हरियाणा के सिरसा में बुधवार को जनता भवन में जननायक जनता पार्टी (JJP) का जिला स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ। सम्मेलन को जेजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय सिंह चौटाला, पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला व दिग्विजय चैटाला ने संबोधित किया। पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने कहा कि कार्यकर्ता अगले 100 दिनों तक जनजागरण अभियान चलाएंगे और मजबूती से पार्टी की जनहितैषी नीतियों से जन-जन को अवगत करवाएंगे। उन्होंने कहा कि राज्यसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी देने के लिए विपक्ष को एकजुट होना जरूरी है। विपक्ष द्वारा सांझा उम्मीदवार उतारा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि नेता प्रतिपक्ष राज्यसभा चुनाव को लेकर मैदान छोड़ चुके हैं। दुष्यंत चौटाला ने कहा कि हुडा चाहें तो खुद राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन भरें या साझा उम्मीदवार उतारने में बाकी पार्टियों का साथ दें। उन्होंने कहा कि फिलहाल तो हुडा मैदान छोड़ चुके हैं, लेकिन उनका प्रयास रहेगा कि साझा उम्मीदवार मैदान में उतरे। बीजेपी ने जेजेपी को पहुंचाया नुकसान: अजय चौटाला जेजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय सिंह चौटाला ने कहा कि बीजेपी के कारण प्रदेश में जेजेपी को नुकसान पहुंचा है। इस बात का समर्थन प्रदेश का जन-जन भी करता है। उन्होंने कार्यकर्ताओं व पार्टी नेताओं से विधानसभा चुनाव में तैयारियों में जुटने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जेजेपी द्वारा 19 जिलों में कार्यकर्ता बैठकों का आयोजन किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि तीन जिले शेष हैं, जिनमें से फतेहाबाद की बैठक आज शाम तक होगी। शेष दो जिलों की बैठक भी जल्द ही कर ली जाएगी। जेजेपी प्रदेश की कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगी इसके जवाब में अजय सिंह चौटाला ने कहा कि पहले चुनाव घोषित होंगे उसके बाद ही इस बारे में कोई फैसला लिया जाएगा। 21 को डबवाली में चुनाव कार्यालय उद्घाटन जेजेपी के महासचिव दिग्विजय चौटाला ने कहा कि विस चुनाव को लेकर जेजेपी द्वारा डबवाली में प्रदेश का पहला चुनाव कार्यालय खोला जाएगा और 21 जुलाई को उसका शुभारंभ होगा। डबवाली विस से चुनाव लड़ने की इच्छा के सवाल पर उन्होंने कहा कि पार्टी इच्छा होने पर टिकट नहीं देती। सभी समीकरण देखे जाते हैं और उसी आधार पर फैसला लिया जाता है। हरियाणा के सिरसा में बुधवार को जनता भवन में जननायक जनता पार्टी (JJP) का जिला स्तरीय कार्यकर्ता सम्मेलन हुआ। सम्मेलन को जेजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय सिंह चौटाला, पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला व दिग्विजय चैटाला ने संबोधित किया। पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने कहा कि कार्यकर्ता अगले 100 दिनों तक जनजागरण अभियान चलाएंगे और मजबूती से पार्टी की जनहितैषी नीतियों से जन-जन को अवगत करवाएंगे। उन्होंने कहा कि राज्यसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी देने के लिए विपक्ष को एकजुट होना जरूरी है। विपक्ष द्वारा सांझा उम्मीदवार उतारा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि नेता प्रतिपक्ष राज्यसभा चुनाव को लेकर मैदान छोड़ चुके हैं। दुष्यंत चौटाला ने कहा कि हुडा चाहें तो खुद राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन भरें या साझा उम्मीदवार उतारने में बाकी पार्टियों का साथ दें। उन्होंने कहा कि फिलहाल तो हुडा मैदान छोड़ चुके हैं, लेकिन उनका प्रयास रहेगा कि साझा उम्मीदवार मैदान में उतरे। बीजेपी ने जेजेपी को पहुंचाया नुकसान: अजय चौटाला जेजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय सिंह चौटाला ने कहा कि बीजेपी के कारण प्रदेश में जेजेपी को नुकसान पहुंचा है। इस बात का समर्थन प्रदेश का जन-जन भी करता है। उन्होंने कार्यकर्ताओं व पार्टी नेताओं से विधानसभा चुनाव में तैयारियों में जुटने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि जेजेपी द्वारा 19 जिलों में कार्यकर्ता बैठकों का आयोजन किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि तीन जिले शेष हैं, जिनमें से फतेहाबाद की बैठक आज शाम तक होगी। शेष दो जिलों की बैठक भी जल्द ही कर ली जाएगी। जेजेपी प्रदेश की कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगी इसके जवाब में अजय सिंह चौटाला ने कहा कि पहले चुनाव घोषित होंगे उसके बाद ही इस बारे में कोई फैसला लिया जाएगा। 21 को डबवाली में चुनाव कार्यालय उद्घाटन जेजेपी के महासचिव दिग्विजय चौटाला ने कहा कि विस चुनाव को लेकर जेजेपी द्वारा डबवाली में प्रदेश का पहला चुनाव कार्यालय खोला जाएगा और 21 जुलाई को उसका शुभारंभ होगा। डबवाली विस से चुनाव लड़ने की इच्छा के सवाल पर उन्होंने कहा कि पार्टी इच्छा होने पर टिकट नहीं देती। सभी समीकरण देखे जाते हैं और उसी आधार पर फैसला लिया जाता है। हरियाणा | दैनिक भास्कर
Related Posts
बनारसी दास को भाषण के दौरान गोली लगी:ट्रेन में छिपकर पत्नी के साथ लाहौर से भारत पहुंचे; कठपुतली मुख्यमंत्री कहा गया
बनारसी दास को भाषण के दौरान गोली लगी:ट्रेन में छिपकर पत्नी के साथ लाहौर से भारत पहुंचे; कठपुतली मुख्यमंत्री कहा गया साल 1989, चौधरी देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर डिप्टी प्राइम मिनिस्टर बने और बेटे ओमप्रकाश चौटाला को मुख्यमंत्री बनवा दिया। तब ओम प्रकाश चौटाला विधायक नहीं थे। उन्हें 6 महीने के भीतर विधायक बनना था। ओमप्रकाश चौटाला, रोहतक जिले की महम सीट से उपचुनाव में उतरे। ये वो सीट थी जहां से लगातार तीन बार देवीलाल जीत चुके थे। जब चुनाव हुआ तो महम सीट हिंसा की भेंट चढ़ गई। 10 लोगों की जान चली गई। चुनाव रद्द हो गया। महम कांड की आंच चौटाला परिवार तक पहुंची। इधर, अप्रैल 1990, जनता दल में नए अध्यक्ष को लेकर गहमागहमी शुरू हो चुकी थी। रेस में दो नाम सबसे आगे थे। पहला- एसआर बोम्मई का, जिन्हें समाजवादी नेता चंद्रशेखर का समर्थन था। दूसरा- एस जयपाल रेड्डी का, जिनके खेमे में रामकृष्ण हेगड़े और अजीत सिंह जैसे नेता थे। देवीलाल, बोम्मई का समर्थन कर रहे थे। उन्हें लगता था कि बोम्मई अध्यक्ष बनते हैं, तो ओमप्रकाश चौटाला की कुर्सी बच जाएगी। उधर, रेड्डी को आशंका थी कि प्रधानमंत्री वीपी सिंह उनका साथ नहीं देंगे। इसी असमंजस में उन्होंने दावेदारी छोड़ दी। 19 मई को बोम्मई जनता दल के निर्विरोध अध्यक्ष चुन लिए गए। इस बीच महम कांड का शोर संसद तक पहुंच गया। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी चौटाला के इस्तीफे की मांग कर डाली। वीपी सिंह को आनन-फानन में मंत्रिमंडल की बैठक बुलानी पड़ी। देवीलाल की हाजिरी में बोम्मई ने चौटाला से इस्तीफा मांग लिया। 22 मई को ओमप्रकाश चौटाला ने इस्तीफा दे दिया। अब देवीलाल को ऐसे नेता की जरूरत थी, जो हरियाणा का मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन सरकार की बागडोर उनके पास ही रहे। देवीलाल के छोटे बेटे रणजीत चौटाला भी सीएम की रेस में थे, लेकिन ओमप्रकाश को डर था कि रणजीत मुख्यमंत्री बन गए, तो बाद में वे इस्तीफा नहीं देंगे। ऐसे में डिप्टी सीएम बनारसी दास गुप्ता का नाम तय किया गया। वे देवीलाल और ओमप्रकाश दोनों के करीबी थे। 22 मई 1990 को बनारसी दास गुप्ता दूसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। ‘मैं हरियाणा का सीएम’ सीरीज के चौथे एपिसोड में बनारसी दास गुप्ता के मुख्यमंत्री बनने की कहानी और उनसे जुड़े किस्से… बनारसी दास गुप्ता का जन्म 5 नवंबर 1917 को पंजाब की जींद रियासत के एक छोटे से गांव में हुआ। पिता रामस्वरूप गुप्ता गांव में दुकान चलाते थे और खेती भी करते थे। उनकी मौसी की कोई संतान नहीं थी। इसलिए वे कुछ सालों तक अपनी मौसी के पास रहे, लेकिन जब उनको बेटा हुआ तो बनारसी दास माता-पिता के पास लौट आए। बनारसी दास की तीसरी कक्षा तक की पढ़ाई गांव में ही हुई। उन दिनों स्कूल में दलित बच्चों को अन्य बच्चों से अलग बिठाया जाता था। वे इसका विरोध करते और उनके साथ ही बैठते। आठवीं के बाद वे पिलानी के बिड़ला कॉलेज में एडमिशन लेने पहुंचे। जब फीस जमा करने की बारी आई तो बनारसी दास ने 100 रुपए का नोट दिया। नोट किनारे से फटा था, मुनीम ने नोट लेने से मना कर दिया। बनारसी दास के पास सिर्फ उतने ही रुपए थे। पूरा दिन उन्होंने सड़क पर बिताया। शाम को कॉलेज के मालिक घनश्यामदास बिड़ला ने उन्हें देखा और कारण पूछा। तब बनारसी दास ने उन्हें पूरा किस्सा बताया। इसके बाद उन्हें एडमिशन मिल गया। बिड़ला कॉलेज से 10वीं की परीक्षा पास करने के बाद वे पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में उतर गए। उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कुछ साल जेल में भी रहे। बंटवारे के दौरान पत्नी को लेने लाहौर पहुंचे, सीट के नीचे छिपकर लौटे 28 फरवरी 1941, बनारसी दास की शादी भिवानी जिले के तिगराणा गांव की द्रौपदी गुप्ता से हुई। उन्होंने अपनी शादी में भी आजादी के नारे लगाए। बनारसी दास के मित्र और उन पर तीन-तीन किताबें लिखने वाले डॉ. निरजंन रोहिल्ला उनकी शादी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं- ‘बंटवारे के समय बनारसी दास की पत्नी लाहौर के कॉलेज में पढ़ रही थीं। उस वक्त दोनों तरफ कत्लेआम मचा हुआ था। बनारसी दास के पिता ने उनसे कहा कि वे लाहौर जाकर द्रौपदी को लेकर आएं। बनारसी दास लाहौर के लिए निकल पड़े। वे पहले भटिंडा पहुंचे, लेकिन लाहौर जाने वाली ट्रेन में कत्लेआम देखकर उन्होंने ट्रेन से जाने का प्लान कैंसिल कर दिया। वे ट्रक से लाहौर के लिए निकल गए। रात के अंधेरे में जैसे-तैसे वे द्रौपदी को ढूंढने में कामयाब रहे। उन्होंने पूरी रात स्टेशन के पास जंगल में बिताई। सुबह भटिंडा के लिए ट्रेन पकड़ी और सीट के नीचे छिपकर पत्नी के साथ भारत पहुंचे।’ जींद रियासत को देश में मिलाने के लिए जेल गए जींद रियासत को भारत में मिलाने में उनकी बड़ी भूमिका रही। उन्हें जेल भी जाना पड़ा। 1946 में राजनीतिक हालात बदले तो वे जेल से बाहर आए। इस दौरान जींद के महाराजा ने सीमित मताधिकार से चुने गए 65 सदस्यों की विधानसभा का गठन किया। बनारसी दास जींद से निर्विरोध सदस्य चुने गए। आजादी के बाद बनारसीदास और उनके साथियों ने जींद रियासत का पंजाब में विलय करने के लिए संघर्ष किया। तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल के हस्तक्षेप के बाद पंजाब की सभी रियासतों को मिलाकर पेप्सू यूनियन बनाया गया। आगे चलकर पंजाब में इसका विलय कर दिया गया। रियासती प्रजामंडलों का कांग्रेस में विलय कर दिया। बनारसी दास भी कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस में शामिल होने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने भिवानी को कार्यक्षेत्र बनाया। राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के बैनर तले मजदूरों को संगठित किया। इस दौरान उन्होंने 17 दिन तक अनशन भी किया। वे 1953 से 1960 तक जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। 1953 में ही भिवानी नगरपालिका के पहले गैर सरकारी अध्यक्ष चुने गए। 1968 में बनारसीदास भिवानी से कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बने। 1972 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 81 में से 52 सीटें जीतीं। बनारसी दास फिर विधायक बने। बंसीलाल दोबारा मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री बनने के बाद बंसीलाल ने बनारसी दास को स्पीकर बनाया। बंसीलाल को इंदिरा का बुलावा और बनारसी दास सीएम बन गए स्पीकर बनने के बाद बनारसी दास गुप्ता ने विधानसभा का सारा काम हिंदी में करने का आदेश दिया। इससे वे चर्चा में आ गए। यह पहला मौका था जब किसी विधानसभा में सारा काम हिंदी में करने का आदेश जारी हुआ था। 1973 में उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और बंसीलाल मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। उन्हें बिजली, सिंचाई, कृषि, सहकारिता, स्वास्थ्य और नागरिक प्रशासन मंत्रालय मिला। इसी बीच इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी ने बंसीलाल को दिल्ली बुला लिया। बंसीलाल हरियाणा की कमान अपने किसी करीबी को सौंपना चाहते थे। उन्होंने बनारसी दास को मुफीद माना। इस तरह 1 दिसंबर 1975 को बनारसी दास गुप्ता पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। हालांकि इस दौरान उन पर डमी सीएम होने का आरोप भी लगा। कहा जाता है कि भले ही बंसीलाल दिल्ली में रक्षा मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे, लेकिन हरियाणा में हर फैसले में उनकी और उनके बेटे सुरेंद्र की दखल रहती थी। 1977 में कांग्रेस को 3 सीटें मिलीं, बनारसी दास ने पाला बदल लिया 1977 में इमरजेंसी हटने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 3 सीटों पर सिमट गई। बनारसी दास भी चुनाव हार गए। जनता पार्टी 75 सीटों के साथ सत्ता में आई। चौधरी देवीलाल मुख्यमंत्री बने। हालांकि दो साल बाद ही उनकी जगह भजनलाल को सीएम बना दिया गया। 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोगोंवाल के बीच पंजाब में समझौता हुआ। इसमें चंड़ीगढ़ और रावी-व्यास के जल बंटवारे से जुड़ा मामला शामिल था। इसे लेकर हरियाणा में काफी आक्रोश था। देवीलाल ने 18 विधायकों के साथ विधानसभा से इस्तीफा देकर ‘न्याय युद्ध’ छेड़ दिया। बनारसी दास ने कांग्रेस को आंदोलन में शामिल होने की सलाह दी, लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। इसके बाद बनारसी दास कांग्रेस छोड़कर चौधरी देवीलाल के साथ आ गए। 1987 में विधानसभा चुनाव हुए तो चौधरी देवीलाल को 60 सीटें मिलीं। देवीलाल मुख्यमंत्री बने और बनारसी दास गुप्ता को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। ओमप्रकाश चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा, बनारसी दास पर कठपुतली सीएम का ठप्पा लगा दो साल बाद केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार बनी, तो देवीलाल को उप प्रधानमंत्री बनाया गया। देवीलाल राज्य की सत्ता बेटे ओमप्रकाश चौटाला को सौंप कर दिल्ली की तरफ बढ़ गए। चौटाला सीएम बने तो वे विधायक नहीं थे। उन्होंने महम सीट पर उपचुनाव में पर्चा भर दिया। खाप पंचायतों ने इसका विरोध किया और देवीलाल के करीबी रहे आनंद सिंह दांगी को निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर समर्थन दे दिया। 27 फरवरी, 1990 को महम में वोटिंग हुई। आनंद सिंह दांगी ने चुनाव आयोग से आठ वोटिंग सेंटर्स पर बूथ कैप्चरिंग की शिकायत की। अगले दिन यानी 28 फरवरी को उन आठ बूथों पर फिर से वोटिंग हुई। उस दौरान भी भारी हिंसा हुई। भीड़ ने बचाव में जुटी CRPF के एक जवान की हत्या कर दी। इसके बाद सुरक्षाबलों ने भीड़ पर गोलियां चला दीं जिसमें 10 लोगों की मौत हो गई। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सतीश त्यागी अपनी किताब ‘पॉलिटिक्स ऑफ चौधर’ में लिखते हैं- महम हिंसा के बाद जनता दल में अजीत सिंह, अरुण नेहरू, जॉर्ज फर्नांडिस और रामकृष्ण हेगड़े जैसे नेताओं ने वीपी सिंह पर चौटाला को हटाने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। 3 मार्च को एक बैठक में देवीलाल और अजीत सिंह में जमकर गाली-गलौज हुई। इसी रात एक और बैठक हुई इसमें जनता दल शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हुए। बैठक में उत्तर प्रदेश के सीएम मुलायम सिंह यादव, बिहार के सीएम लालू प्रसाद यादव और ओडिशा के सीएम बीजू पटनायक ने चौटाला को हटाने की वकालत की। देवीलाल के खास शरद यादव भी चौटाला को हटाने के पक्ष में थे। हालांकि बैठक में कोई फैसला नहीं हो सका। अब इसका फैसला करने का जिम्मा एक कमेटी को सौंप गया। कमेटी में अजीत सिंह, जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव, अरुण नेहरू और यशवंत सिन्हा शामिल थे। 4 मार्च को कमेटी ने तय किया कि पार्टी चुनाव आयोग से महम सीट पर फिर से वोटिंग कराने को कहे। साथ ही चौटाला इस्तीफा दें। आखिरकार 22 मई 1990 को चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। उसी दिन देवीलाल ने अपने करीबी और तब डिप्टी सीएम रहे बनारसी दास गुप्ता को सीएम बनाया। हालांकि दो महीने के भीतर ही ओमप्रकाश चौटाला दरबान कलां सीट से उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच गए। उन्होंने बनारसी दास गुप्ता से इस्तीफा ले लिया और खुद मुख्यमंत्री बन गए। बनारसी दास गुप्ता 51 दिन ही सीएम रह सके। बनारसी दास गुप्ता को गोली लगी, बाल-बाल बचे इसके बाद बनारसी दास गुप्ता के देवीलाल से वैचारिक मतभेद बढ़ गए। वे सक्रिय राजनीति से अलग-थलग रहने लगे थे। 23 सितंबर 1990 की बात है। बनारसी दास भिवानी में महाराजा अग्रसेन जयंती समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इसी दौरान अचानक उन पर फायरिंग हो गई। गोली उनके सीने को चीरती हुई पार निकल गई। हालांकि लंबे इलाज के बाद वे ठीक हो गए। इस घटना ने बनारसी दास को फिर से राजनीति में एक्टिव होने की ऊर्जा दे दी। राजीव गांधी के कहने पर बनारसी दास कांग्रेस में शामिल हो गए। 1996 में भजनलाल सरकार के दौरान उन्हें राज्यसभा भेजा गया। कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्होंने राजनीति से रिटायरमेंट ले लिया और समाजसेवा की तरफ बढ़ गए। 29 अगस्त 2007 को बनारसी दास का निधन हो गया।
फरीदाबाद में 5 बहनों के इकलौते भाई की मौत:कंपनी में काम करते हुए बिगड़ी तबीयत; घर छोड़ गए कर्मी, शव रख हंगामा
फरीदाबाद में 5 बहनों के इकलौते भाई की मौत:कंपनी में काम करते हुए बिगड़ी तबीयत; घर छोड़ गए कर्मी, शव रख हंगामा हरियाणा के फरीदाबाद में एक निजी कंपनी में काम करने वाले 22 वर्षीय युवक की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। वह पांच बहनों का इकलौता भाई था। कंपनी में काम करते हुए उसकी तबीयत बिगड़ी तो साथी कर्मचारी उसे घर छोड़ गए थे। बहन घर पहुंची तो वह उल्टी कर रहा था। कुछ देर बाद ही युवक ने दम तोड़ दिया। परिजनों ने शव को कंपनी के गेट पर रखकर मालिक पर कार्रवाई की मांग को लेकर हंगामा भी किया। पुलिस मामले में छानबीन में लगी है। जानकारी अनुसार फरीदाबाद में नगला ऐनक्लेव में रहने वाला योगेश (22) पास ही स्थित जीएम इंजीनियरिंग कंपनी में काम करता था। उसकी बहन नेहा ने बताया की योगेश चुनाव की छुट्टी के चलते 2 दिन से घर पर ही था। भाई पूरी तरह स्वस्थ था। सुबह उसका भाई कंपनी में काम करने के लिए गया तो उसने अपने हाथों से अपने भाई को खाना दिया था। योगेश पांच बहनों में इकलौता भाई था। नेहा के मुताबिक जब उसका भाई कंपनी गया और उसकी तबीयत कंपनी में बिगड़ी तो कंपनी के कर्मचारी उसे घर पर छोड़ गए। उस समय उनके घर का ताला लगा हुआ था। भाई की हालत काफी खराब थी। इसकी सूचना पड़ोसियों ने उसे फोन कर दी। इसके बाद में आनन फानन में वह घर पहुंची। भाई के हाथ पांव की मालिश की। वह उल्टियां कर रहा था। कुछ देर बाद ही उसकी मौत हो गई। नेहा ने कंपनी पर आरोप लगाया कि यदि कंपनी के कर्मचारी उसे घर न लेकर अस्पताल में ले गए होते तो उसके भाई की जान बच गई होती। फिलहाल पुलिस ने मृतक योगेश के शव का आज फरीदाबाद के बादशाह खान सिविल अस्पताल में पोस्टमॉर्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया। मृतक के परिजन शव को लेकर नगला ऐनक्लेव स्थित जीएम इंजीनियरिंग कंपनी के गेट पर पहुंचे। योगेश यहीं पर काम करता था। परिजनों ने शव को कंपनी गेट के बाहर रखकर जोरदार प्रदर्शन किया। बहन ने कहा कि उनके भाई की मौत के जिम्मेदार कंपनी के मालिक हैं और उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाए। उसे जल्द गिरफ्तार किया जाए। वहीं उन्हें 20 लाख रुपए और परिवार को एक नौकरी मुहैया कराई जाए। उसका भाई घर में कमाने वाला इकलौता था। गेट के बाहर शव रखकर प्रदर्शन करने की सूचना मिलने के बाद कई थानों की पुलिस मौके पर पहुंची और परिजनों को समझाने बुझाने के प्रयास में जुट गई। इस मामले में समाज सेवी संतोष यादव ने बताया कि उनकी पुलिस से मांग है कि कंपनी संचालक के खिलाफ फिर कर उसे जल्द गिरफ्तार किया जाए।
चौधरी देवीलाल के पोते के BJP में बागी तेवर:हरियाणा सरकार में चेयरमैन पद छोड़ा; पहली लिस्ट में नाम न आने से नाराज हुए
चौधरी देवीलाल के पोते के BJP में बागी तेवर:हरियाणा सरकार में चेयरमैन पद छोड़ा; पहली लिस्ट में नाम न आने से नाराज हुए हरियाणा में भाजपा की पहली टिकट लिस्ट जारी होने के बाद पूर्व उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के पोते आदित्य चौटाला ने भाजपा में बागी तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। उन्होंने BJP सरकार में हरियाणा मार्केटिंग बोर्ड के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया है। आदित्य चौटाला ने कहा कि डबवाली सीट से सिंगल पैनल में उनका नाम था, लेकिन भाजपा जानबूझकर चीजों को लटका रही है। इससे लोगों में गलत संदेश जा रहा है। आदित्य चौटाला ने बताया कि इसी बात से नाराज होकर उन्होंने हरियाणा मार्केटिंग बोर्ड के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया है। आदित्य चौटाला ताऊ देवीलाल के सबसे छोटे बेटे जगदीश चौटाला के पुत्र हैं। वह लंबे समय से भाजपा के साथ जुड़े रहे हैं। वह सिरसा जिला में पार्टी के जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं। आदित्य चौटाला के इस्तीफे की कॉपी… रणजीत के डबवाली वाले बयान के बाद इस्तीफा
आज ही आदित्य के ताऊ रणजीत चौटाला ने कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दिया है। रणजीत ने समर्थकों की बैठक में यह खुलासा किया कि भाजपा डबवाली से उनको टिकट देना चाह रही थी। इसके थोड़े ही देर बाद आदित्य चौटाला का इस्तीफा आ गया। आदित्य का मानना है कि भाजपा ने सिंगल पैनल में होते हुए भी डबवाली की सीट रोकी है, जिससे संदेह पैदा हो रहा है। एक साल पहले बनाया था चेयरमैन
पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल के पोते आदित्य चौटाला को करीब एक साल पहले मार्केटिंग बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया था। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के पीएस वी उमाशंकर ने आदित्य चौटाला की नियुक्ति के आदेश जारी किए थे। आदित्य चौटाला की भारतीय जनता पार्टी की सरकार में एंट्री 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले हुई थी। इस दौरान हरियाणा सरकार की ओर से उन्हें हरियाणा स्टेट कोऑपरेटिव एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट बैंक लिमिटेड (HSCARDB) का चेयरमैन बनाया था। 2014 में आदित्य भाजपा में शामिल हुए थे एवं 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्हें डबवाली से टिकट भी दिया गया था, लेकिन वह कांग्रेस के अमित सिहाग से हार गए थे। कांता चौटाला को हरा चुके हैं आदित्य
जनवरी 2016 में हुए पंचायत चुनाव में आदित्य चौटाला सिरसा जिला परिषद के जोन चार से जिला पार्षद बने थे। उन्होंने अपनी भाभी और विपक्ष के नेता अभय सिंह चौटाला की पत्नी कांता चौटाला को हराया था। तब से आदित्य भाजपा की निगाहों में चढ़े हुए हैं। उन्होंने पिछले दिनों चौटाला के गढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जिए जवान-जिए किसान रैली का आयोजन भी करवाया था। JJP के खिलाफ रहे हैं आदित्य
आदित्य चौटाला हमेशा से JJP के खिलाफ रहे हैं। 2022 में उन्होंने जजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला के खिलाफ बयान देकर माहौल गरमा दिया था। उन्होंने जजपा नेताओं के खिलाफ कहा था कि ये लोग जब भिवानी जाते हैं तो वहां कहते हैं कि भिवानी हमारी कर्मभूमि है। जब हिसार आते हैं तो कहते हैं ये हमारी कर्मभूमि है। डबवाली आकर कहते हैं कि ये हमारी जन्म भूमि है। दो-दो मिनट बाद हल्का बदल लेते हैं और तीन मिनट बाद दादा बदल लेते हैं। कभी रामकुमार गौतम को दादा बोलते हैं तो कभी ओम प्रकाश चौटाला को दादा बोलते हैं।