हरियाणा के रोहतक स्थित पंडित भगवत दयाल शर्मा यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस PGI में पहली बार किसी बच्चे के सिर में घुसी लोहे की रॉड को सफलतापूर्वक निकाला गया। रॉड 8-10 सेंटीमीटर तक सिर के अंदर घुस चुकी थी। डॉक्टरों की 4 घंटे की मेहनत से बच्चे की जान बच गई। मेवात से PGI पहुंचे परिवार के मुताबिक उनका 14 वर्षीय बेटा नौशाद गिर गया था। जहां उसके सिर में रॉड घुस गई। वहीं डॉक्टरों का कहना है कि किसी ने नौशाद के सिर में रॉड घुसाई है। 9 नवंबर को नौशाद को PGI में भर्ती कराया गया था। तब वह बेहोशी की हालत में था। उसे देखकर डॉक्टरों को भी लगा कि शायद उसकी जान नहीं बच पाएगी। रॉड घुसने की वजह से उसे पैरालिसिस और आवाज जाने का खतरा था। कड़ी मेहनत के बाद डॉक्टरों ने नौशाद के सिर से रॉड निकाल दी। अब वह न सिर्फ अपने दम पर चल पा रहा है, बल्कि बोल और खुद खाना भी खा रहा है। नौशाद की जान बचाने वाली डॉक्टरों की टीम में शामिल डॉक्टर गोपाल कृष्ण से दैनिक भास्कर ने बातचीत कर ऑपरेशन के दौरान आई चुनौतियों के बारे में जाना। पढ़िए पूरी बातचीत… सवाल : बच्वा किस हालत में था?
डॉ. गोपाल : 14 वर्षीय बच्चा 9 नवंबर को हमारे पास आया था। बच्चा जब आया था, तब वह बेहोशी की हालत में था। बच्चे के सिर में एक रॉड घुसी हुई थी। मरीज की हालत बहुत गंभीर थी। देखने के बाद ऐसा लगा कि मरीज बच नहीं पाएगा। फिर भी उसका इलाज करना बहुत जरूरी था। हमारी PGIMS की इमरजेंसी टीम तुरंत सक्रिय हो गई। हमारी टीम ने जल्द से जल्द मरीज को ऑपरेशन के लिए शिफ्ट किया। सवाल :बच्चे की जान कैसे बचाई और क्या-क्या कदम उठाए?
डॉ. गोपाल : सबसे बड़ा चैलेंज यह था कि जो रॉड सिर में लगी हुई है, वह रॉड कोई मूवमेंट न करे। अगर रॉड हिलेगी तो दिमाग के अंदर और भी डैमेज करेगी। रॉड में जंग भी लगा हुआ था। इसलिए यह भी अंदेशा था कि मरीज के दिमाग में जंग भी चली गई होगी, इंफेक्शन भी हो सकता है। पैरालिसिस का भी खतरा था। सवाल : कितना समय ऑपरेशन में लगा?
डॉ. गोपाल : इस ऑपरेशन में करीब 4 घंटे का समय लगा। जब मरीज ट्रामा सेंटर में आया तो सबसे पहले इमरजेंसी टीम ने संभाला। प्राथमिक उपचार किया और स्टेबलाइज किया। इसके बाद न्यूरो सर्जरी टीम को सूचना दी। न्यूरो सर्जरी टीम ने फटाफट मरीज को देखा और उसका सीटी स्कैन कराया। इसके बाद मुझे बताया। हमने बिना देरी किए ऑपरेशन का फैसला लिया। रॉड करीब 8-10 सेंटीमीटर तक ब्रेन के अंदर घुसी हुई थी। यह लेफ्ट पार्ट ऑफ फ्रंटल एरिया में थी। यह ऑब्लिक डारेक्शन में थी और काफी हिस्सों को डैमेज करते हुए अंदर चली गई थी। सवाल : जब ऑपरेशन कर रहे थे तो दिमाग में क्या चल रहा था?
डॉ. गोपाल : जब हमने ऑपरेशन के लिए मरीज को लिया था, तब हमें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि मरीज इतना स्वस्थ होगा। ऑपरेशन करने के समय हमें बिल्कुल केयरफुल रहना पड़ा। रॉड अंदर घुसी हुई थी और मरीज को बेहोश भी करना था। उस दौरान जरा भी रॉड में मूवमेंट आती है तो वह ब्रेन को डैमेज करते हुए जाती। इस केस में बोन फ्रैक्चर थी। रॉड के आसपास का बोन हटाकर आसपास का सारा एरिया फ्री करने के बाद रॉड निकाली। सवाल : इस तरह के केस में देखने में आया है कि मरीज बहुत देरी से रिकवर करता है। इस बच्चे में क्या स्थिति है?
डॉ. गोपाल : इस तरह के केस में मरीज काफी देर से रिकवर करते हैं या फिर मरीज बच नहीं पाते। दूसरी प्रॉब्लम यह रहती है कि मरीज को इंफेक्शन हो जाता है, क्योंकि आयरन पार्टिकल जो ब्रेन में जमा हो जाते हैं, वह रस्टिड फॉम में होते हैं और यह ब्रेन के लिए बहुत ही घातक हैं। सवाल : मरीज के परिजनों का कितना साथ मिला?
डॉ. गोपाल : हमें मरीज के परिजनों का पूरा सपोर्ट मिला। पेरेंट्स काफी घबराए हुए थे। जब अस्पताल आए तो उन्हें भी यह लग रहा था कि हमारा बच्चा सर्वाइव नहीं कर पाएगा। हमें भी यह लग रहा है कि यह चमत्कार है। नतीजा हमने देखा तो लगा कि हमारा निर्णय बिल्कुल अच्छा था। पेरेंट्स ने किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया। सवाल : इस तरह का पहले भी कोई ऑपरेशन किया है?
डॉ. गोपाल : मैं PGIMS रोहतक में पिछले 8 साल से कार्यरत हूं। ऐसा ऑपरेशन हमने यहां पर पहले नहीं किया। ऐसा ऑपरेशन मैंने पहली बार किया है। रोहतक PGI में इस तरह का केस ही पहली बार आया है। सवाल : मरीज की कब तक पूरी तरह स्वस्थ होने की उम्मीद है?
डॉ. गोपाल : मरीज अभी काफी रिकवर कर चुका है। वह इतना हेल्दी हो चुका है कि उसने चलना फिरना स्टार्ट कर दिया है। हमें लगता है कि मरीज एक-दो हफ्ते में पहले की तरह हो स्वस्थ हो जाएगा। सवाल : इस तरह की घटनाओं को लेकर दूसरों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
डॉ. गोपाल : ऐसी घटनाएं अगर होती हैं तो मेरी सलाह यह होगी कि जहां भी मस्तिष्क के अंदर रॉड चली गई हो, उस रॉड को निकालने की कोशिश न करें। दूसरी चीज, रॉड को सहारे से, हाथ से, मरीज को ट्रांसपोर्ट सिस्टम की मदद ली जाए। पैरा-क्लीनिकल स्टाफ व अस्पताल स्टाफ से भी मदद की रिक्वेस्ट कर सकते हैं। आम आदमी आसपास की चीजें, जिससे मरीज को और इंजरी हो सकती है, रॉड और भी अंदर जा सकती है, ऐसी चीजों से हमें मरीज को बचाना है। पैनिक न करें और जितना जल्द से जल्द अपने पास के स्वास्थ्य केंद्र में रिपोर्ट करें और वहां के डॉक्टर से इलाज स्टार्ट करवाएं। हरियाणा के रोहतक स्थित पंडित भगवत दयाल शर्मा यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस PGI में पहली बार किसी बच्चे के सिर में घुसी लोहे की रॉड को सफलतापूर्वक निकाला गया। रॉड 8-10 सेंटीमीटर तक सिर के अंदर घुस चुकी थी। डॉक्टरों की 4 घंटे की मेहनत से बच्चे की जान बच गई। मेवात से PGI पहुंचे परिवार के मुताबिक उनका 14 वर्षीय बेटा नौशाद गिर गया था। जहां उसके सिर में रॉड घुस गई। वहीं डॉक्टरों का कहना है कि किसी ने नौशाद के सिर में रॉड घुसाई है। 9 नवंबर को नौशाद को PGI में भर्ती कराया गया था। तब वह बेहोशी की हालत में था। उसे देखकर डॉक्टरों को भी लगा कि शायद उसकी जान नहीं बच पाएगी। रॉड घुसने की वजह से उसे पैरालिसिस और आवाज जाने का खतरा था। कड़ी मेहनत के बाद डॉक्टरों ने नौशाद के सिर से रॉड निकाल दी। अब वह न सिर्फ अपने दम पर चल पा रहा है, बल्कि बोल और खुद खाना भी खा रहा है। नौशाद की जान बचाने वाली डॉक्टरों की टीम में शामिल डॉक्टर गोपाल कृष्ण से दैनिक भास्कर ने बातचीत कर ऑपरेशन के दौरान आई चुनौतियों के बारे में जाना। पढ़िए पूरी बातचीत… सवाल : बच्वा किस हालत में था?
डॉ. गोपाल : 14 वर्षीय बच्चा 9 नवंबर को हमारे पास आया था। बच्चा जब आया था, तब वह बेहोशी की हालत में था। बच्चे के सिर में एक रॉड घुसी हुई थी। मरीज की हालत बहुत गंभीर थी। देखने के बाद ऐसा लगा कि मरीज बच नहीं पाएगा। फिर भी उसका इलाज करना बहुत जरूरी था। हमारी PGIMS की इमरजेंसी टीम तुरंत सक्रिय हो गई। हमारी टीम ने जल्द से जल्द मरीज को ऑपरेशन के लिए शिफ्ट किया। सवाल :बच्चे की जान कैसे बचाई और क्या-क्या कदम उठाए?
डॉ. गोपाल : सबसे बड़ा चैलेंज यह था कि जो रॉड सिर में लगी हुई है, वह रॉड कोई मूवमेंट न करे। अगर रॉड हिलेगी तो दिमाग के अंदर और भी डैमेज करेगी। रॉड में जंग भी लगा हुआ था। इसलिए यह भी अंदेशा था कि मरीज के दिमाग में जंग भी चली गई होगी, इंफेक्शन भी हो सकता है। पैरालिसिस का भी खतरा था। सवाल : कितना समय ऑपरेशन में लगा?
डॉ. गोपाल : इस ऑपरेशन में करीब 4 घंटे का समय लगा। जब मरीज ट्रामा सेंटर में आया तो सबसे पहले इमरजेंसी टीम ने संभाला। प्राथमिक उपचार किया और स्टेबलाइज किया। इसके बाद न्यूरो सर्जरी टीम को सूचना दी। न्यूरो सर्जरी टीम ने फटाफट मरीज को देखा और उसका सीटी स्कैन कराया। इसके बाद मुझे बताया। हमने बिना देरी किए ऑपरेशन का फैसला लिया। रॉड करीब 8-10 सेंटीमीटर तक ब्रेन के अंदर घुसी हुई थी। यह लेफ्ट पार्ट ऑफ फ्रंटल एरिया में थी। यह ऑब्लिक डारेक्शन में थी और काफी हिस्सों को डैमेज करते हुए अंदर चली गई थी। सवाल : जब ऑपरेशन कर रहे थे तो दिमाग में क्या चल रहा था?
डॉ. गोपाल : जब हमने ऑपरेशन के लिए मरीज को लिया था, तब हमें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि मरीज इतना स्वस्थ होगा। ऑपरेशन करने के समय हमें बिल्कुल केयरफुल रहना पड़ा। रॉड अंदर घुसी हुई थी और मरीज को बेहोश भी करना था। उस दौरान जरा भी रॉड में मूवमेंट आती है तो वह ब्रेन को डैमेज करते हुए जाती। इस केस में बोन फ्रैक्चर थी। रॉड के आसपास का बोन हटाकर आसपास का सारा एरिया फ्री करने के बाद रॉड निकाली। सवाल : इस तरह के केस में देखने में आया है कि मरीज बहुत देरी से रिकवर करता है। इस बच्चे में क्या स्थिति है?
डॉ. गोपाल : इस तरह के केस में मरीज काफी देर से रिकवर करते हैं या फिर मरीज बच नहीं पाते। दूसरी प्रॉब्लम यह रहती है कि मरीज को इंफेक्शन हो जाता है, क्योंकि आयरन पार्टिकल जो ब्रेन में जमा हो जाते हैं, वह रस्टिड फॉम में होते हैं और यह ब्रेन के लिए बहुत ही घातक हैं। सवाल : मरीज के परिजनों का कितना साथ मिला?
डॉ. गोपाल : हमें मरीज के परिजनों का पूरा सपोर्ट मिला। पेरेंट्स काफी घबराए हुए थे। जब अस्पताल आए तो उन्हें भी यह लग रहा था कि हमारा बच्चा सर्वाइव नहीं कर पाएगा। हमें भी यह लग रहा है कि यह चमत्कार है। नतीजा हमने देखा तो लगा कि हमारा निर्णय बिल्कुल अच्छा था। पेरेंट्स ने किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया। सवाल : इस तरह का पहले भी कोई ऑपरेशन किया है?
डॉ. गोपाल : मैं PGIMS रोहतक में पिछले 8 साल से कार्यरत हूं। ऐसा ऑपरेशन हमने यहां पर पहले नहीं किया। ऐसा ऑपरेशन मैंने पहली बार किया है। रोहतक PGI में इस तरह का केस ही पहली बार आया है। सवाल : मरीज की कब तक पूरी तरह स्वस्थ होने की उम्मीद है?
डॉ. गोपाल : मरीज अभी काफी रिकवर कर चुका है। वह इतना हेल्दी हो चुका है कि उसने चलना फिरना स्टार्ट कर दिया है। हमें लगता है कि मरीज एक-दो हफ्ते में पहले की तरह हो स्वस्थ हो जाएगा। सवाल : इस तरह की घटनाओं को लेकर दूसरों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
डॉ. गोपाल : ऐसी घटनाएं अगर होती हैं तो मेरी सलाह यह होगी कि जहां भी मस्तिष्क के अंदर रॉड चली गई हो, उस रॉड को निकालने की कोशिश न करें। दूसरी चीज, रॉड को सहारे से, हाथ से, मरीज को ट्रांसपोर्ट सिस्टम की मदद ली जाए। पैरा-क्लीनिकल स्टाफ व अस्पताल स्टाफ से भी मदद की रिक्वेस्ट कर सकते हैं। आम आदमी आसपास की चीजें, जिससे मरीज को और इंजरी हो सकती है, रॉड और भी अंदर जा सकती है, ऐसी चीजों से हमें मरीज को बचाना है। पैनिक न करें और जितना जल्द से जल्द अपने पास के स्वास्थ्य केंद्र में रिपोर्ट करें और वहां के डॉक्टर से इलाज स्टार्ट करवाएं। हरियाणा | दैनिक भास्कर