लखनऊ में उठी मांग- नौकरी दो या जहर दे दो:यूपी रोडवेज में ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले परिवारों का दर्द; 7 साल से बंद है भर्ती

लखनऊ में उठी मांग- नौकरी दो या जहर दे दो:यूपी रोडवेज में ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वाले परिवारों का दर्द; 7 साल से बंद है भर्ती

लखनऊ में यूपी रोडवेज परिवहन निगम के बाहर पिछले एक सप्ताह से धरना चल रहा है। इसमें एक हजार से अधिक लोग शामिल हैं, जो परिवहन विभाग से नौकरी की मांग रहे हैं। ये वो लोग हैं जिनके परिवार के सदस्य यूपी रोडवेज के कर्मचारी थे और ड्यूटी के दौरान उनकी जान चली गई। इस धरने में वो लोग भी नौकरी की मांग कर रहे हैं, जिनके परिवार के सदस्यों ने कोरोनाकाल की ड्यूटी के दौरान जान गंवाई थी। इनके पोस्टर पर स्लोगन लिखा है। नियुक्ति दो या जहर दे दो। दैनिक भास्कर की टीम मौके पर पहुंची और धरने पर बैठे लोगों से बात की गई। कोरोना में हुई थी पिता की मौत इटावा के रहने वाले सुमित ठाकुर धरने पर बैठे हैं। उनके पिता श्रीराम लक्ष्यपाल सिंह यूपी रोडवेज में साइड मैकेनिक पद पर इटावा में तैनात थे। कोरोना के दौरान अगस्त 2021 में उनकी मौत हो गई थी। सुमित बताते हैं कि मेरे पिता परिवार में इकलौते कमाने वाले थे। वे कोरोना के दौरान ड्यूटी नहीं करना चाहते थे लेकिन जबरन उन्हें ड्यूटी पर बुलाया गया। आखिरकार संक्रमण की चपेट में आ गए और उनकी मौत हो गई। सुमित कहते हैं कि पिता की मौत के बाद परिवार आर्थिक संकट में आ गया है। मां बीमार रहती हैं। बहन की शादी करनी है। पेंशन के नाम पर मां को सिर्फ 1901 रुपए मिलते हैं। इसमें गुजारा नहीं हो पाता। मृतक आश्रित कोटे से नौकरी का वादा सरकार ने किया था लेकिन हर बार आश्वासन ही मिलता है। सुमित की तरह 50 मृतक आश्रित धरना देने पहुंचे हैं। मृतकों के आश्रित परिवार आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इसके लिए वे परिवहन निगम के अधिकारियों और सरकार के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन मांग अभी तक पूरी नहीं हुई। मृतक आश्रित अब मुख्यमंत्री से ही आस लगाए बैठे हैं। इसमें करीब 950 सौ की संख्या में उन परिवारों के बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं, जिनके परिवार के सदस्य की मौत 2017 के बाद अभी तक हुई है। कोरोना में कर्मचारियों के मृतक आश्रितों को नौकरी क्यों नहीं? रोडवेज कर्मचारी संगठन के पदाधिकारी गिरीश मिश्रा बताते हैं कि कोरोना में हुई मौत का एक बार आंकड़ा बनवाया गया। इस दौरान 50 कर्मचारियों के मरने की जानकारी सामने आई। इसमें रेगुलर के साथ में संविदा कर्मी भी शामिल हैं। उनका कहना है कि 2017 के बाद मृतक आश्रितों को अभी तक भर्ती नहीं किया गया है। 2017 से 2020 तक मृतक आश्रित की भर्ती नहीं हुई है। इसके बाद ही कोरोना आ गया। इधर, तीन सालों में मृतक आश्रित का बैकलाग चला गया। इसकी वजह से कोरोना में मृत हुए कर्मचारियों के मृतक आश्रितों को नौकरी देने का मामला अटक गया। एक बार मामला कैबिनेट तक गया लेकिन इस पर सहमति नहीं बनी। उन्होंने बताया कि 2008 में 650, 2016 में 1200, 2017-18 में 587 मृतक आश्रितों को नौकरी मिली थी। बीते 7 साल से कोई नियुक्ति नहीं हो रही है। 140 करोड़ के मुनाफे में है रोडवेज रोडवेज प्रवक्ता अजीत सिंह बताते हैं कि पिछले वित्त वर्ष में UPSRTC के पास में 140 करोड़ रुपए का लाभ आया। इस बार भी यह ऑडिट कराया जा रहा है। मृतक आश्रितों से संबंधित प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। इसमें फैसला होने में एक से दो महीने का समय लगेगा। निगम के मुनाफे में रहने पर ही मृतक आश्रितों को नौकरी देने का नियम है। वहीं, नौकरी देने की मांग करते हुए परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह से मिले मृतक आश्रित निराश हैं। उनका कहना है कि मंत्री उनकी समस्याओं को समझ नहीं रहे। उनसे नेतागिरी करने की बात कह रहे हैं। कोरोना में पांच सदस्यीय परिवार में 3 की मौत
अलीगढ़ के रहने वाले शिवम शर्मा के परिवार में कोरोना के दौरान तीन लोगों की मौत हो गई। पिता निगम में लिपिक के पद कार्यरत थे। उनका कहना है कि अप्रैल 2021 में पिता के मौत के दूसरे दिन दादी की मौत हो गई थी। इसके बाद शिवम भी कोरोना संक्रमित हो गए। उनका कहना है कि निगम मृतक आश्रित को नौकरी नहीं दे रहा। विभाग में पेंशन नहीं है। 1800 रूपए मां को पेंशन मिलती है। कई लोग धरने में इसलिए नहीं आ पा रहे कि उनके पास यहां आने तक का पैसा नही है। हमें नेतागिरी का कोई शौक नहीं है। वहीं, मेरठ के रहने वाले मृतक आश्रित ने कहा कि अप्रैल 2021 में पिता की मौत हो गई लेकिन नियुक्ति नहीं मिल रही। बैनर लगाए थे, ये भी फाड़ दिए गए। बारिश और धूप हो रही कोई सुनने वाला नहीं है। धरनास्थल पर ही धूप और बारिश में भी लोग डटे
परिवहन निगम के मुख्यालय पर महिलाएं भी धरना देने पहुंची हैं। गोरखपुर से आईं पूनम सिंह का कहना है कि वे तीन बार पहले आ चुकी हैं। अभी मौसम गर्म है। रात में परिवहन निगम के कार्यालय के बाहर ही बैठे रहते हैं। रात में ताला बंद कर दिया जा रहा कि कोई परिसर के अंदर न जाने पाए। गर्मी में दो -तीन दिन से नहाए नहीं हैं। शौच के लिए पास के सार्वजनिक शौचालय में जाते हैं। वहीं, चंदमती देवी का कहना है कि मजबूरी में खुले में भी जाना पड़ता है। ​​​​​​कासगंज के त्रिलोकी का कहना है कि मंत्री कहते हैं नेतागिरी करो। हमने बीजेपी को वोट दिया है। उनको सपोर्ट किया है। कहा कि उनसे अपना हक मांग रहे। भीख नहीं मांग रहे। मां,भाई परिवार में हैं। नवंबर 2019 में ड्राइवर के पद पर कार्यरत पिता की मौत हो गई थी। मां की तबियत खराब रहती है। उन्हें खून चढ़ता है। नौकरी के बिना यह सब करने में मुश्किल हो रहा है। लखनऊ में यूपी रोडवेज परिवहन निगम के बाहर पिछले एक सप्ताह से धरना चल रहा है। इसमें एक हजार से अधिक लोग शामिल हैं, जो परिवहन विभाग से नौकरी की मांग रहे हैं। ये वो लोग हैं जिनके परिवार के सदस्य यूपी रोडवेज के कर्मचारी थे और ड्यूटी के दौरान उनकी जान चली गई। इस धरने में वो लोग भी नौकरी की मांग कर रहे हैं, जिनके परिवार के सदस्यों ने कोरोनाकाल की ड्यूटी के दौरान जान गंवाई थी। इनके पोस्टर पर स्लोगन लिखा है। नियुक्ति दो या जहर दे दो। दैनिक भास्कर की टीम मौके पर पहुंची और धरने पर बैठे लोगों से बात की गई। कोरोना में हुई थी पिता की मौत इटावा के रहने वाले सुमित ठाकुर धरने पर बैठे हैं। उनके पिता श्रीराम लक्ष्यपाल सिंह यूपी रोडवेज में साइड मैकेनिक पद पर इटावा में तैनात थे। कोरोना के दौरान अगस्त 2021 में उनकी मौत हो गई थी। सुमित बताते हैं कि मेरे पिता परिवार में इकलौते कमाने वाले थे। वे कोरोना के दौरान ड्यूटी नहीं करना चाहते थे लेकिन जबरन उन्हें ड्यूटी पर बुलाया गया। आखिरकार संक्रमण की चपेट में आ गए और उनकी मौत हो गई। सुमित कहते हैं कि पिता की मौत के बाद परिवार आर्थिक संकट में आ गया है। मां बीमार रहती हैं। बहन की शादी करनी है। पेंशन के नाम पर मां को सिर्फ 1901 रुपए मिलते हैं। इसमें गुजारा नहीं हो पाता। मृतक आश्रित कोटे से नौकरी का वादा सरकार ने किया था लेकिन हर बार आश्वासन ही मिलता है। सुमित की तरह 50 मृतक आश्रित धरना देने पहुंचे हैं। मृतकों के आश्रित परिवार आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। इसके लिए वे परिवहन निगम के अधिकारियों और सरकार के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन मांग अभी तक पूरी नहीं हुई। मृतक आश्रित अब मुख्यमंत्री से ही आस लगाए बैठे हैं। इसमें करीब 950 सौ की संख्या में उन परिवारों के बच्चे और महिलाएं भी शामिल हैं, जिनके परिवार के सदस्य की मौत 2017 के बाद अभी तक हुई है। कोरोना में कर्मचारियों के मृतक आश्रितों को नौकरी क्यों नहीं? रोडवेज कर्मचारी संगठन के पदाधिकारी गिरीश मिश्रा बताते हैं कि कोरोना में हुई मौत का एक बार आंकड़ा बनवाया गया। इस दौरान 50 कर्मचारियों के मरने की जानकारी सामने आई। इसमें रेगुलर के साथ में संविदा कर्मी भी शामिल हैं। उनका कहना है कि 2017 के बाद मृतक आश्रितों को अभी तक भर्ती नहीं किया गया है। 2017 से 2020 तक मृतक आश्रित की भर्ती नहीं हुई है। इसके बाद ही कोरोना आ गया। इधर, तीन सालों में मृतक आश्रित का बैकलाग चला गया। इसकी वजह से कोरोना में मृत हुए कर्मचारियों के मृतक आश्रितों को नौकरी देने का मामला अटक गया। एक बार मामला कैबिनेट तक गया लेकिन इस पर सहमति नहीं बनी। उन्होंने बताया कि 2008 में 650, 2016 में 1200, 2017-18 में 587 मृतक आश्रितों को नौकरी मिली थी। बीते 7 साल से कोई नियुक्ति नहीं हो रही है। 140 करोड़ के मुनाफे में है रोडवेज रोडवेज प्रवक्ता अजीत सिंह बताते हैं कि पिछले वित्त वर्ष में UPSRTC के पास में 140 करोड़ रुपए का लाभ आया। इस बार भी यह ऑडिट कराया जा रहा है। मृतक आश्रितों से संबंधित प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। इसमें फैसला होने में एक से दो महीने का समय लगेगा। निगम के मुनाफे में रहने पर ही मृतक आश्रितों को नौकरी देने का नियम है। वहीं, नौकरी देने की मांग करते हुए परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह से मिले मृतक आश्रित निराश हैं। उनका कहना है कि मंत्री उनकी समस्याओं को समझ नहीं रहे। उनसे नेतागिरी करने की बात कह रहे हैं। कोरोना में पांच सदस्यीय परिवार में 3 की मौत
अलीगढ़ के रहने वाले शिवम शर्मा के परिवार में कोरोना के दौरान तीन लोगों की मौत हो गई। पिता निगम में लिपिक के पद कार्यरत थे। उनका कहना है कि अप्रैल 2021 में पिता के मौत के दूसरे दिन दादी की मौत हो गई थी। इसके बाद शिवम भी कोरोना संक्रमित हो गए। उनका कहना है कि निगम मृतक आश्रित को नौकरी नहीं दे रहा। विभाग में पेंशन नहीं है। 1800 रूपए मां को पेंशन मिलती है। कई लोग धरने में इसलिए नहीं आ पा रहे कि उनके पास यहां आने तक का पैसा नही है। हमें नेतागिरी का कोई शौक नहीं है। वहीं, मेरठ के रहने वाले मृतक आश्रित ने कहा कि अप्रैल 2021 में पिता की मौत हो गई लेकिन नियुक्ति नहीं मिल रही। बैनर लगाए थे, ये भी फाड़ दिए गए। बारिश और धूप हो रही कोई सुनने वाला नहीं है। धरनास्थल पर ही धूप और बारिश में भी लोग डटे
परिवहन निगम के मुख्यालय पर महिलाएं भी धरना देने पहुंची हैं। गोरखपुर से आईं पूनम सिंह का कहना है कि वे तीन बार पहले आ चुकी हैं। अभी मौसम गर्म है। रात में परिवहन निगम के कार्यालय के बाहर ही बैठे रहते हैं। रात में ताला बंद कर दिया जा रहा कि कोई परिसर के अंदर न जाने पाए। गर्मी में दो -तीन दिन से नहाए नहीं हैं। शौच के लिए पास के सार्वजनिक शौचालय में जाते हैं। वहीं, चंदमती देवी का कहना है कि मजबूरी में खुले में भी जाना पड़ता है। ​​​​​​कासगंज के त्रिलोकी का कहना है कि मंत्री कहते हैं नेतागिरी करो। हमने बीजेपी को वोट दिया है। उनको सपोर्ट किया है। कहा कि उनसे अपना हक मांग रहे। भीख नहीं मांग रहे। मां,भाई परिवार में हैं। नवंबर 2019 में ड्राइवर के पद पर कार्यरत पिता की मौत हो गई थी। मां की तबियत खराब रहती है। उन्हें खून चढ़ता है। नौकरी के बिना यह सब करने में मुश्किल हो रहा है।   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर