नेपाली लड़कियां घाघरे में चरस छिपा तस्करी कर रहीं:5 हजार में 5 करोड़ की चरस जा रही बॉर्डर पार; बाराबंकी से नेपाल जा रहा अफीम-स्मैक यूपी के सिद्धार्थनगर जिले का भारत-नेपाल का बढ़नी बॉर्डर। दोपहर के वक्त सुरक्षाकर्मी एक 35 साल की युवती को रोकते हैं। तलाशी ली जाती है, तो युवती खुद अपने घाघरे से एक के बाद एक 10 पैकेट निकालकर टेबल पर रख देती है। हर पैकेट का वजन 1 किलो होता है। जांच की जाती है तो सभी पैकेटों में चरस होती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में 10 किलो चरस की कीमत 5 करोड़ रुपए है। युवती बताती है, 10 पैकेट बॉर्डर पार कराने के लिए उसे 5 हजार रुपए मिले हैं। यह पहला मामला नहीं है, जब नेपाल बॉर्डर से इस तरह से चरस की स्मगलिंग हो रही थी। हर साल नेपाल से लाई गई 1 हजार किलो से ज्यादा की चरस केवल यूपी में पकड़ी जाती है, जिसकी मार्केट में कीमत 500 करोड़ रुपए है। सिर्फ महिलाओं से ही नहीं, घी के डिब्बों, ट्राई-साइकिल, साइकिल, ट्रकों में भूसों के बीच रखकर करोड़ों की चरस भारत लाई जाती है। वहीं, यूपी से अफीम और ड्रग्स की तस्करी नेपाल में की जाती है। भारत और नेपाल के बीच 1850 किलोमीटर की खुली सीमा है, जिसमें से यूपी से 651 किलोमीटर सीमा लगती है। दैनिक भास्कर ने 10 दिन तक बॉर्डर पर पड़ताल की। इसमें मानव तस्करी, चरस की तस्करी और धर्मांतरण के हर पहलू की इंवेस्टिगेशन की। (कल हमने मानव तस्करी से जुड़े खुलासे किए थे….पूरी खबर पढ़ने के लिए आखिर में दिए गए लिंक पर क्लिक करें) दूसरे पार्ट में आज पढ़िए कैसे होती है चरस की तस्करी… महिलाओं, बच्चों और दिव्यांगों को पैडलर बनाया
हमारी टीम सिद्धार्थनगर के खुनवा, बढ़नी बॉर्डर से लगे नेपाल के गांवों और चेकपोस्ट पर पहुंची। SSB, पुलिस और नारकोटिक्स के अफसरों से बात की, जो निकलकर आया, वो चौंकाने वाला था। तस्करों ने महिला, बच्चे, दिव्यांगों को पैडलर बना दिया है, जिससे बॉर्डर पर तैनात सुरक्षाकर्मियों को शक न हो। तस्कर नए-नए पैंतरे आजमाते हैं। इसलिए सुरक्षाकर्मियों को तस्करी रोकने में दिक्कत आती है। नशा ले जाने वाले और जिसे पहुंचाना है, एक-दूसरे को जानते तक नहीं। इसलिए पूरा रैकेट पकड़ में नहीं आता, सिर्फ एक कड़ी पकड़ी जाती है। जब हम खुनवा और बढ़नी बॉर्डर पर पहुंचे, तो देखा दोनों तरफ से आवाजाही चल रही थी। साइकिल, बाइक और छोटे वाहन आसानी से आ-जा रहे थे। इनमें सामान भी लदा होता है। जैसे- गेहूं, चावल, घी वगैरह। तस्कर इसी का फायदा उठाते हैं। इन सामानों के बीच चरस को रखकर बॉर्डर के पार कराया जाता है। दूसरा महिलाएं और बच्चों की चेकिंग कम होती है। इसका फायदा भी तस्कर उठाते हैं। अफसर बताते हैं- बॉर्डर पर सुरक्षा तो रहती है, लेकिन ड्यूटी पर लगे जवान भी व्यस्त रहते हैं। फिर सीमा से ट्रक से ड्रग्स पार भी नहीं कराए जाते। इसकी भी तस्करों ने लिमिट तय कर रखी है। यह तय होता है कि हर जिले की सीमा से कितना ड्रग्स पार करवाना है। वह बताते हैं- पहाड़ी इलाका होने की वजह से नेपाल में चरस की पैदावार खूब होती है। इसीलिए दोनों तरफ के तस्कर ड्रग्स के सिंडिकेट से जुड़े रहते हैं। इन पर कार्रवाई भी होती है। लेकिन ये चाहे जेल में हों या फिर बाहर, इनका नेक्सस चलता रहता है। एक-दूसरे को नहीं पहचानते हैंडलर, बॉर्डर पार कराने के मिलते हैं 1 से 5 हजार रुपए
बहराइच के रुपईडीहा बॉर्डर पर तैनात एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया- हैंडलर्स को चरस को सिर्फ बॉर्डर पार कराना होता है। इसके लिए उन्हें ड्रग्स की मात्रा के हिसाब से पेमेंट मिलता है। यह 1 से 5 हजार रुपए तक होता है। अब बॉर्डर पर काफी सख्ती है। ऐसे में बड़ी खेप (मतलब, ट्रक या टेम्पो से) पार कर पाना संभव नहीं है। इसीलिए बॉर्डर के दोनों ओर खुफिया ठिकानों पर छोटी-छोटी मात्रा में लाकर चरस-अफीम को स्टोर किया जाता है। इसके बाद वहां से दोनों देश के अलग-अलग एरिया में डिमांड के हिसाब से भेजा जाता है। वह बताते हैं- नेपाल में बॉर्डर पार कराने वाले हैंडलर को जिससे ड्रग्स मिली है, वह उसे पहले से नहीं पहचानता। और न ही उसे जानता है, जिसे बॉर्डर के दूसरी तरफ देना होता है। सिर्फ उन्हें वो जगह बताई जाती है, जहां ड्रग्स रिसीव करने वाला इंतजार कर रहा होता है। कई बार बॉर्डर के दोनों और चाय-पान की गुमटियों पर भी डिलीवरी देने या लेने को कहा जाता है। कई बार पुलिस ने इस नेक्सस को तोड़ने की कोशिश की। लेकिन, ज्यादातर वह केवल बॉर्डर पार कर रहे कैरियर को ही पकड़ पाती है। इसके पीछे वजह यह है कि गिरफ्तार किए गए कैरियर के पास किसी के बारे में कोई जानकारी नहीं होती। सीमा पार कराने तक में 5 से 6 हैंडलर शामिल
रूपईडिहा बॉर्डर पर एक अधिकारी से हमने बात की। उनसे पूछा, इस समय ड्रग्स की तस्करी का क्या ट्रेंड चल रहा? उन्होंने ऑफ रिकॉर्ड बताया- हाल के दिनों में बॉर्डर पर चौकसी बढ़ी तो तस्करों ने अपने काम के तरीके भी बदल दिए। प्रोडक्शन वाली जगह से नेपाल-भारत सीमा से लगे गांवों में तस्करों के खुफिया ठिकाने पर लाकर चरस को स्टोर करने लगे हैं। वहां से पैदल, दिव्यांग ट्राई-साइकिल या बाइक के हैंडल में छिपाकर बॉर्डर पार कराया जाता है। वह बताते हैं- ज्यादातर महिलाएं अपने शरीर में जगह-जगह ड्रग्स छिपाकर पैदल बॉर्डर पार करती हैं। इनमें से कुछ तो पकड़ ली जाती हैं। जो बच जाती हैं, वो भारत आकर अपने दूसरे हैंडलर को चरस हैंडओवर कर देती हैं। इसके बाद यह यहां से देश के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचाई जाती है। वह बताते हैं- चाहे नेपाल से ड्रग्स आ रही हो या फिर भारत से नेपाल जा रही हो, तस्करों को टारगेट दिया जाता है। अलग-अलग ड्रग्स के हिसाब से 100 ग्राम से 1 किलो तक लाने का टारगेट होता है। इसमें चरस, स्मैक, अफीम और हेरोइन जैसे ड्रग्स शामिल हैं। बाराबंकी से भी स्मैक और अफीम नेपाल भेजी जाती है
हमने अपनी पड़ताल में भारत से भेजे जाने वाली नशे की खेप को भी शामिल किया। बाराबंकी में अफीम की खेती के लिए कई किसानों के पास लाइसेंस है। यहां अफीम की खूब खेती होती है। दवाओं में इस्तेमाल के लिए इसे गवर्नमेंट सप्लाई में दिया जाता है। लेकिन, 1 किलो अफीम से 30 ग्राम स्मैक बन जाता है। इसी स्मैक की तस्करी बाराबंकी से बहराइच, सिद्धार्थनगर, महराजगंज के रास्ते नेपाल में की जाती है। बाराबंकी से तस्कर बाइक से स्मैक नेपाल से जुड़ने वाले जिलों में ले आते हैं। फिर वहां से नए हैंडलर के जरिए उसे बॉर्डर तक पहुंचाया जाता है। वहां एक नया शख्स उसे रिसीव करने के लिए पहले से तैयार होता है। वह बॉर्डर पार कराता है। बॉर्डर के पार उसे लेने के लिए एक नया आदमी भी पहले से तैयार होता है। ड्रग्स की रिसीविंग मिलते ही वह बॉर्डर पार कराने वाले हैंडलर को पैसे देता है। फिर नेपाल ले जाकर अपने ठिकाने तक पहुंचाता है। इंटरनेशनल मार्केट में स्मैक की कीमत करीब 3 करोड़ रुपए किलो है। ऐसे में 10 से 12 बार में तकरीबन 3 करोड़ की स्मैक बॉर्डर के पार कर दी जाती है। बाराबंकी में तैनात रह चुके एक पूर्व पुलिस अधिकारी बताते हैं- यहां किसानों को एकड़ के हिसाब से अफीम की खेती के लिए लाइसेंस दिया जाता है। इनकी उपज सरकारी एजेंसी खरीदती है, जिसे दवा बनाने के काम में इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी ये किसान अवैध रूप से ज्यादा एरिया में खेती कर लेते हैं। ऐसे में बढ़ी हुई उपज को ड्रग्स के अवैध कारोबारियों के हाथ मोटी रकम लेकर बेच देते हैं। यही ड्रग्स डीलर अपने हैंडलर्स के जरिए इसे सीमा पार करवाकर ऊंचे दाम में बेच देते हैं। कई बार खेती करने वाले किसान लाइसेंस देने वाले सरकारी विभाग से जुड़े हुए कर्मचारियों को भी अपने साथ मिला लेते हैं। जिससे इनका खेल पकड़ा न जाए। ड्रग्स के लिए अलग-अलग सिंडिकेट कर रहे काम
नारकोटिक्स डिपार्टमेंट के अधिकारियों के अनुसार, अलग-अलग ड्रग्स के लिए अलग-अलग सिंडिकेट काम कर रहे हैं। ड्रग्स की तस्करी के लिए रेलवे और बसों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। ट्रामाडोल और अल्प्राजोलम जैसी दवाओं की तस्करी भारत से यूरोपीय देशों में की जा रही है। इसके लिए कूरियर सर्विस और प्रॉक्सी ऑनलाइन सर्विसेज का इस्तेमाल किया जा रहा है। बरेली, बाराबंकी और मिर्जापुर से हेरोइन और स्मैक तस्कर देश के अलग-अलग हिस्सों जैसे नॉर्थ ईस्ट, पंजाब, दिल्ली-एनसीआर में सप्लाई कर रहे हैं। इनके कई सिंडिकेट नेपाल से भी जुड़े हैं, जो इसकी सप्लाई नेपाल में भी कर रहे हैं। कई बार ऐसे गिरोह के लोगों को ड्रग्स के साथ गिरफ्तार भी किया जा चुका है। तस्कर गांव के छोटे रास्ते और पगडंडियों का भी करते हैं इस्तेमाल
भारत और नेपाल की सीमा खुली हुई है। मुख्य रास्तों को छोड़कर अन्य जगहों पर सुरक्षा उतनी कड़ी नहीं रहती। तस्करों ने आने-जाने के लिए जंगल और नदी वाले मुफीद रास्ते खोज रखे हैं। SSB ने हर 2 किमी पर अपने दो जवानों की तैनाती कर रखी है। लेकिन ज्यादातर इलाका जंगल का होने से तस्कर अपने मंसूबे में कामयाब हो जाते हैं। सिद्धार्थनगर के तकरीबन 150 गांव ऐसे हैं, जो नेपाल की सीमा से जुड़े हैं। इसी तरह महराजगंज, बहराइच, गोरखपुर, बलरामपुर, लखीमपुर के भी सैकड़ों गांव नेपाल की सीमा पर हैं। तस्कर मुख्य मार्ग को छोड़कर पैदल और बाइक से गांव और जंगल के इलाकों का इस्तेमाल करके ड्रग्स की सप्लाई करते हैं। कई बार गांव वालों की सटीक मुखबिरी से ये पकड़े भी गए हैं। तीसरे पार्ट में कल पढ़िए: कहानी धर्मांतरण की, बॉर्डर पर घर बदले गए चर्च में… पार्ट-1 में पढ़िए… लड़की के जैसे नैन-नक्श, वैसी कीमत:इंच-टेप के नाप से तस्कर तय करते हैं दाम, तब नेपाल से बॉर्डर पार यूपी भेजते हैं लंबाई- 5 फीट 5 इंच। उम्र- 23 साल। वजन- 55 किलो। नीचे जो तस्वीर दिख रही है, उसमें एक तस्कर इंच-टेप से नेपाली लड़की का नाप ले रहा है। वह चेक करता है, लड़की के शरीर पर कोई दाग तो नहीं। नाप-जोख का वीडियो बनाता है। फिर भारत में बैठे दलाल को भेजकर रेट तय करता है। रेट 2 से लेकर 25 लाख रुपए तक होता है। लड़की को विश्वास दिलाया जाता है कि नौकरी के लिए यह सब जरूरी होता है। पूरी खबर पढ़ें…