पाकिस्तानी तालिबान के अफगानिस्तान में महफूज ठिकाने:जब ड्रग्स तस्कर आपस में सहयोग कर सकते हैं तो हुकूमतें क्यों नहीं?

पाकिस्तानी तालिबान के अफगानिस्तान में महफूज ठिकाने:जब ड्रग्स तस्कर आपस में सहयोग कर सकते हैं तो हुकूमतें क्यों नहीं?

पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा (केपीके) सूबे के मुख्यमंत्री हैं अली अमीन गंडापुर। यह वह सूबा है, जिसकी काफी लंबी सरहद अफगानिस्तान के साथ लगती है। वे जेल में बंद विपक्षी नेता इमरान खान के बहुत भरोसेमंद दोस्त हैं।
गंडापुर के पास उस सूबे की कमान है, जो 80 के दशक की शुरुआत से ही आतंकवाद से मुब्तला रहा है। उनकी पार्टी साल 2013 से केपीके पर हुकूमत कर रही है। बदकिस्मती से वे इस सूबे में कानून और व्यवस्था के हालात को काबू करने में विफल रहे हैं। पिछले कुछ महीनों के दौरान पाकिस्तानी तालिबान ने केपीके में पुलिस और फौज के खिलाफ भयावह हमले किए हैं। पाकिस्तानी तालिबान के अफगानिस्तान में महफूज ठिकाने हैं। उन्हें अपने अफगान बिरादरों से सुरक्षा मिलती है, क्योंकि उन्होंने रूस और अमेरिका के खिलाफ अफगान तालिबान की मदद की थी। गंडापुर ने कई बार कहा है कि केंद्रीय हुकूमत को पाकिस्तानी तालिबान को काबू में करने के लिए अफगान तालिबान के साथ बात करनी चाहिए। लेकिन वजीर-ए-आजम शहवा शरीफ उनकी नहीं सुन रहे हैं, क्योंकि आर्मी लीडरशिप को लगता है कि ये आतंकी समूह हमेशा अपने असर को बढ़ाने के लिए बातचीत का सहारा लेते हैं। हाल ही में गंडापुर ने एलान किया है कि अगर केंद्रीय हुकूमत अफगान तालिबान के साथ बातचीत शुरू नहीं करती है तो वो खुद ही उनसे बातचीत करेंगे। इसके बाद गंडापुर ने पेशावर में अफगान महावाणिज्यदूत से मुलाकात की और अशांत इलाकों में अमन बहाली के लिए सरहद के दोनों ओर के वरिष्ठ कबाइली लीडर्स की एक बड़ी बैठक का प्रस्ताव रख दिया। सिर्फ आतंकवाद ही मसला नहीं है, जो गंडापुर को परेशान कर रहा है। वे अपने सूबे में ड्रग्स, खासकर क्रिस्टल मेथ जिसे ‘आइस’ के नाम से भी जाना जाता है। उसकी तस्करी को काबू में करने के लिए भी अफगान तालिबान से मदद चाहते हैं। यह खतरनाक ड्रग न केवल केपीके, बल्कि पूरे पाकिस्तान में बड़ी आसानी से मुहैया है। संयुक्त राष्ट्र के ड्रग एवं अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) के मुताबिक म्यांमार के बाद अफगानिस्तान दुनिया में अफीम का दूसरा सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है। अफगानिस्तान से अफीम की सालाना तस्करी लगभग 330 टन है। अफगानिस्तान में गोपनीय ड्रग्स लैब्स न केवल हेरोइन और हशीश, बल्कि इफेड्रा पौधे से क्रिस्टल मेथ भी बना रही हैं, जो अफगानिस्तान में हर जगह आसानी से उपलब्ध है। क्रिस्टल मेथ बहुत सस्ती होती है, लेकिन होती बेहद खतरनाक। एंटी नारकोटिक्स फोर्स (एएनएफ) और पुलिस ने ऐसे कई तस्करों को पकड़ा है, जो इस जानलेवा ड्रग को हिंदुस्तानी पंजाब में भेजने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे थे। अफगान ड्रग माफिया अनेक पाकिस्तानी, भारतीय, ईरानी, ​​श्रीलंकाई और ताजिक तस्करों के संपर्क में हैं। वे यूएई से काम करते हैं। हाल ही में एएनएफ ने इस्लामाबाद की एक यूनिवर्सिटी से एक महिला को गिरफ्तार किया है। वह यूनिवर्सिटी कैंटीन का इस्तेमाल क्रिस्टल मेथ बेचने के लिए कर रही थी। जांच के दौरान उसने अफगान तस्करों के एक और नेटवर्क के बारे में बताया। उनमें से दो को तब गिरफ्तार किया गया, जब वे यूनिवर्सिटी के अंदर ड्रग्स की सप्लाई करने आए थे। उन अफगानों ने एक तीसरे नेटवर्क के बारे में जानकारी दी, जो समुद्री रास्तों के जरिए कराची से ईरान और भारत तक ड्रग्स की तस्करी करता है। मुझे नहीं लगता कि गंडापुर अकेले अफगानिस्तान से बात करके आतंकवाद और ड्रग तस्करी के मसले को हल कर सकते हैं। वे केपीके की सरहद को सील कर सकते हैं, लेकिन बलूचिस्तान का क्या? यह सूबा भी अफगानिस्तान के साथ एक लंबी सरहद साझा करता है। अफगान तस्कर बलूचिस्तान और सिंध से पाकिस्तानी मछुआरों का इस्तेमाल अपने भारतीय समकक्षों को ड्रग्स की बड़ी खेप पहुंचाने के लिए करते हैं। वे समुद्री जल में सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल करते हैं। अफगानिस्तान से ड्रग्स की आमद को रोकने के लिए पाकिस्तान की केंद्रीय हुकूमत को बेशक एक रणनीति बनाने की दरकार है। पाकिस्तान में 90 लाख से भी ज्यादा ड्रग एडिक्ट हैं, जिनमें से 20 लाख तो 15 से 25 साल की उम्र के हैं। पाकिस्तान में हर दिन लगभग 700 लोग नशीले पदार्थों से जुड़ी जटिलताओं के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं। आतंकवाद से ज्यादा पाकिस्तानियों की जान अवैध ड्रग्स के कारण जा रही है। पाकिस्तानी सरकार को यूएनओडीसी की मदद से इस खतरे के खिलाफ एक क्षेत्रीय रणनीति बनानी चाहिए। यूएनओडीसी पहले से ही अफगान तालिबान के साथ काम कर रहा है, लेकिन इसे अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत और ईरान की एंटी नारकोटिक्स एजेंसियों के बीच कामकाजी रिश्ते बनाने चाहिए। इन देशों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन दक्षिण एशिया में ड्रग माफिया को हराने के लिए उन्हें आपस में सहयोग करना चाहिए। अगर पाकिस्तानी तस्कर भारतीय तस्करों के साथ सहयोग कर सकते हैं, तो इन देशों की सरकारें ड्रग माफिया को हराने के लिए सहयोग क्यों नहीं कर सकतीं? ये कॉलम भी पढ़ें… लाला लाजपत राय पाकिस्तान में भी हीरो:लाहौर में आज भी जिंदा है लाला लाजपत राय का ख्वाब, मां के नाम पर बना अस्पताल आज भी चल रहा पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा (केपीके) सूबे के मुख्यमंत्री हैं अली अमीन गंडापुर। यह वह सूबा है, जिसकी काफी लंबी सरहद अफगानिस्तान के साथ लगती है। वे जेल में बंद विपक्षी नेता इमरान खान के बहुत भरोसेमंद दोस्त हैं।
गंडापुर के पास उस सूबे की कमान है, जो 80 के दशक की शुरुआत से ही आतंकवाद से मुब्तला रहा है। उनकी पार्टी साल 2013 से केपीके पर हुकूमत कर रही है। बदकिस्मती से वे इस सूबे में कानून और व्यवस्था के हालात को काबू करने में विफल रहे हैं। पिछले कुछ महीनों के दौरान पाकिस्तानी तालिबान ने केपीके में पुलिस और फौज के खिलाफ भयावह हमले किए हैं। पाकिस्तानी तालिबान के अफगानिस्तान में महफूज ठिकाने हैं। उन्हें अपने अफगान बिरादरों से सुरक्षा मिलती है, क्योंकि उन्होंने रूस और अमेरिका के खिलाफ अफगान तालिबान की मदद की थी। गंडापुर ने कई बार कहा है कि केंद्रीय हुकूमत को पाकिस्तानी तालिबान को काबू में करने के लिए अफगान तालिबान के साथ बात करनी चाहिए। लेकिन वजीर-ए-आजम शहवा शरीफ उनकी नहीं सुन रहे हैं, क्योंकि आर्मी लीडरशिप को लगता है कि ये आतंकी समूह हमेशा अपने असर को बढ़ाने के लिए बातचीत का सहारा लेते हैं। हाल ही में गंडापुर ने एलान किया है कि अगर केंद्रीय हुकूमत अफगान तालिबान के साथ बातचीत शुरू नहीं करती है तो वो खुद ही उनसे बातचीत करेंगे। इसके बाद गंडापुर ने पेशावर में अफगान महावाणिज्यदूत से मुलाकात की और अशांत इलाकों में अमन बहाली के लिए सरहद के दोनों ओर के वरिष्ठ कबाइली लीडर्स की एक बड़ी बैठक का प्रस्ताव रख दिया। सिर्फ आतंकवाद ही मसला नहीं है, जो गंडापुर को परेशान कर रहा है। वे अपने सूबे में ड्रग्स, खासकर क्रिस्टल मेथ जिसे ‘आइस’ के नाम से भी जाना जाता है। उसकी तस्करी को काबू में करने के लिए भी अफगान तालिबान से मदद चाहते हैं। यह खतरनाक ड्रग न केवल केपीके, बल्कि पूरे पाकिस्तान में बड़ी आसानी से मुहैया है। संयुक्त राष्ट्र के ड्रग एवं अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) के मुताबिक म्यांमार के बाद अफगानिस्तान दुनिया में अफीम का दूसरा सबसे बड़ा प्रोड्यूसर है। अफगानिस्तान से अफीम की सालाना तस्करी लगभग 330 टन है। अफगानिस्तान में गोपनीय ड्रग्स लैब्स न केवल हेरोइन और हशीश, बल्कि इफेड्रा पौधे से क्रिस्टल मेथ भी बना रही हैं, जो अफगानिस्तान में हर जगह आसानी से उपलब्ध है। क्रिस्टल मेथ बहुत सस्ती होती है, लेकिन होती बेहद खतरनाक। एंटी नारकोटिक्स फोर्स (एएनएफ) और पुलिस ने ऐसे कई तस्करों को पकड़ा है, जो इस जानलेवा ड्रग को हिंदुस्तानी पंजाब में भेजने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल कर रहे थे। अफगान ड्रग माफिया अनेक पाकिस्तानी, भारतीय, ईरानी, ​​श्रीलंकाई और ताजिक तस्करों के संपर्क में हैं। वे यूएई से काम करते हैं। हाल ही में एएनएफ ने इस्लामाबाद की एक यूनिवर्सिटी से एक महिला को गिरफ्तार किया है। वह यूनिवर्सिटी कैंटीन का इस्तेमाल क्रिस्टल मेथ बेचने के लिए कर रही थी। जांच के दौरान उसने अफगान तस्करों के एक और नेटवर्क के बारे में बताया। उनमें से दो को तब गिरफ्तार किया गया, जब वे यूनिवर्सिटी के अंदर ड्रग्स की सप्लाई करने आए थे। उन अफगानों ने एक तीसरे नेटवर्क के बारे में जानकारी दी, जो समुद्री रास्तों के जरिए कराची से ईरान और भारत तक ड्रग्स की तस्करी करता है। मुझे नहीं लगता कि गंडापुर अकेले अफगानिस्तान से बात करके आतंकवाद और ड्रग तस्करी के मसले को हल कर सकते हैं। वे केपीके की सरहद को सील कर सकते हैं, लेकिन बलूचिस्तान का क्या? यह सूबा भी अफगानिस्तान के साथ एक लंबी सरहद साझा करता है। अफगान तस्कर बलूचिस्तान और सिंध से पाकिस्तानी मछुआरों का इस्तेमाल अपने भारतीय समकक्षों को ड्रग्स की बड़ी खेप पहुंचाने के लिए करते हैं। वे समुद्री जल में सैटेलाइट फोन का इस्तेमाल करते हैं। अफगानिस्तान से ड्रग्स की आमद को रोकने के लिए पाकिस्तान की केंद्रीय हुकूमत को बेशक एक रणनीति बनाने की दरकार है। पाकिस्तान में 90 लाख से भी ज्यादा ड्रग एडिक्ट हैं, जिनमें से 20 लाख तो 15 से 25 साल की उम्र के हैं। पाकिस्तान में हर दिन लगभग 700 लोग नशीले पदार्थों से जुड़ी जटिलताओं के कारण मौत के मुंह में चले जाते हैं। आतंकवाद से ज्यादा पाकिस्तानियों की जान अवैध ड्रग्स के कारण जा रही है। पाकिस्तानी सरकार को यूएनओडीसी की मदद से इस खतरे के खिलाफ एक क्षेत्रीय रणनीति बनानी चाहिए। यूएनओडीसी पहले से ही अफगान तालिबान के साथ काम कर रहा है, लेकिन इसे अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत और ईरान की एंटी नारकोटिक्स एजेंसियों के बीच कामकाजी रिश्ते बनाने चाहिए। इन देशों के बीच कई मुद्दों पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन दक्षिण एशिया में ड्रग माफिया को हराने के लिए उन्हें आपस में सहयोग करना चाहिए। अगर पाकिस्तानी तस्कर भारतीय तस्करों के साथ सहयोग कर सकते हैं, तो इन देशों की सरकारें ड्रग माफिया को हराने के लिए सहयोग क्यों नहीं कर सकतीं? ये कॉलम भी पढ़ें… लाला लाजपत राय पाकिस्तान में भी हीरो:लाहौर में आज भी जिंदा है लाला लाजपत राय का ख्वाब, मां के नाम पर बना अस्पताल आज भी चल रहा   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर