2008 में सामने आए बहुचर्चित ‘कैश एट जज डोर’ मामले में आज (शनिवार) सीबीआई की विशेष अदालत अपना फैसला सुनाएगी। यह मामला तब चर्चा में आया था जब 2008 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की तत्कालीन जज, जस्टिस निर्मलजीत कौर के आवास पर 15 लाख रुपए नकद से भरा बैग गलती से पहुंच गया था। जांच में खुलासा हुआ कि यह रकम वास्तव में जस्टिस निर्मल यादव के लिए थी, लेकिन एक समान नाम (निर्मल) के कारण गलत पते पर पहुंच गई। ये घटना 13 अगस्त 2008 को घटी। एक व्यक्ति प्रकाश राम एक प्लास्टिक बैग लेकर जस्टिस निर्मलजीत कौर के आवास पर पहुंचा और वहां मौजूद चपड़ासी अमरीक सिंह से कहा- दिल्ली से कागजात आए हैं, जो जज साहिबा को देने हैं। जब जस्टिस कौर को इसकी सूचना दी गई, तो उन्होंने बैग खोलने को कहा। बैग खोलने पर उसमें 15 लाख नकद मिले। इसके तुरंत बाद, जस्टिस निर्मलजोत कौर ने पुलिस को सूचना दी और 16 अगस्त 2008 को चंडीगढ़ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। बाद में, 26 अगस्त 2008 को यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया। विशेष सीबीआई जस्टिस अल्का मलिक ने दोनों पक्षों की अंतिम दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था, जो आज (29 मार्च) को सुनाया जाएगा। जांच और अदालती कार्यवाही सीबीआई ने इस मामले में विस्तृत जांच के बाद 2011 में जस्टिस निर्मल यादव और अन्य आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की। हालांकि, कानूनी प्रक्रियाओं के कारण मामला कई वर्षों तक लंबित रहा। इस दौरान सीबीआई ने 84 गवाहों की सूची पेश की, जिनमें से 69 की गवाही दर्ज की गई। अभियोजन पक्ष ने हाईकोर्ट से 22 गवाहों की दोबारा गवाही की अनुमति मांगी, लेकिन केवल 6 की अनुमति मिली। पक्ष-विपक्ष की दलीलें पब्लिक प्रोसीक्यूटर नरेंद्र सिंह का कहना है कि यह मामला पूरी तरह से साबित हो चुका है और आरोपियों को सजा मिलनी चाहिए। वहीं, जस्टिस यादव के वकील विशाल गर्ग नरवाना और एएस चाहल का कहना है कि सीबीआई ने जस्टिस यादव को गलत तरीके से फंसाया है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि सीबीआई ने पहले इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी। 2008 में सामने आए बहुचर्चित ‘कैश एट जज डोर’ मामले में आज (शनिवार) सीबीआई की विशेष अदालत अपना फैसला सुनाएगी। यह मामला तब चर्चा में आया था जब 2008 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की तत्कालीन जज, जस्टिस निर्मलजीत कौर के आवास पर 15 लाख रुपए नकद से भरा बैग गलती से पहुंच गया था। जांच में खुलासा हुआ कि यह रकम वास्तव में जस्टिस निर्मल यादव के लिए थी, लेकिन एक समान नाम (निर्मल) के कारण गलत पते पर पहुंच गई। ये घटना 13 अगस्त 2008 को घटी। एक व्यक्ति प्रकाश राम एक प्लास्टिक बैग लेकर जस्टिस निर्मलजीत कौर के आवास पर पहुंचा और वहां मौजूद चपड़ासी अमरीक सिंह से कहा- दिल्ली से कागजात आए हैं, जो जज साहिबा को देने हैं। जब जस्टिस कौर को इसकी सूचना दी गई, तो उन्होंने बैग खोलने को कहा। बैग खोलने पर उसमें 15 लाख नकद मिले। इसके तुरंत बाद, जस्टिस निर्मलजोत कौर ने पुलिस को सूचना दी और 16 अगस्त 2008 को चंडीगढ़ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। बाद में, 26 अगस्त 2008 को यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया। विशेष सीबीआई जस्टिस अल्का मलिक ने दोनों पक्षों की अंतिम दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था, जो आज (29 मार्च) को सुनाया जाएगा। जांच और अदालती कार्यवाही सीबीआई ने इस मामले में विस्तृत जांच के बाद 2011 में जस्टिस निर्मल यादव और अन्य आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दायर की। हालांकि, कानूनी प्रक्रियाओं के कारण मामला कई वर्षों तक लंबित रहा। इस दौरान सीबीआई ने 84 गवाहों की सूची पेश की, जिनमें से 69 की गवाही दर्ज की गई। अभियोजन पक्ष ने हाईकोर्ट से 22 गवाहों की दोबारा गवाही की अनुमति मांगी, लेकिन केवल 6 की अनुमति मिली। पक्ष-विपक्ष की दलीलें पब्लिक प्रोसीक्यूटर नरेंद्र सिंह का कहना है कि यह मामला पूरी तरह से साबित हो चुका है और आरोपियों को सजा मिलनी चाहिए। वहीं, जस्टिस यादव के वकील विशाल गर्ग नरवाना और एएस चाहल का कहना है कि सीबीआई ने जस्टिस यादव को गलत तरीके से फंसाया है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि सीबीआई ने पहले इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी। पंजाब | दैनिक भास्कर
