वाराणसी के मंदिरों से साईं बाबा की मूर्तियां क्यों हटाईं:जन्म के बारे में कोई जानकारी नहीं, 1858 में शिरडी आए और संत बन गए

वाराणसी के मंदिरों से साईं बाबा की मूर्तियां क्यों हटाईं:जन्म के बारे में कोई जानकारी नहीं, 1858 में शिरडी आए और संत बन गए

पिछले हफ्ते वाराणसी के मंदिरों से सनातन रक्षक दल नाम के संगठन ने साईं मूर्तियां हटानी शुरू कर दीं। 14 मंदिरों से मूर्तियां हटाईं भी। यह सब संगठन के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा के नेतृत्व में हो रहा था। उन्होंने कुछ साईं मूर्तियों को गंगा में विसर्जित किया। कुछ को साईं मंदिरों में पहुंचाया। उधर, शिरडी साईं ट्रस्ट ने महाराष्ट्र सरकार से इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की। साईं भक्तों ने भी विरोध शुरू कर दिया। अजय शर्मा के खिलाफ केस दर्ज कराया गया। 3 अक्टूबर को पुलिस ने अजय शर्मा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। क्या है साईं बाबा की कहानी? देवताओं के साथ मंदिरों में कब से स्थापित किए जाने लगे? साईं बाबा को मंदिरों से हटाने वालों का क्या तर्क है? क्यों इस कदम को महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा? भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए पूरी कहानी- सबसे पहले साईं बाबा की कहानी बाबा के जन्म के समय पर अब भी रहस्य
साईं बाबा के जन्म के साल और उनकी शुरुआती जिंदगी को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं है। जन्म के साल को लेकर भी एकमत नहीं है। साईं द्वारका माई धाम, साईं बाबा के जन्म का साल 1835 बताता है। हालांकि, तारीख को लेकर सटीक जानकारी नहीं है। साईं द्वारका माई धाम इसे 27 या 28 सितंबर बताता है। इनका जन्म एक गरीब हिंदू परिवार में हुआ था। द्वारका माई धाम के मुताबिक, इनके माता-पिता का नाम देवगिरिअम्मा और गंगाभवद्या था। इन्होंने जन्म के बाद बालक को झाड़ियों के बीच छोड़ दिया था। तब बच्चे को एक मुस्लिम फकीर और उनकी पत्नी ने अपना लिया, क्योंकि उनके अपने बच्चे नहीं थे। साईं बाबा ने अपने जीवनकाल में कभी भी अपना असल नाम, जाति और धर्म जैसी चीजों के बारे में नहीं बताया। 1858 में एक बारात के साथ शिरडी आए और वहीं रह गए
साईं बाबा से जुड़ी संस्थाओं के मुताबिक, साईं बाबा के जन्म और उनकी शुरुआती जिंदगी के बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं मिल पाती। साल 1858 से साईं बाबा के महाराष्ट्र के शिरडी नाम के गांव में रहने की बात पता चलती है। वह यहां 60 साल या उससे ज्यादा रहे। उनके शिरडी गांव में पहुंचने के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा बताया जाता है। दूसरे गांव से एक बारात शिरडी आ रही थी। उसमें वह मेहमान बनकर शिरडी पहुंचे और वहीं रह गए। वहां उनके स्वागत में कहा गया- या साईं यानी स्वागत है साईं। बाबा को यह ध्वनि अच्छी लग गई। उन्होंने साईं को ही फिर अपना नाम बना लिया। इसके बाद वह शिरडी गांव में ही रह गए। शुरुआत में एक नीम के पेड़ के नीचे रहते। फिर गांव की मस्जिद में रहने लगे। उन्होंने उस मस्जिद का नाम रखा- द्वारका माई यानी मां द्वारका। बता दें, साईं शब्द फारसी भाषा का है। मुस्लिम धर्म में साईं उन्हें कहा गया है जो पवित्र आत्मा हो। शिरडी में रहने के दौरान लोग अपनी परेशानियां लेकर साईं बाबा के पास आने लगे
1858 के बाद शिरडी में रहने के दौरान लोग उनके पास अपनी परेशानियां लेकर आने लगे। शुरुआती दिनों में वह जंगल में एक पेड़ के नीचे रहते। शिरडी साईं परिवार के मुताबिक, इस दौरान लोगों ने उनकी चमत्कारी शक्तियों को महसूस किया। उनके लोक कल्याणकारी काम देखकर लोग उनके भक्त बनने लगे। उनकी सेवा भावना में खुद को रमाने के लिए आगे आने लगे। आज इसे लेकर कई कहानियां कही जाती हैं। लेकिन चमत्कार को लेकर यह कहानियां कितनी सच हैं, यह बात समय में कहीं पीछे छूट चुकी है। अब यह सब आस्था का विषय है। इसलिए इन पर सवाल नहीं उठाया जाता है। अपने जीवनकाल में ही साईं बाबा एक संत और लोगों के आध्यात्मिक गुरु बन गए थे। अंदाजा लगाया जाता है कि 1918 में उनकी मृत्यु के बाद उनके भक्तों ने उन्हें पूजना शुरू किया। उनकी मूर्तियां स्थापित की गईं। साईं बाबा के निधन के 4 साल बाद 1922 में मंदिर बनाया गया
साईं बाबा का निधन 1918 में दशहरे के दिन हुआ। इसके 4 साल बाद 1922 में शिरडी में साईं बाबा के मंदिर का निर्माण किया गया। साईं बाबा के निधन के बाद नागपुर के एक करोड़पति भक्त श्रीमंत गोपालपाव ने इस मंदिर का निर्माण कराया। तब मंदिर का निजी स्वामित्व इन्हीं के पास था। बाद में श्री साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट बना और मंदिर का स्वामित्व और संचालन इसके पास आ गया। साईं बाबा के हिंदू संत या मुस्लिम फकीर होने को लेकर विवाद रहा है
साल 2014 में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने बयान दिया कि वो एक मुस्लिम संत थे। उनकी हिंदू देवता की तरह पूजा नहीं की जा सकती। इस बयान पर तब खूब हंगामा हुआ था। साईं बाबा के भक्तों ने विरोध जताया था। मुंबई के साईं धाम टेंपल ने तो इसके खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में याचिका तक डाली थी। इनका कहना था कि साईं बाबा मुस्लिम नहीं, ब्राह्मण थे। उनका अपमान करने वालों को सजा मिलनी चाहिए। इसी तरह साल 2021 में गाजियाबाद में डासना मंदिर के मुख्य पुजारी और अपने विवादित बयानों के लिए विख्यात यति नरसिंहानंद भी साईं बाबा को मुस्लिम बता चुके हैं। उनके बयान के बाद दिल्ली के शाहपुर जाट के मंदिर में साईं बाबा की प्रतिमा को कुछ लोगों ने तोड़ दिया। ऐसा करते हुए उन्होंने वीडियो भी बनाया और उसे सोशल मीडिया पर डाला दिया था। ये दोनों घटनाएं साईं बाबा के धर्म को लेकर खिंची लकीर को साफ दिखाती हैं। अब जानिए साईं बाबा की मूर्ति हटाने वाले और इसका विरोध करने वालों का तर्क काशी के मंदिरों के महंतों का पक्ष, साईं बाबा का पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख नहीं
माता विशालाक्षी देवी मंदिर के महंत राजनाथ तिवारी कहते हैं- हमारे सनातन धर्म या किसी भी पौराणिक ग्रंथ में साईं बाबा का उल्लेख नहीं है। वो एक साईं फकीर हो सकते हैं, पर भगवान नहीं। अजय शर्मा ठीक कर रहे थे। साईं बाबा की मूर्ति देवालयों में नहीं होनी चाहिए। वो कहते हैं, साईं बाबा का मंदिर बनाइए या उन्हें घर में स्थापित करके आप पूजा कीजिए। मुझे उन मंदिरों के महंतों पर दुख हो रहा है जिन्होंने साईं बाबा की मूर्ति के लिए देवालयों में स्थान दिया। यह शास्त्र सम्मत नहीं है। काशी में ही मंगला गौरी मंदिर के पुजारी नरेंद्र पांडेय कहते हैं- काशी खंड में सनातन मंदिर और परंपरागत मंदिर हैं, जहां पर भगवान शंकर स्वयं प्रकट हुए। साईं भगवान नहीं हैं। हमारे यहां पंचदेव पूजन का विधान है। उनकी प्राण प्रतिष्ठा होती है। साईं बाबा के मंदिर में किस प्रकार से प्राण प्रतिष्ठा हुई कि हमारे मंदिरों में पूजा हो रही है। हमारे मंदिरों के महंतों से आग्रह है कि उस प्रतिमा को वहां से हटा दें। वो कहते हैं कि उनसे हमारा कोई विरोध नहीं है। वो भव्य मंदिर बनाएं और उसमें भव्य मूर्ति की स्थापना करवाएं, लेकिन साईं बाबा मंदिर का निर्माण मंदिर के कैंपस में नहीं हो सकता। यहां सनातन का विरोध है। साईं बाबा मंदिर के पुजारियों ने कहा- मंदिरों से मूर्ति हटाना गलत है
