समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने संगठन को मजबूत करने की तैयारी में है। नवरात्रि के बाद कई जिलाध्यक्षों में फेरबदल किया जाएगा। इसके लिए जिलों के नेताओं का फीडबैक लिया जा रहा है। नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में जातीय समीकरण और दावेदार की सक्रियता को ध्यान में रखा जाएगा। 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा संगठन को मजबूत करने के लिए फेरबदल करेगी। माना जा रहा है कि नवरात्र के बाद 20 से 25 जिलाध्यक्षों को बदला जा सकता है। श्यामलाल पाल के मई, 2024 में प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से यह काम रुका हुआ था। अभी सबसे ज्यादा ओबीसी, उनमें आधे से ज्यादा यादव
मौजूदा जिलाध्यक्षों में सबसे ज्यादा 55% ओबीसी है। ओबीसी के कुल 54 जिलाध्यक्ष हैं। इनमें से 22 यादव हैं, जो कुल ओबीसी के आधे से ज्यादा हैं। दलितों की संख्या सिर्फ 4 है। अभी तक की नियुक्तियों में यादव जाति का प्रभाव रहा है। लेकिन, अब दलित और अन्य ओबीसी चेहरों को मौका देने की योजना बनाई जा रही है। वर्तमान अध्यक्ष श्यामलाल पाल भी ओबीसी समुदाय से हैं। वर्तमान में सपा अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर जोर दे रही है। ऐसे में अगर पीडीए फॉर्मूले पर जिलाध्यक्षों की नियुक्ति होती है, तो यादव जाति की भागीदारी को कम किया जाएगा। उनके स्थान पर कुर्मी, राजभर, निषाद और दलित समाज के साथ अन्य जाति के लोगों की हिस्सेदारी बढ़ सकती है। वहीं, कांग्रेस ने जिस तरह से मुस्लिम नेताओं को अपनी सूची में जगह दी है, उससे सपा पर भी जिलों में मुस्लिम समाज के लोगों की सम्मानजनक प्रतिनिधित्व का दबाव भी रहेगा। क्या-क्या नया हो सकता है?
नए जिलाध्यक्षों की सूची में पीडीए फॉर्मूले को प्राथमिकता दी जाएगी। यह 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा की सफलता के बाद पीडीए फॉर्मूले को और मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा है। आमतौर पर सपा में दलित चेहरों को कम ही मौका मिलता रहा है। लेकिन, इस बार कई जिलों में दलित नेताओं को जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है। जिससे बसपा के कमजोर होने का फायदा उठाया जा सके। नए चेहरों का सिलेक्शन उनके जमीनी स्तर पर काम और संगठन को मजबूत करने की क्षमता के आधार पर होगा। कुर्मी समाज की भागीदारी बढ़ेगी
कुर्मी समाज को पार्टी में अच्छी भागीदारी मिलने की उम्मीद है। अभी तक पार्टी में यादव समाज के लोगों का वर्चस्व रहा है। लेकिन, लोकसभा चुनाव में कुर्मी समाज के लोगों ने बढ़-चढ़ कर सपा के पक्ष में मतदान किया था। इससे सपा की सीटों में इजाफा हुआ था। मायावती की कमजोरी का फायदा उठाने के लिए दलित समाज को अपनी ओर करने के लिए भी सपा दलित चेहरों पर दांव खेलेगी। अयोध्या से सांसद चुने गए अवधेश प्रसाद काे सपा ने दलित आइकॉन बनाया हुआ है। उन्हें अखिलेश यादव ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं। कहा जा रहा है कि ऐसे जिले, जहां दलित समाज का प्रभाव अधिक है या उनके मतदाताओं की संख्या अधिक है, वहां सपा दलित चेहरे को आगे बढ़ाएगी। इसी तरह अल्पसंख्यक समाज के लोगों को भी कुछ जिलों में आजमाया जा सकता है। वहीं, स्वर्ण समाज को 5 से 10 फीसदी हिस्सेदारी मिलने की उम्मीद है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं- सपा अल्पसंख्यकों की भागीदारी और बढ़ाएगी। कुर्मी समाज ने 2024 के चुनाव में समाजवादी पार्टी का साथ दिया है। इसलिए उसके प्रतिनिधियों की संख्या भी बढ़नी तय मानी जा रही है। अन्य पिछड़ों को भी सपा अपने पीडीए फॉर्मूले के तहत तवज्जो दे सकती है। जहां तक सवर्ण जाति के प्रतिनिधित्व की बात है, तो ये सांकेतिक ही रहेगा। सपा में जिलाध्यक्ष का निश्चित कार्यकाल तय नहीं
समाजवादी पार्टी में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति आमतौर पर निश्चित कार्यकाल के लिए नहीं होती। यह पार्टी नेतृत्व के विवेक और संगठनात्मक जरूरतों पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर जिलाध्यक्षों का कार्यकाल 2 से 3 साल तक रहता है। लेकिन, प्रदर्शन खराब होने या चुनावी रणनीति के तहत इन्हें पहले भी बदला जा सकता है। सपा में जिलाध्यक्षों की आखिरी बड़ी नियुक्ति 27 मार्च, 2023 को हुई थी। तब लोकसभा चुनाव- 2024 की तैयारी के लिए 25 जिलों में अध्यक्ष बदले गए थे। इसके अलावा कुछ जिलों में सितंबर, 2023 में संबद्ध संगठनों के अध्यक्षों और पदाधिकारियों की नियुक्ति हुई थी। 6 मई, 2024 को श्यामलाल पाल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही संगठन में बदलाव की चर्चा शुरू हो गई थी, लेकिन अब तक यह प्रक्रिया लंबित थी। पंचायत चुनाव से पहले बदलाव के संकेत
पार्टी सूत्रों का कहना है- समाजवादी पार्टी मई तक संगठन में जो फेरबदल करना है, कर देगी। इसके बाद पार्टी पंचायत चुनावों की तैयारी में जुट जाएगी। पहले से जिलाध्यक्षों की नियुक्ति से उन्हें 2027 के चुनाव की तैयारी में काम करने का पूरा मौका मिल सकेगा। पार्टी के एक जिम्मेदार नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 10 अप्रैल के बाद संसद का सत्र समाप्त हो जाएगा। इसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव फ्री हो जाएंगे। फिर संगठन को लेकर पार्टी स्तर पर मंथन किया जाएगा। हालांकि बड़े बदलाव को लेकर पार्टी प्रवक्ता मनोज यादव इनकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर कुछ मामूली फेरबदल हुआ भी तो सारे समीकरण देखते हुए हाईकमान फैसला लेंगे। ——————– ये खबर भी पढ़ें… पति को ड्रम में भरा, मुंह-दिखाई के पैसे से हत्या, लव ट्राएंगल में हो रही हत्याएं; यूपी की 4 बड़ी मर्डर मिस्ट्री पति, पत्नी और वो…ये वही तीन शब्द हैं, जो हाल ही में यूपी में हुए 4 बड़े हत्याकांड की पटकथा में हैं। सबसे ज्यादा चर्चा में मेरठ का सौरभ हत्याकांड है। पत्नी मुस्कान ने अपने बॉयफ्रेंड के साथ मिलकर पति के सीने में चाकू घोंपा। फिर टुकड़े करके ड्रम में सीमेंट से चुनवा दिया। दूसरा सहारनपुर का हत्याकांड, तीसरा अयोध्या हत्याकांड और चौथा औरैया मर्डर केस है। पढ़ें पूरी खबर समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने संगठन को मजबूत करने की तैयारी में है। नवरात्रि के बाद कई जिलाध्यक्षों में फेरबदल किया जाएगा। इसके लिए जिलों के नेताओं का फीडबैक लिया जा रहा है। नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में जातीय समीकरण और दावेदार की सक्रियता को ध्यान में रखा जाएगा। 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले सपा संगठन को मजबूत करने के लिए फेरबदल करेगी। माना जा रहा है कि नवरात्र के बाद 20 से 25 जिलाध्यक्षों को बदला जा सकता है। श्यामलाल पाल के मई, 2024 में प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से यह काम रुका हुआ था। अभी सबसे ज्यादा ओबीसी, उनमें आधे से ज्यादा यादव
मौजूदा जिलाध्यक्षों में सबसे ज्यादा 55% ओबीसी है। ओबीसी के कुल 54 जिलाध्यक्ष हैं। इनमें से 22 यादव हैं, जो कुल ओबीसी के आधे से ज्यादा हैं। दलितों की संख्या सिर्फ 4 है। अभी तक की नियुक्तियों में यादव जाति का प्रभाव रहा है। लेकिन, अब दलित और अन्य ओबीसी चेहरों को मौका देने की योजना बनाई जा रही है। वर्तमान अध्यक्ष श्यामलाल पाल भी ओबीसी समुदाय से हैं। वर्तमान में सपा अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले पर जोर दे रही है। ऐसे में अगर पीडीए फॉर्मूले पर जिलाध्यक्षों की नियुक्ति होती है, तो यादव जाति की भागीदारी को कम किया जाएगा। उनके स्थान पर कुर्मी, राजभर, निषाद और दलित समाज के साथ अन्य जाति के लोगों की हिस्सेदारी बढ़ सकती है। वहीं, कांग्रेस ने जिस तरह से मुस्लिम नेताओं को अपनी सूची में जगह दी है, उससे सपा पर भी जिलों में मुस्लिम समाज के लोगों की सम्मानजनक प्रतिनिधित्व का दबाव भी रहेगा। क्या-क्या नया हो सकता है?
नए जिलाध्यक्षों की सूची में पीडीए फॉर्मूले को प्राथमिकता दी जाएगी। यह 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा की सफलता के बाद पीडीए फॉर्मूले को और मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा है। आमतौर पर सपा में दलित चेहरों को कम ही मौका मिलता रहा है। लेकिन, इस बार कई जिलों में दलित नेताओं को जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जा सकती है। जिससे बसपा के कमजोर होने का फायदा उठाया जा सके। नए चेहरों का सिलेक्शन उनके जमीनी स्तर पर काम और संगठन को मजबूत करने की क्षमता के आधार पर होगा। कुर्मी समाज की भागीदारी बढ़ेगी
कुर्मी समाज को पार्टी में अच्छी भागीदारी मिलने की उम्मीद है। अभी तक पार्टी में यादव समाज के लोगों का वर्चस्व रहा है। लेकिन, लोकसभा चुनाव में कुर्मी समाज के लोगों ने बढ़-चढ़ कर सपा के पक्ष में मतदान किया था। इससे सपा की सीटों में इजाफा हुआ था। मायावती की कमजोरी का फायदा उठाने के लिए दलित समाज को अपनी ओर करने के लिए भी सपा दलित चेहरों पर दांव खेलेगी। अयोध्या से सांसद चुने गए अवधेश प्रसाद काे सपा ने दलित आइकॉन बनाया हुआ है। उन्हें अखिलेश यादव ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं। कहा जा रहा है कि ऐसे जिले, जहां दलित समाज का प्रभाव अधिक है या उनके मतदाताओं की संख्या अधिक है, वहां सपा दलित चेहरे को आगे बढ़ाएगी। इसी तरह अल्पसंख्यक समाज के लोगों को भी कुछ जिलों में आजमाया जा सकता है। वहीं, स्वर्ण समाज को 5 से 10 फीसदी हिस्सेदारी मिलने की उम्मीद है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं- सपा अल्पसंख्यकों की भागीदारी और बढ़ाएगी। कुर्मी समाज ने 2024 के चुनाव में समाजवादी पार्टी का साथ दिया है। इसलिए उसके प्रतिनिधियों की संख्या भी बढ़नी तय मानी जा रही है। अन्य पिछड़ों को भी सपा अपने पीडीए फॉर्मूले के तहत तवज्जो दे सकती है। जहां तक सवर्ण जाति के प्रतिनिधित्व की बात है, तो ये सांकेतिक ही रहेगा। सपा में जिलाध्यक्ष का निश्चित कार्यकाल तय नहीं
समाजवादी पार्टी में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति आमतौर पर निश्चित कार्यकाल के लिए नहीं होती। यह पार्टी नेतृत्व के विवेक और संगठनात्मक जरूरतों पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर जिलाध्यक्षों का कार्यकाल 2 से 3 साल तक रहता है। लेकिन, प्रदर्शन खराब होने या चुनावी रणनीति के तहत इन्हें पहले भी बदला जा सकता है। सपा में जिलाध्यक्षों की आखिरी बड़ी नियुक्ति 27 मार्च, 2023 को हुई थी। तब लोकसभा चुनाव- 2024 की तैयारी के लिए 25 जिलों में अध्यक्ष बदले गए थे। इसके अलावा कुछ जिलों में सितंबर, 2023 में संबद्ध संगठनों के अध्यक्षों और पदाधिकारियों की नियुक्ति हुई थी। 6 मई, 2024 को श्यामलाल पाल के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही संगठन में बदलाव की चर्चा शुरू हो गई थी, लेकिन अब तक यह प्रक्रिया लंबित थी। पंचायत चुनाव से पहले बदलाव के संकेत
पार्टी सूत्रों का कहना है- समाजवादी पार्टी मई तक संगठन में जो फेरबदल करना है, कर देगी। इसके बाद पार्टी पंचायत चुनावों की तैयारी में जुट जाएगी। पहले से जिलाध्यक्षों की नियुक्ति से उन्हें 2027 के चुनाव की तैयारी में काम करने का पूरा मौका मिल सकेगा। पार्टी के एक जिम्मेदार नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि 10 अप्रैल के बाद संसद का सत्र समाप्त हो जाएगा। इसके बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव फ्री हो जाएंगे। फिर संगठन को लेकर पार्टी स्तर पर मंथन किया जाएगा। हालांकि बड़े बदलाव को लेकर पार्टी प्रवक्ता मनोज यादव इनकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि अगर कुछ मामूली फेरबदल हुआ भी तो सारे समीकरण देखते हुए हाईकमान फैसला लेंगे। ——————– ये खबर भी पढ़ें… पति को ड्रम में भरा, मुंह-दिखाई के पैसे से हत्या, लव ट्राएंगल में हो रही हत्याएं; यूपी की 4 बड़ी मर्डर मिस्ट्री पति, पत्नी और वो…ये वही तीन शब्द हैं, जो हाल ही में यूपी में हुए 4 बड़े हत्याकांड की पटकथा में हैं। सबसे ज्यादा चर्चा में मेरठ का सौरभ हत्याकांड है। पत्नी मुस्कान ने अपने बॉयफ्रेंड के साथ मिलकर पति के सीने में चाकू घोंपा। फिर टुकड़े करके ड्रम में सीमेंट से चुनवा दिया। दूसरा सहारनपुर का हत्याकांड, तीसरा अयोध्या हत्याकांड और चौथा औरैया मर्डर केस है। पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
यूपी में नवरात्र बाद सपा करेगी बड़े बदलाव:कई जिलाध्यक्ष बदले जाएंगे; अभी 22 जिलों में यादव, दूसरी पिछड़ी जातियों को मिलेगा मौका
