हरियाणा के विधानसभा चुनाव में अभी तक न कांग्रेस और न ही BJP उम्मीदवारों का ऐलान कर पाई है। दोनों पार्टियों में मीटिंगों का दौर जारी है। हर बार की तरह इस बार भी करनाल सीट पर सबकी नजरें हैं। इसका कारण ये है कि करनाल सीट 10 सालों से सीएम सिटी है। पहले मनोहर लाल खट्टर तो फिर नायब सैनी यहां से चुनाव जीते, लेकिन इस बार के चुनाव में खट्टर खेमा एक्टिव हो गया है और चाह रहा है कि नायब सैनी करनाल से ना लड़कर लाडवा से चुनाव लड़ें, जबकि नायब सैनी करनाल से ही चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। यहां हलचल सीएम नायब सैनी के बयान के बाद शुरू हुई है। उन्होंने बीते शुक्रवार को करनाल में रोड शो के दौरान कहा कि मैं करनाल से ही चुनाव लड़ना चाहता हूं। जिसके बाद से ही खट्टर खेमा कह रहा है कि नायब सैनी लाडवा से ही लड़ेंगे और यह फैसला भाजपा संगठन कर चुका है। खट्टर खेमा करनाल सीट पर एक लोकल उम्मीदवार को उतारने के पक्ष में है और इसके लिए लगातार लॉबिंग कर रहा है। वहीं पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने करनाल सीट पर एक सर्वे भी कराया है। जिसमें करनाल सीट को सैनी के लिए सुरक्षित नहीं माना गया। सैनी के लिए लाडवा सीट सेफ मानी जा रही है, जहां सैनी समाज और ओबीसी वोटरों की संख्या है। करनाल सीट छोड़ने के पीछे के 3 कारण…. 1. बाहरी उम्मीदवार होने से चुनौती
करनाल विधानसभा सीट पर पिछले 10 सालों से भाजपा का कब्जा है, लेकिन यहां से विधायक हमेशा बाहरी ही रहा है। पहले मनोहर लाल खट्टर और फिर नायब सैनी, दोनों ही मुख्यमंत्री रहे, जिसके चलते वे आम जनता के बीच ज्यादा समय नहीं बिता पाए। इस बार जनता को उम्मीद है कि उन्हें एक ऐसा स्थानीय विधायक मिलेगा, जो उनकी समस्याओं को समझेगा और उनके बीच रहेगा। लोकल नेताओं की अनदेखी होने के कारण इस सीट पर सैनी के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। 2. पंजाबी वोटर ज्यादा, OBC कम
करनाल में करीब 63 हजार पंजाबी समाज के वोट हैं। जिनके आधार पर मनोहर लाल खट्टर यहां से दो बार विधायक बने। नायब सैनी सैनी समाज से आते हैं। जिनका करनाल में वोट बैंक मात्र 5800 के करीब है। जातीय समीकरण भी इस सीट पर सैनी के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। इसी वजह से खट्टर खेमा सैनी को लाडवा से चुनाव लड़ने के लिए दबाव बना रहा है। 3. बाहरी विधायक पर नाराजगी
पिछले 10 सालों से बाहरी विधायक बनता आ रहा है, जिससे स्थानीय नेताओं में नाराजगी है। यह नाराजगी लोकसभा चुनाव के दौरान खुलकर सामने आई थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता अशोक सुखीजा और शमशेर नैन ने खुलकर विरोध किया। शमशेर नैन ने उपचुनाव में नायब सैनी के खिलाफ नामांकन दाखिल किया था, हालांकि बाद में सैनी ने उन्हें मना लिया। स्थानीय नेताओं में बाहरी उम्मीदवारों के प्रति असंतोष अब भी कायम है, जो सैनी के लिए चुनौती साबित हो सकता है। नायब सैनी के लिए क्यों सेफ सीट लाडवा
लाडवा विधानसभा को नायब सैनी के लिए सुरक्षित सीट के रूप में देखा जा रहा है। इस विधानसभा में 1 लाख 95 हजार से ज्यादा वोट हैं। जिसमें 50 हजार वोट जाट समाज की हैं। इसके अलावा सैनी समाज के 47 हजार से ज्यादा वोट हैं। 90 हजार से ज्यादा OBC वर्ग के वोट हैं। OBC वर्ग और खास तौर पर सैनी समुदाय के वोट बैंक की वजह से यह सीएम के लिए फेवरेट सीट मानी जा रही है। भाजपा नेतृत्व भी चाहता है कि सैनी लाडवा से ही चुनाव लड़ें, ताकि पार्टी को किसी तरह का नुकसान न हो। करनाल सीट के प्रमुख दावेदार खट्टर खेमा की रणनीति
करनाल सीट पर खट्टर खेमा के कुछ प्रमुख दावेदारों के नाम सामने आ रहे हैं। जिनमें पूर्व मेयर रेणु बाला गुप्ता, अशोक सुखीजा, मुकेश अरोड़ा, और जगमोहन आनंद शामिल हैं। खट्टर खेमा इनमें से किसी एक को टिकट दिलवाकर इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहता है। खट्टर खेमे का मानना है कि एक स्थानीय उम्मीदवार से जनता की अपेक्षाएं पूरी होंगी और पार्टी को मजबूती मिलेगी। राजनीतिक विशेषज्ञ क्या बोले…
राजनीतिक विशेषज्ञ व DAV कॉलेज के प्रिंसिपल आरपी सैनी का मानना है कि करनाल में भाजपा के भीतर मची खींचतान पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है। इससे असमंजस की स्थिति पैदा हो रही है। अब देखना यह होगा कि पार्टी इस चुनौती से कैसे निपटती है। हरियाणा के विधानसभा चुनाव में अभी तक न कांग्रेस और न ही BJP उम्मीदवारों का ऐलान कर पाई है। दोनों पार्टियों में मीटिंगों का दौर जारी है। हर बार की तरह इस बार भी करनाल सीट पर सबकी नजरें हैं। इसका कारण ये है कि करनाल सीट 10 सालों से सीएम सिटी है। पहले मनोहर लाल खट्टर तो फिर नायब सैनी यहां से चुनाव जीते, लेकिन इस बार के चुनाव में खट्टर खेमा एक्टिव हो गया है और चाह रहा है कि नायब सैनी करनाल से ना लड़कर लाडवा से चुनाव लड़ें, जबकि नायब सैनी करनाल से ही चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। यहां हलचल सीएम नायब सैनी के बयान के बाद शुरू हुई है। उन्होंने बीते शुक्रवार को करनाल में रोड शो के दौरान कहा कि मैं करनाल से ही चुनाव लड़ना चाहता हूं। जिसके बाद से ही खट्टर खेमा कह रहा है कि नायब सैनी लाडवा से ही लड़ेंगे और यह फैसला भाजपा संगठन कर चुका है। खट्टर खेमा करनाल सीट पर एक लोकल उम्मीदवार को उतारने के पक्ष में है और इसके लिए लगातार लॉबिंग कर रहा है। वहीं पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने करनाल सीट पर एक सर्वे भी कराया है। जिसमें करनाल सीट को सैनी के लिए सुरक्षित नहीं माना गया। सैनी के लिए लाडवा सीट सेफ मानी जा रही है, जहां सैनी समाज और ओबीसी वोटरों की संख्या है। करनाल सीट छोड़ने के पीछे के 3 कारण…. 1. बाहरी उम्मीदवार होने से चुनौती
करनाल विधानसभा सीट पर पिछले 10 सालों से भाजपा का कब्जा है, लेकिन यहां से विधायक हमेशा बाहरी ही रहा है। पहले मनोहर लाल खट्टर और फिर नायब सैनी, दोनों ही मुख्यमंत्री रहे, जिसके चलते वे आम जनता के बीच ज्यादा समय नहीं बिता पाए। इस बार जनता को उम्मीद है कि उन्हें एक ऐसा स्थानीय विधायक मिलेगा, जो उनकी समस्याओं को समझेगा और उनके बीच रहेगा। लोकल नेताओं की अनदेखी होने के कारण इस सीट पर सैनी के लिए चुनौतियां बढ़ गई हैं। 2. पंजाबी वोटर ज्यादा, OBC कम
करनाल में करीब 63 हजार पंजाबी समाज के वोट हैं। जिनके आधार पर मनोहर लाल खट्टर यहां से दो बार विधायक बने। नायब सैनी सैनी समाज से आते हैं। जिनका करनाल में वोट बैंक मात्र 5800 के करीब है। जातीय समीकरण भी इस सीट पर सैनी के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। इसी वजह से खट्टर खेमा सैनी को लाडवा से चुनाव लड़ने के लिए दबाव बना रहा है। 3. बाहरी विधायक पर नाराजगी
पिछले 10 सालों से बाहरी विधायक बनता आ रहा है, जिससे स्थानीय नेताओं में नाराजगी है। यह नाराजगी लोकसभा चुनाव के दौरान खुलकर सामने आई थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता अशोक सुखीजा और शमशेर नैन ने खुलकर विरोध किया। शमशेर नैन ने उपचुनाव में नायब सैनी के खिलाफ नामांकन दाखिल किया था, हालांकि बाद में सैनी ने उन्हें मना लिया। स्थानीय नेताओं में बाहरी उम्मीदवारों के प्रति असंतोष अब भी कायम है, जो सैनी के लिए चुनौती साबित हो सकता है। नायब सैनी के लिए क्यों सेफ सीट लाडवा
लाडवा विधानसभा को नायब सैनी के लिए सुरक्षित सीट के रूप में देखा जा रहा है। इस विधानसभा में 1 लाख 95 हजार से ज्यादा वोट हैं। जिसमें 50 हजार वोट जाट समाज की हैं। इसके अलावा सैनी समाज के 47 हजार से ज्यादा वोट हैं। 90 हजार से ज्यादा OBC वर्ग के वोट हैं। OBC वर्ग और खास तौर पर सैनी समुदाय के वोट बैंक की वजह से यह सीएम के लिए फेवरेट सीट मानी जा रही है। भाजपा नेतृत्व भी चाहता है कि सैनी लाडवा से ही चुनाव लड़ें, ताकि पार्टी को किसी तरह का नुकसान न हो। करनाल सीट के प्रमुख दावेदार खट्टर खेमा की रणनीति
करनाल सीट पर खट्टर खेमा के कुछ प्रमुख दावेदारों के नाम सामने आ रहे हैं। जिनमें पूर्व मेयर रेणु बाला गुप्ता, अशोक सुखीजा, मुकेश अरोड़ा, और जगमोहन आनंद शामिल हैं। खट्टर खेमा इनमें से किसी एक को टिकट दिलवाकर इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहता है। खट्टर खेमे का मानना है कि एक स्थानीय उम्मीदवार से जनता की अपेक्षाएं पूरी होंगी और पार्टी को मजबूती मिलेगी। राजनीतिक विशेषज्ञ क्या बोले…
राजनीतिक विशेषज्ञ व DAV कॉलेज के प्रिंसिपल आरपी सैनी का मानना है कि करनाल में भाजपा के भीतर मची खींचतान पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है। इससे असमंजस की स्थिति पैदा हो रही है। अब देखना यह होगा कि पार्टी इस चुनौती से कैसे निपटती है। हरियाणा | दैनिक भास्कर