हरियाणा के रेवाड़ी में शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने अपने समर्थकों की मीटिंग ली। रामपुरा हाउस में बावल विधानसभा के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि हर बार आप MLA लेकर आते थे और मैंने उसका साथ देकर जिताने का काम किया। लेकिन इस बार मैं डॉ. कृष्ण कुमार के रूप में विधायक दे रहा हूं, इन्हें जिताने की जिम्मेदारी अब आपकी है। मीटिंग के दौरान मौजूद बावल से प्रत्याशी डॉ. कृष्ण कुमार से राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि आज जो ये कार्यकर्ता पहुंचे हैं, ये मेरा कुनबा है। आज से इन्हें संभालने की जिम्मेदारी भी आपकी है। बता दें कि राव इंद्रजीत सिंह के 5 समर्थकों को इस बार बीजेपी ने टिकट दिया हैं। उन्हें जिताने की जिम्मेदारी भी राव इंद्रजीत सिंह के ही कंधों पर है। ऐसे में राव इंद्रजीत सिंह हर हल्के के कार्यकर्ताओं की मीटिंग ले रहे हैं। 5 सीटे राव के कहने से दी, 2 पर उनकी पसंद के उम्मीदवार उतारे इस बार राव इंद्रजीत सिंह अहीरवाल बेल्ट की 11 में से 7 सीटों पर अपने समर्थकों की टिकट मांग रहे थे। पार्टी उन्हें 5 सीटें देने पर राजी हो गई। अटेली से उनकी बेटी आरती राव, नारनौल से ओमप्रकाश यादव, कोसली से अनिल डहीना, बावल से डॉ. कृष्ण कुमार और पटौदी से बिमला चौधरी को टिकट दी गई हैं। इसी तरह रेवाड़ी में राव इंद्रजीत सिंह की पसंद से लक्ष्मण सिंह यादव और गुरुग्राम में मुकेश शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा गया है। इस बार हालात विपरित दरअसल, इस बार दक्षिणी हरियाणा में भी पिछले 2 चुनाव के मुकाबले हालात बदले हुए हैं। इसका अंदाजा राव इंद्रजीत सिंह को भी हैं। उन्होंने एक चैनल के साथ इंटरव्यू के दौरान इसका जिक्र भी किया था। उनके मुताबिक, 2014 और 2019 वाला माहौल इस बार नहीं है। लेकिन उनकी कोशिश है कि कम से कम पिछले चुनाव वाला परिणाम तो दोहराया जाए। राव इंद्रजीत की खुद की बेटी आरती राव अटेली से चुनाव लड़ रही है। अगले कुछ दिनों में राव इंद्रजीत सिंह पूरे अहीरवाल इलाके का दौरा करेंगे। हरियाणा के रेवाड़ी में शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने अपने समर्थकों की मीटिंग ली। रामपुरा हाउस में बावल विधानसभा के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि हर बार आप MLA लेकर आते थे और मैंने उसका साथ देकर जिताने का काम किया। लेकिन इस बार मैं डॉ. कृष्ण कुमार के रूप में विधायक दे रहा हूं, इन्हें जिताने की जिम्मेदारी अब आपकी है। मीटिंग के दौरान मौजूद बावल से प्रत्याशी डॉ. कृष्ण कुमार से राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि आज जो ये कार्यकर्ता पहुंचे हैं, ये मेरा कुनबा है। आज से इन्हें संभालने की जिम्मेदारी भी आपकी है। बता दें कि राव इंद्रजीत सिंह के 5 समर्थकों को इस बार बीजेपी ने टिकट दिया हैं। उन्हें जिताने की जिम्मेदारी भी राव इंद्रजीत सिंह के ही कंधों पर है। ऐसे में राव इंद्रजीत सिंह हर हल्के के कार्यकर्ताओं की मीटिंग ले रहे हैं। 5 सीटे राव के कहने से दी, 2 पर उनकी पसंद के उम्मीदवार उतारे इस बार राव इंद्रजीत सिंह अहीरवाल बेल्ट की 11 में से 7 सीटों पर अपने समर्थकों की टिकट मांग रहे थे। पार्टी उन्हें 5 सीटें देने पर राजी हो गई। अटेली से उनकी बेटी आरती राव, नारनौल से ओमप्रकाश यादव, कोसली से अनिल डहीना, बावल से डॉ. कृष्ण कुमार और पटौदी से बिमला चौधरी को टिकट दी गई हैं। इसी तरह रेवाड़ी में राव इंद्रजीत सिंह की पसंद से लक्ष्मण सिंह यादव और गुरुग्राम में मुकेश शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा गया है। इस बार हालात विपरित दरअसल, इस बार दक्षिणी हरियाणा में भी पिछले 2 चुनाव के मुकाबले हालात बदले हुए हैं। इसका अंदाजा राव इंद्रजीत सिंह को भी हैं। उन्होंने एक चैनल के साथ इंटरव्यू के दौरान इसका जिक्र भी किया था। उनके मुताबिक, 2014 और 2019 वाला माहौल इस बार नहीं है। लेकिन उनकी कोशिश है कि कम से कम पिछले चुनाव वाला परिणाम तो दोहराया जाए। राव इंद्रजीत की खुद की बेटी आरती राव अटेली से चुनाव लड़ रही है। अगले कुछ दिनों में राव इंद्रजीत सिंह पूरे अहीरवाल इलाके का दौरा करेंगे। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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हरियाणा में नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में गठित भाजपा की नई सरकार 12 जून को अपने 3 माह का कार्यकाल पूरा कर चुकी है। 12 मार्च को मुख्यमंत्री नायब सैनी के साथ शपथ लेने वाले 5 कैबिनेट मंत्रियों में रणजीत सिंह भी शामिल थे, जो तब सिरसा जिले की रानियां विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक थे। 22 मार्च को रणजीत को ऊर्जा और जेल विभाग आबंटित किए गए। हालांकि वह पिछली मनोहर लाल खट्टर सरकार में भी इन विभागों के मंत्री रह चुके थे। इसके बाद 24 मार्च की शाम रणजीत सिंह भाजपा में शामिल हो गए। जिसके कुछ समय बाद ही उन्हें हिसार लोकसभा सीट से पार्टी उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। जिस कारण रणजीत ने उसी दिन विधायक पद से त्यागपत्र दे दिया। इसलिए रणजीत चौटाला ने दिया इस्तीफा
चूंकि निर्दलीय विधायक रहते हुए कोई भी किसी राजनीतिक दल में शामिल नहीं हो सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उसे दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत विधानसभा सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। हालांकि विधायक पद से त्यागपत्र के साथ रणजीत ने प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्रीपद ने अपना इस्तीफा नहीं दिया। रानियां विधानसभा सीट से विधायक पद से त्यागपत्र देने के बाद स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता ने उसे स्वीकार कर लिया। क्यों उठ रहे नियुक्ति पर सवाल
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने 2 मई को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और हरियाणा गवर्नर बंडारू दत्तात्रेय को लेटर लिखकर उनकी नियुक्ति पर सवाल उठाए थे। लेटर में लिखा कि रणजीत सिंह 12 मार्च को वर्तमान 14वीं हरियाणा विधानसभा के सदस्य (विधायक) थे। इस दिन उन्होंने सीएम नायब सैनी के साथ मंत्रीपद के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली। इसके बाद 24 मार्च 2024 से विधायक के रूप में उनका इस्तीफा विधानसभा अध्यक्ष द्वारा स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद अब वह पूर्व विधायक या दूसरे शब्दों में एक गैर-विधायक हो गए हैं। मंत्री बने रहने के लिए लेनी होगी दोबारा शपथ
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164(4) के अनुसार गैर- विधायक के तौर पर अधिकतम 6 माह तक मंत्रीपद पर तो रह सकते हैं, लेकिन उसके लिए उन्हें हरियाणा के राज्यपाल द्वारा मंत्री के रूप में नए सिरे से पद एवं गोपनीयता की शपथ लेनी होगी। क्योंकि 24 मार्च 2024 से वे गैर-विधायक हैं। टेक्निकल सवाल यह भी है कि जब उन्होंने मंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली थी तब वह निर्दलीय विधायक थे, लेकिन अब वह भाजपा में शामिल हो चुके हैं, इसलिए गैर-विधायक होने के नाते मंत्री के रूप में उनका नया कार्यकाल माना जाएगा। कानूनी जानकारों का क्या कहना है?
राष्ट्रपति सचिवालय के अंडर सेक्रेटरी द्वारा 9 मई को इस विषय पर हरियाणा के मुख्य सचिव को लिखकर मामले में आवश्यक कार्यवाही करने एवं उसकी सूचना याचिकाकर्ता को देने बारे कहा गया था, हालांकि अभी तक हेमंत को हरियाणा सरकार से कोई जवाब नहीं प्राप्त हुआ है। हेमंत का कहना है कि जब भी केंद्र सरकार या राज्य सरकार में नियुक्त किसी मंत्री का निर्वाचन (सांसद या विधायक के रूप में, जैसा भी मामला हो) संबंधित उच्च न्यायालय या भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द या अमान्य घोषित कर दिया जाता है तो ऐसे सांसद या विधायक को तत्काल केंद्र सरकार या राज्य सरकार में मंत्रीपद से इस्तीफा देना होता है। वह व्यक्ति यह तर्क नहीं दे सकता कि गैर-सांसद या गैर-विधायक के रूप में भी, वह सांसद या विधायक के रूप में अपने अयोग्य होने की तिथि से अधिकतम छह महीने तक केंद्र या राज्य सरकार में मंत्री के रूप में बना रह सकता है।