यूपी में मानसून की एंट्री हो चुकी है। प्रदेश के 80 से 85% हिस्से में मानसून एक्टिव हो गया है। बचे हिस्सों में 4 जुलाई तक मानसून छा जाएगा। पूर्वानुमान था कि यह बिहार के बॉर्डर से होते हुए प्रदेश में प्रवेश करेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मानसून ने बुंदेलखंड के ललितपुर से एंट्री ली। अब यू (U) शेप में आगे बढ़ रहा। बिहार में अटका हुआ मानसून पूर्वी यूपी से प्रवेश कर चुका है। यह सब हुआ 28 और 29 जून के दरमियान। यानी पूर्वानुमान से 8 से 9 दिन देरी से। इस देरी की वजह से जून में 41% कम बारिश हुई। 1 से 29 जून तक 53.1 मिमी बारिश हुई, जबकि 89.1 मिमी बारिश होनी चाहिए थी। मौसम विभाग का पूर्वानुमान था कि यूपी में मानसून 20 जून को एंट्री करेगा। यह पूर्वी यूपी के बलिया और देवरिया से होते हुए आएगा। संभावना थी कि 30 जून तक यह पश्चिमी यूपी में पहुंच जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यूपी में मानसून का इंतजार लंबा क्यों हुआ? पिछले सालों में कब-कब आया? पेयजल से लेकर नदियों और कृषि पर इसका क्या असर होगा, पढ़िए इस रिपोर्ट में… अब तक यूपी में बारिश की स्थिति को ग्राफिक से समझिए… 14 दिन बंगाल में अटका रहा मानसून
पछुआ हवा और लू की वजह से पुरवा हवा काफी कमजोर रही। इस साल पछुआ हवा का इफेक्ट 20-22 जून तक काफी ज्यादा रहा। 10 जून के पहले ही इसकी स्पीड कम हो जानी थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ और मानसून 14 दिनों तक बंगाल और बिहार के बॉर्डर पर अटका रहा। इस वजह से इस साल मानसून 25 जून तक पूरे यूपी को कवर नहीं कर सका। IMD के मुताबिक, इसी पैटर्न को मानसून फॉलो करता है। मौसम वैज्ञानिक कहते हैं- मानसून में देरी के पीछे ग्लोबल वॉर्मिंग है। इसमें सबसे बड़ी वजह है- मैदानों से पेड़ों का कटना। बड़ी संख्या में पेड़ कटने से ग्रीन हाउस गैसों में बढ़ोतरी हुई है, जिससे गर्मी बढ़ी और बारिश भी प्रभावित हुई। अभी यूपी में मानसून कहां पहुंचा है?
यूपी के दो तिहाई से ज्यादा हिस्से में मानसून पहुंच गया है। सिर्फ पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में मानसून का पहुंचना बाकी है। मानसून की चाल का सटीक अनुमान लगा पाना कठिन
BHU के मौसम वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश सिंह कहते हैं- मानसून की चाल हवा और प्रेशर पर डिपेंड करती है। इस बार मौसम में कई तरह के बदलाव देखे गए, इसलिए अभी कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा। अगर मानसून की स्पीड ऐसी ही रही तो 2 से 4 जुलाई तक पूरे प्रदेश में छा सकता है। बिहार के रक्सौल में 6 दिनों तक अटका मानसून 26 जून को निकल गया था। अब मानसून यूपी में आ चुका है। वेस्ट यूपी के कुछ जिलों को छोड़कर दक्षिणी यूपी, पूर्वी यूपी और नेपाल बॉर्डर से सटे सभी जिलों में मानसून के बादल मंडरा रहे हैं। CSA यूनिवर्सिटी के मौसम विज्ञान विभाग के हेड डॉ. SN सुनील पांडेय के मुताबिक, मानसून आने का ये कतई मतलब नहीं होता है कि बारिश होती ही रहेगी। मानसून आने का मतलब होता है कि बारिश कराने वाले सभी सिस्टम एक्टिव हो जाते हैं। अनुमान है कि जुलाई में भारी बारिश होती रहेगी, जहां भी बारिश होगी, वहां हो सकता है कि एक बार में 100 मिमी तक बारिश हो जाए। अगस्त में बाढ़ की संभावना
मौसम वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश सिंह ने बताया कि बाढ़ की स्थिति इस बार भी अगस्त तक बन सकती है। हालांकि, इस बार कहीं पर बाढ़ तो कहीं पर कम बरसात वाली कंडीशन होगी। क्योंकि अभी तक प्रदेश के कुछ जिलों में सामान्य से अधिक बारिश और कुछ जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है। उदाहरण के लिए भदोही में अब तक 6 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यहां अब तक मानसून की बारिश नहीं हुई है। इसके उलट अयोध्या में अभी तक सबसे अधिक बारिश दर्ज की गई। यहां 1 जून से 29 जून तक 187.3 मिलीमीटर बारिश हुई। यह सामान्य बारिश से 6 मिलीमीटर अधिक है। यूपी में बदलता मानसून का पैटर्न; 5 साल में 2022 में सबसे कम बारिश
