सिरसा में एक महिला पुलिसकर्मी से रात में अभ्रदता एवं धक्का-मुक्की करने का आरोप लगाने का मामला सामने आया है। महिला पुलिसकर्मी रात को ड्यूटी पर थी, कि तभी स्टेडियम के पास हंगामे की सूचना मिली। महिला पुलिस कर्मी ने मौके पर पहुंच जब युवक से पूछताछ की तो वह अभद्रता के साथ धक्का देने और गाली गलौज पर उतर आया। ऐसे में पुलिस टीम को बुलानी पड़ी। इसके बाद पुलिस ने युवक को काबू कर लिया गया। पुलिस ने आरोपी युवक की कार को भी अपने कब्जे में लिया है। शराब पीकर हंगामा कर रहा था युवक सिविल लाइन थाना प्रभारी प्रदीप कुमार ने बताया कि, हरदीप कौर दुर्गा शक्ति ईआरवी गाड़ी पर प्रधान सिपाही के पद पर महिला थाना सिरसा में तैनात है। हरदीप कौर ने बताया कि रविवार रात को उन्हें एक इवेंट प्राप्त हुआ कि भगत सिंह स्टेडियम के सामने एक युवक शराब पीकर हंगामा कर रहा है। इस पर वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंची, जहां सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार खड़ी थी। मौके पर मौजूद युवक ने पूछताछ में अपना नाम नेजाडेला कलां निवासी कर्ण सिंह बताया। आरोप है कि युवक ने शराब के नशे में न केवल महिला पुलिसकर्मी के साथ बदतमीजी की, बल्कि धक्का-मुक्की और गाली-गलौच भी की। कुछ देर बाद पुलिस टीम पहुंची और युवक को काबू किया। उसकी कार को भी कब्जे में लिया। आईओ एसआई सत्यवीर सिंह ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए 194(2), 121, 221, 324(4) बीएनएस विभिन्न धाराओं के तहत सिविल लाइन पुलिस थाने में केस दर्ज किया। सिरसा में एक महिला पुलिसकर्मी से रात में अभ्रदता एवं धक्का-मुक्की करने का आरोप लगाने का मामला सामने आया है। महिला पुलिसकर्मी रात को ड्यूटी पर थी, कि तभी स्टेडियम के पास हंगामे की सूचना मिली। महिला पुलिस कर्मी ने मौके पर पहुंच जब युवक से पूछताछ की तो वह अभद्रता के साथ धक्का देने और गाली गलौज पर उतर आया। ऐसे में पुलिस टीम को बुलानी पड़ी। इसके बाद पुलिस ने युवक को काबू कर लिया गया। पुलिस ने आरोपी युवक की कार को भी अपने कब्जे में लिया है। शराब पीकर हंगामा कर रहा था युवक सिविल लाइन थाना प्रभारी प्रदीप कुमार ने बताया कि, हरदीप कौर दुर्गा शक्ति ईआरवी गाड़ी पर प्रधान सिपाही के पद पर महिला थाना सिरसा में तैनात है। हरदीप कौर ने बताया कि रविवार रात को उन्हें एक इवेंट प्राप्त हुआ कि भगत सिंह स्टेडियम के सामने एक युवक शराब पीकर हंगामा कर रहा है। इस पर वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंची, जहां सफेद रंग की स्विफ्ट डिजायर कार खड़ी थी। मौके पर मौजूद युवक ने पूछताछ में अपना नाम नेजाडेला कलां निवासी कर्ण सिंह बताया। आरोप है कि युवक ने शराब के नशे में न केवल महिला पुलिसकर्मी के साथ बदतमीजी की, बल्कि धक्का-मुक्की और गाली-गलौच भी की। कुछ देर बाद पुलिस टीम पहुंची और युवक को काबू किया। उसकी कार को भी कब्जे में लिया। आईओ एसआई सत्यवीर सिंह ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए 194(2), 121, 221, 324(4) बीएनएस विभिन्न धाराओं के तहत सिविल लाइन पुलिस थाने में केस दर्ज किया। हरियाणा | दैनिक भास्कर
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जुई कलां थाना के जांच अधिकारी एएसआई कुलदीप सिंह ने बताया कि उन्हें एक्सीडेंट की सूचना मिली थी। अस्पताल में पहुंचकर मृतक अमित के भाई महेश के बयान दर्ज किया है। जिसमें बताया कि ब्रेक के बीच की पत्ती हटाते समय क्लच छूटने के कारण अमित नीचे गिर गया। वहीं ट्रैक्टर की चपेट में आ गया। जिसके कारण उसकी मौत हो गई। बयानों के आधार पर इत्तफाकिया कार्रवाई की गई है।
हरियाणा में सहायक जिला अटॉर्नी एग्जाम रद्द:हाईकोर्ट ने दिया आदेश; कहा- एग्जाम में लॉ सब्जेक्ट के सवाल ही नहीं, ये मनमानी
हरियाणा में सहायक जिला अटॉर्नी एग्जाम रद्द:हाईकोर्ट ने दिया आदेश; कहा- एग्जाम में लॉ सब्जेक्ट के सवाल ही नहीं, ये मनमानी हरियाणा सरकार को बड़ा झटका देते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य के अभियोजन विभाग में सहायक जिला अटॉर्नी (ADA) के 255 पदों के लिए पूरी भर्ती प्रक्रिया को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि जनरल नॉलेज पर आधारित स्क्रीनिंग टेस्ट का नौकरी के लिए आवश्यक कानूनी कौशल से कोई संबंध नहीं है और इसमें योग्य उम्मीदवारों को अनुचित तरीके से बाहर रखा गया है। जस्टिस संदीप मौदगिल ने 36 पेजों के विस्तृत आदेश में कहा कि एग्जाम का सिलेबस, जिसमें सामान्य विज्ञान, समसामयिक घटनाएं, इतिहास, भूगोल और बुनियादी गणित शामिल थे। लॉ सब्जेक्ट की अनदेखी की गई। ये मनमानी है और नौकरी की जरूरतों से उसका कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है। जस्टिस ने कहा, कानूनी ज्ञान से रहित छलनी से महत्वाकांक्षी कानूनी विशेषज्ञों को छांटना भर्ती के मूल उद्देश्य के साथ विश्वासघात है। उन्होंने आगे कहा कि ऐसी प्रक्रिया “मनमाने ढंग से और चयन के उद्देश्य से बिना किसी तर्कसंगत संबंध के संचालित होती है। 8 अगस्त को हुआ था एग्जाम लखन सिंह, नवेंद्र और अमन दलाल सहित अन्रू वकीलों द्वारा इस मामले को लेकर याचिकाएं दाखिल की गई थी। जिन्होंने हरियाणा लोक सेवा आयोग (HPSC) के 8 अगस्त, 2025 के विज्ञापन और उसी दिन परीक्षा पैटर्न की रूपरेखा वाली एक संबंधित घोषणा को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि पिछली भर्तियों के विपरीत, जहां स्क्रीनिंग टेस्ट में मुख्य रूप से कानून से संबंधित प्रश्न शामिल थे, नए प्रारूप ने इसे सामान्य विषयों तक सीमित कर दिया है, जो उनके अनुसार अनुचित है और विशेष कानूनी पद से असंबंधित है। कोर्ट ने एग्जाम को बहिष्कारक प्रथा बताया जस्टिस ने सहमति जताते हुए कहा कि एडीए की भूमिका के लिए आपराधिक कानून, साक्ष्य और प्रक्रिया में विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। आदेश में कहा गया है, स्क्रीनिंग परीक्षा से कानून को पूरी तरह से बाहर करके, आयोग ने चयन के तरीके और प्राप्त किए जाने वाले उद्देश्य के बीच के तर्कसंगत संबंध को नष्ट कर दिया है। अदालत ने कहा कि यह परीक्षा बड़ी संख्या में उम्मीदवारों को उनके कानूनी ज्ञान का आकलन किए बिना ही पहले चरण में ही बाहर कर देगी। अदालत ने इसे एक “बहिष्कारक प्रथा” बताया जो “उम्मीदवारों को प्रतिस्पर्धा करने का एक सार्थक अवसर प्रदान करने से वंचित करती है और संवैधानिक रूप से अस्थिर है।” ऐसे भरे जाने थे ये पद इस भर्ती में विभिन्न श्रेणियों के रिक्त पदों को भरा जाना था, 134 जनरल, 26 अनुसूचित जाति और 54 पिछड़ा वर्ग (BCA और BCB) के पद। इसके लिए उम्मीदवारों के पास कानून की डिग्री, 10वीं कक्षा तक हिंदी या संस्कृत का अध्ययन और अधिवक्ता के रूप में पंजीकृत होना आवश्यक था। इस प्रक्रिया में तीन चरण शामिल थे, 100 बहुविकल्पीय प्रश्नों की एक स्क्रीनिंग परीक्षा (अर्हता प्राप्त करने के लिए कम से कम 25 प्रतिशत अंक आवश्यक), एक विषय ज्ञान परीक्षा जिसमें 87.5 प्रतिशत अंक सिविल और आपराधिक कानून पर केंद्रित थे, और एक साक्षात्कार जिसमें 12.5 प्रतिशत अंक थे। पदों की संख्या के चार गुना तक के उम्मीदवार ही दूसरे चरण में आगे बढ़ सकते थे। HPSC ने ये दिए तर्क एचपीएससी ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा कि उसे शॉर्ट लिस्टिंग के तरीके तय करने का विवेकाधिकार है और स्क्रीनिंग टेस्ट केवल एक योग्यता चरण है, कानूनी ज्ञान का मूल्यांकन बाद में किया जाएगा। उसने तर्क दिया कि ग्रुप बी के अधिकारियों के रूप में एडीए को व्यापक जागरूकता की आवश्यकता है क्योंकि उन्हें अक्सर अदालती काम से परे सरकारी विभागों में प्रतिनियुक्त किया जाता है। कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के बोझ को कम करने जैसी प्रशासनिक सुविधा, सार्वजनिक रोजगार में निष्पक्ष अवसर के अभ्यर्थियों के अधिकार को खत्म नहीं कर सकती।
