्यापार सेक्टर ही ऐसा है, जहां सबसे अधिक रोजगार मिल सकता है। आलम यह है कि एक दवा की दुकान में फूड सप्लीमेंट रखकर बेचना हो तो उसे अलग से फूड सेफ्टी लाइसेंस लेना पड़ता है। क्या व्यापारी एक ही पोर्टल से ईज ऑफ डूइंग बिजनेस नहीं कर सकता? आदर्श व्यापार मंडल के अध्यक्ष संजय गुप्ता के मुताबिक, जीएसटी देने वाले व्यापारियों का 10 लाख का दुर्घटना बीमा मिलता है। सरकार को इसके साथ में 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा देने का प्रावधान करना चाहिए। प्रदेश सरकार अपने बजट में प्रमुख बाजारों में सीसीटीवी लगाने की योजना को शामिल करें। इससे व्यापार और व्यापारी सुरक्षित रहेगा। प्रदेश के सभी बाजारों में पिंक और पब्लिक टॉयलेट बनाना चाहिए। विदेशी ई-कॉमर्स और रिटेल ट्रेड की अलग-अलग पॉलिसी लाना चाहिए। सरकार के पास फंड दैवीय आपदा (आग, बाढ़ और भूकंप) की हालत में ऐसी राशि मिल सके कि दोबारा से व्यापारी अपने पैर पर खड़ा हो सके। दैवीय आपदा पालिसी व्यापारियों के लिए लाना चाहिए। महिलाओं और युवाओं को बजट से क्या हैं उम्मीदें
बेरोजगारी प्रदेश और देश की सबसे बड़ी समस्या है। जब तक स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम सही तरीके से लागू नहीं होंगे, ये समस्या बनी रहेगी। हम सस्ते कर्ज देकर कोई छोटे-मोटे उद्योग-धंधे तो खुलवा देते हैं, लेकिन स्किल न होने की वजह से वे घाटे में बंद कर देने पड़ते हैं। ऑनलाइन और एआई का दौर है। ऐसे में इस तरह की स्किल में उन्हें दक्ष बनाने का एक प्रोग्राम लागू करना होगा। सर्राफा एसोसिएशन के अध्यक्ष राहुल गुप्ता के मुताबिक, युवाओं में आधी आबादी भी शामिल है। ऐसे में सरकार को बजट में उन्हें सम्मिलित रूप से शामिल करते हुए ऐसी योजना बनानी चाहिए, जिससे वे खुद कोई बिजनेस कर दूसरे को भी रोजगार देने में सक्षम बन सकें। आईआईए की अध्यक्ष और आंत्रप्रन्योर अपर्णा मिश्रा कहती हैं कि अक्सर बजट में आधी आबादी को भुला दिया जाता है। जब तक महिलाओं की भागीदारी नहीं मिलेगी, प्रदेश की ग्रोथ नहीं हो सकती। हमारे प्रदेश में बड़ी आबादी ऐसी महिलाओं की है, जो घर के काम ही कर पाती हैं। क्या हम ऐसी महिलाओं काे स्किल ट्रेनिंग देकर कोई ऐसा बिजनेस नहीं शुरू करा सकते हैं, जो वो घर बैठे कर पाएं। ——————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी में विभागों को 54% ही बजट मिला, जो मिला 98% खर्च किया; उखड़ी सड़कें नहीं बन पाईं; बिजली कटौती भी नहीं सुधरी यूपी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में विभिन्न विभागों को अब तक करीब आधा बजट (54.50%) ही जारी किया है। दिलचस्प तो यह है कि विभागों ने मिले बजट का 98.05% 5 फरवरी तक खर्च भी कर दिया। अब वित्तीय वर्ष खत्म होने में सिर्फ डेढ़ महीने बचे हैं। ऐसे में अब बजट जारी करने और उसे खर्च करने में जल्दबाजी दिखाई जाएगी। पढ़ें पूरी खबर 20 फरवरी को प्रदेश का बजट पेश होगा। इस बार बजट का आकार करीब 8.50 लाख करोड़ रहने का अनुमान है। बजट किसी भी सरकार की आर्थिक नीति का विश्लेषण है कि वह कितना जल्द डेवलपमेंट स्टेट बनना चाहता है। बजट इसका एक रोडमैप है। विशेषज्ञों की राय में उत्तर प्रदेश जैसे राज्य को आगे बढ़ना है तो बजट में 3 सेक्टर कृषि, सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) और कैपिटल स्ट्रक्चर पर फोकस करना चाहिए। तभी हम प्रदेश की अर्थव्यवस्था को अगले दो साल में 1 ट्रिलियन डालर तक ले जा पाएंगे। सवाल है, किसी राज्य का बजट कैसे तैयार होता है? कितने महीने पहले इसकी प्रक्रिया शुरू होती है? अलग-अलग विभागों को किस आधार पर राशि आवंटित होती है? बजट से प्रदेश के किसानों, व्यापारियों, महिलाएं, युवा, उद्योगपतियों और छोटे उद्योग-धंधों से जुड़े लोगों की अपेक्षाएं क्या हैं? उनके सुझाव, जिससे बजट समावेशी और विकासोन्मुखी बन पाए। दैनिक भास्कर ने अलग-अलग क्षेत्र के 7 एक्सपर्ट से चर्चा की। पढ़िए हमारी खास पहल बजट पर टॉक शो… 4 महीने पहले बजट बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन के मुताबिक, 1997-98 में वित्त सचिव रहते हुए दो बार बजट बनाने का अनुभव है। तब पहली बार विभाग के लोगों ने सीडी से बजट का एनालिसिस किया था। बजट की प्रक्रिया तीन-चार महीने पहले से शुरू हो जाती है। वित्त विभाग सबसे पहले अलग-अलग विभागों से प्रस्ताव मांगता है। प्रस्ताव देने वाले विभाग देखते हैं कि पिछले साल उनका क्या बजट था? उसमें कितना खर्च हुआ? प्रस्ताव में पिछले साल का बजट इस्टीमेट, रिवाइज इस्टीमेट और अगले साल का बजट इस्टीमेट शामिल रहता है। किसी भी बजट के लिए जरूरी होता है कि हमारे संसाधन क्या हैं? यूपी को आबादी के अनुसार केंद्र सरकार से लगभग 17 फीसदी राशि केंद्र के टैक्स पूल से मिलती है। दूसरा हमारे खुद के संसाधन क्या हैं? उसे बजट के अनुसार कैसे बढ़ाएं? पहले सेल्स टैक्स था, अब जीएसटी आ गया है। राज्य को उसका जीएसटी शेयर मिल जाता है। पिछले वित्त कमीशन की सिफारिश पर भारत सरकार ने राज्यों का टैक्स पूल 32 से बढ़ाकर 42 फीसदी कर दिया है। लेकिन, उन्होंने टैक्स पूल की राशि बढ़ाकर एक खेल कर दिया। पहले केंद्र की स्कीम को या तो खत्म कर दिया या फिर उसका अंशदान कम कर दिया। 2015-16 में इसकी वजह से यूपी को 8000 करोड़ रुपए कम मिले थे। बजट के लिए दूसरा संसाधन राज्य के टैक्सेस हैं। इससे कितना रेवन्यू मिल सकता है? दूसरे नॉन रेवन्यू वाले सेक्टर से कितना टैक्स और मिल सकता है? इसके लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया जाता है। इसके बाद आता है कि बजट में अलग-अलग विभागों को राशि कितनी दिया जाए। तो एफएआरबीएम (फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट) का एक्ट कहता है कि बजट बनाते समय फिजिकल डेफिसिटी 3 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इससे पता चलता है कि हम किस सीमा तक खर्च कर सकते हैं। इसके आधार पर विभागों को बजट आवंटित किया जाता है। सरकार के प्राथमिकता वाले सेक्टर का बजट बढ़ा दिया जाता है। वहीं दूसरे का सामान्य रखते हैं। प्रदेश की 46 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है। ऐसे में कृषि पर फोकस बढ़ाना होगा। दूसरा एमएसएमई सेक्टर है, जो रोजगार उपलब्ध कराते हैं। इसमें कई छोटे उद्योग बंद होते जा रहे हैं। ये नॉन फार्मर सेक्टर हैं और रजिस्टर्ड भी नहीं हैं। इसकी वजह से इन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा भी नहीं मिल रहा है। इसे बचाने के लिए सरकार को फोकस करना चाहिए। तीसरा कैपिटल स्ट्रक्चर पर फोकस करना चाहिए। बजट में इन्फ्रास्ट्रक्चर, पावर सेक्टर, पुल, सड़क, सिंचाई पर कितना खर्च कर रहे हैं? इस पर जितना खर्च करेंगे, उतना नया रोजगार मिलेगा। प्रदेश में आज भी सबसे ज्यादा रोजगार कृषि सेक्टर से मिल रहा है। इसके बावजूद कृषि यूपी सरकार बजट का लगभग 3 फीसदी ही खर्च करती है। किसान नेता हरनाम सिंह वर्मा के मुताबिक, किसान इस प्रदेश और देश की रीढ़ हैं। सबसे ज्यादा रोजगार कृषि में है, लेकिन दुर्भाग्य है कि इसके ही आंकड़े नहीं हैं। इस प्रदेश को खुशहाल करना है तो कृषि को बढ़ावा देना होगा। क्या कारण है कि एक दाने से 100 दाने गेहूं पैदा करने वाला किसान जान दे रहा है। लेकिन, उसके ही एक किलो गेहूं से 900 ग्राम का दलिया बनाकर बेचने वाला व्यापारी सुखी है। फर्क बस इतना है कि व्यापारी को उसकी कीमत तय करने का अधिकार है। किसान को अपनी उपज सरकार के समर्थन मूल्य पर बेचने की मजबूरी है। 1967 में 12 ग्राम सोने की कीमत 3 क्विंटल गेहूं के बराबर थी। तब 12 ग्राम का एक तोला होता था। 220 रुपए में एक तोला सोना मिल जाता था। आज क्या 3 क्विंटल गेहूं में कोई किसान एक तोला सोना खरीद सकता है? सरकार के अधीन काम करने वाले गन्ना शोध संस्थानों की रिपोर्ट है कि एक क्विंटल गन्ना पैदा करने की लागत 450 रुपए है। लेकिन, सरकार एक क्विंटल गन्ना की कीमत किसानों को 370 रुपए दे रही है। बिजली सेक्टर को बजट से क्या चाहिए
प्रदेश के 42 जिलों की बिजली को प्राइवेट सेक्टर के हाथों में देने की तैयारी है। देश में यूपी ऐसा इकलौता राज्य है, जहां अभी भी रोस्टर से बिजली दी जा रही है। कृषि को छोड़कर पूरे देश में 24 घंटे बिजली देने का कानून बन गया। लेकिन, अभी भी सबसे कम बिजली ग्रामीण क्षेत्रों को यूपी में मिल रही है। यूपी राज्य उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि पूरे देश में यूपी में सबसे कम प्रति व्यक्ति बिजली खपत 629 यूनिट है। जबकि देश में औसत प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 1300 यूनिट है। यूपी में कम बिजली खपत के दो ही कारण हैं। पहला या तो यहां के लोगों को जरूरत से कम बिजली मिल रही है या फिर बिजली महंगी मिल रही है। सरकार प्रदेश के बिजली सेक्टर को प्राइवेट हाथों में सौंपकर सुधारना चाहती है। जबकि इस तरह का प्रयास 2014-15 में हुआ था, जो फिजिबल रिपोर्ट के आधार पर खारिज कर दिया गया। बिजली का सुधार सार्वजनिक क्षेत्र में रखकर ही किया जा सकता है। तभी इस पर सरकार का नियंत्रण होगा। जब किसी व्यापारी के हाथों में बिजली होगी, तो उसका उद्देश्य सिर्फ फायदा कमाने पर रहेगा। प्रदेश में बिजली की खपत के अनुसार ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क ही नहीं है। ऐसे में इन दोनों सेक्टर में सुधार की जरूरत है। ये बिना सरकारी मदद के नहीं हो सकता। देश में 4.50 लाख मेगावाट बिजली की उपलब्धता है। जबकि मांग सिर्फ 2.50 लाख मेगावाट की है। इसके बावजूद हम लोगों को 24 घंटे बिजली नहीं दे पा रहे हैं। अवधेश कुमार वर्मा कहते हैं- प्रदेश के किसानों को हम फ्री बिजली देने का ढिंढोरा पीटते रहते हैं। जबकि सच्चाई ये है कि 1350 यूनिट से अधिक खपत पर सब्सिडी बंद करने का नियम बना रखा है। बजट से व्यापारियों को क्या है उम्मीद
केंद्र हो या राज्य सरकार, व्यापारियों का दर्द वो समझना ही नहीं चाहते। जबकि ई-कॉमर्स के चलते व्यापार सिमट रहा है। इंस्पेक्टर राज के चंगुल में व्यापारियों को इस कदर फंसा दिया गया है कि जीएसटी और इनकम टैक्स के अलावा उन्हें वर्तमान में 19 तरीके के टैक्स देने पड़ रहे हैं। लखनऊ व्यापार मंडल के अध्यक्ष अमरनाथ मिश्रा के मुताबिक, व्यापारियों को प्रोत्साहन नहीं देंगे तो वह माइग्रेट कर जाएगा। राज्य का राजस्व घट जाएगा। इस प्रदेश की सच्चाई ये है कि यहां व्यवसायिक प्रोडक्शन महज 5 फीसदी है। 95 फीसदी माल बाहर के राज्य से आता है। यूपी में सिर्फ ट्रेडिंग अधिक होती है। ऑनलाइन व्यापार के चलते खुदरा व्यापार डूब रहा है। कृषि के बाद व्यापार सेक्टर ही ऐसा है, जहां सबसे अधिक रोजगार मिल सकता है। आलम यह है कि एक दवा की दुकान में फूड सप्लीमेंट रखकर बेचना हो तो उसे अलग से फूड सेफ्टी लाइसेंस लेना पड़ता है। क्या व्यापारी एक ही पोर्टल से ईज ऑफ डूइंग बिजनेस नहीं कर सकता? आदर्श व्यापार मंडल के अध्यक्ष संजय गुप्ता के मुताबिक, जीएसटी देने वाले व्यापारियों का 10 लाख का दुर्घटना बीमा मिलता है। सरकार को इसके साथ में 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा देने का प्रावधान करना चाहिए। प्रदेश सरकार अपने बजट में प्रमुख बाजारों में सीसीटीवी लगाने की योजना को शामिल करें। इससे व्यापार और व्यापारी सुरक्षित रहेगा। प्रदेश के सभी बाजारों में पिंक और पब्लिक टॉयलेट बनाना चाहिए। विदेशी ई-कॉमर्स और रिटेल ट्रेड की अलग-अलग पॉलिसी लाना चाहिए। सरकार के पास फंड दैवीय आपदा (आग, बाढ़ और भूकंप) की हालत में ऐसी राशि मिल सके कि दोबारा से व्यापारी अपने पैर पर खड़ा हो सके। दैवीय आपदा पालिसी व्यापारियों के लिए लाना चाहिए। महिलाओं और युवाओं को बजट से क्या हैं उम्मीदें
बेरोजगारी प्रदेश और देश की सबसे बड़ी समस्या है। जब तक स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम सही तरीके से लागू नहीं होंगे, ये समस्या बनी रहेगी। हम सस्ते कर्ज देकर कोई छोटे-मोटे उद्योग-धंधे तो खुलवा देते हैं, लेकिन स्किल न होने की वजह से वे घाटे में बंद कर देने पड़ते हैं। ऑनलाइन और एआई का दौर है। ऐसे में इस तरह की स्किल में उन्हें दक्ष बनाने का एक प्रोग्राम लागू करना होगा। सर्राफा एसोसिएशन के अध्यक्ष राहुल गुप्ता के मुताबिक, युवाओं में आधी आबादी भी शामिल है। ऐसे में सरकार को बजट में उन्हें सम्मिलित रूप से शामिल करते हुए ऐसी योजना बनानी चाहिए, जिससे वे खुद कोई बिजनेस कर दूसरे को भी रोजगार देने में सक्षम बन सकें। आईआईए की अध्यक्ष और आंत्रप्रन्योर अपर्णा मिश्रा कहती हैं कि अक्सर बजट में आधी आबादी को भुला दिया जाता है। जब तक महिलाओं की भागीदारी नहीं मिलेगी, प्रदेश की ग्रोथ नहीं हो सकती। हमारे प्रदेश में बड़ी आबादी ऐसी महिलाओं की है, जो घर के काम ही कर पाती हैं। क्या हम ऐसी महिलाओं काे स्किल ट्रेनिंग देकर कोई ऐसा बिजनेस नहीं शुरू करा सकते हैं, जो वो घर बैठे कर पाएं। ——————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी में विभागों को 54% ही बजट मिला, जो मिला 98% खर्च किया; उखड़ी सड़कें नहीं बन पाईं; बिजली कटौती भी नहीं सुधरी यूपी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 में विभिन्न विभागों को अब तक करीब आधा बजट (54.50%) ही जारी किया है। दिलचस्प तो यह है कि विभागों ने मिले बजट का 98.05% 5 फरवरी तक खर्च भी कर दिया। अब वित्तीय वर्ष खत्म होने में सिर्फ डेढ़ महीने बचे हैं। ऐसे में अब बजट जारी करने और उसे खर्च करने में जल्दबाजी दिखाई जाएगी। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
यूपी बजट में कृषि, MSME और व्यापार पर हो फोकस:7 एक्सपर्ट ने टॉक शो में बताया रोडमैप, किसानों की बिजली फ्री करने का सुझाव
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