सीएम योगी आदित्यनाथ सुहेलदेव विजयोत्सव के मौके पर मंगलवार को बहराइच पहुंचे। सीएम ने चित्तौरा झील पर बनी 40 फीट ऊंची महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा का लोकार्पण किया। उसके बाद सीएम ने मंच पर 5 बच्चों का अन्नप्राशन और नामकरण किया। बच्चों को गोद में लेकर उनको दुलारा, तिलक किया फिर खीर खिलाई। इस दौरान बच्चों ने धोती-कुर्ता पहन रखा था। इन सभी बच्चों का नाम सुहेलदेव रखा गया है। भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी सुभासपा मंगलवार को महाराजा सुहेलदेव विजयोत्सव दिवस मना रही है। आज के दिन महाराजा सुहेलदेव ने मोहम्मद गजनवी के भांजे सालार मसूद गाजी को बहराइच में युद्ध में हराया था। झील के किनारे महाराजा सुहेलदेव का स्मारक बनाया गया बता दें, जिला मुख्यालय से 8 किमी दूर गोंडा रोड पर चित्तौरा झील है। झील के किनारे महाराजा सुहेलदेव का स्मारक बनाया गया है। यहां कांस्य से बनी महाराज सुहेलदेव की 40 फीट ऊंची प्रतिमा लगाई गई है। दावा है कि यह प्रतिमा देश की सबसे बड़ी दो पैरों पर खड़ी अश्वारुढ़ प्रतिमा है। इस प्रतिमा का निर्माण उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी की देखरेख में कराया गया है। इसे मूर्तिकार पद्मश्री रामसुतार ने बनाया है। इस स्मारक का पीएम नरेंद्र मोदी ने 16 फरवरी, 2021 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शिलान्यास किया था। कार्यक्रम के लिए सिक्योरिटी के कड़े इंतजाम हैं। चित्तौरा को 20 सेक्टर में बांटा गया है। ड्रोन से इलाके की निगरानी की जा रही है। स्मारक स्थल से चारों ओर ढाई किलोमीटर तक के दायरे में पुलिस का पहरा है। कार्यक्रम के लिए दूसरे जिलों से भी फोर्स आ गई है। चार एएसपी, 9 सीओ, चार कंपनी पीएसी और 600 से अधिक कॉन्स्टेबल तैनात हैं। अब पढ़िए…महाराजा सुहेलदेव से जुड़ी कहानियां- इतिहासकारों के मुताबिक, राजा सुहेलदेव के बारे में ऐतिहासिक जानकारी कुछ भी नहीं है। महमूद गजनवी के समकालीन इतिहासकारों ने न तो सालार मसूद गाजी का जिक्र किया है, न तो राजा सुहेलदेव का जिक्र किया है और न ही बहराइच का जिक्र है। राजा सुहेलदेव से जुड़ी कहानी चौदहवीं सदी में अमीर खुसरो की किताब एजाज-ए-खुसरवी और उसके बाद 17वीं सदी में लिखी गई किताब मिरात-ए-मसूदी में मिलती है। महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के सम्राट थे। बहराइच के इतिहासकार डॉ. राजकिशोर ने एक इंटरव्यू में बताया था, राजा सुहेलदेव आज से करीब हजार वर्ष पूर्व के ऐसे महानायक हैं, जिनका इतिहास खोजना काफी मुश्किल है। हालांकि उत्तर प्रदेश में अवध व तराई क्षेत्र से लेकर पूर्वांचल तक मिथकों-किंवदंतियों में उनकी वीरता के कई किस्से हैं। जहां स्मारक, वहां की 3 फोटो देखिए सबसे पहले पढ़िए उनके जन्म की कहानी… महाराजा सुहेलदेव का जन्म 990 ईस्वी में श्रावस्ती में हुआ था। 17वीं शताब्दी में लिखी गई फारसी भाषा के मिरात-ए-मसूदी के अनुसार, सुहेलदेव श्रावस्ती के राजा मोरध्वज के सबसे बड़े पुत्र थे। पौराणिक कथाओं के विभिन्न संस्करणों में उन्हें सकरदेव, सुहीरध्वज, सुहरीदिल, सुहरीदलध्वज, राय सुह्रिद देव, सुसज और सुहारदल समेत विभिन्न नामों से जाना जाता है। अवध गजेटियर के अनुसार, उनका शासनकाल 1027 ईस्वी से 1077 ईस्वी तक रहा। उनका राज्य मुख्य रूप से बहराइच और श्रावस्ती जिलों में फैला था। जिसका विस्तार पूर्व में गोरखपुर और पश्चिम में सीतापुर तक बताया जाता है। बालार्क ऋषि थे महाराजा सुहेलदेव के गुरु बहराइच के केवी इंटर कॉलेज पयागपुर के पूर्व प्रवक्ता परमेश्वर सिंह ने 7 साल पहले महाराजा सुहेलदेव के बारे में डिटेल जानकारी थी। उनके मुताबिक, बहराइच शहर से लगभग तीन किलोमीटर उत्तर की ओर एक विशाल सूर्यकुंड व भव्य सूर्य मंदिर था। वहीं पर बालार्क ऋषि नाम के महात्मा रहते थे। जो महाराजा सुहेलदेव के गुरु थे। सुहेलदेव को धनुष विद्या, शब्दभेदी बाण चलाना, तलवार चलाना, गदा व भाला फेंकने में विशेष दक्षता प्राप्त थी। उनको नदी में तैरने का भी शौक था। शेरों का शिकार तीर एवं तलवार से करना उनके लिए एक साधारण सी बात थी। गुरु के आदेशानुसार 25 वर्ष की आयु तक इनकी माता के अलावा कोई भी महिला इनके करीब नहीं आ सकी। वह उच्च कोटि के शासक थे। इनके समय में लोग घरों में ताला लगाने की आवश्यकता नहीं समझते थे। उन्होंने श्रावस्ती नगर को सुंदर रूप दिया था। अब पढ़िए, गजनवी के भांजे सालार मसूद गाजी को हराने और मारने की कहानी- बहराइच में हुआ था भयानक युद्ध मिथकों-लोककथाओं में सुहेलदेव को वर्ष 1033 में कौड़ियाला नदी के तट पर लड़े गए युद्ध के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। सालार मसूद जब पूरे उत्तर भारत को कुचलता हुआ बहराइच पहुंचा तो यहां भयानक युद्ध हुआ। सुहेलदेव की तरफ से थारू, बंजारा जातियों के राजाओं के साथ-साथ आमजन ने भी युद्ध लड़ा। आमजन भी हथियार लेकर निकल पड़े। परिणाम यह हुआ कि सालार मसऊद की भारी भरकम सेना के केवल छह लोग ही जिंदा बचे। सालार मसऊद सहित सभी मारे गए। राजभर और पासी समाज मानता है वंशज महाराज सुहेलदेव की जाति को लेकर अधिकतर इतिहासकार एकमत नहीं है। कोई उन्हें राजभर तो कोई पासी जाति का बताता है। डॉ. राजकिशोर के मुताबिक, 1907 में प्रकाशित बहराइच गजेटियर के कुछ संपादित अंश में भी कुछ स्पष्ट नहीं था। गजेटियर में सुहेलदेव के आगे राजपूत, भर, पासी, जैन, बौद्ध जैसे शब्द भी जुड़े थे। यानी स्पष्ट नहीं था कि सुहेलदेव किस जाति या पंथ से जुड़े राजा थे। इसी तरह माना जाता है कि सुहेलदेव भर जाति से ताल्लुक रखते थे। भर पासी जाति की चौदह उपजातियों में से एक है। सुहेलदेव एक वीर राजा थे और उनके अंडर में चौदह अन्य राजा थे। जैन धर्म अपनाने का भी जिक्र है किताब ‘जैन धर्म के शासक’ में सुहेलदेव के बारे में चर्चा है। इसके अनुसार सुहेलदेव ने जैन धर्म अपना लिया था। इतिहास में रुचि रखने वाले पूर्व विधायक रामसागर राव भी इससे कुछ-कुछ सहमति जताते हुए बताते हैं कि सुहेलदेव भर जाति से ताल्लुक रखते थे। भर पासी जाति की चौदह उपजातियों में से एक है। सुहेलदेव एक प्रतापी राजा थे और उनके अधीन चौदह अन्य राजा थे। किंतु, उन्होंने जैन धर्म अपना लिया था। राव इसके पीछे तर्क देते हैं कि चूंकि उस वक्त ब्राह्मण मुनि नीची मानी जाने वाली जातियों के राजा का अभिषेक नहीं करते थे। जैन मुनि कर देते थे, संभवत: इसीलिए उन्होंने जैन धर्म स्वीकार कर लिया। विधानसभा पुस्तकालय में रखी पुस्तक ‘जैन धर्म के शासक’ में सुहेलदेव का विशेष वर्णन मिलता है। —————————- यह खबर भी पढ़ें- गाजीपुर में सोनम बोली-मैंने नहीं, लुटेरों ने पति को मारा:ढाबा संचालक से भाई को फोन करवाया; शिलॉन्ग पुलिस कस्टडी में लेने पहुंची इंदौर की सोनम रघुवंशी 17 दिन बाद यूपी के गाजीपुर में एक ढाबे पर बदहवास हालत में मिली। उसे वन स्टॉप सेंटर में पुलिस की निगरानी में रखा गया है। सोनम ने काले रंग की टी-शर्ट और लोअर पहन रखा है। बाल बिखरे हुए हैं। ऐसा लग रहा है कि वह कई दिनों से सोई नहीं है। यहां पढ़ें पूरी खबर सीएम योगी आदित्यनाथ सुहेलदेव विजयोत्सव के मौके पर मंगलवार को बहराइच पहुंचे। सीएम ने चित्तौरा झील पर बनी 40 फीट ऊंची महाराजा सुहेलदेव की प्रतिमा का लोकार्पण किया। उसके बाद सीएम ने मंच पर 5 बच्चों का अन्नप्राशन और नामकरण किया। बच्चों को गोद में लेकर उनको दुलारा, तिलक किया फिर खीर खिलाई। इस दौरान बच्चों ने धोती-कुर्ता पहन रखा था। इन सभी बच्चों का नाम सुहेलदेव रखा गया है। भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टी सुभासपा मंगलवार को महाराजा सुहेलदेव विजयोत्सव दिवस मना रही है। आज के दिन महाराजा सुहेलदेव ने मोहम्मद गजनवी के भांजे सालार मसूद गाजी को बहराइच में युद्ध में हराया था। झील के किनारे महाराजा सुहेलदेव का स्मारक बनाया गया बता दें, जिला मुख्यालय से 8 किमी दूर गोंडा रोड पर चित्तौरा झील है। झील के किनारे महाराजा सुहेलदेव का स्मारक बनाया गया है। यहां कांस्य से बनी महाराज सुहेलदेव की 40 फीट ऊंची प्रतिमा लगाई गई है। दावा है कि यह प्रतिमा देश की सबसे बड़ी दो पैरों पर खड़ी अश्वारुढ़ प्रतिमा है। इस प्रतिमा का निर्माण उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी की देखरेख में कराया गया है। इसे मूर्तिकार पद्मश्री रामसुतार ने बनाया है। इस स्मारक का पीएम नरेंद्र मोदी ने 16 फरवरी, 2021 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शिलान्यास किया था। कार्यक्रम के लिए सिक्योरिटी के कड़े इंतजाम हैं। चित्तौरा को 20 सेक्टर में बांटा गया है। ड्रोन से इलाके की निगरानी की जा रही है। स्मारक स्थल से चारों ओर ढाई किलोमीटर तक के दायरे में पुलिस का पहरा है। कार्यक्रम के लिए दूसरे जिलों से भी फोर्स आ गई है। चार एएसपी, 9 सीओ, चार कंपनी पीएसी और 600 से अधिक कॉन्स्टेबल तैनात हैं। अब पढ़िए…महाराजा सुहेलदेव से जुड़ी कहानियां- इतिहासकारों के मुताबिक, राजा सुहेलदेव के बारे में ऐतिहासिक जानकारी कुछ भी नहीं है। महमूद गजनवी के समकालीन इतिहासकारों ने न तो सालार मसूद गाजी का जिक्र किया है, न तो राजा सुहेलदेव का जिक्र किया है और न ही बहराइच का जिक्र है। राजा सुहेलदेव से जुड़ी कहानी चौदहवीं सदी में अमीर खुसरो की किताब एजाज-ए-खुसरवी और उसके बाद 17वीं सदी में लिखी गई किताब मिरात-ए-मसूदी में मिलती है। महाराजा सुहेलदेव 11वीं सदी में श्रावस्ती के सम्राट थे। बहराइच के इतिहासकार डॉ. राजकिशोर ने एक इंटरव्यू में बताया था, राजा सुहेलदेव आज से करीब हजार वर्ष पूर्व के ऐसे महानायक हैं, जिनका इतिहास खोजना काफी मुश्किल है। हालांकि उत्तर प्रदेश में अवध व तराई क्षेत्र से लेकर पूर्वांचल तक मिथकों-किंवदंतियों में उनकी वीरता के कई किस्से हैं। जहां स्मारक, वहां की 3 फोटो देखिए सबसे पहले पढ़िए उनके जन्म की कहानी… महाराजा सुहेलदेव का जन्म 990 ईस्वी में श्रावस्ती में हुआ था। 17वीं शताब्दी में लिखी गई फारसी भाषा के मिरात-ए-मसूदी के अनुसार, सुहेलदेव श्रावस्ती के राजा मोरध्वज के सबसे बड़े पुत्र थे। पौराणिक कथाओं के विभिन्न संस्करणों में उन्हें सकरदेव, सुहीरध्वज, सुहरीदिल, सुहरीदलध्वज, राय सुह्रिद देव, सुसज और सुहारदल समेत विभिन्न नामों से जाना जाता है। अवध गजेटियर के अनुसार, उनका शासनकाल 1027 ईस्वी से 1077 ईस्वी तक रहा। उनका राज्य मुख्य रूप से बहराइच और श्रावस्ती जिलों में फैला था। जिसका विस्तार पूर्व में गोरखपुर और पश्चिम में सीतापुर तक बताया जाता है। बालार्क ऋषि थे महाराजा सुहेलदेव के गुरु बहराइच के केवी इंटर कॉलेज पयागपुर के पूर्व प्रवक्ता परमेश्वर सिंह ने 7 साल पहले महाराजा सुहेलदेव के बारे में डिटेल जानकारी थी। उनके मुताबिक, बहराइच शहर से लगभग तीन किलोमीटर उत्तर की ओर एक विशाल सूर्यकुंड व भव्य सूर्य मंदिर था। वहीं पर बालार्क ऋषि नाम के महात्मा रहते थे। जो महाराजा सुहेलदेव के गुरु थे। सुहेलदेव को धनुष विद्या, शब्दभेदी बाण चलाना, तलवार चलाना, गदा व भाला फेंकने में विशेष दक्षता प्राप्त थी। उनको नदी में तैरने का भी शौक था। शेरों का शिकार तीर एवं तलवार से करना उनके लिए एक साधारण सी बात थी। गुरु के आदेशानुसार 25 वर्ष की आयु तक इनकी माता के अलावा कोई भी महिला इनके करीब नहीं आ सकी। वह उच्च कोटि के शासक थे। इनके समय में लोग घरों में ताला लगाने की आवश्यकता नहीं समझते थे। उन्होंने श्रावस्ती नगर को सुंदर रूप दिया था। अब पढ़िए, गजनवी के भांजे सालार मसूद गाजी को हराने और मारने की कहानी- बहराइच में हुआ था भयानक युद्ध मिथकों-लोककथाओं में सुहेलदेव को वर्ष 1033 में कौड़ियाला नदी के तट पर लड़े गए युद्ध के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है। सालार मसूद जब पूरे उत्तर भारत को कुचलता हुआ बहराइच पहुंचा तो यहां भयानक युद्ध हुआ। सुहेलदेव की तरफ से थारू, बंजारा जातियों के राजाओं के साथ-साथ आमजन ने भी युद्ध लड़ा। आमजन भी हथियार लेकर निकल पड़े। परिणाम यह हुआ कि सालार मसऊद की भारी भरकम सेना के केवल छह लोग ही जिंदा बचे। सालार मसऊद सहित सभी मारे गए। राजभर और पासी समाज मानता है वंशज महाराज सुहेलदेव की जाति को लेकर अधिकतर इतिहासकार एकमत नहीं है। कोई उन्हें राजभर तो कोई पासी जाति का बताता है। डॉ. राजकिशोर के मुताबिक, 1907 में प्रकाशित बहराइच गजेटियर के कुछ संपादित अंश में भी कुछ स्पष्ट नहीं था। गजेटियर में सुहेलदेव के आगे राजपूत, भर, पासी, जैन, बौद्ध जैसे शब्द भी जुड़े थे। यानी स्पष्ट नहीं था कि सुहेलदेव किस जाति या पंथ से जुड़े राजा थे। इसी तरह माना जाता है कि सुहेलदेव भर जाति से ताल्लुक रखते थे। भर पासी जाति की चौदह उपजातियों में से एक है। सुहेलदेव एक वीर राजा थे और उनके अंडर में चौदह अन्य राजा थे। जैन धर्म अपनाने का भी जिक्र है किताब ‘जैन धर्म के शासक’ में सुहेलदेव के बारे में चर्चा है। इसके अनुसार सुहेलदेव ने जैन धर्म अपना लिया था। इतिहास में रुचि रखने वाले पूर्व विधायक रामसागर राव भी इससे कुछ-कुछ सहमति जताते हुए बताते हैं कि सुहेलदेव भर जाति से ताल्लुक रखते थे। भर पासी जाति की चौदह उपजातियों में से एक है। सुहेलदेव एक प्रतापी राजा थे और उनके अधीन चौदह अन्य राजा थे। किंतु, उन्होंने जैन धर्म अपना लिया था। राव इसके पीछे तर्क देते हैं कि चूंकि उस वक्त ब्राह्मण मुनि नीची मानी जाने वाली जातियों के राजा का अभिषेक नहीं करते थे। जैन मुनि कर देते थे, संभवत: इसीलिए उन्होंने जैन धर्म स्वीकार कर लिया। विधानसभा पुस्तकालय में रखी पुस्तक ‘जैन धर्म के शासक’ में सुहेलदेव का विशेष वर्णन मिलता है। —————————- यह खबर भी पढ़ें- गाजीपुर में सोनम बोली-मैंने नहीं, लुटेरों ने पति को मारा:ढाबा संचालक से भाई को फोन करवाया; शिलॉन्ग पुलिस कस्टडी में लेने पहुंची इंदौर की सोनम रघुवंशी 17 दिन बाद यूपी के गाजीपुर में एक ढाबे पर बदहवास हालत में मिली। उसे वन स्टॉप सेंटर में पुलिस की निगरानी में रखा गया है। सोनम ने काले रंग की टी-शर्ट और लोअर पहन रखा है। बाल बिखरे हुए हैं। ऐसा लग रहा है कि वह कई दिनों से सोई नहीं है। यहां पढ़ें पूरी खबर उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
सीएम ने 5 बच्चों का अन्नप्राशन और नामकरण किया:तिलक लगाकर खीर खिलाई, सभी का नाम सुहेलदेव रखा
