हरियाणा में 3 विधानसभा चुनाव के बाद BJP पहली बार 89 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा ने 1 सीट गोपाल कांडा के लिए छोड़ दी है। भाजपा के अचानक लिए गए फैसले से हर कोई हैरान है। एक दिन पहले खुद को नेशनल डेमोक्रेटिक अलाइंस (NDA) का हिस्सा बताने वाले गोपाल कांडा भी भाजपा के इस कदम से हैरान हैं। जहां गोपाल कांडा दो दिन पहले तक यह कहते नहीं थक रहे थे कि आने वाली सरकार भाजपा की होगी और हम उसके साथ समझौता करेंगे। वहीं, कल कांडा यह कहते नजर आए थे कि सिरसा की जनता कांग्रेस और भाजपा दोनों से ही परेशान हो चुकी है। वह ऐसी पार्टी को जिताना चाहती है जो सिरसा में राज ला सके। कांडा ने भाजपा के समर्थन मांगने से भी इनकार कर दिया। कहा कि वह भाजपा का समर्थन नहीं चाहते। कांडा ने इससे पहले खुद का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ाव भी बताया था। कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा ने सिरसा सीट पर डमी कैंडिडेट इसलिए उतारा है, ताकि कांडा की मदद की जा सके, लेकिन अचानक नामांकन वापसी के ठीक 2 दिन पहले भाजपा कांडा के लिए दोबारा एक्टिव हो गई और सोमवार को सिरसा सीट से अपने उम्मीदवार रोहताश जांगड़ा का नामांकन वापस ले लिया। कांडा को समर्थन देने की भाजपा की 3 वजहें
कांग्रेस : भाजपा नहीं चाहती कि सिरसा सीट कांग्रेस जीते। भाजपा हर सीट को खास मानकर चुनाव लड़ रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान सिरसा में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा था। इसलिए, भाजपा नहीं चाहती कि सीट पर कांग्रेस विरोधी वोट बंटे।
कंडीशन : गोकुल सेतिया की उम्मीदवारी से कांग्रेस की राह आसान होती दिख रही है। अचानक कांग्रेस से बागी हुए नेता भी गोकुल का समर्थन करते नजर आए। इससे भाजपा एक्टिव हो गई।
कांडा : कांडा के लिए मुकाबला टफ हो गया है। भाजपा जानती है कि सिरसा सीट कांडा ही निकाल सकते हैं। उनके पास ऐसा कोई चेहरा नहीं जो कांडा से बड़ा हो। कांडा सिरसा बेल्ट में प्रभावशाली नेता हैं। लोकसभा चुनाव में कांडा ने भाजपा की मदद भी की थी। कांडा के इकरार से इनकार तक की वजह
इनेलो-बसपा गठबंधन : भाजपा ने नामांकन प्रक्रिया के शुरू होने के एक दिन पहले तक कांडा से गठबंधन पर कोई फैसला नहीं लिया गया। कांडा ने 12 सितंबर को इनेलो और बसपा से गठबंधन कर लिया। बसपा और इनेलो भाजपा के खिलाफ हैं। भाजपा-कांग्रेस विरोधी वोट मिलें : शुरुआत से ही भाजपा का समर्थन लेने से पार्टी विरोधी वोट कांग्रेस में शिफ्ट होने का डर है। ऐसे में कांडा के कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ रहने से दोनों से नाराज हुआ वोटर कांडा के समर्थन में आ सकता है। भाजपा वोटर के पास विकल्प नहीं : कांडा जानते हैं कि भाजपा के वोटरों के पास अब उन्हें वोट डालने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। भाजपा का वोटर कभी कांग्रेस को वोट नहीं देगा। ऐसे में कांडा ही इकलौते हैं, जिन्हें भाजपा का भी वोट मिल सकता है। इनेलो इसलिए कांडा-भाजपा के समर्थन के खिलाफ
हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए कांडा की भाजपा से दूरी जरूरी है। कांडा का इनेलो-बसपा से गठबंधन है। इससे उनके गठबंधन पर असर पड़ सकता है। साथ ही प्रदेश में इस समय इनेलो की स्थिति बेहतर हुई है, लेकिन एक सीट के कारण पूरे प्रदेश में इसका नेगिटिव असर हो सकता है। कांग्रेस इलेक्शन कैंपेन में इसे मुद्दा बनाकर सत्ता विरोधी वोट बटोर सकती है। कांडा को साथ रखने से इनेलो ऐलनाबाद, रानिया और डबवाली तीनों जगहों पर बढ़त मानकर चल रही है। हरियाणा में 3 विधानसभा चुनाव के बाद BJP पहली बार 89 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। भाजपा ने 1 सीट गोपाल कांडा के लिए छोड़ दी है। भाजपा के अचानक लिए गए फैसले से हर कोई हैरान है। एक दिन पहले खुद को नेशनल डेमोक्रेटिक अलाइंस (NDA) का हिस्सा बताने वाले गोपाल कांडा भी भाजपा के इस कदम से हैरान हैं। जहां गोपाल कांडा दो दिन पहले तक यह कहते नहीं थक रहे थे कि आने वाली सरकार भाजपा की होगी और हम उसके साथ समझौता करेंगे। वहीं, कल कांडा यह कहते नजर आए थे कि सिरसा की जनता कांग्रेस और भाजपा दोनों से ही परेशान हो चुकी है। वह ऐसी पार्टी को जिताना चाहती है जो सिरसा में राज ला सके। कांडा ने भाजपा के समर्थन मांगने से भी इनकार कर दिया। कहा कि वह भाजपा का समर्थन नहीं चाहते। कांडा ने इससे पहले खुद का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ाव भी बताया था। कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा ने सिरसा सीट पर डमी कैंडिडेट इसलिए उतारा है, ताकि कांडा की मदद की जा सके, लेकिन अचानक नामांकन वापसी के ठीक 2 दिन पहले भाजपा कांडा के लिए दोबारा एक्टिव हो गई और सोमवार को सिरसा सीट से अपने उम्मीदवार रोहताश जांगड़ा का नामांकन वापस ले लिया। कांडा को समर्थन देने की भाजपा की 3 वजहें
कांग्रेस : भाजपा नहीं चाहती कि सिरसा सीट कांग्रेस जीते। भाजपा हर सीट को खास मानकर चुनाव लड़ रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान सिरसा में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा था। इसलिए, भाजपा नहीं चाहती कि सीट पर कांग्रेस विरोधी वोट बंटे।
कंडीशन : गोकुल सेतिया की उम्मीदवारी से कांग्रेस की राह आसान होती दिख रही है। अचानक कांग्रेस से बागी हुए नेता भी गोकुल का समर्थन करते नजर आए। इससे भाजपा एक्टिव हो गई।
कांडा : कांडा के लिए मुकाबला टफ हो गया है। भाजपा जानती है कि सिरसा सीट कांडा ही निकाल सकते हैं। उनके पास ऐसा कोई चेहरा नहीं जो कांडा से बड़ा हो। कांडा सिरसा बेल्ट में प्रभावशाली नेता हैं। लोकसभा चुनाव में कांडा ने भाजपा की मदद भी की थी। कांडा के इकरार से इनकार तक की वजह
इनेलो-बसपा गठबंधन : भाजपा ने नामांकन प्रक्रिया के शुरू होने के एक दिन पहले तक कांडा से गठबंधन पर कोई फैसला नहीं लिया गया। कांडा ने 12 सितंबर को इनेलो और बसपा से गठबंधन कर लिया। बसपा और इनेलो भाजपा के खिलाफ हैं। भाजपा-कांग्रेस विरोधी वोट मिलें : शुरुआत से ही भाजपा का समर्थन लेने से पार्टी विरोधी वोट कांग्रेस में शिफ्ट होने का डर है। ऐसे में कांडा के कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ रहने से दोनों से नाराज हुआ वोटर कांडा के समर्थन में आ सकता है। भाजपा वोटर के पास विकल्प नहीं : कांडा जानते हैं कि भाजपा के वोटरों के पास अब उन्हें वोट डालने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। भाजपा का वोटर कभी कांग्रेस को वोट नहीं देगा। ऐसे में कांडा ही इकलौते हैं, जिन्हें भाजपा का भी वोट मिल सकता है। इनेलो इसलिए कांडा-भाजपा के समर्थन के खिलाफ
हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए कांडा की भाजपा से दूरी जरूरी है। कांडा का इनेलो-बसपा से गठबंधन है। इससे उनके गठबंधन पर असर पड़ सकता है। साथ ही प्रदेश में इस समय इनेलो की स्थिति बेहतर हुई है, लेकिन एक सीट के कारण पूरे प्रदेश में इसका नेगिटिव असर हो सकता है। कांग्रेस इलेक्शन कैंपेन में इसे मुद्दा बनाकर सत्ता विरोधी वोट बटोर सकती है। कांडा को साथ रखने से इनेलो ऐलनाबाद, रानिया और डबवाली तीनों जगहों पर बढ़त मानकर चल रही है। हरियाणा | दैनिक भास्कर