राजधानी लखनऊ में ज्येष्ठ माह में भंडारे का आयोजन करीब 400 साल पहले शुरू हुआ। सबसे पहला भंडारा अलीगंज के हनुमान जी के मंदिर से शुरू हुआ। फिर बढ़ते-बढ़ते पूरे लखनऊ की गलियों से लेकर प्रदेश के कई शहरों तक पहुंच गया। भंडारे की शुरुआत के पीछे की तीन कहानी प्रमुख बताई जाती हैं। भंडारे की कहानियों की बात करें तो यह हनुमान अंक से लेकर इतिहास के पन्नों में दर्ज मिली। मौजूदा समय के पुजारी से लेकर इतिहासकार भी इसकी पुष्टि करते हैं। सभी मानते हैं कि भंडारे का क्रेज और ट्रेंड दोनों बहुत बदल गया है, लेकिन आज भी शहर का सबसे बड़ा भंडारा अलीगंज हनुमान मंदिर में आयोजित होता है। पढ़िए रिपोर्ट… आखिर कब, कैसे और कितना बदला भंडारे का ट्रेंड…
अलीगंज मंदिर में 35 साल पुराने पुजारी जगदंबा प्रसाद बताते हैं कि पहले हनुमान जी को बेसन के लड्डू और गुड़-धनिया का भोग लगता था। अब धीरे-धीरे बदलकर पूड़ी-सब्जी सबसे ज्यादा बांटी जा रही है। पहले केवल इसी (अलीगंज पुराना) मंदिर में भंडारा लगता था। मेला भी यहां सबसे पहले लगता था। पहले बतासा बांटकर पानी पिलाया जाता था। शरबत पिलाया जाता था। अलीगंज मंदिर के मेन गेट पर सबसे पहले कुएं से निकलने वाले पानी का प्याऊं लगाया जाता था। पुजारी बताते हैं-अचानक भंडारे के ट्रेंड बदलने की बात करेंगे तो इसका मतलब है कि हम आप अचानक से बदल गए, तभी भंडारा भी बदल गया। अब गुड़-धनिया किसी को चबाने को दीजिए, शायद ही वो चबा पाए। लेकिन हनुमान जी का असली प्रसाद गुड़-धनिया ही है। अब पूड़ी-सब्जी चलेगी। आने वाले दिनों में चाऊमीन चलेगा। जैसे-जैसे प्रथा बदलती जाती है। वैसे-वैसे प्रसाद बांटने की प्रथा बदलती जा रही है। भंडारे की शुरुआत होने की तीन कहानियां
पुजारी जगदंबा प्रसाद बताते हैं कि आलिया बेगम ने भंडारा शुरू कराया था। अगर वजह की बात की जाए तो उनकी कोई संतान नहीं थी। भगवान ने उनको संतान दी, जिसके बाद उन्होंने भंडारे का आयोजन किया। भंडारे में सबसे ज्यादा गरीब प्रसाद ग्रहण करते थे। आज भंडारे का क्रेज इतना बढ़ गया है कि सभी प्रसाद ले रहे हैं। चाहे वो गरीब हों या अमीर हों। महामारी का प्रकोप हुआ। सबने बचने के लिए हनुमान जी की पूजा शुरू कर दी। तब किसी के सपने में आया, नए हनुमान जी के मंदिर में पूजा कीजिए। तब सबकी मन्नत पूरी हुई, तब से भंडारा शुरू हो गया। केसर का व्यापारी था। वो बाहर से आया था। कैसरबाग में मंडी लगती थी। उसका माल नहीं बिका, लोगों ने बताया गोमती नदी के पास अलीगंज में हनुमान जी के मंदिर में प्रार्थना करिए। वो मंदिर में आया, मन्नत मांगी। तब कैसरबाग बन रहा था। बादशाह बनवा रहा था। किसी ने बादशाह से कहा केसर यहां लगा दीजिए। तब बादशाह ने व्यापारी की सारी केसर खरीद ली। व्यापारी ने भंडारा करवाया। तब से भंडारे का क्रेज बढ़ गया। अब आगे भंडारा शुरू होने के ऐतिहासिक साक्ष्य देखिए
गीता प्रेस, गोरखपुर की कल्याण हनुमान अंक में पेज नंबर 424 और 425 पेज पर लखनऊ के भंडारे का जिक्र है। इसमें बताया गया कब कैसे और किसने भंडारे की शुरुआत की। इस बारे में स्पष्ट तौर पर बताया गया है।
इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीन की लखनऊ नामा में भी भंडारे के शुरू होने की कहानी का जिक्र है। किताब में अलीगंज महाबीर मंदिर में भंडारा शुरू होने के पीछे की वजह भी बताई गई है। जानिए, वेलफेयर एसोसिशन और दुकानदार क्या कहते हैं?
उत्तर प्रदेश, कैटर्स एंड डेकोरेटर्स वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष विजय कुमार ने बताया- एक महीने में एक समय पर टेंट, कैटर्स की व्यवस्था करनी होती है। बड़े मंगल का क्रेज काफी बढ़ गया है। केवल लखनऊ में चार से पांच हजार भंडारे एक मंगल के दिन होते हैं। पहले मुझे याद है केवल गुड़-धनिया का प्रसाद बंटता था। लेकिन आज ऐसा हो गया कि जगह-जगह भंडारे में अलग -अलग प्रसाद बंटते हैं। अलीगंज मंदिर में प्रसाद की दुकान लगाने वाले अंजुल गुप्ता बताते हैं- जब से मंदिर आया हूं, मुझे सबसे ज्यादा बड़े मंगल के दिन प्रसाद और भंडारे का क्रेज देखने को मिला है। यहां पर सबसे बड़ा भंडारा आज भी हर मंगलवार को होता है, जिसका खर्च चार से पांच लाख रुपए है। राजधानी लखनऊ में ज्येष्ठ माह में भंडारे का आयोजन करीब 400 साल पहले शुरू हुआ। सबसे पहला भंडारा अलीगंज के हनुमान जी के मंदिर से शुरू हुआ। फिर बढ़ते-बढ़ते पूरे लखनऊ की गलियों से लेकर प्रदेश के कई शहरों तक पहुंच गया। भंडारे की शुरुआत के पीछे की तीन कहानी प्रमुख बताई जाती हैं। भंडारे की कहानियों की बात करें तो यह हनुमान अंक से लेकर इतिहास के पन्नों में दर्ज मिली। मौजूदा समय के पुजारी से लेकर इतिहासकार भी इसकी पुष्टि करते हैं। सभी मानते हैं कि भंडारे का क्रेज और ट्रेंड दोनों बहुत बदल गया है, लेकिन आज भी शहर का सबसे बड़ा भंडारा अलीगंज हनुमान मंदिर में आयोजित होता है। पढ़िए रिपोर्ट… आखिर कब, कैसे और कितना बदला भंडारे का ट्रेंड…
अलीगंज मंदिर में 35 साल पुराने पुजारी जगदंबा प्रसाद बताते हैं कि पहले हनुमान जी को बेसन के लड्डू और गुड़-धनिया का भोग लगता था। अब धीरे-धीरे बदलकर पूड़ी-सब्जी सबसे ज्यादा बांटी जा रही है। पहले केवल इसी (अलीगंज पुराना) मंदिर में भंडारा लगता था। मेला भी यहां सबसे पहले लगता था। पहले बतासा बांटकर पानी पिलाया जाता था। शरबत पिलाया जाता था। अलीगंज मंदिर के मेन गेट पर सबसे पहले कुएं से निकलने वाले पानी का प्याऊं लगाया जाता था। पुजारी बताते हैं-अचानक भंडारे के ट्रेंड बदलने की बात करेंगे तो इसका मतलब है कि हम आप अचानक से बदल गए, तभी भंडारा भी बदल गया। अब गुड़-धनिया किसी को चबाने को दीजिए, शायद ही वो चबा पाए। लेकिन हनुमान जी का असली प्रसाद गुड़-धनिया ही है। अब पूड़ी-सब्जी चलेगी। आने वाले दिनों में चाऊमीन चलेगा। जैसे-जैसे प्रथा बदलती जाती है। वैसे-वैसे प्रसाद बांटने की प्रथा बदलती जा रही है। भंडारे की शुरुआत होने की तीन कहानियां
पुजारी जगदंबा प्रसाद बताते हैं कि आलिया बेगम ने भंडारा शुरू कराया था। अगर वजह की बात की जाए तो उनकी कोई संतान नहीं थी। भगवान ने उनको संतान दी, जिसके बाद उन्होंने भंडारे का आयोजन किया। भंडारे में सबसे ज्यादा गरीब प्रसाद ग्रहण करते थे। आज भंडारे का क्रेज इतना बढ़ गया है कि सभी प्रसाद ले रहे हैं। चाहे वो गरीब हों या अमीर हों। महामारी का प्रकोप हुआ। सबने बचने के लिए हनुमान जी की पूजा शुरू कर दी। तब किसी के सपने में आया, नए हनुमान जी के मंदिर में पूजा कीजिए। तब सबकी मन्नत पूरी हुई, तब से भंडारा शुरू हो गया। केसर का व्यापारी था। वो बाहर से आया था। कैसरबाग में मंडी लगती थी। उसका माल नहीं बिका, लोगों ने बताया गोमती नदी के पास अलीगंज में हनुमान जी के मंदिर में प्रार्थना करिए। वो मंदिर में आया, मन्नत मांगी। तब कैसरबाग बन रहा था। बादशाह बनवा रहा था। किसी ने बादशाह से कहा केसर यहां लगा दीजिए। तब बादशाह ने व्यापारी की सारी केसर खरीद ली। व्यापारी ने भंडारा करवाया। तब से भंडारे का क्रेज बढ़ गया। अब आगे भंडारा शुरू होने के ऐतिहासिक साक्ष्य देखिए
गीता प्रेस, गोरखपुर की कल्याण हनुमान अंक में पेज नंबर 424 और 425 पेज पर लखनऊ के भंडारे का जिक्र है। इसमें बताया गया कब कैसे और किसने भंडारे की शुरुआत की। इस बारे में स्पष्ट तौर पर बताया गया है।
इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीन की लखनऊ नामा में भी भंडारे के शुरू होने की कहानी का जिक्र है। किताब में अलीगंज महाबीर मंदिर में भंडारा शुरू होने के पीछे की वजह भी बताई गई है। जानिए, वेलफेयर एसोसिशन और दुकानदार क्या कहते हैं?
उत्तर प्रदेश, कैटर्स एंड डेकोरेटर्स वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष विजय कुमार ने बताया- एक महीने में एक समय पर टेंट, कैटर्स की व्यवस्था करनी होती है। बड़े मंगल का क्रेज काफी बढ़ गया है। केवल लखनऊ में चार से पांच हजार भंडारे एक मंगल के दिन होते हैं। पहले मुझे याद है केवल गुड़-धनिया का प्रसाद बंटता था। लेकिन आज ऐसा हो गया कि जगह-जगह भंडारे में अलग -अलग प्रसाद बंटते हैं। अलीगंज मंदिर में प्रसाद की दुकान लगाने वाले अंजुल गुप्ता बताते हैं- जब से मंदिर आया हूं, मुझे सबसे ज्यादा बड़े मंगल के दिन प्रसाद और भंडारे का क्रेज देखने को मिला है। यहां पर सबसे बड़ा भंडारा आज भी हर मंगलवार को होता है, जिसका खर्च चार से पांच लाख रुपए है। उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर