हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद यूपी में कांग्रेस ने चुप्पी साध रखी है। कोई नेता न तो नतीजों की बात कर रहा है और न ही उप-चुनाव में गठबंधन की। शक्ति आपूर्ति महकमे के हाकिम से माननीय परेशान हैं। उधर, उप-चुनाव में भगवा दल के दोस्त संगठन के नेता दो सीटों पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं। इस शनिवार सुनी-सुनाई में पढ़िए ब्यूरोक्रेसी और राजनीति में चल रही ऐसी ही चर्चाएं… कांग्रेस की चुप्पी बनी रहस्य
हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद यूपी में इंडी गठबंधन के घटकों के भी चेहरे उतर गए हैं। गठबंधन का हिस्सा रहे देश के तीसरे सबसे बड़े दल, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के रिश्तों में भी थोड़ी खटास महसूस की जा रही है। हुआ यह कि सपा ने हरियाणा में कांग्रेस के सामने दो सीटों की मांग रखी थी। कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह हरियाणा फतह कर रही है, इसलिए उसे लगा कि किसी गठबंधन की जरूरत ही क्या? लेकिन, नतीजे चौंकाने वाले आए। नतीजों के तुरंत बाद सपा ने यूपी उप-चुनाव के लिए अपने प्रत्याशियों की घोषणा शुरू कर दी। सपा के नेता खुलकर कहने लगे कि कांग्रेस ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से कोई सबक नहीं लिया। नतीजे से पहले जो कांग्रेस, सपा पर ज्यादा से ज्यादा सीट देने का दबाव बना रही थी, वही कांग्रेस अब बैकफुट पर आ गई है। हाल यह हो गया है कि कांग्रेस का कोई नेता न तो नतीजों की बात कर रहा है और न ही उप-चुनाव में गठबंधन की। यह चुप्पी क्यों है, यह रहस्य बनी हुई है। अब पुराने वाले याद आ रहे हैं
शक्ति आपूर्ति महकमे के हाकिम से उनके ही दल के माननीय अब परेशान हो गए हैं। माननीयों ने उच्च स्तर पर अपनी पीड़ा रखते हुए कहा है कि हाकिम न तो कॉल उठाते हैं, न ही कॉल बैक करते हैं। ढाई साल में तीन निजी सहायक बदल चुके हाकिम के दफ्तर में कॉल करने पर सदन के माननीयों के साथ भी फरियादी जैसा व्यवहार किया जाता है। उन्हें मिलने का समय और तारीख बता दी जाती है। बीते दिनों सत्ता के एक प्रमुख केंद्र के दफ्तर में जुटे माननीयों ने खुलेतौर पर कहा कि इससे तो ब्रजभूमि वाले पंडित जी ही ठीक थे, कॉल करते ही काम तो हो जाता था। ऐसी ही राय शिक्षा दीक्षा से जुड़े महकमे के हाकिम के बारे में भी माननीयों ने प्रकट की। तो कैसे लगाएंगे विपक्ष के गढ़ में सेंध
सूबे के सैर सपाटे से जुड़े महकमे के हाकिम और उच्च सदन के एक सदस्य के बीच इन दिनों जबरदस्त तकरार चल रही है। उच्च सदन के सदस्य के पास भगवा दल की युवाटोली की कमान भी है। दोनों का ही कार्यक्षेत्र पश्चिमी यूपी में साइकिल वाली पार्टी के गढ़ माने जाने वाले जिलों में है। गत दिनों युवा नेता ने हाकिम के खिलाफ जोरदार धरना प्रदर्शन कराकर उन्हें एक जाति का विरोधी सिद्ध कर दिया। हाकिम जब अपनी पीड़ा को लेकर संगठन के शीर्ष लोगों के पास पहुंचे तो पता चला कि युवाटोली के कप्तान तो उनकी भी नहीं सुनते हैं। उन्हें सत्ता के दो प्रमुख लोगों की शक्ति का संरक्षण प्राप्त है। ऐसे में उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। ऐसे में अब चर्चा है कि जब विपक्ष के गढ़ वाले क्षेत्र में भगवा दल ही एक नहीं है तो वह कैसे सेंध लगा पाएगा। सीट नहीं किराया तो मिलेगा
आगामी दिनों में सूबे की सबसे बड़ी पंचायत की दस सीटों के लिए उप चुनाव होना है। उप-चुनाव में भगवा दल के दोस्त संगठन के नेता दो सीटों पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं। उनका दावा है कि जब चुनाव में सीट उनके पास थी तो उप चुनाव में भी मिलनी चाहिए। लेकिन, भगवा दल के लिए उप-चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। ऐसे में वह सीट देने के इच्छुक नहीं हैं। उधर, नेताजी ने उप चुनाव रूपी तालाब के लिए मछली पकड़ना भी शुरू कर दिया। ऐसे में चर्चा है कि नेताजी को सीट नहीं मिलेगी तो कम से कम एक सीट का किराया तो मिलेगा ही। कब आएंगे अफसर के अच्छे दिन
प्रदेश के कुछ अफसरों की पोस्टिंग इन दिनों काला पानी की तरह हो गई है। खास जाति से संबंध रखने वाले कुछ अफसर इससे बाहर निकलने की जुगत खोज रहे हैं। क्योंकि नाराजगी सर्वोच्च स्तर से है, इसलिए कोई कुछ कर भी नहीं पा रहा है। राजधानी से मीलों दूर बैठे एक अफसर की खता बस इतनी सी थी कि उन्होंने किसी इंस्पेक्टर की पैरवी कर दी थी। वह भी किसी खास वर्ग के इंस्पेक्टर की। इसे लेकर विवाद हुआ तो साहब को सीधे लखनऊ से पहाड़ों के ऊपर बने ऐसे दफ्तर भेज दिया गया। जहां की पोस्टिंग सजा के तौर पर मानी जाती है। साहब पहाड़ से उतरने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं, लेकिन रास्ता नहीं मिल रहा है। उनको जानने वाले चर्चा कर रहे हैं कि साहब अब पहाड़ से तभी उतर सकते हैं, जब कोई बड़ा बदलाव यूपी में हो। ये कॉलम भी पढ़ें… यूपी में भाईसाहब के भतीजे की चर्चा:बड़े ट्रांसफर-टेंडर में दिलचस्पी, खाकी वर्दी वाले महकमे में बेचैनी हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद यूपी में कांग्रेस ने चुप्पी साध रखी है। कोई नेता न तो नतीजों की बात कर रहा है और न ही उप-चुनाव में गठबंधन की। शक्ति आपूर्ति महकमे के हाकिम से माननीय परेशान हैं। उधर, उप-चुनाव में भगवा दल के दोस्त संगठन के नेता दो सीटों पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं। इस शनिवार सुनी-सुनाई में पढ़िए ब्यूरोक्रेसी और राजनीति में चल रही ऐसी ही चर्चाएं… कांग्रेस की चुप्पी बनी रहस्य
हरियाणा चुनाव नतीजों के बाद यूपी में इंडी गठबंधन के घटकों के भी चेहरे उतर गए हैं। गठबंधन का हिस्सा रहे देश के तीसरे सबसे बड़े दल, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के रिश्तों में भी थोड़ी खटास महसूस की जा रही है। हुआ यह कि सपा ने हरियाणा में कांग्रेस के सामने दो सीटों की मांग रखी थी। कांग्रेस को उम्मीद थी कि वह हरियाणा फतह कर रही है, इसलिए उसे लगा कि किसी गठबंधन की जरूरत ही क्या? लेकिन, नतीजे चौंकाने वाले आए। नतीजों के तुरंत बाद सपा ने यूपी उप-चुनाव के लिए अपने प्रत्याशियों की घोषणा शुरू कर दी। सपा के नेता खुलकर कहने लगे कि कांग्रेस ने मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से कोई सबक नहीं लिया। नतीजे से पहले जो कांग्रेस, सपा पर ज्यादा से ज्यादा सीट देने का दबाव बना रही थी, वही कांग्रेस अब बैकफुट पर आ गई है। हाल यह हो गया है कि कांग्रेस का कोई नेता न तो नतीजों की बात कर रहा है और न ही उप-चुनाव में गठबंधन की। यह चुप्पी क्यों है, यह रहस्य बनी हुई है। अब पुराने वाले याद आ रहे हैं
शक्ति आपूर्ति महकमे के हाकिम से उनके ही दल के माननीय अब परेशान हो गए हैं। माननीयों ने उच्च स्तर पर अपनी पीड़ा रखते हुए कहा है कि हाकिम न तो कॉल उठाते हैं, न ही कॉल बैक करते हैं। ढाई साल में तीन निजी सहायक बदल चुके हाकिम के दफ्तर में कॉल करने पर सदन के माननीयों के साथ भी फरियादी जैसा व्यवहार किया जाता है। उन्हें मिलने का समय और तारीख बता दी जाती है। बीते दिनों सत्ता के एक प्रमुख केंद्र के दफ्तर में जुटे माननीयों ने खुलेतौर पर कहा कि इससे तो ब्रजभूमि वाले पंडित जी ही ठीक थे, कॉल करते ही काम तो हो जाता था। ऐसी ही राय शिक्षा दीक्षा से जुड़े महकमे के हाकिम के बारे में भी माननीयों ने प्रकट की। तो कैसे लगाएंगे विपक्ष के गढ़ में सेंध
सूबे के सैर सपाटे से जुड़े महकमे के हाकिम और उच्च सदन के एक सदस्य के बीच इन दिनों जबरदस्त तकरार चल रही है। उच्च सदन के सदस्य के पास भगवा दल की युवाटोली की कमान भी है। दोनों का ही कार्यक्षेत्र पश्चिमी यूपी में साइकिल वाली पार्टी के गढ़ माने जाने वाले जिलों में है। गत दिनों युवा नेता ने हाकिम के खिलाफ जोरदार धरना प्रदर्शन कराकर उन्हें एक जाति का विरोधी सिद्ध कर दिया। हाकिम जब अपनी पीड़ा को लेकर संगठन के शीर्ष लोगों के पास पहुंचे तो पता चला कि युवाटोली के कप्तान तो उनकी भी नहीं सुनते हैं। उन्हें सत्ता के दो प्रमुख लोगों की शक्ति का संरक्षण प्राप्त है। ऐसे में उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। ऐसे में अब चर्चा है कि जब विपक्ष के गढ़ वाले क्षेत्र में भगवा दल ही एक नहीं है तो वह कैसे सेंध लगा पाएगा। सीट नहीं किराया तो मिलेगा
आगामी दिनों में सूबे की सबसे बड़ी पंचायत की दस सीटों के लिए उप चुनाव होना है। उप-चुनाव में भगवा दल के दोस्त संगठन के नेता दो सीटों पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं। उनका दावा है कि जब चुनाव में सीट उनके पास थी तो उप चुनाव में भी मिलनी चाहिए। लेकिन, भगवा दल के लिए उप-चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। ऐसे में वह सीट देने के इच्छुक नहीं हैं। उधर, नेताजी ने उप चुनाव रूपी तालाब के लिए मछली पकड़ना भी शुरू कर दिया। ऐसे में चर्चा है कि नेताजी को सीट नहीं मिलेगी तो कम से कम एक सीट का किराया तो मिलेगा ही। कब आएंगे अफसर के अच्छे दिन
प्रदेश के कुछ अफसरों की पोस्टिंग इन दिनों काला पानी की तरह हो गई है। खास जाति से संबंध रखने वाले कुछ अफसर इससे बाहर निकलने की जुगत खोज रहे हैं। क्योंकि नाराजगी सर्वोच्च स्तर से है, इसलिए कोई कुछ कर भी नहीं पा रहा है। राजधानी से मीलों दूर बैठे एक अफसर की खता बस इतनी सी थी कि उन्होंने किसी इंस्पेक्टर की पैरवी कर दी थी। वह भी किसी खास वर्ग के इंस्पेक्टर की। इसे लेकर विवाद हुआ तो साहब को सीधे लखनऊ से पहाड़ों के ऊपर बने ऐसे दफ्तर भेज दिया गया। जहां की पोस्टिंग सजा के तौर पर मानी जाती है। साहब पहाड़ से उतरने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं, लेकिन रास्ता नहीं मिल रहा है। उनको जानने वाले चर्चा कर रहे हैं कि साहब अब पहाड़ से तभी उतर सकते हैं, जब कोई बड़ा बदलाव यूपी में हो। ये कॉलम भी पढ़ें… यूपी में भाईसाहब के भतीजे की चर्चा:बड़े ट्रांसफर-टेंडर में दिलचस्पी, खाकी वर्दी वाले महकमे में बेचैनी उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर