यूपी में जातिगत जनगणना को लेकर बहस थमती नहीं दिख रही है। बजट सत्र के दौरान विधान परिषद में इस पर जमकर नोकझोंक हुई। सपा ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई। बिहार का उदाहरण दिया। भाजपा ने इस मांग को खारिज कर दिया। कहा- जनगणना करने का विषय भारत सरकार के पास है ये राज्य का मामला ही नहीं है। इस पर सपा ने वॉकआउट किया। आखिर भाजपा जातिगत जनगणना क्यों नहीं कराना चाहती? उसे किस बात का डर है? जातिगत जनगणना से सपा को क्या फायदा होगा? जातियों को इससे क्या फायदा मिलेगा? इन सवालों के जवाब पढ़िए भास्कर एक्सप्लेनर में- सवाल- 1: जातिगत जनगणना कब शुरू और कब बंद हुई? जवाब: देश में सबसे पहले अंग्रेजों ने 1881 में जनगणना की शुरुआत की थी। इसमें जातियों की भी गिनती कराई गई थी। साल 1891, 1901, 1911, 1921, 1931 और 1941 में जातिवार जनगणना हुई थी। लेकिन, 1941 के जाति के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए थे। सवाल- 2: यूपी में जातिगत जनगणना की मांग कब से उठ रही? जवाब: यह पहली बार नहीं है, जब यूपी में जातिगत जनगणना की मांग उठी हो। 2001 में भी विपक्ष जातिगत जनगणना की मांग कर चुका है। बीच-बीच में यह मांग सपा और कांग्रेस उठाती रही। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को उठा चुके हैं। सवाल- 3: क्या जातियों को लेकर यूपी में किसी सरकार ने कोई रिपोर्ट तैयार कराई? जवाब: साल 1931 की जनगणना के बाद ओबीसी की जनसंख्या का कोई प्रामाणिक जातिवार आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। हालांकि, राजनाथ सिंह सरकार के कार्यकाल में साल 2001 में तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री हुकुम सिंह की अध्यक्षता में बनी सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट तैयार हुई थी। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश की पिछड़ी जातियों में सर्वाधिक 19.4% हिस्सेदारी यादवों की हैं। दूसरे पायदान पर कुर्मी और पटेल हैं, जिनकी ओबीसी में 7.4% हिस्सेदारी है। ओबीसी की कुल संख्या में निषाद, मल्लाह और केवट 4.3%, भर और राजभर 2.4%, लोध 4.8% और जाट 3.6% थे। समिति ने प्रदेश की 79 अन्य पिछड़ी जातियों की आबादी 7.56 करोड़ होने का अनुमान लगाया था। यह आकलन ग्रामीण क्षेत्रों में रखे जाने वाले परिवार रजिस्टरों के आधार पर किया गया था। यह मानते हुए कि नगरीय क्षेत्रों की आबादी राज्य की कुल जनसंख्या का 20.78% है। साल 2001 में यूपी में ओबीसी की संख्या राज्य की 16.61 करोड़ की कुल आबादी के 50% से ज्यादा रही होगी। सवाल- 4: अब तक किन-किन राज्यों में जातिगत जनगणना हुई? जवाब- जातिगत जनगणना कराने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। लेकिन, कुछ राज्यों ने जातीय गणना और आर्थिक सर्वेक्षण के नाम पर जातियों की गणना कराई है। जातीय गणना के आंकड़े जारी करने वाला पहला और इकलौता राज्य बिहार है। इसने 2 अक्टूबर, 2023 को ये आंकड़े जारी किए थे। कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 2014-15 में जाति आधारित जनगणना कराने का फैसला किया। इसे असंवैधानिक बताया गया तो नाम बदलकर ‘सामाजिक एवं आर्थिक’ सर्वे कर दिया। इस पर 150 करोड़ रुपए खर्च हुए। 2017 के अंत में कंठराज समिति ने रिपोर्ट सरकार को सौंपी। सर्वे की रिपोर्ट को सिद्धारमैया सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया। इसके बाद आई सरकारों ने भी इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। एक साल पहले बिहार सरकार के जातीय गणना के आंकड़ों में अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36%, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 27% हैं। सबसे ज्यादा 14.26% यादव हैं। ब्राह्मण 3.65%, राजपूत (ठाकुर) 3.45% हैं। सबसे कम संख्या 0.60% कायस्थों की है। सवाल- 5: क्या कभी केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना को लेकर कुछ किया? जवाब: मनमोहन सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना यानी SECC कराने का फैसला किया। SECC का डेटा 2013 तक जुटाया गया। इसे प्रोसेस करके फाइनल रिपोर्ट तैयार होती, तब तक सत्ता बदल गई। फिर 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आ गई। 2016 में जातियों को छोड़कर SECC का बाकी डेटा मोदी सरकार ने जारी कर दिया। चूंकि कमेटी के अन्य सदस्यों का नाम तय नहीं हुआ, लिहाजा कभी मीटिंग ही नहीं हुई। इसीलिए जनगणना में जुटाए जातियों के आंकड़े जस के तस पड़े हैं। यानी जारी ही नहीं हुए। राष्ट्रीय स्तर पर 1931 की अंतिम जातिगत जनगणना में जातियों की कुल संख्या 4,147 थी। SECC-2011 में 46 लाख विभिन्न जातियां दर्ज हुई हैं। चूंकि देश में इतनी जातियां होना नामुमकिन हैं। सरकार ने कहा है कि पूरा डेटा-सेट खामियों से भरा हुआ है। इस वजह से रिजर्वेशन और पॉलिसी डिसीजन में इस डेटा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सवाल- 6: जातिगत जनगणना से भाजपा सरकार बचती क्यों दिख रही? जवाब: मंडल कमीशन के बाद की राजनीति में बड़ी संख्या में मजबूत क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में। RJD व JDU ने बिहार में, सपा ने यूपी में OBC का मसला उठाया और OBC वोटरों का जबरदस्त समर्थन पाने में सफल रहे। हकीकत में OBC वोटर ही बड़ी संख्या में क्षेत्रीय दलों के प्रमुख समर्थक बन गए। पिछले कुछ चुनावों से यूपी से लेकर दूसरे राज्यों में OBC वोटरों में भाजपा की लोकप्रियता बढ़ी है। भाजपा उत्तर भारत के कई राज्यों में प्रभावी OBC की तुलना में निचले OBC को लुभाने में अधिक सफल रही। इसलिए भाजपा ने भले ही OBC पर अपनी पहुंच बनाकर चुनावी फायदा ले लिया हो। लेकिन इनके बीच उसका समर्थन उतना मजबूत नहीं, जितना कि उच्च वर्ग और उच्च जातियों के बीच है। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) के संजय कुमार के मुताबिक, भाजपा को जातिगत गणना से कतराने का मुख्य कारण एक डर है। अगर जातिगत गणना हो जाती है, तो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को केंद्र सरकार की नौकरियां और शिक्षण संस्थाओं में OBC कोटे में बदलाव के लिए सरकार पर दबाव बनाने का मुद्दा मिल जाएगा। बहुत हद तक संभव है कि OBC की संख्या उन्हें केंद्र की नौकरियों में मिल रहे मौजूदा आरक्षण से कहीं अधिक हो सकती है। यह मंडल-2 जैसी स्थिति पैदा कर सकती है और भाजपा को चुनौती देने का एजेंडा तलाश रहीं क्षेत्रीय पार्टियों को नया जीवन भी। यह डर भी है कि OBC की संख्या भानुमती का पिटारा खोल सकती है, जिसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। माना जाता है, भाजपा को इस तरह की जनगणना से डर यह है कि इससे अगड़ी जातियों के उसके वोटर नाराज हो सकते हैं। इसके अलावा भाजपा का परंपरागत हिंदू वोट बैंक इससे बिखर सकता है। इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं- पिछड़ों की हकमारी को लेकर भाजपा पर सवाल उठते रहते हैं। सरकार पर सबसे बड़ा आरोप है कि पिछड़ों की जनगणना नहीं कराना चाहती। दलितों की गणना तो समय-समय पर होती रहती है। प्रदेश के स्तर पर अगर पिछड़ों की संख्या 85% है और स्वर्ण 15% हैं और इस अनुपात में शासन में गवर्नेंस में भागीदारी नहीं है तो समाजवादी पार्टी का यह आरोप पुख्ता होता है। सवाल- 7: जातिगत जनगणना से सपा को क्या फायदा? जवाब: यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन कहते हैं- सपा जिस PDA (पिछड़ा, दलित, आदिवासी) की बात करती है, उसके लिए जातिवार जनगणना का मुद्दा सूट करता है। सपा यह बताने की कोशिश कर रही है कि अगर जातिवार आंकड़े पता चल जाएं, तो हर जाति का मॉडल सोशल स्टेटस पता लग जाएगा। इससे जिसकी स्थिति कमजोर है, उसके लिए योजनाएं बनाई जा सकती हैं। क्योंकि समाजवादी पार्टी इनका प्रतिनिधित्व करने की बात कर रही है। इसकी मांग उठा रही है, इसलिए सपा को इसमें फायदा नजर आ रहा है। सवाल- 8: जातिगत जनगणना से जातियों को क्या फायदा मिलेगा? जवाब: इससे पता चल सकेगा कि राज्य में किस जाति की कितनी आबादी है। अभी सभी जातियां अपनी आबादी बढ़ा-चढ़ाकर बताती हैं। सरकारी और प्राइवेट नौकरी या व्यापार में किनकी कितनी हिस्सेदारी है? जमीन-जायदाद में किसकी कितनी हिस्सेदारी है? किस वर्ग में शिक्षा का क्या स्तर है? किस जाति के कितने लोग दूसरे राज्य या विदेश में रहते हैं? यह सब पता चल सकेगा। इसी आधार पर सरकार योजनाएं बनाने में मदद मिल सकती है। आरक्षण इसी आधार पर घट या बढ़ सकता है। —————- यह खबर भी पढ़ें…. योगी क्यों बोले- बेटे का नाम औरंगजेब नहीं रखते मुसलमान, हिंदुओं से नफरत करता था या मंदिर बनवाए मुगल बादशाह औरंगजेब को लेकर महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी के बयान से सियासी घमासान छिड़ा है। महाराष्ट्र विधानसभा ने उन्हें पूरे बजट सत्र के लिए सस्पेंड कर दिया। आजमी के बयान पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘ये लोग (सपा) औरंगजेब को अपना आदर्श मान रहे हैं। औरंगजेब के पिता शाहजहां ने अपनी जीवनी में उसे कोसते हुए लिखा- तुमसे अच्छे तो ये हिंदू हैं, जो जीते जी अपने मां-बाप की सेवा करते हैं। खुदा करे कि ऐसा कमबख्त किसी को पैदा न हो।’ पढ़ें पूरी खबर… यूपी में जातिगत जनगणना को लेकर बहस थमती नहीं दिख रही है। बजट सत्र के दौरान विधान परिषद में इस पर जमकर नोकझोंक हुई। सपा ने जातिगत जनगणना की मांग उठाई। बिहार का उदाहरण दिया। भाजपा ने इस मांग को खारिज कर दिया। कहा- जनगणना करने का विषय भारत सरकार के पास है ये राज्य का मामला ही नहीं है। इस पर सपा ने वॉकआउट किया। आखिर भाजपा जातिगत जनगणना क्यों नहीं कराना चाहती? उसे किस बात का डर है? जातिगत जनगणना से सपा को क्या फायदा होगा? जातियों को इससे क्या फायदा मिलेगा? इन सवालों के जवाब पढ़िए भास्कर एक्सप्लेनर में- सवाल- 1: जातिगत जनगणना कब शुरू और कब बंद हुई? जवाब: देश में सबसे पहले अंग्रेजों ने 1881 में जनगणना की शुरुआत की थी। इसमें जातियों की भी गिनती कराई गई थी। साल 1891, 1901, 1911, 1921, 1931 और 1941 में जातिवार जनगणना हुई थी। लेकिन, 1941 के जाति के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए थे। सवाल- 2: यूपी में जातिगत जनगणना की मांग कब से उठ रही? जवाब: यह पहली बार नहीं है, जब यूपी में जातिगत जनगणना की मांग उठी हो। 2001 में भी विपक्ष जातिगत जनगणना की मांग कर चुका है। बीच-बीच में यह मांग सपा और कांग्रेस उठाती रही। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को उठा चुके हैं। सवाल- 3: क्या जातियों को लेकर यूपी में किसी सरकार ने कोई रिपोर्ट तैयार कराई? जवाब: साल 1931 की जनगणना के बाद ओबीसी की जनसंख्या का कोई प्रामाणिक जातिवार आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। हालांकि, राजनाथ सिंह सरकार के कार्यकाल में साल 2001 में तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री हुकुम सिंह की अध्यक्षता में बनी सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट तैयार हुई थी। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश की पिछड़ी जातियों में सर्वाधिक 19.4% हिस्सेदारी यादवों की हैं। दूसरे पायदान पर कुर्मी और पटेल हैं, जिनकी ओबीसी में 7.4% हिस्सेदारी है। ओबीसी की कुल संख्या में निषाद, मल्लाह और केवट 4.3%, भर और राजभर 2.4%, लोध 4.8% और जाट 3.6% थे। समिति ने प्रदेश की 79 अन्य पिछड़ी जातियों की आबादी 7.56 करोड़ होने का अनुमान लगाया था। यह आकलन ग्रामीण क्षेत्रों में रखे जाने वाले परिवार रजिस्टरों के आधार पर किया गया था। यह मानते हुए कि नगरीय क्षेत्रों की आबादी राज्य की कुल जनसंख्या का 20.78% है। साल 2001 में यूपी में ओबीसी की संख्या राज्य की 16.61 करोड़ की कुल आबादी के 50% से ज्यादा रही होगी। सवाल- 4: अब तक किन-किन राज्यों में जातिगत जनगणना हुई? जवाब- जातिगत जनगणना कराने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार के पास है। लेकिन, कुछ राज्यों ने जातीय गणना और आर्थिक सर्वेक्षण के नाम पर जातियों की गणना कराई है। जातीय गणना के आंकड़े जारी करने वाला पहला और इकलौता राज्य बिहार है। इसने 2 अक्टूबर, 2023 को ये आंकड़े जारी किए थे। कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 2014-15 में जाति आधारित जनगणना कराने का फैसला किया। इसे असंवैधानिक बताया गया तो नाम बदलकर ‘सामाजिक एवं आर्थिक’ सर्वे कर दिया। इस पर 150 करोड़ रुपए खर्च हुए। 2017 के अंत में कंठराज समिति ने रिपोर्ट सरकार को सौंपी। सर्वे की रिपोर्ट को सिद्धारमैया सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया। इसके बाद आई सरकारों ने भी इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। एक साल पहले बिहार सरकार के जातीय गणना के आंकड़ों में अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36%, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 27% हैं। सबसे ज्यादा 14.26% यादव हैं। ब्राह्मण 3.65%, राजपूत (ठाकुर) 3.45% हैं। सबसे कम संख्या 0.60% कायस्थों की है। सवाल- 5: क्या कभी केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना को लेकर कुछ किया? जवाब: मनमोहन सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना यानी SECC कराने का फैसला किया। SECC का डेटा 2013 तक जुटाया गया। इसे प्रोसेस करके फाइनल रिपोर्ट तैयार होती, तब तक सत्ता बदल गई। फिर 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आ गई। 2016 में जातियों को छोड़कर SECC का बाकी डेटा मोदी सरकार ने जारी कर दिया। चूंकि कमेटी के अन्य सदस्यों का नाम तय नहीं हुआ, लिहाजा कभी मीटिंग ही नहीं हुई। इसीलिए जनगणना में जुटाए जातियों के आंकड़े जस के तस पड़े हैं। यानी जारी ही नहीं हुए। राष्ट्रीय स्तर पर 1931 की अंतिम जातिगत जनगणना में जातियों की कुल संख्या 4,147 थी। SECC-2011 में 46 लाख विभिन्न जातियां दर्ज हुई हैं। चूंकि देश में इतनी जातियां होना नामुमकिन हैं। सरकार ने कहा है कि पूरा डेटा-सेट खामियों से भरा हुआ है। इस वजह से रिजर्वेशन और पॉलिसी डिसीजन में इस डेटा का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। सवाल- 6: जातिगत जनगणना से भाजपा सरकार बचती क्यों दिख रही? जवाब: मंडल कमीशन के बाद की राजनीति में बड़ी संख्या में मजबूत क्षेत्रीय दलों का उभार हुआ। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश में। RJD व JDU ने बिहार में, सपा ने यूपी में OBC का मसला उठाया और OBC वोटरों का जबरदस्त समर्थन पाने में सफल रहे। हकीकत में OBC वोटर ही बड़ी संख्या में क्षेत्रीय दलों के प्रमुख समर्थक बन गए। पिछले कुछ चुनावों से यूपी से लेकर दूसरे राज्यों में OBC वोटरों में भाजपा की लोकप्रियता बढ़ी है। भाजपा उत्तर भारत के कई राज्यों में प्रभावी OBC की तुलना में निचले OBC को लुभाने में अधिक सफल रही। इसलिए भाजपा ने भले ही OBC पर अपनी पहुंच बनाकर चुनावी फायदा ले लिया हो। लेकिन इनके बीच उसका समर्थन उतना मजबूत नहीं, जितना कि उच्च वर्ग और उच्च जातियों के बीच है। सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) के संजय कुमार के मुताबिक, भाजपा को जातिगत गणना से कतराने का मुख्य कारण एक डर है। अगर जातिगत गणना हो जाती है, तो क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को केंद्र सरकार की नौकरियां और शिक्षण संस्थाओं में OBC कोटे में बदलाव के लिए सरकार पर दबाव बनाने का मुद्दा मिल जाएगा। बहुत हद तक संभव है कि OBC की संख्या उन्हें केंद्र की नौकरियों में मिल रहे मौजूदा आरक्षण से कहीं अधिक हो सकती है। यह मंडल-2 जैसी स्थिति पैदा कर सकती है और भाजपा को चुनौती देने का एजेंडा तलाश रहीं क्षेत्रीय पार्टियों को नया जीवन भी। यह डर भी है कि OBC की संख्या भानुमती का पिटारा खोल सकती है, जिसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। माना जाता है, भाजपा को इस तरह की जनगणना से डर यह है कि इससे अगड़ी जातियों के उसके वोटर नाराज हो सकते हैं। इसके अलावा भाजपा का परंपरागत हिंदू वोट बैंक इससे बिखर सकता है। इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं- पिछड़ों की हकमारी को लेकर भाजपा पर सवाल उठते रहते हैं। सरकार पर सबसे बड़ा आरोप है कि पिछड़ों की जनगणना नहीं कराना चाहती। दलितों की गणना तो समय-समय पर होती रहती है। प्रदेश के स्तर पर अगर पिछड़ों की संख्या 85% है और स्वर्ण 15% हैं और इस अनुपात में शासन में गवर्नेंस में भागीदारी नहीं है तो समाजवादी पार्टी का यह आरोप पुख्ता होता है। सवाल- 7: जातिगत जनगणना से सपा को क्या फायदा? जवाब: यूपी के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन कहते हैं- सपा जिस PDA (पिछड़ा, दलित, आदिवासी) की बात करती है, उसके लिए जातिवार जनगणना का मुद्दा सूट करता है। सपा यह बताने की कोशिश कर रही है कि अगर जातिवार आंकड़े पता चल जाएं, तो हर जाति का मॉडल सोशल स्टेटस पता लग जाएगा। इससे जिसकी स्थिति कमजोर है, उसके लिए योजनाएं बनाई जा सकती हैं। क्योंकि समाजवादी पार्टी इनका प्रतिनिधित्व करने की बात कर रही है। इसकी मांग उठा रही है, इसलिए सपा को इसमें फायदा नजर आ रहा है। सवाल- 8: जातिगत जनगणना से जातियों को क्या फायदा मिलेगा? जवाब: इससे पता चल सकेगा कि राज्य में किस जाति की कितनी आबादी है। अभी सभी जातियां अपनी आबादी बढ़ा-चढ़ाकर बताती हैं। सरकारी और प्राइवेट नौकरी या व्यापार में किनकी कितनी हिस्सेदारी है? जमीन-जायदाद में किसकी कितनी हिस्सेदारी है? किस वर्ग में शिक्षा का क्या स्तर है? किस जाति के कितने लोग दूसरे राज्य या विदेश में रहते हैं? यह सब पता चल सकेगा। इसी आधार पर सरकार योजनाएं बनाने में मदद मिल सकती है। आरक्षण इसी आधार पर घट या बढ़ सकता है। —————- यह खबर भी पढ़ें…. योगी क्यों बोले- बेटे का नाम औरंगजेब नहीं रखते मुसलमान, हिंदुओं से नफरत करता था या मंदिर बनवाए मुगल बादशाह औरंगजेब को लेकर महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी के बयान से सियासी घमासान छिड़ा है। महाराष्ट्र विधानसभा ने उन्हें पूरे बजट सत्र के लिए सस्पेंड कर दिया। आजमी के बयान पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘ये लोग (सपा) औरंगजेब को अपना आदर्श मान रहे हैं। औरंगजेब के पिता शाहजहां ने अपनी जीवनी में उसे कोसते हुए लिखा- तुमसे अच्छे तो ये हिंदू हैं, जो जीते जी अपने मां-बाप की सेवा करते हैं। खुदा करे कि ऐसा कमबख्त किसी को पैदा न हो।’ पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
यूपी सरकार जातीय जनगणना क्यों नहीं कराना चाहती:हिंदू वोटबैंक बंटने का डर; सपा पिछड़ों को एकजुट कर सियासी फायदा उठाएगी