दारानगर स्थित साईं मंदिर के पुजारी और भक्तों ने कहा- मंदिर से मूर्तियां हटाना गलत है। मंदिर के पुजारी संदीप कुमार शोभित ने कहा- यह साईं मंदिर 15 साल पुराना है। पहले बहुत लोग आते थे, लेकिन विरोध के चलते भक्तों की संख्या घटी है। साईं बाबा का मंदिर जैसे यहां है, वैसे ही बनना चाहिए। मंदिरों में उनकी मूर्ति नहीं होनी चाहिए। वहीं साईं बाबा के भक्त मुकुंद लाल गुप्ता ने कहा- साईं बाबा की मूर्तियां हटाना गलत है। जहां स्थापना हुई है, वहां मूर्ति होनी चाहिए। मूर्तियां हटाने वाले अजय शर्मा का पक्ष- साईं बाबा गुरु हैं उनका भगवान के मंदिर में क्या काम
सनातन रक्षक दल के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा 2013 में भी पहड़िया में साईं बाबा की मूर्ति हटवा चुके हैं। अजय शर्मा ने बताया था कि साईं बाबा गुरु हैं, उनका भगवान के मंदिर में क्या काम? लोग अपने घरों में उनका मंदिर बनाए मुझे कोई आपत्ति नहीं। उनका अलग से मंदिर बनाकर पूजें, लेकिन देवी-देवता के मंदिर में उनकी प्रतिमा का क्या काम? इसके बाद उन्होंने शहर के कुल 14 मंदिरों से मूर्ति हटाने की बात कही थी और सभी को गंगा जी में विसर्जित किया था। इस मामले में उनके ऊपर चैतन्य व्यास हनुमान मंदिर के पुजारी ने चौक थाने में तहरीर दी थी। जिस पर पुलिस ने 3 अक्टूबर की भोर उन्हें मैदागिन इलाके से गिरफ्तार किया था। महाराष्ट्र बीजेपी और कांग्रेस नेताओं के बयान ने राजनीतिक रंग दे दिया
इस घटना के सामने आने के बाद महाराष्ट्र में इसे लेकर राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई। बता दें, महाराष्ट्र में नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। साईं बाबा का जन्म से लेकर पूरा जीवन महाराष्ट्र में बीता है। शिरडी में साईं मंदिर करोड़ों भक्तों के आस्था का केंद्र है। ऐसे में, यहां की राजनीतिक पार्टियों का इस मुद्दे को हाथों-हाथ लेना ही था। कांग्रेस विधायक दल के नेता बालासाहेब थोराट ने कहा कि साईं बाबा जाति, पंथ और धर्म से ऊपर हैं। वह धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक हैं। दूसरी तरफ, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि साईं बाबा सभी के लिए पूजनीय हैं। मैं तीन दशकों से साईं भक्त हूं। जो हुआ वह बुरा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। इस तरह के बयानों से दोनों ही पार्टियां साईं भक्तों के पक्ष में मैदान में कूद पड़ीं। वजह है महाराष्ट्र में साईं भक्तों की बड़ी संख्या। ये भी पढ़ें… ‘साईं चांद मियां’ बोलकर उखाड़ीं मूर्तियां, कहां फेंकी पता नहीं:हिंदू संगठन बोला- 12 और राज्यों से हटाएंगे; फिर क्यों विवादों में साईं बाबा 29 सितंबर को रात 10 बजे की बात है। 6 लोग काशी के बड़ा गणेश मंदिर में घुसे। हाथों में लोहे की रॉड, हथौड़ी-छेनी और सफेद कपड़ा लिए थे। सभी ने पहले हिंदू देवी-देवताओं के सामने हाथ जोड़ा। फिर एक-एक करके मंदिर के कोने में लगी साईं बाबा की मूर्ति के पास पहुंचे। कैमरा ऑन करके इनमें से एक शख्स कहता है, ‘बड़ा गणेश मंदिर में हमारे भगवानों के साथ ‘चांद-मियां’ (हिंदू संगठन साईं बाबा को इस नाम से संबोधित करते है) विराजे हुए हैं। आज यहां से इनकी विदाई होने वाली है।’ पढ़ें पूरी खबर… पिछले हफ्ते वाराणसी के मंदिरों से सनातन रक्षक दल नाम के संगठन ने साईं मूर्तियां हटानी शुरू कर दीं। 14 मंदिरों से मूर्तियां हटाईं भी। यह सब संगठन के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा के नेतृत्व में हो रहा था। उन्होंने कुछ साईं मूर्तियों को गंगा में विसर्जित किया। कुछ को साईं मंदिरों में पहुंचाया। उधर, शिरडी साईं ट्रस्ट ने महाराष्ट्र सरकार से इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की। साईं भक्तों ने भी विरोध शुरू कर दिया। अजय शर्मा के खिलाफ केस दर्ज कराया गया। 3 अक्टूबर को पुलिस ने अजय शर्मा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। क्या है साईं बाबा की कहानी? देवताओं के साथ मंदिरों में कब से स्थापित किए जाने लगे? साईं बाबा को मंदिरों से हटाने वालों का क्या तर्क है? क्यों इस कदम को महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा? भास्कर एक्सप्लेनर में जानिए पूरी कहानी- सबसे पहले साईं बाबा की कहानी बाबा के जन्म के समय पर अब भी रहस्य
साईं बाबा के जन्म के साल और उनकी शुरुआती जिंदगी को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं है। जन्म के साल को लेकर भी एकमत नहीं है। साईं द्वारका माई धाम, साईं बाबा के जन्म का साल 1835 बताता है। हालांकि, तारीख को लेकर सटीक जानकारी नहीं है। साईं द्वारका माई धाम इसे 27 या 28 सितंबर बताता है। इनका जन्म एक गरीब हिंदू परिवार में हुआ था। द्वारका माई धाम के मुताबिक, इनके माता-पिता का नाम देवगिरिअम्मा और गंगाभवद्या था। इन्होंने जन्म के बाद बालक को झाड़ियों के बीच छोड़ दिया था। तब बच्चे को एक मुस्लिम फकीर और उनकी पत्नी ने अपना लिया, क्योंकि उनके अपने बच्चे नहीं थे। साईं बाबा ने अपने जीवनकाल में कभी भी अपना असल नाम, जाति और धर्म जैसी चीजों के बारे में नहीं बताया। 1858 में एक बारात के साथ शिरडी आए और वहीं रह गए
साईं बाबा से जुड़ी संस्थाओं के मुताबिक, साईं बाबा के जन्म और उनकी शुरुआती जिंदगी के बारे में ठीक-ठीक जानकारी नहीं मिल पाती। साल 1858 से साईं बाबा के महाराष्ट्र के शिरडी नाम के गांव में रहने की बात पता चलती है। वह यहां 60 साल या उससे ज्यादा रहे। उनके शिरडी गांव में पहुंचने के पीछे भी एक दिलचस्प किस्सा बताया जाता है। दूसरे गांव से एक बारात शिरडी आ रही थी। उसमें वह मेहमान बनकर शिरडी पहुंचे और वहीं रह गए। वहां उनके स्वागत में कहा गया- या साईं यानी स्वागत है साईं। बाबा को यह ध्वनि अच्छी लग गई। उन्होंने साईं को ही फिर अपना नाम बना लिया। इसके बाद वह शिरडी गांव में ही रह गए। शुरुआत में एक नीम के पेड़ के नीचे रहते। फिर गांव की मस्जिद में रहने लगे। उन्होंने उस मस्जिद का नाम रखा- द्वारका माई यानी मां द्वारका। बता दें, साईं शब्द फारसी भाषा का है। मुस्लिम धर्म में साईं उन्हें कहा गया है जो पवित्र आत्मा हो। शिरडी में रहने के दौरान लोग अपनी परेशानियां लेकर साईं बाबा के पास आने लगे
1858 के बाद शिरडी में रहने के दौरान लोग उनके पास अपनी परेशानियां लेकर आने लगे। शुरुआती दिनों में वह जंगल में एक पेड़ के नीचे रहते। शिरडी साईं परिवार के मुताबिक, इस दौरान लोगों ने उनकी चमत्कारी शक्तियों को महसूस किया। उनके लोक कल्याणकारी काम देखकर लोग उनके भक्त बनने लगे। उनकी सेवा भावना में खुद को रमाने के लिए आगे आने लगे। आज इसे लेकर कई कहानियां कही जाती हैं। लेकिन चमत्कार को लेकर यह कहानियां कितनी सच हैं, यह बात समय में कहीं पीछे छूट चुकी है। अब यह सब आस्था का विषय है। इसलिए इन पर सवाल नहीं उठाया जाता है। अपने जीवनकाल में ही साईं बाबा एक संत और लोगों के आध्यात्मिक गुरु बन गए थे। अंदाजा लगाया जाता है कि 1918 में उनकी मृत्यु के बाद उनके भक्तों ने उन्हें पूजना शुरू किया। उनकी मूर्तियां स्थापित की गईं। साईं बाबा के निधन के 4 साल बाद 1922 में मंदिर बनाया गया
साईं बाबा का निधन 1918 में दशहरे के दिन हुआ। इसके 4 साल बाद 1922 में शिरडी में साईं बाबा के मंदिर का निर्माण किया गया। साईं बाबा के निधन के बाद नागपुर के एक करोड़पति भक्त श्रीमंत गोपालपाव ने इस मंदिर का निर्माण कराया। तब मंदिर का निजी स्वामित्व इन्हीं के पास था। बाद में श्री साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट बना और मंदिर का स्वामित्व और संचालन इसके पास आ गया। साईं बाबा के हिंदू संत या मुस्लिम फकीर होने को लेकर विवाद रहा है
साल 2014 में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद ने बयान दिया कि वो एक मुस्लिम संत थे। उनकी हिंदू देवता की तरह पूजा नहीं की जा सकती। इस बयान पर तब खूब हंगामा हुआ था। साईं बाबा के भक्तों ने विरोध जताया था। मुंबई के साईं धाम टेंपल ने तो इसके खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में याचिका तक डाली थी। इनका कहना था कि साईं बाबा मुस्लिम नहीं, ब्राह्मण थे। उनका अपमान करने वालों को सजा मिलनी चाहिए। इसी तरह साल 2021 में गाजियाबाद में डासना मंदिर के मुख्य पुजारी और अपने विवादित बयानों के लिए विख्यात यति नरसिंहानंद भी साईं बाबा को मुस्लिम बता चुके हैं। उनके बयान के बाद दिल्ली के शाहपुर जाट के मंदिर में साईं बाबा की प्रतिमा को कुछ लोगों ने तोड़ दिया। ऐसा करते हुए उन्होंने वीडियो भी बनाया और उसे सोशल मीडिया पर डाला दिया था। ये दोनों घटनाएं साईं बाबा के धर्म को लेकर खिंची लकीर को साफ दिखाती हैं। अब जानिए साईं बाबा की मूर्ति हटाने वाले और इसका विरोध करने वालों का तर्क काशी के मंदिरों के महंतों का पक्ष, साईं बाबा का पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख नहीं
माता विशालाक्षी देवी मंदिर के महंत राजनाथ तिवारी कहते हैं- हमारे सनातन धर्म या किसी भी पौराणिक ग्रंथ में साईं बाबा का उल्लेख नहीं है। वो एक साईं फकीर हो सकते हैं, पर भगवान नहीं। अजय शर्मा ठीक कर रहे थे। साईं बाबा की मूर्ति देवालयों में नहीं होनी चाहिए। वो कहते हैं, साईं बाबा का मंदिर बनाइए या उन्हें घर में स्थापित करके आप पूजा कीजिए। मुझे उन मंदिरों के महंतों पर दुख हो रहा है जिन्होंने साईं बाबा की मूर्ति के लिए देवालयों में स्थान दिया। यह शास्त्र सम्मत नहीं है। काशी में ही मंगला गौरी मंदिर के पुजारी नरेंद्र पांडेय कहते हैं- काशी खंड में सनातन मंदिर और परंपरागत मंदिर हैं, जहां पर भगवान शंकर स्वयं प्रकट हुए। साईं भगवान नहीं हैं। हमारे यहां पंचदेव पूजन का विधान है। उनकी प्राण प्रतिष्ठा होती है। साईं बाबा के मंदिर में किस प्रकार से प्राण प्रतिष्ठा हुई कि हमारे मंदिरों में पूजा हो रही है। हमारे मंदिरों के महंतों से आग्रह है कि उस प्रतिमा को वहां से हटा दें। वो कहते हैं कि उनसे हमारा कोई विरोध नहीं है। वो भव्य मंदिर बनाएं और उसमें भव्य मूर्ति की स्थापना करवाएं, लेकिन साईं बाबा मंदिर का निर्माण मंदिर के कैंपस में नहीं हो सकता। यहां सनातन का विरोध है। साईं बाबा मंदिर के पुजारियों ने कहा- मंदिरों से मूर्ति हटाना गलत है
दारानगर स्थित साईं मंदिर के पुजारी और भक्तों ने कहा- मंदिर से मूर्तियां हटाना गलत है। मंदिर के पुजारी संदीप कुमार शोभित ने कहा- यह साईं मंदिर 15 साल पुराना है। पहले बहुत लोग आते थे, लेकिन विरोध के चलते भक्तों की संख्या घटी है। साईं बाबा का मंदिर जैसे यहां है, वैसे ही बनना चाहिए। मंदिरों में उनकी मूर्ति नहीं होनी चाहिए। वहीं साईं बाबा के भक्त मुकुंद लाल गुप्ता ने कहा- साईं बाबा की मूर्तियां हटाना गलत है। जहां स्थापना हुई है, वहां मूर्ति होनी चाहिए। मूर्तियां हटाने वाले अजय शर्मा का पक्ष- साईं बाबा गुरु हैं उनका भगवान के मंदिर में क्या काम
सनातन रक्षक दल के प्रदेश अध्यक्ष अजय शर्मा 2013 में भी पहड़िया में साईं बाबा की मूर्ति हटवा चुके हैं। अजय शर्मा ने बताया था कि साईं बाबा गुरु हैं, उनका भगवान के मंदिर में क्या काम? लोग अपने घरों में उनका मंदिर बनाए मुझे कोई आपत्ति नहीं। उनका अलग से मंदिर बनाकर पूजें, लेकिन देवी-देवता के मंदिर में उनकी प्रतिमा का क्या काम? इसके बाद उन्होंने शहर के कुल 14 मंदिरों से मूर्ति हटाने की बात कही थी और सभी को गंगा जी में विसर्जित किया था। इस मामले में उनके ऊपर चैतन्य व्यास हनुमान मंदिर के पुजारी ने चौक थाने में तहरीर दी थी। जिस पर पुलिस ने 3 अक्टूबर की भोर उन्हें मैदागिन इलाके से गिरफ्तार किया था। महाराष्ट्र बीजेपी और कांग्रेस नेताओं के बयान ने राजनीतिक रंग दे दिया
इस घटना के सामने आने के बाद महाराष्ट्र में इसे लेकर राजनीतिक बयानबाजी शुरू हो गई। बता दें, महाराष्ट्र में नवंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। साईं बाबा का जन्म से लेकर पूरा जीवन महाराष्ट्र में बीता है। शिरडी में साईं मंदिर करोड़ों भक्तों के आस्था का केंद्र है। ऐसे में, यहां की राजनीतिक पार्टियों का इस मुद्दे को हाथों-हाथ लेना ही था। कांग्रेस विधायक दल के नेता बालासाहेब थोराट ने कहा कि साईं बाबा जाति, पंथ और धर्म से ऊपर हैं। वह धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक हैं। दूसरी तरफ, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि साईं बाबा सभी के लिए पूजनीय हैं। मैं तीन दशकों से साईं भक्त हूं। जो हुआ वह बुरा है। ऐसा नहीं होना चाहिए। इस तरह के बयानों से दोनों ही पार्टियां साईं भक्तों के पक्ष में मैदान में कूद पड़ीं। वजह है महाराष्ट्र में साईं भक्तों की बड़ी संख्या। ये भी पढ़ें… ‘साईं चांद मियां’ बोलकर उखाड़ीं मूर्तियां, कहां फेंकी पता नहीं:हिंदू संगठन बोला- 12 और राज्यों से हटाएंगे; फिर क्यों विवादों में साईं बाबा 29 सितंबर को रात 10 बजे की बात है। 6 लोग काशी के बड़ा गणेश मंदिर में घुसे। हाथों में लोहे की रॉड, हथौड़ी-छेनी और सफेद कपड़ा लिए थे। सभी ने पहले हिंदू देवी-देवताओं के सामने हाथ जोड़ा। फिर एक-एक करके मंदिर के कोने में लगी साईं बाबा की मूर्ति के पास पहुंचे। कैमरा ऑन करके इनमें से एक शख्स कहता है, ‘बड़ा गणेश मंदिर में हमारे भगवानों के साथ ‘चांद-मियां’ (हिंदू संगठन साईं बाबा को इस नाम से संबोधित करते है) विराजे हुए हैं। आज यहां से इनकी विदाई होने वाली है।’ पढ़ें पूरी खबर…   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर