नदी में डूबने से बाल-बाल बचे थे भूपेंद्र हुड्डा:देवीलाल को लगातार 3 बार हराया; भजनलाल किंगमेकर थे, विधायक तोड़ CM बन गए हुड्डा साल 1991, केंद्र में चंद्रशेखर की सरकार गिर चुकी थी। हरियाणा में भी ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनने के 15 दिन बाद ही इस्तीफा देना पड़ा था। राजीव गांधी की हत्या के बाद देशभर में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर थी। ऐसे में हरियाणा में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हुए। डिप्टी प्राइम मिनिस्टर और पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल, जनता पार्टी से रोहतक सीट से चुनावी मैदान में उतरे। वे 1989 में इसी सीट से सांसद रह चुके थे। दूसरी तरफ कांग्रेस ने 44 साल के उस युवा नेता को टिकट दिया, जो लगातार दो बार विधायकी का चुनाव हार चुका था। चौधरी देवीलाल को ये चुनाव बेहद आसान लग रहा था, लेकिन 26 मई 1991 को जब वोट गिने गए, तो बाजी मारी कांग्रेस के युवा नेता ने। करीब 30 हजार वोटों से देवीलाल चुनाव हार गए। हरियाणा के साथ ही देशभर में डिप्टी प्राइम मिनिस्टर देवीलाल को हराने वाले युवा नेता के चर्चे होने लगे। उसे जायंट किलर कहा जाने लगा। वो युवा नेता यहीं नहीं रुका, उसने 1996 और 1998 के लोकसभा चुनाव में भी देवीलाल को पटखनी दी। उसके बाद वो हरियाणा की राजनीति का बड़ा नाम बन गया। 2005 में वो हरियाणा का मुख्यमंत्री बना और लगातार 10 साल तक राज किया। लगातार सबसे ज्यादा वक्त तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड भी उसी के नाम है। वो नेता हैं- भूपेंद्र सिंह हुड्डा। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के नौंवे एपिसोड में चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने की कहानी और उनसे जुड़े किस्से… भूपेंद्र हुड्डा का जन्म 15 सितंबर 1947 यानी देश की आजादी के ठीक एक महीने बाद संयुक्त पंजाब के रोहतक में हुआ। उनके पिता चौधरी रणबीर कांग्रेस के दिग्गज नेता थे। वे 3 बार सांसद रहे और हरियाणा सरकार में मंत्री भी। संविधान सभा के सदस्य भी थे। भूपेंद्र हुड्डा की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई जामनगर के सैनिक स्कूल में हुई। उसके बाद उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री ली। पढ़ाई के दौरान ही हुड्डा यूथ कांग्रेस से जुड़ गए थे। राजीव गांधी ने लिस्ट में भूपेंद्र हुड्डा का नाम लिखा, भजनलाल ने कटवा दिया साल 1982, भारत एशियाई खेलों की मेजबानी कर रहा था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी जिम्मेदारी राजीव गांधी को सौंपी थी। उसी साल हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव होने थे। सूबे की कमान चौधरी भजनलाल के हाथों में थी। राजीव गांधी ने हरियाणा से 10-12 युवा नेताओं की लिस्ट तैयार की। इसमें भूपेंद्र हुड्डा का भी नाम था। इसके बारे में भजनलाल को पता चला, तो उन्होंने कांग्रेस नेता सीताराम केसरी से कहकर लिस्ट से हुड्डा का नाम हटवा दिया। राजीव के पास दोबारा लिस्ट आई। उन्होंने फिर से हुड्डा का नाम जुड़वा दिया। विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा किलोई सीट से उतरे। राजीव ने उनके समर्थन में रैली की, लेकिन वे हार गए। 1987 में उन्हें दोबारा किलोई से टिकट मिला। फिर से हुड्डा हार गए। हुड्डा एक इंटरव्यू में बताते हैं- ‘चौधरी भजनलाल को मेरे पिता के सपोर्ट से पहली बार टिकट मिला था, लेकिन मेरी बारी आई तो मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अड़चनें खड़ी कीं। पॉलिटिकल बैकग्राउंड का मुझे फायदा मिला। दादा और पिता की गांधी परिवार से नजदीकियां रहीं। इसलिए 1982 में हारने के बाद भी 1987 में मुझे टिकट दिया गया।’ एक वोट से नेता प्रतिपक्ष का चुनाव हार गए हुड्डा 25 फरवरी 2000, हरियाणा में 10वें विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हुए। नतीजों में ओमप्रकाश चौटाला के इंडियन नेशनल लोकदल को 90 में से 62 सीटों पर जीत मिली। एक हफ्ते बाद ओमप्रकाश चौटाला ने एक बार फिर हरियाणा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस चुनाव में कांग्रेस 21 सीटों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। नेता प्रतिपक्ष चुना जाना था। ये वो दौर था जब पार्टी भूपेंद्र हुड्डा और चौधरी भजनलाल के दो गुटों में बंटी हुई थी। पहली बार विधायक चुने गए भूपेंद्र उन दिनों प्रदेश अध्यक्ष थे और नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी भी हासिल करना चाह रहे थे। दूसरी तरफ चौधरी भजनलाल भी इस कुर्सी पर नजर गड़ाए हुए थे। कांग्रेस आलाकमान ने विधायकों की वोटिंग से नेता प्रतिपक्ष चुनने का फैसला किया। वोटिंग में हुड्डा एक वोट से हार गए और भजनलाल नेता प्रतिपक्ष बने। इसके बाद दोनों के बीच के गतिरोध खुलकर सामने आने लगे। दोनों नेताओं के बीच खींचतान की खबर आलाकमान को थी। पार्टी ने सख्त हिदायत दी कि प्रदेश में पार्टी कार्यक्रमों की अध्यक्षता हुड्डा ही करेंगे। भजनलाल को भी पार्टी कार्यक्रमों में हुड्डा को अध्यक्ष के तौर पर बुलाना होगा। हर कार्यक्रम में एक ऑब्जर्वर भी मौजूद रहेगा, ताकि कोई गड़बड़ी न हो। साल 2001, भजनलाल ने भिवानी के किरोड़ीमल पार्क में एक रैली रखी। हुड्डा इसकी अध्यक्षता कर रहे थे, लेकिन जब बोलने के लिए खड़े हुए तो भजनलाल समर्थकों ने हूटिंग शुरू कर दी। हुड्डा बिना बोले ही मंच से उतर गए और रैली से बाहर निकलने लगे। भीड़ और धक्कामुक्की के बीच हुड्डा बड़ी मुश्किल से बाहर निकल पाए। इस दौरान उनका कुर्ता भी फट गया। पीली नदी में फंसी हुड्डा की कार, डूबने से बचे एक इंटरव्यू में हुड्डा ने बताया- ‘2003 की बात है। मैं हरिद्वार से अपने फार्म पर जा रहा था। जैसे ही वहां से निकला पीली नदी में अचानक बाढ़ आ गई। मेरी कार नदी में फंस गई। मैं नीचे उतरकर कार को धक्के देने लगा, तभी पानी और तेज आ गया। मैं नदी में गिर गया। चचेरा भाई भी गिर गया। और कार बह गई। काफी देर तक मैं खुद को बचाने की कोशिश करता रहा। फिर मैं थक गया। सबकुछ भगवान पर छोड़ दिया। प्रार्थना करने लगा। इसी बीच मैं डूबते हुए पानी के नीचे गया एक और भारी पेड़ मुझसे टकरा गया। मैंने उसकी टहनी पकड़ी और उसके ऊपर लेट गया। कुछ देर बाद जब मुझे थोड़ी हिम्मत मिली, तो देखा कि किनारा बहुत दूर नहीं है। फिर मैं तैरकर किनारे पहुंच गया। वहां जाते ही मैं बेहोश हो गया। इसके बाद चारों तरफ खबर फैल गई और लोग आकर मुझे ले गए। इस तरह मेरी जान बची। कई दिनों तक बीमार भी रहा।’ भजनलाल मुख्यमंत्री बनने की तैयारी कर रहे थे, कांग्रेस आलाकमान ने हुड्डा को शपथ दिलवा दी 2005 में जब हरियाणा में विधानसभा चुनावों के नतीजे आए तो कांग्रेस को 67 सीटें मिलीं। भजनलाल प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे। उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया। ज्यादातर विधायक भी उन्हीं के खेमे से थे। भजनलाल की सीएम बनने की राह आसान नहीं होने वाली थी। उनके अलावा भूपेंद्र सिंह हुड्डा, चौधरी बीरेंद्र सिंह, कुमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला, अजय सिंह यादव और राव इंद्रजीत सिंह भी सीएम पद की दावेदारी कर रहे थे। हिसार से विधायक ओमप्रकाश जिंदल ने तो भजनलाल को कांग्रेस से इस आधार पर निष्कासित करने की मांग कर डाली कि भजनलाल ने चुनाव में पार्टी के खिलाफ काम किया। इतना ही नहीं, जिंदल ने सीएम पद के लिए अपनी दावेदारी भी ठोंक दी। इधर, भूपेंद्र हुड्डा, बीरेंद्र सिंह और रणदीप सुरजेवाला के पास भजनलाल के खिलाफ ‘जाट कार्ड’ था। रणदीप सुरजेवाला युवा थे। उन्होंने सीएम ओमप्रकाश चौटाला को नरवाना सीट से हराया था। इन सबके बावजूद भजनलाल जितने विधायक और राजनीतिक अनुभव किसी के पास भी नहीं था। वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- ‘1 मार्च 2005 को CM के नाम पर रायशुमारी के लिए दिल्ली से तीन ऑब्जर्वर- कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजस्थान के पूर्व CM अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री पीएम सईद हरियाणा पहुंचे। चंड़ीगढ़ में बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के विधायकों और प्रदेश के सांसदों से नए मुख्यमंत्री को लेकर वन टु वन सवाल-जवाब हुए। बैठक में भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप भी मौजूद थे। तब चंद्रमोहन विधायक और कुलदीप सांसद थे। बैठक के बाद ऑब्जर्वर्स ने कहा- ‘कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुख्यमंत्री पर अंतिम फैसला लेंगी।’ अगले दिन यानी, 2 मार्च को सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपी गई। 3 मार्च को सोनिया और ऑब्जर्वर्स के बीच लंबी बैठक हुई। 4 मार्च 2005, दिल्ली के पार्लियामेंट अनेक्सी में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के 67 विधायकों में से 47 बैठक में शामिल हुए। भजनलाल सहित उनके समर्थक 20 विधायक नहीं पहुंचे। भजनलाल ने चेतावनी दी कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो 3 महीने में कांग्रेस की सरकार गिरा देंगे। 90 मिनट चली बैठक के बाद जर्नादन द्विवेदी ने ऐलान किया- ‘कल शाम 5:30 बजे भूपेंद्र हुड्डा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।’ 5 मार्च 2005 को हुड्डा हरियाणा के 9वें मुख्यमंत्री बन गए। डैमेज कंट्रोल के लिए भजनलाल के बेटे को डिप्टी सीएम बनाया नरसिम्हा राव के दौर में भजनलाल उनके करीबी थे। कांग्रेस में सोनिया गांधी की एंट्री के बाद उन्हें इसका नुकसान उठाना पड़ा। यही कारण था कि सोनिया उन्हें सरकार का चेहरा नहीं बनाना चाह रहीं थीं। इसके अलावा हरियाणा में कांग्रेस के 9 में से 6 सासंदों ने पत्र लिखकर भजनलाल के नाम पर असहमति जताई थी। इन सबके बाद भी सोनिया जानती थीं कि स्थिर सरकार के लिए नाराज भजनलाल को मनाना जरूरी है। डैमेज कंट्रोल के लिए भजनलाल को तिगुनी राहत का ऑफर दिया गया। कांग्रेस ने भजनलाल को किसी राज्य का राज्यपाल बनाने, छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई को केंद्र में मंत्री और चंद्रमोहन बिश्नोई को हरियाणा सरकार में उप मुख्यमंत्री बनाने का ऑफर दिया। मगर भजनलाल ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा सोनिया गांधी को सौंप दिया। हालांकि इसे स्वीकार नहीं किया गया। 5 मार्च की सुबह उन्होंने से सोनिया गांधी से दिल्ली में मुलाकात की। शाम को पत्रकारों ने भजनलाल से पूछा- क्या वे अब भी नाराज हैं? इस पर भजनलाल बोले- मैंने अंत तक दबाव बनाए रखा, लेकिन कोई भी लड़ाई एक सीमा तक ही लड़ी जा सकती है। यह हिंदुस्तान की राजनीति का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू है कि राजनेता जीते जी कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते। इसके बाद भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। भजनलाल किंगमेकर थे, पर रातों-राथ विधायक तोड़कर हुड्डा सीएम बन गए सरकार में शामिल होने के बाद भी भजनलाल और उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई, हुड्डा के खिलाफ बोलने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। इसके चलते 2007 में भजनलाल और कुलदीप को पार्टी से निकाल दिया गया। चंद्रमोहन बिश्नोई ने भी कुछ महीनों बाद कांग्रेस छोड़ दिया। उतार-चढ़ाव के बीच भूपेंद्र हुड्डा ने मुख्यमंत्री के रूप में अपना पहला कार्यकाल पूरा किया। 2009 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 27 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। कांग्रेस को 40, इनेलो को 31, हजकां को 6, बीजेपी को 4 और अन्य को 9 सीटें मिलीं। भजनलाल की पार्टी किंगमेकर की भूमिका में थी, लेकिन हुड्डा ने रातोंरात हजकां के 5 विधायक तोड़कर अपने खेमे में शामिल कर लिए। इस तरह हुड्डा ने लगातार दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और 2014 तक हरियाणा के सबसे लंबे समय तक सीएम रहे। कभी चेन स्मोकर थे हुड्डा, रोज 30 सिगरेट पी जाते थे 2023 में एक इंटरव्यू में हुड्डा ने बताया- ‘कॉलेज के दिनों की बात है। मुझे सिगरेट पीने की लत लगी। एक पैकेट में 20 सिगरेट आती थीं। मैं रोज के डेढ़ पैकेट पीता था। एक दिन मैं चंडीगढ़ जा रहा था। तब मैं CM था। उस दिन पिता सैर करके वापस आ रहे थे। उन्होंने मुझे देखा तो मेरी गाड़ी रुकवाई। मैंने उन्हें नमस्ते किया, पैर छुए। उन्होंने मुझसे एक ही बात कही, ‘भूपेंद्र सिगरेट छोड़ दे, नहीं तो मैं सत्याग्रह कर दूंगा। उनकी बात सुनकर मुझे काफी तकलीफ हुई। मेरे बड़े भाई भी स्मोक करते थे। उन्हें गले में कैंसर हो गया था। उसकी वजह से उनकी मृत्यु हो गई। पिता के दिमाग में यही बात चलती थी कि कहीं मेरे साथ भी ऐसा ना हो जाए। उस दिन के बाद मैंने कभी सिगरेट नहीं पी।’ 2019 लोकसभा चुनाव में बाप-बेटे दोनों चुनाव हार गए भूपेंद्र हुड्डा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद बेटे दीपेंद्र हुड्डा को अमेरिका में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी छुड़वाकर रोहतक लोकसभा सीट से उपचुनाव लड़वाया। दीपेंद्र आसानी से चुनाव जीत गए। 2010 में राहुल गांधी ने युवा नेताओं की एक अलग टीम बनाई, जिसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, रणदीप सुरजेवाला जैसे नेता शामिल थे। 2014 के बाद सीनियर नेता साइड लाइन होते चले गए। ऐसे में भूपेंद्र हुड्डा ने सांसद बेटे दीपेंद्र के जरिए गांधी परिवार में अपना दबदबा बरकरार रखा। दीपेंद्र राहुल गांधी ही नहीं, बल्कि प्रियंका गांधी के भी भरोसेमंद बन गए। 2014 लोकसभा चुनाव में BJP लहर के बावजूद वे अपनी रोहतक सीट को बचाने में कामयाब रहे। 2014 के विधानसभा चुनाव में 47 सीटें जीतकर बीजेपी ने सरकार बनाई। कांग्रेस महज 15 सीटों पर सिमट गई। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भूपेंद्र हुड्डा सोनीपत से चुनाव लड़े और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा रोहतक से। दोनों अपनी सीट नहीं बचा पाए।