जालंधर | शहर में लूट की वारदातें आम हो गई हैं। शनिवार को काकी पिंड के पास पूर्व पार्षद के दफ्तर के बाहर एक्टिवा पर पति के साथ जा रही महिला की बालियां लूटकर लुटेरे फरार हो गए। घटना के वक्त महिला एक्टिवा से गिरते-गिरते बची। महिला के पति ने पीछा कर लुटेरों को पकड़ने की कोशिश भी की, लेकिन वे हाथ नहीं लगे। लूट की शिकायत दकोहा चौकी को दी गई है। चौहकां कलां निवासी सुरिंदर पाल ने बताया कि पत्नी प्रवीण कौर के साथ किसी काम से पूर्व पार्षद के पास आए थे। जैसे ही वापस जाने लगे तो बाइक पर आए दो लुटेरों ने चलती एक्टिवा पर कान से बालियां झपट लीं। जालंधर | शहर में लूट की वारदातें आम हो गई हैं। शनिवार को काकी पिंड के पास पूर्व पार्षद के दफ्तर के बाहर एक्टिवा पर पति के साथ जा रही महिला की बालियां लूटकर लुटेरे फरार हो गए। घटना के वक्त महिला एक्टिवा से गिरते-गिरते बची। महिला के पति ने पीछा कर लुटेरों को पकड़ने की कोशिश भी की, लेकिन वे हाथ नहीं लगे। लूट की शिकायत दकोहा चौकी को दी गई है। चौहकां कलां निवासी सुरिंदर पाल ने बताया कि पत्नी प्रवीण कौर के साथ किसी काम से पूर्व पार्षद के पास आए थे। जैसे ही वापस जाने लगे तो बाइक पर आए दो लुटेरों ने चलती एक्टिवा पर कान से बालियां झपट लीं। पंजाब | दैनिक भास्कर
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स्ट्रोक से निपटने के लिए मोहाली NIPER की पहल:Neuro-E नामक बायोलॉजिक डेवलप, इस्केमिक स्ट्रोक में बनेगा मददगार, मार्केट में लाने की तैयारी पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (NIPER) के वैज्ञानिकों ने न्यूरोथेरेप्यूटिक्स के क्षेत्र में Neuro-E नामक एक नवीन बायोलॉजिक विकसित किया है। जो दिमाग की सुरक्षा और नर्वस सिस्टम की मरम्मत में मदद करता है। यह खोज इस्केमिक स्ट्रोक (यह स्ट्रोक का सबसे आम प्रकार है, यह तब होता है जब माइंड को रक्त की आपूर्ति करने वाली रक्त वाहिकाएं संकरी या अवरुद्ध हो जाती हैं) के इलाज में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है। यह स्ट्रोक दुनिया भर में मृत्यु का 5वां और विकलांगता का तीसरा सबसे बड़ा कारण है। माइंड की सुरक्षा और मरम्मत के लिए आवश्यक बायोटेक्नोलॉजी विभाग के प्रो. अभय एच पांडे ने Neuro-E का आविष्कार किया है। वह कहते है कि “ApoE एक स्वाभाविक रूप से पाया जाने वाला प्रोटीन है, जो माइंड की सुरक्षा और मरम्मत के लिए आवश्यक है। Neuro-E के माध्यम से हमने एक ऐसा बायोलॉजिक विकसित किया है, जो मस्तिष्क को सुरक्षा प्रदान करता है और इलाज प्रक्रिया को तेज करता है। हमारा अगला लक्ष्य इस तकनीक को ‘इन्वेस्टिगेशनल न्यू ड्रग (IND)’ चरण तक पहुंचाना है। यह दवा के विकास का वह चरण है जहां एक कंपनी FDA से अनुमति प्राप्त करती है कि वह मनुष्यों पर एक नई दवा या जैविक उत्पाद का परीक्षण कर सके। इसके बाद उसे बाजार में उतारने की प्रक्रिया होती है। फार्माकोलॉजी और टॉक्सिकोलॉजी विभाग के प्रो. श्याम एस शर्मा, जिन्होंने प्रीक्लिनिकल पशु अध्ययन का नेतृत्व किया है। उन्होंने ने कहा स्ट्रोक चिकित्सा क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। Neuro-E ने असाधारण न्यूरोप्रोटेक्टिव प्रभाव दिखाए हैं और इसके चिकित्सीय उपयोग को बढ़ाने के लिए और अध्ययन किए जा रहे हैं।” दिमाग से जुड़े रोगों के लिए बड़ी खोज इस प्रोजेक्ट में में PhD शोधार्थी सकील अहमद ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके रिसर्च से Neuro-E के संभावित चिकित्सीय उपयोग को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिल रही है। NIPER मोहाली के निदेशक प्रो. दुलाल पांडा ने इस खोज के महत्व के बताया कि “हम ऐसे अनुसंधान को प्राथमिकता देते हैं, जो सीधे मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर सके। हम उद्योग भागीदारों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, ताकि Neuro-E जैसी बायोफार्मास्युटिकल खोजों को मरीजों तक जल्द से जल्द पहुंचाया जा सके।” Neuro-E के विकास के साथ, NIPER मोहाली ने बायोफार्मास्युटिकल के क्षेत्र में एक बड़ा कदम बढ़ाया है। यह न केवल न्यूरोडिजेनेरेटिव (मस्तिष्क से संबंधित) रोगों के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है, बल्कि लाखों मरीजों के लिए एक नई आशा की किरण भी बन सकता है।

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