IMD के आंकड़े बताते हैं- 2001 से यूपी में सामान्य मानसून की बारिश नहीं हो रही। साल दर साल इसमें कमी आ रही। यूपी में सामान्य बारिश तब मानी जाती है, जब यह 823 से 860 मिलीमीटर के बीच हो। 5 साल के आंकड़ों को देखने पर साफ हो जाता है कि कैसे प्रदेश में मानसून की बारिश में कमी आई। इस कमी का सीधा असर यहां के ग्राउंड वाटर लेवल पर पड़ा। इन पांच सालों में सबसे कम बारिश साल 2022 में हुई। यह नॉर्मल से करीब 36% तक कम थी। IMD के मुताबिक, 2019 में जून से सितंबर के बीच सूबे के ज्यादातर जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई थी। 2019 में ऐसे 21 जिले थे। इसमें अलीगढ़, हापुड़, इटावा, बागपत, संभल, अमरोहा, बदांयू जैसे जिलों में कमी का स्तर 60 से 80 फीसदी तक था। साल 2021 की बात करें तो ऐसे 22 जिले थे, जहां मानसून में सामान्य से कम बारिश हुई। इनमें कानपुर नगर, मिर्जापुर, मेरठ, ललितपुर, मैनपुरी, अलीगढ़, मुरादाबाद, एटा और हापुड़ जिले शामिल थे। यूपी का 11% हिस्सा बाढ़ प्रभावित
उत्तर प्रदेश स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के मुताबिक, सूबे में हर साल करीब 27 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ से प्रभावित होती है। पूरे यूपी के रकबे की बात करें तो 240.93 लाख हेक्टेयर है। यानी कुल क्षेत्रफल का 11 फीसदी बाढ़ से प्रभावित है। साल दर साल प्रदेश में करीब 20 से 25 जिले बाढ़ की चपेट में आते हैं। इन जिलों में बाढ़ से प्रभावित गांवों की संख्या सैकड़ों में होती है। इससे प्रभावित होने वाली आबादी लाखों में है। ज्यादा बारिश की वजह से जो नदियां बाढ़ के लिए जिम्मेदार बनती हैं, उनमें गंगा, यमुना, रामगंगा, गोमती, शारदा, घाघरा, राप्ती और गंडक शामिल हैं। इन नदियों के आस-पास आने वाले क्षेत्रों में 73.06 लाख हेक्टेयर ऐसा है, जहां बाढ़ आने की संभावना रहती है। उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के मुताबिक, इसमें से सिर्फ 58.72 लाख हेक्टेयर एरिया को ही सुरक्षित बनाया जा सका है। डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की मानें तो पूर्वांचल के जिले बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसमें भी जो जिले नेपाल बॉर्डर के साथ लगे हैं, वहां खतरा सबसे ज्यादा रहता है। इस बाढ़ से हर साल करीब 430 करोड़ रुपए से ऊपर की फसलों और घरों का नुकसान होता है। यूपी में कृषि से लेकर उत्सव तक का सीजन है मानसून
मानसून गड़बड़ करे तो पूरे देश की थाली में चावल का हिसाब गड़बड़ा सकता है। पश्चिम बंगाल के बाद यूपी चावल उगाने वाला दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। देश में कुल चावल का करीब 12 फीसदी यहीं उगता है। लेकिन धान की बुआई और रोपाई के लिए पानी चाहिए, उस पानी की आपूर्ति मानसून करता है। सामान्य से कम बारिश का सीधा असर खरीफ की फसलों पर पड़ता है। पेयजल के लिए हम अब भी ग्राउंड वाटर पर निर्भर हैं। मानसून की बारिश से यह रिचार्ज होता है। इसी तरह प्रदेश की 31 नदियों के लिए मानसून बूस्टर का काम करता है। डैम से लेकर छोटे तालाब, कुएं, नहरें इस मानसून की बारिश पर निर्भर रहते हैं। इन सबके अलावा यूपी मानसून में कजरी-लोकगीत के लिए जाना जाता है। इसे सिर्फ सावन के महीने में गाया जाता है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत पूर्वी उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर जिला से हुई थी। कजरी के गायन के लिए बनारस घराना मशहूर है। कजरी की महान गायिका गिरिजा देवी इसी घराने से जुड़ी थीं। यूपी में मानसून की एंट्री हो चुकी है। प्रदेश के 80 से 85% हिस्से में मानसून एक्टिव हो गया है। बचे हिस्सों में 4 जुलाई तक मानसून छा जाएगा। पूर्वानुमान था कि यह बिहार के बॉर्डर से होते हुए प्रदेश में प्रवेश करेगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मानसून ने बुंदेलखंड के ललितपुर से एंट्री ली। अब यू (U) शेप में आगे बढ़ रहा। बिहार में अटका हुआ मानसून पूर्वी यूपी से प्रवेश कर चुका है। यह सब हुआ 28 और 29 जून के दरमियान। यानी पूर्वानुमान से 8 से 9 दिन देरी से। इस देरी की वजह से जून में 41% कम बारिश हुई। 1 से 29 जून तक 53.1 मिमी बारिश हुई, जबकि 89.1 मिमी बारिश होनी चाहिए थी। मौसम विभाग का पूर्वानुमान था कि यूपी में मानसून 20 जून को एंट्री करेगा। यह पूर्वी यूपी के बलिया और देवरिया से होते हुए आएगा। संभावना थी कि 30 जून तक यह पश्चिमी यूपी में पहुंच जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यूपी में मानसून का इंतजार लंबा क्यों हुआ? पिछले सालों में कब-कब आया? पेयजल से लेकर नदियों और कृषि पर इसका क्या असर होगा, पढ़िए इस रिपोर्ट में… अब तक यूपी में बारिश की स्थिति को ग्राफिक से समझिए… 14 दिन बंगाल में अटका रहा मानसून
पछुआ हवा और लू की वजह से पुरवा हवा काफी कमजोर रही। इस साल पछुआ हवा का इफेक्ट 20-22 जून तक काफी ज्यादा रहा। 10 जून के पहले ही इसकी स्पीड कम हो जानी थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ और मानसून 14 दिनों तक बंगाल और बिहार के बॉर्डर पर अटका रहा। इस वजह से इस साल मानसून 25 जून तक पूरे यूपी को कवर नहीं कर सका। IMD के मुताबिक, इसी पैटर्न को मानसून फॉलो करता है। मौसम वैज्ञानिक कहते हैं- मानसून में देरी के पीछे ग्लोबल वॉर्मिंग है। इसमें सबसे बड़ी वजह है- मैदानों से पेड़ों का कटना। बड़ी संख्या में पेड़ कटने से ग्रीन हाउस गैसों में बढ़ोतरी हुई है, जिससे गर्मी बढ़ी और बारिश भी प्रभावित हुई। अभी यूपी में मानसून कहां पहुंचा है?
यूपी के दो तिहाई से ज्यादा हिस्से में मानसून पहुंच गया है। सिर्फ पश्चिम उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में मानसून का पहुंचना बाकी है। मानसून की चाल का सटीक अनुमान लगा पाना कठिन
BHU के मौसम वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश सिंह कहते हैं- मानसून की चाल हवा और प्रेशर पर डिपेंड करती है। इस बार मौसम में कई तरह के बदलाव देखे गए, इसलिए अभी कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा। अगर मानसून की स्पीड ऐसी ही रही तो 2 से 4 जुलाई तक पूरे प्रदेश में छा सकता है। बिहार के रक्सौल में 6 दिनों तक अटका मानसून 26 जून को निकल गया था। अब मानसून यूपी में आ चुका है। वेस्ट यूपी के कुछ जिलों को छोड़कर दक्षिणी यूपी, पूर्वी यूपी और नेपाल बॉर्डर से सटे सभी जिलों में मानसून के बादल मंडरा रहे हैं। CSA यूनिवर्सिटी के मौसम विज्ञान विभाग के हेड डॉ. SN सुनील पांडेय के मुताबिक, मानसून आने का ये कतई मतलब नहीं होता है कि बारिश होती ही रहेगी। मानसून आने का मतलब होता है कि बारिश कराने वाले सभी सिस्टम एक्टिव हो जाते हैं। अनुमान है कि जुलाई में भारी बारिश होती रहेगी, जहां भी बारिश होगी, वहां हो सकता है कि एक बार में 100 मिमी तक बारिश हो जाए। अगस्त में बाढ़ की संभावना
मौसम वैज्ञानिक प्रोफेसर ज्ञान प्रकाश सिंह ने बताया कि बाढ़ की स्थिति इस बार भी अगस्त तक बन सकती है। हालांकि, इस बार कहीं पर बाढ़ तो कहीं पर कम बरसात वाली कंडीशन होगी। क्योंकि अभी तक प्रदेश के कुछ जिलों में सामान्य से अधिक बारिश और कुछ जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है। उदाहरण के लिए भदोही में अब तक 6 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यहां अब तक मानसून की बारिश नहीं हुई है। इसके उलट अयोध्या में अभी तक सबसे अधिक बारिश दर्ज की गई। यहां 1 जून से 29 जून तक 187.3 मिलीमीटर बारिश हुई। यह सामान्य बारिश से 6 मिलीमीटर अधिक है। यूपी में बदलता मानसून का पैटर्न; 5 साल में 2022 में सबसे कम बारिश
IMD के आंकड़े बताते हैं- 2001 से यूपी में सामान्य मानसून की बारिश नहीं हो रही। साल दर साल इसमें कमी आ रही। यूपी में सामान्य बारिश तब मानी जाती है, जब यह 823 से 860 मिलीमीटर के बीच हो। 5 साल के आंकड़ों को देखने पर साफ हो जाता है कि कैसे प्रदेश में मानसून की बारिश में कमी आई। इस कमी का सीधा असर यहां के ग्राउंड वाटर लेवल पर पड़ा। इन पांच सालों में सबसे कम बारिश साल 2022 में हुई। यह नॉर्मल से करीब 36% तक कम थी। IMD के मुताबिक, 2019 में जून से सितंबर के बीच सूबे के ज्यादातर जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई थी। 2019 में ऐसे 21 जिले थे। इसमें अलीगढ़, हापुड़, इटावा, बागपत, संभल, अमरोहा, बदांयू जैसे जिलों में कमी का स्तर 60 से 80 फीसदी तक था। साल 2021 की बात करें तो ऐसे 22 जिले थे, जहां मानसून में सामान्य से कम बारिश हुई। इनमें कानपुर नगर, मिर्जापुर, मेरठ, ललितपुर, मैनपुरी, अलीगढ़, मुरादाबाद, एटा और हापुड़ जिले शामिल थे। यूपी का 11% हिस्सा बाढ़ प्रभावित
उत्तर प्रदेश स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के मुताबिक, सूबे में हर साल करीब 27 लाख हेक्टेयर भूमि बाढ़ से प्रभावित होती है। पूरे यूपी के रकबे की बात करें तो 240.93 लाख हेक्टेयर है। यानी कुल क्षेत्रफल का 11 फीसदी बाढ़ से प्रभावित है। साल दर साल प्रदेश में करीब 20 से 25 जिले बाढ़ की चपेट में आते हैं। इन जिलों में बाढ़ से प्रभावित गांवों की संख्या सैकड़ों में होती है। इससे प्रभावित होने वाली आबादी लाखों में है। ज्यादा बारिश की वजह से जो नदियां बाढ़ के लिए जिम्मेदार बनती हैं, उनमें गंगा, यमुना, रामगंगा, गोमती, शारदा, घाघरा, राप्ती और गंडक शामिल हैं। इन नदियों के आस-पास आने वाले क्षेत्रों में 73.06 लाख हेक्टेयर ऐसा है, जहां बाढ़ आने की संभावना रहती है। उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के मुताबिक, इसमें से सिर्फ 58.72 लाख हेक्टेयर एरिया को ही सुरक्षित बनाया जा सका है। डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की मानें तो पूर्वांचल के जिले बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इसमें भी जो जिले नेपाल बॉर्डर के साथ लगे हैं, वहां खतरा सबसे ज्यादा रहता है। इस बाढ़ से हर साल करीब 430 करोड़ रुपए से ऊपर की फसलों और घरों का नुकसान होता है। यूपी में कृषि से लेकर उत्सव तक का सीजन है मानसून
मानसून गड़बड़ करे तो पूरे देश की थाली में चावल का हिसाब गड़बड़ा सकता है। पश्चिम बंगाल के बाद यूपी चावल उगाने वाला दूसरा सबसे बड़ा राज्य है। देश में कुल चावल का करीब 12 फीसदी यहीं उगता है। लेकिन धान की बुआई और रोपाई के लिए पानी चाहिए, उस पानी की आपूर्ति मानसून करता है। सामान्य से कम बारिश का सीधा असर खरीफ की फसलों पर पड़ता है। पेयजल के लिए हम अब भी ग्राउंड वाटर पर निर्भर हैं। मानसून की बारिश से यह रिचार्ज होता है। इसी तरह प्रदेश की 31 नदियों के लिए मानसून बूस्टर का काम करता है। डैम से लेकर छोटे तालाब, कुएं, नहरें इस मानसून की बारिश पर निर्भर रहते हैं। इन सबके अलावा यूपी मानसून में कजरी-लोकगीत के लिए जाना जाता है। इसे सिर्फ सावन के महीने में गाया जाता है। माना जाता है कि इसकी शुरुआत पूर्वी उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर जिला से हुई थी। कजरी के गायन के लिए बनारस घराना मशहूर है। कजरी की महान गायिका गिरिजा देवी इसी घराने से जुड़ी थीं। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर