राहुल महाकुंभ नहीं गए, कांग्रेस को कितना नफा-नुकसान:प्रयागराज से 122KM दूर रायबरेली में थे; ये मास्टरस्ट्रोक या रणनीतिक चूक

राहुल महाकुंभ नहीं गए, कांग्रेस को कितना नफा-नुकसान:प्रयागराज से 122KM दूर रायबरेली में थे; ये मास्टरस्ट्रोक या रणनीतिक चूक

19 फरवरी, 2025 को राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली में थे। रायबरेली से 122 किमी दूर प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा था। कयास लग रहे थे कि शायद राहुल गांधी महाकुंभ नहाने पहुंचे, लेकिन नहीं गए। इसी तरह अयोध्या में भव्य राम मंदिर उद्घाटन समारोह से भी राहुल सहित गांधी परिवार ने दूरी बनाए रखी। वहीं, केंद्र और यूपी सरकार की अगुआई कर रही भाजपा के सभी दिग्गजों ने कुंभ में डुबकी लगाने का मौका हाथ से नहीं जाने दिया। इसमें पीएम नरेंद्र मोदी, सीएम योगी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित भाजपा शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्री और तमाम बड़े नेता शामिल रहे। महाकुंभ में देश-विदेश से 66 करोड़ से ज्यादा लोगों ने आस्था की डुबकी लगाई। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस ने अयोध्या की तरह इस समागम से दूरी क्यों बनाए रखी? महाकुंभ के इस आयोजन से हिंदुत्व की राजनीति कितनी मजबूत होगी? बीजेपी को इसका कितना फायदा मिलेगा? एक्सपर्ट और राजनीतिक जानकार इसे कांग्रेस की रणनीतिक चूक बता रहे हैं। पढ़िए यह रिपोर्ट… तीन सवालों के जवाब में छिपी है कांग्रेस की रणनीति भाजपा के पिच पर खेलने से बचने की कांग्रेस की रणनीति
अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन से भाजपा बढ़ी है। 2014 में केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद से ही पूरे देश में एक हिंदुत्व उभार आया है। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह कहते हैं- किसी भी सूरत में कांग्रेस, भाजपा के इस हार्डकोर हिंदुत्व वाली पिच पर नहीं खेलेगी। यहां कोई स्कोप भी नहीं है। भाजपा से अलग दिखने के लिए पार्टी के पास फिर रास्ता क्या बचता है? बस वही कांग्रेस इस समय करती हुई दिख रही है। कांग्रेस ने अपने किसी नेता को महाकुंभ में जाने से रोका भी नहीं। यही वजह है कि महाकुंभ में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय से लेकर हिमाचल प्रदेश के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू, कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, राजस्थान के कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री सचिन पायलट और मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह समेत कई कांग्रेस नेताओं ने संगम में डुबकी लगाई। मतलब, कांग्रेस ने ये दिखाने की पूरी कोशिश की कि महाकुंभ आस्था का विषय है। महाकुंभ में जाना या न जाना, ये खुद का फैसला होना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार हिसाम सिद्दीकी इसे दूसरे तरह से समझाते हैं। सवाल करते हैं, 2013 के प्रयागराज महाकुंभ में गुजरात के सीएम रहते हुए नरेंद्र मोदी भी नहीं आए थे। तो क्या मान लें? इस बार भी कांग्रेस के कई नेता महाकुंभ में गए, लेकिन उन्होंने कोई पब्लिसिटी नहीं की। इसकी तुलना में भाजपा नेताओं ने महाकुंभ में डुबकी लगाने से ज्यादा पब्लिसिटी पर फोकस किया। यहां तक कि महाकुंभ नहाने पहुंचे कांग्रेस नेताओं ने भी अपने बयान में कहा कि धर्म और अध्यात्म व्यक्तिगत पसंद का मामला है। पिछले साल राम मंदिर के निर्माण के दौरान भी पार्टी ने यही रुख अपनाया था। मतलब, पार्टी की नीति रही है कि आस्था थोपने की बजाय व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है। जब राहुल गांधी खुद 19-20 फरवरी को रायबरेली दौरे पर थे, तो कयास लग रहे थे कि वे शायद प्रयागराज जा सकते हैं। पार्टी की ओर से कुछ लोगों ने इससे पहले दावा भी किया था कि महाकुंभ में राहुल-प्रियंका जा सकते हैं। लेकिन, रायबरेली पहुंचे राहुल गांधी से मीडिया के लोगों ने महाकुंभ में जाने पर सवाल किए तो वे ‘नमस्कार’ बोल कर आगे बढ़ गए। फिर दौरा खत्म कर दिल्ली लौट गए। क्या गांधी परिवार के महाकुंभ में न जाने से कांग्रेस को नुकसान होगा?
राजनीतिक विश्लेषक मिन्हाज मर्चेंट दैनिक भास्कर में लिखते हैं- कांग्रेस की मुस्लिम फर्स्ट की राजनीति ने काफी नुकसान पहुंचाया है। देश के 80 फीसदी लोग जिस धर्म का पालन करते हैं, उसकी उपेक्षा करना खराब रणनीति है। महाकुंभ पर कांग्रेस के रवैये में भी यही नजर आया। वे 2019 लोकसभा से पहले के गुजरात सहित अन्य विधानसभा चुनाव परिणामों का उदाहरण देते हैं। लिखते हैं- दिसंबर, 2017 में राहुल गांधी गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले थोड़े समय के लिए कई मंदिरों का दौरा किया। मतदाताओं के सामने खुद को ब्राह्मण साबित करने के लिए अपना जनेऊ तक दिखाया था। राहुल की यह द्विज-हिंदू रणनीति कारगर भी रही। कांग्रेस 182 सीटों वाली गुजरात में अरसे बाद भाजपा को 100 से नीचे लाने में कामयाब रही थी। इसके एक साल बाद उसने हिंदी पट्‌टी के तीन राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी जीत हासिल की थी। 2019 के प्रयागराज कुंभ में राहुल और प्रियंका दोनों पहुंचे थे। तब प्रयागराज में प्रियंका के पोस्टर लगाए गए थे, जिसमें उन्हें गंगा की बेटी लिखा गया था। इस पोस्टर में प्रियंका के अलावा पूर्व पीएम इंदिरा गांधी, राहुल गांधी, राज बब्बर, प्रमोद तिवारी और सोनिया गांधी की फोटो थी। यहां तक कि साल 2000 में सोनिया गांधी ने भी संगम में आस्था की डुबकी लगाई थी। 4 साल पहले 11 फरवरी, 2021 को भी प्रियंका गांधी ने प्रयागराज में संगम में डुबकी लगाई थी। उन्होंने तब प्रयागराज से वाराणसी तक की बोट से यात्रा भी की थी। कांग्रेस के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अजय राय इसका यह कहते हुए बचाव करते हैं कि महाकुंभ को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए। ये आस्था का सवाल है। हम सब लोग आस्था और भाव के साथ वहां से जुड़े हैं। मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि मैं स्वयं गया था। कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष हूं। कांग्रेस परिवार की ओर से और गांधी परिवार की ओर से अजय राय उपस्थित थे। हमने स्नान किया, हर-हर गंगे, हर-हर महादेव हुआ। फिर इंडी गठबंधन के साथी दलों के निशाने पर क्यों है कांग्रेस
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर यूपी में भाजपा को खासा नुकसान पहुंचाने वाले अखिलेश यादव भी महाकुंभ में स्नान करने गए। नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडे सहित दूसरे सपा नेता भी गए। सपा उस उत्तर प्रदेश की राजनीति करती है। यहां जाति और धर्म को परे रखकर कोई राजनीति ही नहीं कर सकता। सपा को पता है कि अगर भाजपा से मुकाबला करना है, तो बहुसंख्यक आबादी को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकती है। यही कारण है कि सपा के प्रवक्ता आईपी सिंह ने ‘X’ पर यहां तक लिख दिया था कि राहुल और उनकी बहन प्रियंका ने साबित कर दिया कि वे सनातन और संस्कृति विरोधी हैं। उन्होंने एक दूसरी पोस्ट करते हुए लिखा था कि राहुल गांधी को विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने अखिलेश यादव को विपक्ष का नेता बनाने की मांग तक कर दी थी। हालांकि, मामले ने तूल पकड़ा तो उन्होंने ये दोनों पोस्ट हटा लिए। जानकार मानते हैं कि सपा प्रवक्ता ने ये पोस्ट कर ये संदेश देने की कोशिश की है कि वह भी कांग्रेस की नीति को ठीक नहीं मानती। हालांकि, गठबंधन धर्म के चलते उसने पोस्ट हटाकर विवाद से बचने की राह चुनी। इसे और सही तरीके से समझना हो, तो इंडी गठबंधन के दूसरे साथी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बयान को देख सकते हैं। उन्होंने महाकुंभ को लेकर नपी-तुली राय रखते हुए कहा- मैं कुछ महीने पहले उमरा (मक्का की तीर्थयात्रा) गया था, तो कुछ लोग कह सकते हैं कि इससे क्या फर्क पड़ता है? मेरी आस्था कहती है कि मुझे जाना चाहिए, इसलिए मैं गया। अब अगर किसी की आस्था कहती है कि उन्हें महाकुंभ में स्नान करना चाहिए, तो इसमें दखल देने की हमें क्या जरूरत? हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे भाजपा को यह कहने का मौका मिले कि हम हिंदुओं के खिलाफ हैं। अयोध्या राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह से भी बनाई थी दूरी
ये पहला मौका नहीं है, जब कांग्रेस ने इस तरह का राजनीतिक निर्णय लिया हो। इससे पहले 22 जनवरी, 2024 में जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर का भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह हो रहा था, तब भी कांग्रेस सहित इंडी गठबंधन के साथी दलों ने इसी तरह की दूरी बनाई थी। जबकि, इस समारोह को लेकर पूरे देश में आस्था की एक लहर महसूस की गई थी। अब महाकुंभ के आयोजन से भी कांग्रेस और इंडी गठबंधन ने दूरी बनाए रखी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक सभा में कहा था- क्या गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी मिट जाएगी? क्या इससे आपको पेट भरने के लिए भोजन मिलेगा? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महाकुंभ मेले में बदइंतजामी को लेकर इस आयोजन को ‘मृत्यु कुंभ’ बता दिया था। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कुंभ को ‘फालतू’ बोल दिया था। वरिष्ठ पत्रकार पंकज सिंह कहते हैं- कांग्रेस और सहयोगी दलों ने महाकुंभ पर बेतुका बयान देकर ज्यादा नुकसान किया। महाकुंभ कोई भाजपा का आयोजन नहीं था। ये सनातन धर्म का सदियों से चला आ रहा आयोजन था। चुनाव आता है, तो राहुल गांधी जनेऊ दिखाते हुए गोत्र तक बताने से नहीं चूकते। पर जब आस्था के प्रकटीकरण का मौका आता है, तो उससे बचने की कोशिश की जाती है। इससे साफ झलकता है कि वे सेक्युलरिज्म की बजाय मुस्लिम तुष्टीकरण की राह पर चल रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक मिन्हाज मर्चेंट इसकी वजह बताते हुए लिखते हैं कि साल 2019 लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस घबरा गई। सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी हाईकमान अपनी माइनॉरिटी फर्स्ट या यूं कहें सेक्युलरिज्म की नीति पर फिर से लौट आया। ———————– ये खबर भी पढ़ें… योगी बोले- संभल CO ने ठीक कहा, जुमा 52-होली एक, पुलिस अफसर पहलवान है, अपने लहजे में बोलेगा तो कुछ को बुरा लग सकता है सीएम योगी ने संभल CO अनुज चौधरी का खुलकर समर्थन किया है। योगी ने कहा- जो हमारा पुलिस अधिकारी है, वह पहलवान रहा है। अर्जुन अवार्डी है। पूर्व ओलंपियन रहा है। अब पहलवानी के लहजे में बोलेगा तो कुछ लोगों को बुरा लग सकता है। लेकिन जो बात सच है, उस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। पढ़ें पूरी खबर 19 फरवरी, 2025 को राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली में थे। रायबरेली से 122 किमी दूर प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा था। कयास लग रहे थे कि शायद राहुल गांधी महाकुंभ नहाने पहुंचे, लेकिन नहीं गए। इसी तरह अयोध्या में भव्य राम मंदिर उद्घाटन समारोह से भी राहुल सहित गांधी परिवार ने दूरी बनाए रखी। वहीं, केंद्र और यूपी सरकार की अगुआई कर रही भाजपा के सभी दिग्गजों ने कुंभ में डुबकी लगाने का मौका हाथ से नहीं जाने दिया। इसमें पीएम नरेंद्र मोदी, सीएम योगी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा सहित भाजपा शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्री और तमाम बड़े नेता शामिल रहे। महाकुंभ में देश-विदेश से 66 करोड़ से ज्यादा लोगों ने आस्था की डुबकी लगाई। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस ने अयोध्या की तरह इस समागम से दूरी क्यों बनाए रखी? महाकुंभ के इस आयोजन से हिंदुत्व की राजनीति कितनी मजबूत होगी? बीजेपी को इसका कितना फायदा मिलेगा? एक्सपर्ट और राजनीतिक जानकार इसे कांग्रेस की रणनीतिक चूक बता रहे हैं। पढ़िए यह रिपोर्ट… तीन सवालों के जवाब में छिपी है कांग्रेस की रणनीति भाजपा के पिच पर खेलने से बचने की कांग्रेस की रणनीति
अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन से भाजपा बढ़ी है। 2014 में केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद से ही पूरे देश में एक हिंदुत्व उभार आया है। वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह कहते हैं- किसी भी सूरत में कांग्रेस, भाजपा के इस हार्डकोर हिंदुत्व वाली पिच पर नहीं खेलेगी। यहां कोई स्कोप भी नहीं है। भाजपा से अलग दिखने के लिए पार्टी के पास फिर रास्ता क्या बचता है? बस वही कांग्रेस इस समय करती हुई दिख रही है। कांग्रेस ने अपने किसी नेता को महाकुंभ में जाने से रोका भी नहीं। यही वजह है कि महाकुंभ में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय से लेकर हिमाचल प्रदेश के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू, कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, राजस्थान के कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री सचिन पायलट और मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह समेत कई कांग्रेस नेताओं ने संगम में डुबकी लगाई। मतलब, कांग्रेस ने ये दिखाने की पूरी कोशिश की कि महाकुंभ आस्था का विषय है। महाकुंभ में जाना या न जाना, ये खुद का फैसला होना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार हिसाम सिद्दीकी इसे दूसरे तरह से समझाते हैं। सवाल करते हैं, 2013 के प्रयागराज महाकुंभ में गुजरात के सीएम रहते हुए नरेंद्र मोदी भी नहीं आए थे। तो क्या मान लें? इस बार भी कांग्रेस के कई नेता महाकुंभ में गए, लेकिन उन्होंने कोई पब्लिसिटी नहीं की। इसकी तुलना में भाजपा नेताओं ने महाकुंभ में डुबकी लगाने से ज्यादा पब्लिसिटी पर फोकस किया। यहां तक कि महाकुंभ नहाने पहुंचे कांग्रेस नेताओं ने भी अपने बयान में कहा कि धर्म और अध्यात्म व्यक्तिगत पसंद का मामला है। पिछले साल राम मंदिर के निर्माण के दौरान भी पार्टी ने यही रुख अपनाया था। मतलब, पार्टी की नीति रही है कि आस्था थोपने की बजाय व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला है। जब राहुल गांधी खुद 19-20 फरवरी को रायबरेली दौरे पर थे, तो कयास लग रहे थे कि वे शायद प्रयागराज जा सकते हैं। पार्टी की ओर से कुछ लोगों ने इससे पहले दावा भी किया था कि महाकुंभ में राहुल-प्रियंका जा सकते हैं। लेकिन, रायबरेली पहुंचे राहुल गांधी से मीडिया के लोगों ने महाकुंभ में जाने पर सवाल किए तो वे ‘नमस्कार’ बोल कर आगे बढ़ गए। फिर दौरा खत्म कर दिल्ली लौट गए। क्या गांधी परिवार के महाकुंभ में न जाने से कांग्रेस को नुकसान होगा?
राजनीतिक विश्लेषक मिन्हाज मर्चेंट दैनिक भास्कर में लिखते हैं- कांग्रेस की मुस्लिम फर्स्ट की राजनीति ने काफी नुकसान पहुंचाया है। देश के 80 फीसदी लोग जिस धर्म का पालन करते हैं, उसकी उपेक्षा करना खराब रणनीति है। महाकुंभ पर कांग्रेस के रवैये में भी यही नजर आया। वे 2019 लोकसभा से पहले के गुजरात सहित अन्य विधानसभा चुनाव परिणामों का उदाहरण देते हैं। लिखते हैं- दिसंबर, 2017 में राहुल गांधी गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले थोड़े समय के लिए कई मंदिरों का दौरा किया। मतदाताओं के सामने खुद को ब्राह्मण साबित करने के लिए अपना जनेऊ तक दिखाया था। राहुल की यह द्विज-हिंदू रणनीति कारगर भी रही। कांग्रेस 182 सीटों वाली गुजरात में अरसे बाद भाजपा को 100 से नीचे लाने में कामयाब रही थी। इसके एक साल बाद उसने हिंदी पट्‌टी के तीन राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी जीत हासिल की थी। 2019 के प्रयागराज कुंभ में राहुल और प्रियंका दोनों पहुंचे थे। तब प्रयागराज में प्रियंका के पोस्टर लगाए गए थे, जिसमें उन्हें गंगा की बेटी लिखा गया था। इस पोस्टर में प्रियंका के अलावा पूर्व पीएम इंदिरा गांधी, राहुल गांधी, राज बब्बर, प्रमोद तिवारी और सोनिया गांधी की फोटो थी। यहां तक कि साल 2000 में सोनिया गांधी ने भी संगम में आस्था की डुबकी लगाई थी। 4 साल पहले 11 फरवरी, 2021 को भी प्रियंका गांधी ने प्रयागराज में संगम में डुबकी लगाई थी। उन्होंने तब प्रयागराज से वाराणसी तक की बोट से यात्रा भी की थी। कांग्रेस के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष अजय राय इसका यह कहते हुए बचाव करते हैं कि महाकुंभ को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए। ये आस्था का सवाल है। हम सब लोग आस्था और भाव के साथ वहां से जुड़े हैं। मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि मैं स्वयं गया था। कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष हूं। कांग्रेस परिवार की ओर से और गांधी परिवार की ओर से अजय राय उपस्थित थे। हमने स्नान किया, हर-हर गंगे, हर-हर महादेव हुआ। फिर इंडी गठबंधन के साथी दलों के निशाने पर क्यों है कांग्रेस
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर यूपी में भाजपा को खासा नुकसान पहुंचाने वाले अखिलेश यादव भी महाकुंभ में स्नान करने गए। नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडे सहित दूसरे सपा नेता भी गए। सपा उस उत्तर प्रदेश की राजनीति करती है। यहां जाति और धर्म को परे रखकर कोई राजनीति ही नहीं कर सकता। सपा को पता है कि अगर भाजपा से मुकाबला करना है, तो बहुसंख्यक आबादी को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकती है। यही कारण है कि सपा के प्रवक्ता आईपी सिंह ने ‘X’ पर यहां तक लिख दिया था कि राहुल और उनकी बहन प्रियंका ने साबित कर दिया कि वे सनातन और संस्कृति विरोधी हैं। उन्होंने एक दूसरी पोस्ट करते हुए लिखा था कि राहुल गांधी को विपक्ष के नेता पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने अखिलेश यादव को विपक्ष का नेता बनाने की मांग तक कर दी थी। हालांकि, मामले ने तूल पकड़ा तो उन्होंने ये दोनों पोस्ट हटा लिए। जानकार मानते हैं कि सपा प्रवक्ता ने ये पोस्ट कर ये संदेश देने की कोशिश की है कि वह भी कांग्रेस की नीति को ठीक नहीं मानती। हालांकि, गठबंधन धर्म के चलते उसने पोस्ट हटाकर विवाद से बचने की राह चुनी। इसे और सही तरीके से समझना हो, तो इंडी गठबंधन के दूसरे साथी जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बयान को देख सकते हैं। उन्होंने महाकुंभ को लेकर नपी-तुली राय रखते हुए कहा- मैं कुछ महीने पहले उमरा (मक्का की तीर्थयात्रा) गया था, तो कुछ लोग कह सकते हैं कि इससे क्या फर्क पड़ता है? मेरी आस्था कहती है कि मुझे जाना चाहिए, इसलिए मैं गया। अब अगर किसी की आस्था कहती है कि उन्हें महाकुंभ में स्नान करना चाहिए, तो इसमें दखल देने की हमें क्या जरूरत? हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे भाजपा को यह कहने का मौका मिले कि हम हिंदुओं के खिलाफ हैं। अयोध्या राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह से भी बनाई थी दूरी
ये पहला मौका नहीं है, जब कांग्रेस ने इस तरह का राजनीतिक निर्णय लिया हो। इससे पहले 22 जनवरी, 2024 में जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर का भव्य प्राण प्रतिष्ठा समारोह हो रहा था, तब भी कांग्रेस सहित इंडी गठबंधन के साथी दलों ने इसी तरह की दूरी बनाई थी। जबकि, इस समारोह को लेकर पूरे देश में आस्था की एक लहर महसूस की गई थी। अब महाकुंभ के आयोजन से भी कांग्रेस और इंडी गठबंधन ने दूरी बनाए रखी। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक सभा में कहा था- क्या गंगा में डुबकी लगाने से गरीबी मिट जाएगी? क्या इससे आपको पेट भरने के लिए भोजन मिलेगा? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने महाकुंभ मेले में बदइंतजामी को लेकर इस आयोजन को ‘मृत्यु कुंभ’ बता दिया था। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने कुंभ को ‘फालतू’ बोल दिया था। वरिष्ठ पत्रकार पंकज सिंह कहते हैं- कांग्रेस और सहयोगी दलों ने महाकुंभ पर बेतुका बयान देकर ज्यादा नुकसान किया। महाकुंभ कोई भाजपा का आयोजन नहीं था। ये सनातन धर्म का सदियों से चला आ रहा आयोजन था। चुनाव आता है, तो राहुल गांधी जनेऊ दिखाते हुए गोत्र तक बताने से नहीं चूकते। पर जब आस्था के प्रकटीकरण का मौका आता है, तो उससे बचने की कोशिश की जाती है। इससे साफ झलकता है कि वे सेक्युलरिज्म की बजाय मुस्लिम तुष्टीकरण की राह पर चल रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक मिन्हाज मर्चेंट इसकी वजह बताते हुए लिखते हैं कि साल 2019 लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस घबरा गई। सोनिया और राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी हाईकमान अपनी माइनॉरिटी फर्स्ट या यूं कहें सेक्युलरिज्म की नीति पर फिर से लौट आया। ———————– ये खबर भी पढ़ें… योगी बोले- संभल CO ने ठीक कहा, जुमा 52-होली एक, पुलिस अफसर पहलवान है, अपने लहजे में बोलेगा तो कुछ को बुरा लग सकता है सीएम योगी ने संभल CO अनुज चौधरी का खुलकर समर्थन किया है। योगी ने कहा- जो हमारा पुलिस अधिकारी है, वह पहलवान रहा है। अर्जुन अवार्डी है। पूर्व ओलंपियन रहा है। अब पहलवानी के लहजे में बोलेगा तो कुछ लोगों को बुरा लग सकता है। लेकिन जो बात सच है, उस सच्चाई को स्वीकार करना चाहिए। पढ़ें पूरी खबर   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर