हिमाचल में इस बार 2022-23 की तुलना में स्नो कवर एरिया 12.72% कम हुआ है। साल 2022-23 की तुलना में 2023-24 में चिनाब बेसिन में सबसे ज्यादा 15.39% की कमी आई है, जबकि ब्यास बेसिन पर 7.65%, रावी बेसिन पर 9.89% और सतलुज बेसिन पर 12.45% कम हुआ है। यह दावा हिमाचल पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (हिमकॉस्ट) के स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंजिज द्वारा किए गए ताजा सर्वेक्षण में हुआ है। इसी तरह हिमाचल के हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी का ट्रेंड भी बदल रहा है। विंटर सीजन जब पीक पर होता है तो उस दौरान पहाड़ों पर नाममात्र बर्फ गिरी है। इससे दिसंबर से फरवरी के बीच स्नो कवर एरिया में भारी गिरावट दर्ज की गई। हालांकि मार्च और अप्रैल में 2022-23 की तुलना में 2023-24 में ज्यादा बर्फबारी हुई है। सतलुज बेसिन पर जनवरी में स्नो कवर एरिया 67% कम हुआ हिमकॉस्ट के अनुसार, दिसंबर से फरवरी के बीच जब विंटर सीजन पीक पर होता है, उस दौरान 2023-24 में सतलुज को छोड़कर तीनों बेसिन के स्नो कवर एरिया में गिरावट दर्ज की गई। जनवरी महीने में स्नो-कवर एरिया में ज्यादा डरावनी गिरावट आई है। चिनाब बेसिन पर जनवरी 2024 में स्नो कवर एरिया में 42%, ब्यास बेसिन पर 43%, रावी बेसिन पर 64% और सतलुज बेसिन पर 67% की स्नो कवर एरिया में कमी आई। हिमकॉस्ट ने चारों रिवर बेसिन पर किया सर्वेक्षण हिमकॉस्ट के स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंजिज द्वारा चारों रिवर बेसिन चिनाब, रावी, सतलुज और ब्यास पर यह सर्वेक्षण किया है। यह सर्वेक्षण सेटेलाईट इमेज के जरिए किया है। स्नो कवर एरिया कम होना हिमाचल सहित पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान के लिए अच्छा संकेत नहीं है। मार्च-अप्रैल में स्नोफॉल से संजीवनी प्रदेश में एक दशक पहले तक दिसंबर से फरवरी के बीच में अच्छी बर्फबारी होती थी। मगर पिछले कुछ सालों से मार्च-अप्रैल में बर्फबारी हो रही है। दिसंबर से फरवरी के बीच होने वाली बर्फबारी लंबे समय तक टिकती है, जबकि मार्च अप्रैल की बर्फबारी जल्दी पिघल जाती है। इसलिए ग्लेशियर और पानी के स्तोत्र रिचार्ज करने के लिए पीक विंटर सीजन के दौरान बर्फबारी जरूरी होती है। रिन्यूएबल एनर्जी और ई-व्हीकल की तरफ जाने की सलाह रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले कुछ सालों में हिमालय के तापमान में उछाल से स्नो कवर एरिया घटा है। इससे ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं। शिमला में ऐसा पहली बार हुआ, जब यहां बर्फ नहीं गिरी। इसलिए रिपोर्ट में ई-व्हीकल और रिन्यूएबल एनर्जी की तरफ जाने की सलाह दी गई है। हिमाचल में इस बार 2022-23 की तुलना में स्नो कवर एरिया 12.72% कम हुआ है। साल 2022-23 की तुलना में 2023-24 में चिनाब बेसिन में सबसे ज्यादा 15.39% की कमी आई है, जबकि ब्यास बेसिन पर 7.65%, रावी बेसिन पर 9.89% और सतलुज बेसिन पर 12.45% कम हुआ है। यह दावा हिमाचल पर्यावरण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (हिमकॉस्ट) के स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंजिज द्वारा किए गए ताजा सर्वेक्षण में हुआ है। इसी तरह हिमाचल के हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी का ट्रेंड भी बदल रहा है। विंटर सीजन जब पीक पर होता है तो उस दौरान पहाड़ों पर नाममात्र बर्फ गिरी है। इससे दिसंबर से फरवरी के बीच स्नो कवर एरिया में भारी गिरावट दर्ज की गई। हालांकि मार्च और अप्रैल में 2022-23 की तुलना में 2023-24 में ज्यादा बर्फबारी हुई है। सतलुज बेसिन पर जनवरी में स्नो कवर एरिया 67% कम हुआ हिमकॉस्ट के अनुसार, दिसंबर से फरवरी के बीच जब विंटर सीजन पीक पर होता है, उस दौरान 2023-24 में सतलुज को छोड़कर तीनों बेसिन के स्नो कवर एरिया में गिरावट दर्ज की गई। जनवरी महीने में स्नो-कवर एरिया में ज्यादा डरावनी गिरावट आई है। चिनाब बेसिन पर जनवरी 2024 में स्नो कवर एरिया में 42%, ब्यास बेसिन पर 43%, रावी बेसिन पर 64% और सतलुज बेसिन पर 67% की स्नो कवर एरिया में कमी आई। हिमकॉस्ट ने चारों रिवर बेसिन पर किया सर्वेक्षण हिमकॉस्ट के स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंजिज द्वारा चारों रिवर बेसिन चिनाब, रावी, सतलुज और ब्यास पर यह सर्वेक्षण किया है। यह सर्वेक्षण सेटेलाईट इमेज के जरिए किया है। स्नो कवर एरिया कम होना हिमाचल सहित पंजाब, हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान के लिए अच्छा संकेत नहीं है। मार्च-अप्रैल में स्नोफॉल से संजीवनी प्रदेश में एक दशक पहले तक दिसंबर से फरवरी के बीच में अच्छी बर्फबारी होती थी। मगर पिछले कुछ सालों से मार्च-अप्रैल में बर्फबारी हो रही है। दिसंबर से फरवरी के बीच होने वाली बर्फबारी लंबे समय तक टिकती है, जबकि मार्च अप्रैल की बर्फबारी जल्दी पिघल जाती है। इसलिए ग्लेशियर और पानी के स्तोत्र रिचार्ज करने के लिए पीक विंटर सीजन के दौरान बर्फबारी जरूरी होती है। रिन्यूएबल एनर्जी और ई-व्हीकल की तरफ जाने की सलाह रिपोर्ट में बताया गया कि पिछले कुछ सालों में हिमालय के तापमान में उछाल से स्नो कवर एरिया घटा है। इससे ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं। शिमला में ऐसा पहली बार हुआ, जब यहां बर्फ नहीं गिरी। इसलिए रिपोर्ट में ई-व्हीकल और रिन्यूएबल एनर्जी की तरफ जाने की सलाह दी गई है। हिमाचल | दैनिक भास्कर
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हिमाचल में ठंड को इंतजार:बारिश-बर्फबारी के नहीं आसार, अक्टूबर में 97% कम बादल बरसे, ड्राइ स्पेल के कारण सामान्य से ज्यादा तापमान हिमाचल प्रदेश में अक्टूबर माह में अब तक सामान्य से 97 प्रतिशत कम बादल बरसे हैं। राज्य में इससे सूखे जैसे हालात पनपने लगे है और अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में भी ठंड का एहसास नहीं हो पा रहा। चिंता इस बात की है कि अगले 5 दिन तक भी बारिश-बर्फबारी के आसार नहीं है। हालांकि 3 दिन पहले मौसम विभाग ने 22 अक्टूबर को 8 जिलों में बारिश-बर्फबारी का पूर्वानुमान लगाया था। मगर वेस्टर्न डिस्टरबेंस एक्टिव होने से पहले ही कमजोर पड़ गया है। इससे आगामी 26 अक्टूबर तक प्रदेशभर में मौसम साफ बना रहेगा। ड्राइ स्पेल के कारण मैदानी इलाकों में छूट रहे पसीने प्रदेश में लंबे ड्राइ स्पेल के कारण इस बार अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में भी ठंड का एहसास नहीं हो पा रहा। प्रदेश के ज्यादातर शहरों में न्यूनतम और अधिकतम पारा सामान्य से ज्यादा चल रहा है। खासकर प्रदेश के मैदानी इलाकों में दिन के समय लोगों के पसीने छूट रहे हैं। इस बार ठंड को इंतजार लंबा पहाड़ों पर 15 अक्टूबर के बाद खूब ठंड हो जाती थी, लेकिन इस बार ठंड के लिए लोगों को इंतजार करना पड़ेगा। आलम यह है कि प्रदेश के सबसे ठंडे शहरों में शुमार केलांग का अधिकतम तापमान सामान्य से 8.1 डिग्री ज्यादा के साथ 18.1 डिग्री सेल्सियस चल रहा है। शिमला का अधिकतम तापमान भी सामान्य से 2.1 डिग्री ज्यादा के साथ 23.2 डिग्री, ऊना का 1.6 डिग्री ज्यादा के साथ 32.8 डिग्री और धर्मशाला का नॉर्मल से 1.8 डिग्री ज्यादा के साथ 27 डिग्री सेल्सियस चल रहा है। मनाली में भी सामान्य से ज्यादा पारा केलांग का न्यूनतम तापमान भी सामान्य से 2.2 डिग्री ज्यादा चल रहा है। अक्टूबर के तीसरे सप्ताह में केलांग का तापमान माइनस में होता है, लेकिन इस बार अभी भी 3.2 डिग्री चल रहा है। यानी रात को भी तापमान अभी जमाव बिंदू तक नहीं पहुंच गया। मनाली का न्यूनतम तापमान भी सामान्य से 2.9 डिग्री ज्यादा के साथ 8.9 डिग्री, कल्पा का तापमान नॉर्मल से 1.6 डिग्री के उछाल के साथ 4.8 डिग्री सेल्सियस चल रहा है। प्रदेश के अन्य शहरों में भी तापमान नॉर्मल से ज्यादा है, क्योंकि इस बार अक्टूबर में 7 जिलों में तो पानी की एक बूंद तक नहीं बरसी। प्रदेश के किस जिला में सामान्य से कितनी कम बारिश हुई
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हिमाचल उपचुनाव में भाजपा को भितरघात की आशंका:देहरा-नालागढ़ में खुलकर सामने आई नाराजगी, धवाला- हरप्रीत के रवैये से टेंशन में भाजपा हिमाचल प्रदेश में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को भितरघात की आशंका है। भाजपा ने तीनों सीटों पर निर्दलीय पूर्व विधायकों को टिकट दिया है। इससे 2022 के विधानसभा चुनाव के प्रत्याशियों के साथ-साथ भावी टिकट के दावेदार भी पार्टी से नाराज हैं। भाजपा को देहरा और नालागढ़ सीट पर भितरघात की आशंका ज्यादा है। देहरा में पूर्व मंत्री रमेश चंद धवाला ने खुलेआम ऐलान कर दिया है कि वह पार्टी प्रत्याशी होशियार सिंह के लिए वोट नहीं मांगेंगे। उनकी नाराजगी सिर्फ होशियार सिंह से ही नहीं बल्कि भाजपा हाईकमान के बड़े नेताओं से भी है। नाराज धवाला ने कहा है कि भेड़ की खाल में भेड़िये ने उनके साथ जो किया है, उसकी पाई-पाई वह लेंगे। भाजपा के कई नेताओं ने धवाला को मनाने की कोशिश की। लेकिन वह नहीं माने। इसलिए उपचुनाव में उनकी नाराजगी भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। नालागढ़ में बागी हरप्रीत BJP के लिए चुनौती उधर, नालागढ़ सीट पर भी भाजपा के सह-मीडिया प्रभारी हरप्रीत सिंह पार्टी से बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। उनके चुनाव लड़ने से भी भाजपा को यहां भी भीतरघात का डर है। हरप्रीत सिंह को भाजपा हल्के में नहीं ले रही, क्योंकि वह तीन बार के BJP के पूर्व विधायक एवं दिग्गज नेता हरि नारायण सैणी के भतीजे हैं। हरप्रीत के चुनाव लड़ने से कांग्रेस को उम्मीदें हरप्रीत सिंह के चुनाव लड़ने से कांग्रेस को बहुत ज्यादा उम्मीद है। ऐसे में बीजेपी अगर नालागढ़ में अपने कॉडर को एकजुट नहीं रख पाई तो यहां पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसी तरह 2022 के चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी लखविंदर राणा का इशारा भी बीजेपी की जीत-हार की पटकथा लिखेगा। हालांकि बीजेपी नाराज लखविंदर राणा को मनाने में कामयाब रही है। मगर उनके समर्थकों में नाराजगी है। हमीरपुर में भी अंदरखाते भाजपा नेताओं में नाराजगी हमीरपुर में भी बीजेपी को भीतरघात का डर है। निर्दलीय एवं पूर्व विधायक आशीष शर्मा को टिकट देने से बीजेपी के कई नेता अंदरखाते नाराज है। आशीष शर्मा यदि बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतते हैं तो पूर्व विधायक नरेंद्र ठाकुर समेत युवा भाजपा नेताओं के कई साल तक चुनाव लड़ने के सपने पर पानी फिर सकता है। इससे पार्टी को यहां भी भीतरघात का डर है। कांग्रेस को तीनों सीटों पर लंबे समय से जीत नहीं लगी हाथ वहीं सत्तारूढ़ कांग्रेस को भीतरघात का ज्यादा डर नहीं है। मगर तीनों सीटों पर कांग्रेस को कई सालों से सत्ता नहीं मिल पाई है। देहरा में तो कांग्रेस एक बार भी चुनाव नहीं जीती। हमीरपुर सीट पर आखिरी बार 2007 में कांग्रेस जीती थी। इसके बाद लगातार तीन चुनाव में कांग्रेस की हार हुई है। हालांकि नालागढ़ सीट पर 2017 में कांग्रेस के लखविंदर राणा जरूर जीते थे। मगर 2022 में वह भी भाजपा में शामिल हो गए। इससे नालागढ़ में कांग्रेस की राह भी आसान नहीं है।