‘मैं अपने मां के साथ महाकुंभ में स्नान के लिए आया था। वहां स्नान किया। हम वहां से निकले, मगर मां अचानक पीछे से ‘गायब’ हो गईं। 7 घंटे उन्हें ढूंढा, मगर वह नहीं मिलीं।’ यह कहानी काशी रेलवे स्टेशन पर सुनाते हुए काजल परेशान हो गईं। उनकी मां सुरेखा महाकुंभ में खो गईं हैं। वहीं मोतिहारी की चंपा देवी का 22 साल का बेटा मंजय गिरी महाकुंभ में लापता हो गया। यह लोग प्रयागराज से काशी पहुंचे। कहते हैं- ढाई घंटे के सफर को पूरा करने में 7 से 8 घंटे लगे। लोग मदद कर रहे हैं, मगर अब ट्रेनों में जगह नहीं है। रेलवे स्टेशन पर पड़े हैं। दैनिक भास्कर डिजिटल ऐप टीम को रेलवे स्टेशन पर कई लोग ऐसे मिले, जो पिछले 4 दिनों से सिर्फ पानी और दूसरों की मदद के सहारे रह रहे हैं। कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जिन्होंने सिर्फ 2 दिन में 10 से 15 हजार रुपए खर्च किए हैं। अब वह अपने घरों की तरफ लौट रहे है। ऐसे लोगों का दर्द बांटने के लिए हम वाराणसी के कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचे। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… बेटी का दर्द, जिसकी मां बिछड़ गई… कब मां छूटी, पता ही नहीं चला
महाकुंभ में 28 जनवरी की रात डेढ़ बजे भगदड़ हुई, तब हर तरफ चीख पुकार मच गई। इस दौरान गया की रहने वाली सरोजा देवी अपनी बेटी काजल के साथ एक किलोमीटर दूर बैठे थे। यह लोग 28 जनवरी को गया से रात 11 बजे प्रयागराज पहुंचे थे। सरोजा देवी अब अपने परिवार से बिछड़ चुकी हैं। काजल ने बताया- हम सबने सुबह 5 बजे अमृत स्नान किया। उसके बाद वहां थोड़ा सा घूमे टहले। नाश्ता किया और फिर वापस रेलवे स्टेशन जाने की तैयारी शुरू कर दी। काजल ने अपने आंखों के आंसुओं को रोकते हुए बताया- हम लोग वहां से गंगा मइया को प्रणाम करके निकले। ऑटो के लिए पर वहां बहुत भीड़ थी। ऑटो नहीं मिल रहा था। इसी दौरान मां कहां निकल गयी पता नहीं चला। अचानक जब मां नहीं दिखी तो मामी ने पूछा फिर हम लोग उसे ढूंढने लगे। सारे खोया-पाया डिपार्टमेंट में गए, पुलिस ने सुना नहीं
काजल ने कहा- हम लोग पागलों की तरह मां को हर तरफ ढूंढ रहे थे। रो रहे थे, चिल्ला रहे थे। कितनी मन्नतें मांगी। कई पुलिसकर्मियों से कहा पर किसी ने मदद नहीं की। हमें खोया-पाया केंद्र भेजा गया। मगर मां वहां पर भी नहीं मिली। हम वहां से रेलवे स्टेशन भी गए। वहां भी अनाउंसमेंट करवाया पर मां का पता नहीं चला। मां ने अपने पास रखे थे 1300 रुपए
काजल ने बताया- स्नान के बाद मेरे पास 1300 रुपए वापसी के लिए बचे थे। उसे भी मां ने मुझसे ले लिया था। उसके बाद मां गुम हो गई। मेरे पास टिकट तक के पैसे नहीं बचे। कुछ खाया भी नहीं है कल से। वहीं परिवार के सब लोग मां के गुम होने की सूचना के बाद से परेशान है। मै भी घर जा रही हूं। बस भगवान से यही प्रार्थना है मां मिल जाएं। जिसे भी मिलें वो हमारे यहां उन्हें पहुंचा जाए। मां का दर्द, जिसका बेटा महाकुंभ में लापता हुआ बेटे के साथ महाकुंभ में स्नान के लिए आई थीं चंपा
चंपा गिरी मोतिहारी के हड़ताली गांव की रहने वाली हैं। बीते रविवार को वो अपने बेटे मंजय गिरी के साथ महाकुंभ के लिए निकली थीं। चंपा ने बताया हम लोग सोमवार को महाकुंभ पहुंच गए। यहां स्नान किया। इसके बाद मेरा बेटा जो टीका लगाने का काम करता है। वह महाकुंभ में टीका लगाने लगा। मौनी अमावस्या की सुबह हम लोग भी संगम पर थे। बेटे को बैठाकर स्नान को गईं, पलट के देखा तो बस लोग ही लोग थे
चंपा ने बताया- महाकुंभ पर रात में स्नान के लिए गई थी। उसी समय भगदड़ मची। बेटे को कपड़े के पास बैठाया था। लेकिन वो नहीं मिला। कपड़ा भी नहीं मिला। जो पहन के स्नान किया वही पहने हुए बाहर निकली तो वहां बस आदमी ही आदमी थे। मेरा बेटा कान गया। मेरा कपड़ा कहां गया मुझे नहीं पता।
चंपा अपने मोहल्ले के लोगों के साथ आयी थीं और उनका बेटा था। अब बेटा नहीं मिला तो वापस लौट रही हैं। चंपा ने बताया बेटे का मोबाइल भी ऑफ है। किसी तरह मैंने घर सूचना दी और अब वापस जा रही हूं। आप लोगों से विनती है मेरे बेटे को ढूंढ दीजिये। प्रयागराज से वाराणसी आने के लिए खर्च किए 1500 रुपए… वर्धमान से चार दोस्तों का ग्रुप पहुंचा प्रयागराज
वर्धमान के रहने वाले विश्वजीत बटव्याल, उनके दोस्त सुमित घोष, रितम प्रामाणिक और शुभोदीप घोष 26 जनवरी को बस से हावड़ा से वाराणसी के लिए चले थे। यहां 27 जनवरी को पहुंचे और विश्वनाथ जी के दर्शन कर स्नान किया। विश्वजीत ने बताया- 28 जनवरी की शाम को हम लोग बस से प्रयागराज के झूंसी पहुंचे। यहां से 15 किलोमीटर पैदल जाना था। हमने 4 रैपिडो बाइक बुक कीं। 200 रुपए हर एक दोस्त के लिए पेमेंट किया। हमें संगम के शास्त्री ब्रिज तक ले गई। हम यहां से संगम पहुंचे और स्नान की तैयारी कर ली। उस समय शाम के 7 बज चुके थे। मौनी अमावस्या का मुहूर्त 28 की रात 8 बजे लगना था। इसके फौरन बाद हम चारों दोस्तों ने स्नान किया और फिर कपड़े बदलकर संगम से दूर हट गए। यहां से हम लोग वापस शास्त्री ब्रिज पहुंच गए। 29 की रात में ही पहुंचे बनारस, खर्च की 6 हजार रुपए
चारों दोस्त 29 की रात में ही प्रयागराज से निकल गए। विश्वजीत ने बताया- हम लोगों ने फिर से शास्त्री ब्रिज से सरस्वती फाटक तक रैपिडो बुक किया जो 200 रुपए में हमें वहां तक लेकर आयी। इसके बाद वहां कोई सवारी वाराणसी जाने को तैयार नहीं थी। वहीं एक बस लगी थी जो यात्रियों को बैठा रही थी। हमने पूछा तो कहा कि 1500 रुपए किराया प्रति व्यक्ति लगेगा। हम तैयार हो गए और 6 हजार रुपए देकर वाराणसी पहुंचे। 10 घंटे से स्टेशन पर, ट्रेन कैंसिल
विश्वजीत और उनके सभी साथियों का 10 हजार रुपए वर्धमान से प्रयागराज और फिर वाराणसी आने तक में खर्च हुआ है। बोले व्यवस्थाएं नाकाफी हैं। हम 10 घण्टे से स्टेशन पर हैं पर ट्रेन मिलेगी की नहीं यह क्लियर नहीं है। अब उनकी बात जो चार दिन से 22 लोगों के साथ वाराणसी जंक्शन पर राधा बोलीं- ट्रेन धरा दीजिए हम घर चले जाएं
दरभंगा की राधा देवी अपने सास-ससुर, चाची-मामी और परिवार के कुल 22 लोगों के साथ प्रयागराज गयीं थीं। प्रयागराज में सभी ने 26 जनवरी को महाकुंभ स्नान किया और उसी दिन रात में वाराणसी लौट आयीं। राधा बताती हैं कि चार दिन से यहीं हैं। अब पैसे भी नहीं हैं। खाने के लिए। पानी पीकर गुजरा हो रहा है। राधा ने कहा- चार दिन आज हो गए। कसी भी ट्रेन में चढ़ नहीं पाए। रेलवे खाली इंतजाम की बात कर रहा है। लेकिन कोई व्यवस्था नहीं है। हमें आप लोग कोई ट्रेन धरा दीजिये घर चले जाएंगे हम लोग। वहीं उन्होंने कहा पैसे नहीं है अब पास में कि टिकट भी लेकर सकें तो ऐसे ही जाने की सोच रहे हैं। अब उन लोगों की बात, जिन्होंने अपनी आंखों से देखी संगम की भगदड़, बताया कितने मरे… पीपा पुल बंद होने से एक जगह समाहित हो गई थी भीड़
वाराणसी के रहने वाले आलोक शुक्ला भी अपने दोस्तों के साथ भगदड़ की रात संगम पर मौजूद थे। उन्होंने हमें आंखों देखी बताई। आलोक ने बताया- हम लोग 29 तारीख को 19 नंबर सेक्टर में गंगाजी वाले मार्ग पर थे। वहां से हम लोग रात्रि में साढ़े 12 बजे के एक बजे पहुंचे थे। लेकिन वहां कई सारे पीपा पुल बंद थे। उसके बंद होने की वजह से भीड़ एक जगह इकट्ठा थी। आलोक ने बताया-प्रशासन कुछ भी कहे, संगम उस दिन शाही स्नान के लिए बंद था। पीपा पुल बंद था। सभी लोग एक जगह पहुंच गए। हम भी वहीं थे। वहां हजारों लोग संगम किनारे बैठे लेटे थे। जब आपको पता था की 10 करोड़ लोग आ रहे हैं। तो उसी तरह प्रशासन को व्यवस्था करनी चाहिए थी। पुलिसकर्मी खुद की जान बचा रहे थे
आलोक कहते हैं-हमने अपनी आंखों से देखा तैनात पुलिसकर्मी खुद को बचाने में लगे थे। कहीं भगदड़ हो तो वो न मर जाएं। उन्हें किसी की चिंता नहीं थी। प्रशासन को ये पता था की भगदड़ मचेगी तो हमारी जान भी जाएगी। इसलिए वो लोगों को काट नहीं रहा था। आलोक ने बताया लोग एक से एक सटे खड़े थे। कुछ लोग आये और बैरिकेडिंग से कूदने लगे। तभी कुछ युवाओं का एक झुण्ड आया जो हर-हर महादेव का नारा लगा रहे थे। वो सीधे अंदर पहुंच गए। उसके बाद लोग एक दूसरे के ऊपर गिरने लगे और जो गिरा फिर उठा नहीं। यह झूठ है कि 30 लोगों की जान गई
आलोक ने बताया- यह बिल्कुल झूठ है कि सिर्फ 30 लोगों की जान गई। हमने प्रत्यक्ष रूप से देखा है कि वहां अच्छे खासे लोगों की मौत हुई है क्योंकि जो गिरा वो दोबारा उठा नहीं। अब उनकी बात जिन्होंने बताया स्टेशन और ट्रेन का हाल, किया 30 किमी पैदल सफर भूषण सिंह बिहार के रहने वाले हैं। भूषण ने बताया- बहुत दिक्कत से हम लोग यहां प्रयागराज से वापस पहुंचे हैं। रात में 7 बजे ट्रेन मिली थी। सुबह 7 बजे हम लोग वाराणसी पहुंचे हैं। रक्सौल की ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं। पर अभी तक ट्रेन नहीं आयी शाम का 4 बज गया है। बहुत दिक्कत है। हम लोग दब गए थे भीड़ में
भूषण ने बताया हम लोग पोल नंबर 36 पर थे। भगदड़ हुई तो हम लोग भी दब गए। किसी तरह बाहर निकले। तो किसी तरह पत्नी को खींचते हुए पोल नंबर 40 पर पहुंचे। वहां से किसी तरह स्टेशन पहुंचे। 6 घंटे कठघरे में रखे गए
भूषण ने बताया- बहुत दिक्कत हुई इस बार सफर करने में। झूंसी स्टेशन पहुंचे तो वहां 6 घंटा पुलिस, जीआरपी और आरपीएफ ने लोगों को कठघरे में बैठा दिया। 6 घंटा वहां बैठे रहे। उसके बाद छोड़ा तो 4 घंटा बाहर रोके रहा अंदर स्टेशन पर प्रवेश नहीं था। फिर ट्रेन मिली जो शाम 7 बजे चलकर सुबह 7 बजे पहुंची। अव्यवस्था इतनी है कि पूछिए मत। 30 किलोमीटर चले पैदल तब हुआ कुंभ स्नान
महाराष्ट्र के रामचंद्र प्रयागराज अपनी ग्रुप और फैमिली के साथ स्नान के लिए पहुंचे थे। उन्होंने कहा हम लोग 29 तारीख को पहुंचे पर दिक्कत हुई। 30 किलोमीटर पैदल महाकुंभ स्नान के लिए जाना पड़ा। हमारी गाड़ी 30 किलोमीटर पहले ही रोक दी गई थी। वहां से वापस भी हमें पैदल आना पड़ा। कुल 60 किलोमीटर हमें पैदल चलना पड़ा। कल दोपहर को निकले आज पहुंचे काशी
रामचंद्र ने बताया- 29 की दोपहर में ही हम लोग स्नान करके वाराणसी के लिए निकल गए थे। सड़क पर इतना जाम है कि हमें आने में आज सुबह हो गई। अब वापस महाराष्ट्र लौट जाएंगे। …… ये खबर भी पढ़ें… महाकुंभ में भगदड़ के दूसरे दिन आग लगी, कई पंडाल जले, फायर ब्रिगेड पहुंचीं; 11 दिन पहले 180 पंडाल जले थे प्रयागराज महाकुंभ मेला क्षेत्र के सेक्टर- 22 में आग लग गई है। कई पंडाल जल गए हैं। फायर ब्रिगेड मौके पर पहुंच गई है। आग पर काबू पाने की कोशिश जारी है। जहां आग लगी है, वहां पब्लिक नहीं थी, इसलिए जनहानि की सूचना नहीं है। सीनियर अफसर भी मौके पर पहुंच गए हैं। महाकुंभ के मेला क्षेत्र में 19 जनवरी को शाम करीब साढ़े चार बजे आग लग गई थी। शास्त्री ब्रिज के पास सेक्टर 19 में गीता प्रेस के कैंप में ये आग लगी थी। गीता प्रेस के 180 कॉटेज आग में जल गए थे। पढ़ें पूरी खबर… ‘मैं अपने मां के साथ महाकुंभ में स्नान के लिए आया था। वहां स्नान किया। हम वहां से निकले, मगर मां अचानक पीछे से ‘गायब’ हो गईं। 7 घंटे उन्हें ढूंढा, मगर वह नहीं मिलीं।’ यह कहानी काशी रेलवे स्टेशन पर सुनाते हुए काजल परेशान हो गईं। उनकी मां सुरेखा महाकुंभ में खो गईं हैं। वहीं मोतिहारी की चंपा देवी का 22 साल का बेटा मंजय गिरी महाकुंभ में लापता हो गया। यह लोग प्रयागराज से काशी पहुंचे। कहते हैं- ढाई घंटे के सफर को पूरा करने में 7 से 8 घंटे लगे। लोग मदद कर रहे हैं, मगर अब ट्रेनों में जगह नहीं है। रेलवे स्टेशन पर पड़े हैं। दैनिक भास्कर डिजिटल ऐप टीम को रेलवे स्टेशन पर कई लोग ऐसे मिले, जो पिछले 4 दिनों से सिर्फ पानी और दूसरों की मदद के सहारे रह रहे हैं। कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जिन्होंने सिर्फ 2 दिन में 10 से 15 हजार रुपए खर्च किए हैं। अब वह अपने घरों की तरफ लौट रहे है। ऐसे लोगों का दर्द बांटने के लिए हम वाराणसी के कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचे। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… बेटी का दर्द, जिसकी मां बिछड़ गई… कब मां छूटी, पता ही नहीं चला
महाकुंभ में 28 जनवरी की रात डेढ़ बजे भगदड़ हुई, तब हर तरफ चीख पुकार मच गई। इस दौरान गया की रहने वाली सरोजा देवी अपनी बेटी काजल के साथ एक किलोमीटर दूर बैठे थे। यह लोग 28 जनवरी को गया से रात 11 बजे प्रयागराज पहुंचे थे। सरोजा देवी अब अपने परिवार से बिछड़ चुकी हैं। काजल ने बताया- हम सबने सुबह 5 बजे अमृत स्नान किया। उसके बाद वहां थोड़ा सा घूमे टहले। नाश्ता किया और फिर वापस रेलवे स्टेशन जाने की तैयारी शुरू कर दी। काजल ने अपने आंखों के आंसुओं को रोकते हुए बताया- हम लोग वहां से गंगा मइया को प्रणाम करके निकले। ऑटो के लिए पर वहां बहुत भीड़ थी। ऑटो नहीं मिल रहा था। इसी दौरान मां कहां निकल गयी पता नहीं चला। अचानक जब मां नहीं दिखी तो मामी ने पूछा फिर हम लोग उसे ढूंढने लगे। सारे खोया-पाया डिपार्टमेंट में गए, पुलिस ने सुना नहीं
काजल ने कहा- हम लोग पागलों की तरह मां को हर तरफ ढूंढ रहे थे। रो रहे थे, चिल्ला रहे थे। कितनी मन्नतें मांगी। कई पुलिसकर्मियों से कहा पर किसी ने मदद नहीं की। हमें खोया-पाया केंद्र भेजा गया। मगर मां वहां पर भी नहीं मिली। हम वहां से रेलवे स्टेशन भी गए। वहां भी अनाउंसमेंट करवाया पर मां का पता नहीं चला। मां ने अपने पास रखे थे 1300 रुपए
काजल ने बताया- स्नान के बाद मेरे पास 1300 रुपए वापसी के लिए बचे थे। उसे भी मां ने मुझसे ले लिया था। उसके बाद मां गुम हो गई। मेरे पास टिकट तक के पैसे नहीं बचे। कुछ खाया भी नहीं है कल से। वहीं परिवार के सब लोग मां के गुम होने की सूचना के बाद से परेशान है। मै भी घर जा रही हूं। बस भगवान से यही प्रार्थना है मां मिल जाएं। जिसे भी मिलें वो हमारे यहां उन्हें पहुंचा जाए। मां का दर्द, जिसका बेटा महाकुंभ में लापता हुआ बेटे के साथ महाकुंभ में स्नान के लिए आई थीं चंपा
चंपा गिरी मोतिहारी के हड़ताली गांव की रहने वाली हैं। बीते रविवार को वो अपने बेटे मंजय गिरी के साथ महाकुंभ के लिए निकली थीं। चंपा ने बताया हम लोग सोमवार को महाकुंभ पहुंच गए। यहां स्नान किया। इसके बाद मेरा बेटा जो टीका लगाने का काम करता है। वह महाकुंभ में टीका लगाने लगा। मौनी अमावस्या की सुबह हम लोग भी संगम पर थे। बेटे को बैठाकर स्नान को गईं, पलट के देखा तो बस लोग ही लोग थे
चंपा ने बताया- महाकुंभ पर रात में स्नान के लिए गई थी। उसी समय भगदड़ मची। बेटे को कपड़े के पास बैठाया था। लेकिन वो नहीं मिला। कपड़ा भी नहीं मिला। जो पहन के स्नान किया वही पहने हुए बाहर निकली तो वहां बस आदमी ही आदमी थे। मेरा बेटा कान गया। मेरा कपड़ा कहां गया मुझे नहीं पता।
चंपा अपने मोहल्ले के लोगों के साथ आयी थीं और उनका बेटा था। अब बेटा नहीं मिला तो वापस लौट रही हैं। चंपा ने बताया बेटे का मोबाइल भी ऑफ है। किसी तरह मैंने घर सूचना दी और अब वापस जा रही हूं। आप लोगों से विनती है मेरे बेटे को ढूंढ दीजिये। प्रयागराज से वाराणसी आने के लिए खर्च किए 1500 रुपए… वर्धमान से चार दोस्तों का ग्रुप पहुंचा प्रयागराज
वर्धमान के रहने वाले विश्वजीत बटव्याल, उनके दोस्त सुमित घोष, रितम प्रामाणिक और शुभोदीप घोष 26 जनवरी को बस से हावड़ा से वाराणसी के लिए चले थे। यहां 27 जनवरी को पहुंचे और विश्वनाथ जी के दर्शन कर स्नान किया। विश्वजीत ने बताया- 28 जनवरी की शाम को हम लोग बस से प्रयागराज के झूंसी पहुंचे। यहां से 15 किलोमीटर पैदल जाना था। हमने 4 रैपिडो बाइक बुक कीं। 200 रुपए हर एक दोस्त के लिए पेमेंट किया। हमें संगम के शास्त्री ब्रिज तक ले गई। हम यहां से संगम पहुंचे और स्नान की तैयारी कर ली। उस समय शाम के 7 बज चुके थे। मौनी अमावस्या का मुहूर्त 28 की रात 8 बजे लगना था। इसके फौरन बाद हम चारों दोस्तों ने स्नान किया और फिर कपड़े बदलकर संगम से दूर हट गए। यहां से हम लोग वापस शास्त्री ब्रिज पहुंच गए। 29 की रात में ही पहुंचे बनारस, खर्च की 6 हजार रुपए
चारों दोस्त 29 की रात में ही प्रयागराज से निकल गए। विश्वजीत ने बताया- हम लोगों ने फिर से शास्त्री ब्रिज से सरस्वती फाटक तक रैपिडो बुक किया जो 200 रुपए में हमें वहां तक लेकर आयी। इसके बाद वहां कोई सवारी वाराणसी जाने को तैयार नहीं थी। वहीं एक बस लगी थी जो यात्रियों को बैठा रही थी। हमने पूछा तो कहा कि 1500 रुपए किराया प्रति व्यक्ति लगेगा। हम तैयार हो गए और 6 हजार रुपए देकर वाराणसी पहुंचे। 10 घंटे से स्टेशन पर, ट्रेन कैंसिल
विश्वजीत और उनके सभी साथियों का 10 हजार रुपए वर्धमान से प्रयागराज और फिर वाराणसी आने तक में खर्च हुआ है। बोले व्यवस्थाएं नाकाफी हैं। हम 10 घण्टे से स्टेशन पर हैं पर ट्रेन मिलेगी की नहीं यह क्लियर नहीं है। अब उनकी बात जो चार दिन से 22 लोगों के साथ वाराणसी जंक्शन पर राधा बोलीं- ट्रेन धरा दीजिए हम घर चले जाएं
दरभंगा की राधा देवी अपने सास-ससुर, चाची-मामी और परिवार के कुल 22 लोगों के साथ प्रयागराज गयीं थीं। प्रयागराज में सभी ने 26 जनवरी को महाकुंभ स्नान किया और उसी दिन रात में वाराणसी लौट आयीं। राधा बताती हैं कि चार दिन से यहीं हैं। अब पैसे भी नहीं हैं। खाने के लिए। पानी पीकर गुजरा हो रहा है। राधा ने कहा- चार दिन आज हो गए। कसी भी ट्रेन में चढ़ नहीं पाए। रेलवे खाली इंतजाम की बात कर रहा है। लेकिन कोई व्यवस्था नहीं है। हमें आप लोग कोई ट्रेन धरा दीजिये घर चले जाएंगे हम लोग। वहीं उन्होंने कहा पैसे नहीं है अब पास में कि टिकट भी लेकर सकें तो ऐसे ही जाने की सोच रहे हैं। अब उन लोगों की बात, जिन्होंने अपनी आंखों से देखी संगम की भगदड़, बताया कितने मरे… पीपा पुल बंद होने से एक जगह समाहित हो गई थी भीड़
वाराणसी के रहने वाले आलोक शुक्ला भी अपने दोस्तों के साथ भगदड़ की रात संगम पर मौजूद थे। उन्होंने हमें आंखों देखी बताई। आलोक ने बताया- हम लोग 29 तारीख को 19 नंबर सेक्टर में गंगाजी वाले मार्ग पर थे। वहां से हम लोग रात्रि में साढ़े 12 बजे के एक बजे पहुंचे थे। लेकिन वहां कई सारे पीपा पुल बंद थे। उसके बंद होने की वजह से भीड़ एक जगह इकट्ठा थी। आलोक ने बताया-प्रशासन कुछ भी कहे, संगम उस दिन शाही स्नान के लिए बंद था। पीपा पुल बंद था। सभी लोग एक जगह पहुंच गए। हम भी वहीं थे। वहां हजारों लोग संगम किनारे बैठे लेटे थे। जब आपको पता था की 10 करोड़ लोग आ रहे हैं। तो उसी तरह प्रशासन को व्यवस्था करनी चाहिए थी। पुलिसकर्मी खुद की जान बचा रहे थे
आलोक कहते हैं-हमने अपनी आंखों से देखा तैनात पुलिसकर्मी खुद को बचाने में लगे थे। कहीं भगदड़ हो तो वो न मर जाएं। उन्हें किसी की चिंता नहीं थी। प्रशासन को ये पता था की भगदड़ मचेगी तो हमारी जान भी जाएगी। इसलिए वो लोगों को काट नहीं रहा था। आलोक ने बताया लोग एक से एक सटे खड़े थे। कुछ लोग आये और बैरिकेडिंग से कूदने लगे। तभी कुछ युवाओं का एक झुण्ड आया जो हर-हर महादेव का नारा लगा रहे थे। वो सीधे अंदर पहुंच गए। उसके बाद लोग एक दूसरे के ऊपर गिरने लगे और जो गिरा फिर उठा नहीं। यह झूठ है कि 30 लोगों की जान गई
आलोक ने बताया- यह बिल्कुल झूठ है कि सिर्फ 30 लोगों की जान गई। हमने प्रत्यक्ष रूप से देखा है कि वहां अच्छे खासे लोगों की मौत हुई है क्योंकि जो गिरा वो दोबारा उठा नहीं। अब उनकी बात जिन्होंने बताया स्टेशन और ट्रेन का हाल, किया 30 किमी पैदल सफर भूषण सिंह बिहार के रहने वाले हैं। भूषण ने बताया- बहुत दिक्कत से हम लोग यहां प्रयागराज से वापस पहुंचे हैं। रात में 7 बजे ट्रेन मिली थी। सुबह 7 बजे हम लोग वाराणसी पहुंचे हैं। रक्सौल की ट्रेन का इंतजार कर रहे हैं। पर अभी तक ट्रेन नहीं आयी शाम का 4 बज गया है। बहुत दिक्कत है। हम लोग दब गए थे भीड़ में
भूषण ने बताया हम लोग पोल नंबर 36 पर थे। भगदड़ हुई तो हम लोग भी दब गए। किसी तरह बाहर निकले। तो किसी तरह पत्नी को खींचते हुए पोल नंबर 40 पर पहुंचे। वहां से किसी तरह स्टेशन पहुंचे। 6 घंटे कठघरे में रखे गए
भूषण ने बताया- बहुत दिक्कत हुई इस बार सफर करने में। झूंसी स्टेशन पहुंचे तो वहां 6 घंटा पुलिस, जीआरपी और आरपीएफ ने लोगों को कठघरे में बैठा दिया। 6 घंटा वहां बैठे रहे। उसके बाद छोड़ा तो 4 घंटा बाहर रोके रहा अंदर स्टेशन पर प्रवेश नहीं था। फिर ट्रेन मिली जो शाम 7 बजे चलकर सुबह 7 बजे पहुंची। अव्यवस्था इतनी है कि पूछिए मत। 30 किलोमीटर चले पैदल तब हुआ कुंभ स्नान
महाराष्ट्र के रामचंद्र प्रयागराज अपनी ग्रुप और फैमिली के साथ स्नान के लिए पहुंचे थे। उन्होंने कहा हम लोग 29 तारीख को पहुंचे पर दिक्कत हुई। 30 किलोमीटर पैदल महाकुंभ स्नान के लिए जाना पड़ा। हमारी गाड़ी 30 किलोमीटर पहले ही रोक दी गई थी। वहां से वापस भी हमें पैदल आना पड़ा। कुल 60 किलोमीटर हमें पैदल चलना पड़ा। कल दोपहर को निकले आज पहुंचे काशी
रामचंद्र ने बताया- 29 की दोपहर में ही हम लोग स्नान करके वाराणसी के लिए निकल गए थे। सड़क पर इतना जाम है कि हमें आने में आज सुबह हो गई। अब वापस महाराष्ट्र लौट जाएंगे। …… ये खबर भी पढ़ें… महाकुंभ में भगदड़ के दूसरे दिन आग लगी, कई पंडाल जले, फायर ब्रिगेड पहुंचीं; 11 दिन पहले 180 पंडाल जले थे प्रयागराज महाकुंभ मेला क्षेत्र के सेक्टर- 22 में आग लग गई है। कई पंडाल जल गए हैं। फायर ब्रिगेड मौके पर पहुंच गई है। आग पर काबू पाने की कोशिश जारी है। जहां आग लगी है, वहां पब्लिक नहीं थी, इसलिए जनहानि की सूचना नहीं है। सीनियर अफसर भी मौके पर पहुंच गए हैं। महाकुंभ के मेला क्षेत्र में 19 जनवरी को शाम करीब साढ़े चार बजे आग लग गई थी। शास्त्री ब्रिज के पास सेक्टर 19 में गीता प्रेस के कैंप में ये आग लगी थी। गीता प्रेस के 180 कॉटेज आग में जल गए थे। पढ़ें पूरी खबर… उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर