रूस में बेटे पर बम गिरा…पिता सदमे में मरे:मां बोली-गरीबी झेल लेंगे, बेटे को लौटा दो; इस उम्र में लाश नहीं देखी जाएगी

रूस में बेटे पर बम गिरा…पिता सदमे में मरे:मां बोली-गरीबी झेल लेंगे, बेटे को लौटा दो; इस उम्र में लाश नहीं देखी जाएगी

मुझे मेरा बेटा जिंदा वापस दिलवा दो, हमें कोई पैसा नहीं चाहिए। हम गरीबी में जी लेंगे, लेकिन इस उम्र में बेटे की लाश नहीं देखी जाएगी। एजेंट के चक्कर में बेटा परिवार की हालत सुधारने के लिए रूस चला गया। 6 महीने से उससे बात नहीं हो पाई है। उसकी पत्नी फोन लेकर बदहवास बैठी रहती है। हर पल लगता है कि उसका फोन आएगा और कहेगा कि मैं वापस आ रहा हूं। लेकिन ऐसा नहीं होता है। ये दर्द उस मां का है जिसका बेटा काम करने के लिए रूस गया था, लेकिन वहां युद्ध क्षेत्र में झोंक दिया गया। ऐसा हाल 9 परिवारों का है। एक परिवार में तो बेटा बम गिरने से घायल हुआ तो पिता को हार्ट अटैक आ गया और उनकी मौत हो गई। दैनिक भास्कर की टीम उन परिवारों का दर्द समझने उनके घर तक पहुंची। ये जानना चाहा कि उनका जीवन, आर्थिक हालात कैसे हैं। सरकार से क्या मदद मिल रही। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… हमारा परिवार पागल हो जाएगा, बच्चे स्कूल नहीं जा रहे, बहू बेसुध है
हम जिला मुख्यालय से 10 किमी. दूर कंधरापुर थाना क्षेत्र के खोजापुर माधवपट्‌टी गांव पहुंचे। गांव वालों से जैसे रूस में गए युवकों के बारे में पूछा तो उन्होंने सीधे योगेंद्र के घर की ओर इशारा किया। हम योगेंद्र के घर पर पहुंचे, जहां एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है। हर चेहरा उदास है, सबसे पहले हमने योगेंद्र की मां से बातचीत शुरू की, वे फफक कर बोल पड़ीं- मऊ के एजेंट विनोद ने मेरे बेटे को फंसा दिया। गार्ड की नौकरी के लिए लेकर गए और बार्डर पर भेज दिया। बेटे को बहकाकर विनोद 13 जनवरी 2024 को घर से लेकर गया। कुछ दिन तक वो दिल्ली में रहे। इसके बाद रूस लेकर चला गया। अप्रैल महीने तक हमारी बातचीत होती रही। हमें लगता था कि छह महीने में बेटा जब वापस लौटेगा तो हमारी गरीबी दूर हो जाएगी। अप्रैल के पहले सप्ताह में हमारे पास बेटे का फोन आया। उसने बताया कि हमें लड़ाई के लिए तैयार किया जा रहा है। ऐसा लगता है अब ये लोग हम सभी को युद्ध में भेज देंगे। इसके बाद हुआ भी ऐसा ही 25 अप्रैल को उसे लड़ाई में भेज दिया गया। 9 मई को मेरे बेटे को चोट लग गई, जिसके बाद 25 मई 2024 तक बात हुई। 25 मई से आज तक मेरे बेटे से कोई बात नहीं हुई। बेटे से बात न होने से हम लोग रोज घुट-घुटकर मर रहे हैं। हमने यहां के नेताओं, पुलिस और जिले के अफसरों सभी से गुहार लगाई। लेकिन कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा। हम तो खुद पागल हो गए हैं। हम कैसे जी रहे हैं यह तो मेरी आत्मा ही जानती है। हम गरीबी में जी लेंगे पर अपने बेटे के बिना नहीं जी पाएंगे। मां के रोते ही बहू, बच्चे और गांव के जो लोग वहां पर खड़े हो गए। सभी की आंखों में आंसू आ गए। मां ने खुद को संभालते हुए कहा- पत्नी और 4 बच्चों को कैसे संभालें, यही समझ नहीं आ रहा। योगेन्द्र यादव की पत्नी अनीता कहती हैं- रोज बच्चे अपने पापा के पास फोन लगाते हैं, पर बात नहीं हो पाती। हमें कोई रुपया पैसा नहीं चाहिए। मुझे मेरा सुहाग, मेरा पति चाहिए। मैं किससे अपना दर्द कहने जाऊं। योगेन्द्र यादव चार भाइयों में सबसे बड़े हैं। योगेन्द्र की 3 बेटियां और एक बेटा है। छोटे बच्चे पिता से बात करने की जिद करते हैं। हमारी एक नजर फोन पर ही लगी रहती है कि पता नहीं कब कॉल आ जाए। बेटे के गम में पिता की मौत हो गई, बहन बोली- धोखा हुआ
योगेंद्र यादव के गांव से निकलकर हम 15 किलोमीटर दूर गुलामी के पूरा गांव पहुंचे। यहां के अजहरूद्दीन को 27 जनवरी 2024 को एजेंट विनोद अपने साथ लेकर गया था। अजहरूद्दीन की मां नसरीन कहती हैं- विनोद मेरे घर आया और बोला, सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी है, दो लाख रुपया महीना मिलेगा। सैलरी अच्छी समझकर मेरा बेटा वहां चला गया। जब बेटा वहां गया तो 2 महीने तक तो हम सभी से बात होती रही। इसी बीच बेटे को ट्रेनिंग देकर लड़ाई के मैदान में भेज दिया गया। फिर एक दिन सूचना मिली कि युद्ध में बम गिरने से बेटा घायल हो गया, यह बात जब अजहरूद्दीन के अब्बू मैनुद्दीन को पता चली तो उन्हें एक अप्रैल को हार्ट अटैक आ गया। आठ अप्रैल को उनकी मौत हो गई। पिता की मौत के बाद हमने एजेंट विनोद से अपने बेटे से बात कराने की जिद की। मगर उसने बात नहीं कराई। हमारे पास तो इलाज के भी पैसे नहीं थे। गहने बेचकर इलाज कराया। फिर भी अजहरूद्दीन के अब्बू नहीं बचे। हमने एंबेसी में फोन किया, बहुत मिन्नतें कीं, इस दौरान खूब रोई। मेरी बेटे से अंतिम बात 27 अप्रैल को हुई थी। तब उसने कहा था कि अम्मी छह महीने तक यहां काम करूंगा और लौट आऊंगा। लेकिन आजतक उसका पता नहीं चला है। यह कहते हुए अजहरूद्दीन की मां रोने लगती हैं। मां को संभालते हुए बहन जेबा खान बोलीं- हमारे तीन भाईयों में यही एक भाई कमाने वाला था। हम लोग अपने भाई को लेकर बहुत दर्द से गुजर रहे हैं। जिस एग्रीमेंट पर साइन कराया गया, वो रूसी भाषा में था। मेरे भाई के साथ धोखा हुआ है। हमारी सरकार से मांग है कि सरकार हमारी मदद करे। अब पढ़िए 4 उन परिवारों का दर्द, जो बेटों की आने की राह देख रहे हुमेश्वर प्रसाद के पिता बोले- रोते-रोते सो जाती है पत्नी
यहां से 15 किमी सफर तय कर मुबारकपुर थाना क्षेत्र के सठियांव गांव पहुंचे। लोगों से पूछते हुए इंदु प्रकाश के घर पहुंचे। इंदु प्रकाश के बेटे हुमेश्वर प्रसाद भी रूस गए हैं। उन्होंने कहा- हम लोगों का बहुत बुरा हाल है। हम खाना नहीं खा पा रहे हैं। बहू रोते-रोते सो जाती है। कई बार तो वह रात में उठकर जोर-जोर से रोने लगती है। हम सभी बेटे के सुरक्षित लौटने की आस लगाए हुए हैं। सरकार हमारी मदद करे और मेरे बेटे को लाने में मदद करे। पिता को खो दिया, मामा अभी भी फंसे
आजमगढ़ जिले के बनकटा के रहने वाले कन्हैया यादव (44) की रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के दौरान गोली लगने से मौत हो गई है। कन्हैया की डेडबॉडी 23 दिसंबर को गांव पहुंची। कन्हैया यादव कुक वीजा पर 16 जनवरी 2024 को रूस गए थे। जहां से ट्रेनिंग देकर उन्हें यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई के मैदान में भेज दिया गया। कन्हैया के बेटे अजय ने बताया कि एजेंट सिक्योरिटी गार्ड का काम बताकर लेकर गया था। वहां रूसी सेना में भर्ती करा दिया गया। मेरे पिता को 7 मई को गोली लगी। बात हुई तो बताए कि इंफेक्शन से पिता की मौत हो चुकी है। अभी हमारे मामा विनोद यादव भी रूस में फंसे हैं। उनका पता नहीं है। रसोइया, कारपेंटर और सिक्योरिटी गार्ड की मिली थी नौकरी
मऊ-आजमगढ़ जिले का एजेंट विनोद पूर्वांचल के 14 लोगों को रूस ले गया था। वहां पर 2 लाख रुपए महीने की सैलरी मिलने की बात कही गई। उसने सभी के पासपोर्ट बनवाए। फिर सभी का रूस में कारपेंटर, कुक और सिक्योरिटी गार्ड के काम के लिए वीजा बनवाया। फिर सभी को रूस ले गया। अप्रैल- मई तक सभी की अपने घर वालों से बात होती रही। उसके बाद नहीं। विनोद की भी आखिरी बार अप्रैल में पिता से बात हुई थी। उसके बाद से उससे संपर्क नहीं हो पा रहा। अब तक आजमगढ़ के कन्हैया यादव और मऊ के श्यामसुंदर और सुनील यादव की रूस-यूक्रेन जंग में मौत हो चुकी है। आजमगढ़ के राकेश कुमार और मऊ के बृजेश यादव घायल होने के बाद घर लौट आए हैं। वहीं विनोद यादव, जोगिंदर यादव, अरविंद यादव, रामचंद्रा, अजहरुद्दीन खान, हुमेश्वर प्रसाद, दीपक, धीरेंद्र कुमार का अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है। घर वालों को उनके आने का इंतजार है। 15 दिन की ट्रेनिंग देकर युद्ध में उतार दिया, वहां बम फट रहे
रूस से लौटे बृजेश ने बताया कि वह मऊ के मधुबन तहसील के धर्मपुर विशुनपुर का रहने वाला है। रूस जाना जितना आसान था, वहां से लौटना उससे कहीं ज्यादा कठिन। फरवरी, 2024 में मऊ और आजमगढ़ के 14 युवकों को एजेंट रूस लेकर गया था। हमें हर महीने 2 लाख सैलरी दिलाने का वादा किया गया था। लेकिन, वहां पहुंचते ही सभी का सपना टूट गया। हम लोगों को महज 15 दिन का सैन्य प्रशिक्षण देकर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में उतार दिया गया। हमें चार चार लोगों के ग्रुप में करके युद्ध क्षेत्र में उतार दिया गया। इसके बाद कौन कहां है किसी को पता नहीं चल पा रहा है। मेरे ग्रुप का एक सदस्य बम के हमले में मर गया था। मेरे बाएं पैर में गोली लगी थी। इसके बाद वहां मेरा इलाज हुआ। एक स्थानीय अधिकारी को अपनी आपबीती बताई। फिर दूतावास से संपर्क हो सका। दूतावास के दबाव के चलते मुझे स्वदेश भेज दिया गया। अब पूर्वांचल के लोगों के लौटने की उम्मीद जगी
भारतीय विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को रूस के सामने सख्त रुख अख्तियार किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि रूस अपनी सेना में सेवा दे रहे सभी भारतीय नागरिकों को तुरंत रिहा करे। यह मांग उस समय उठाई गई, जब यूक्रेन के साथ संघर्ष में केरल के युवक की मौत हो गई। इस युद्ध में अब तक 10 भारतीयों की जान जा चुकी है। इनमें यूपी के 3 युवक शामिल हैं। ———————————— ये भी पढ़ें: आगरा में बेकरी का ओवन फटा, 14 कर्मचारी झुलसे:चमड़ी जल गई, सड़क पर तड़पते रहे….मदद के लिए चिल्लाते रहे आगरा में बेकरी का ओवन फटने से 14 से अधिक कर्मचारी गंभीर रूप से झुलस गए। इस दौरान अफरातफरी मच गई। झुलसे कर्मचारी रोड पर करीब 1 घंटे तक तड़पते और मदद की गुहार लगाते रहे। सूचना पर फायर ब्रिगेड की टीम और पुलिस पहुंची। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। घटना दोपहर 1 बजे की हरीपर्वत के ट्रांसपोर्ट नगर में मेडले बेकर्स की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की है। (पढ़ें पूरी खबर) मुझे मेरा बेटा जिंदा वापस दिलवा दो, हमें कोई पैसा नहीं चाहिए। हम गरीबी में जी लेंगे, लेकिन इस उम्र में बेटे की लाश नहीं देखी जाएगी। एजेंट के चक्कर में बेटा परिवार की हालत सुधारने के लिए रूस चला गया। 6 महीने से उससे बात नहीं हो पाई है। उसकी पत्नी फोन लेकर बदहवास बैठी रहती है। हर पल लगता है कि उसका फोन आएगा और कहेगा कि मैं वापस आ रहा हूं। लेकिन ऐसा नहीं होता है। ये दर्द उस मां का है जिसका बेटा काम करने के लिए रूस गया था, लेकिन वहां युद्ध क्षेत्र में झोंक दिया गया। ऐसा हाल 9 परिवारों का है। एक परिवार में तो बेटा बम गिरने से घायल हुआ तो पिता को हार्ट अटैक आ गया और उनकी मौत हो गई। दैनिक भास्कर की टीम उन परिवारों का दर्द समझने उनके घर तक पहुंची। ये जानना चाहा कि उनका जीवन, आर्थिक हालात कैसे हैं। सरकार से क्या मदद मिल रही। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… हमारा परिवार पागल हो जाएगा, बच्चे स्कूल नहीं जा रहे, बहू बेसुध है
हम जिला मुख्यालय से 10 किमी. दूर कंधरापुर थाना क्षेत्र के खोजापुर माधवपट्‌टी गांव पहुंचे। गांव वालों से जैसे रूस में गए युवकों के बारे में पूछा तो उन्होंने सीधे योगेंद्र के घर की ओर इशारा किया। हम योगेंद्र के घर पर पहुंचे, जहां एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ है। हर चेहरा उदास है, सबसे पहले हमने योगेंद्र की मां से बातचीत शुरू की, वे फफक कर बोल पड़ीं- मऊ के एजेंट विनोद ने मेरे बेटे को फंसा दिया। गार्ड की नौकरी के लिए लेकर गए और बार्डर पर भेज दिया। बेटे को बहकाकर विनोद 13 जनवरी 2024 को घर से लेकर गया। कुछ दिन तक वो दिल्ली में रहे। इसके बाद रूस लेकर चला गया। अप्रैल महीने तक हमारी बातचीत होती रही। हमें लगता था कि छह महीने में बेटा जब वापस लौटेगा तो हमारी गरीबी दूर हो जाएगी। अप्रैल के पहले सप्ताह में हमारे पास बेटे का फोन आया। उसने बताया कि हमें लड़ाई के लिए तैयार किया जा रहा है। ऐसा लगता है अब ये लोग हम सभी को युद्ध में भेज देंगे। इसके बाद हुआ भी ऐसा ही 25 अप्रैल को उसे लड़ाई में भेज दिया गया। 9 मई को मेरे बेटे को चोट लग गई, जिसके बाद 25 मई 2024 तक बात हुई। 25 मई से आज तक मेरे बेटे से कोई बात नहीं हुई। बेटे से बात न होने से हम लोग रोज घुट-घुटकर मर रहे हैं। हमने यहां के नेताओं, पुलिस और जिले के अफसरों सभी से गुहार लगाई। लेकिन कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा। हम तो खुद पागल हो गए हैं। हम कैसे जी रहे हैं यह तो मेरी आत्मा ही जानती है। हम गरीबी में जी लेंगे पर अपने बेटे के बिना नहीं जी पाएंगे। मां के रोते ही बहू, बच्चे और गांव के जो लोग वहां पर खड़े हो गए। सभी की आंखों में आंसू आ गए। मां ने खुद को संभालते हुए कहा- पत्नी और 4 बच्चों को कैसे संभालें, यही समझ नहीं आ रहा। योगेन्द्र यादव की पत्नी अनीता कहती हैं- रोज बच्चे अपने पापा के पास फोन लगाते हैं, पर बात नहीं हो पाती। हमें कोई रुपया पैसा नहीं चाहिए। मुझे मेरा सुहाग, मेरा पति चाहिए। मैं किससे अपना दर्द कहने जाऊं। योगेन्द्र यादव चार भाइयों में सबसे बड़े हैं। योगेन्द्र की 3 बेटियां और एक बेटा है। छोटे बच्चे पिता से बात करने की जिद करते हैं। हमारी एक नजर फोन पर ही लगी रहती है कि पता नहीं कब कॉल आ जाए। बेटे के गम में पिता की मौत हो गई, बहन बोली- धोखा हुआ
योगेंद्र यादव के गांव से निकलकर हम 15 किलोमीटर दूर गुलामी के पूरा गांव पहुंचे। यहां के अजहरूद्दीन को 27 जनवरी 2024 को एजेंट विनोद अपने साथ लेकर गया था। अजहरूद्दीन की मां नसरीन कहती हैं- विनोद मेरे घर आया और बोला, सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी है, दो लाख रुपया महीना मिलेगा। सैलरी अच्छी समझकर मेरा बेटा वहां चला गया। जब बेटा वहां गया तो 2 महीने तक तो हम सभी से बात होती रही। इसी बीच बेटे को ट्रेनिंग देकर लड़ाई के मैदान में भेज दिया गया। फिर एक दिन सूचना मिली कि युद्ध में बम गिरने से बेटा घायल हो गया, यह बात जब अजहरूद्दीन के अब्बू मैनुद्दीन को पता चली तो उन्हें एक अप्रैल को हार्ट अटैक आ गया। आठ अप्रैल को उनकी मौत हो गई। पिता की मौत के बाद हमने एजेंट विनोद से अपने बेटे से बात कराने की जिद की। मगर उसने बात नहीं कराई। हमारे पास तो इलाज के भी पैसे नहीं थे। गहने बेचकर इलाज कराया। फिर भी अजहरूद्दीन के अब्बू नहीं बचे। हमने एंबेसी में फोन किया, बहुत मिन्नतें कीं, इस दौरान खूब रोई। मेरी बेटे से अंतिम बात 27 अप्रैल को हुई थी। तब उसने कहा था कि अम्मी छह महीने तक यहां काम करूंगा और लौट आऊंगा। लेकिन आजतक उसका पता नहीं चला है। यह कहते हुए अजहरूद्दीन की मां रोने लगती हैं। मां को संभालते हुए बहन जेबा खान बोलीं- हमारे तीन भाईयों में यही एक भाई कमाने वाला था। हम लोग अपने भाई को लेकर बहुत दर्द से गुजर रहे हैं। जिस एग्रीमेंट पर साइन कराया गया, वो रूसी भाषा में था। मेरे भाई के साथ धोखा हुआ है। हमारी सरकार से मांग है कि सरकार हमारी मदद करे। अब पढ़िए 4 उन परिवारों का दर्द, जो बेटों की आने की राह देख रहे हुमेश्वर प्रसाद के पिता बोले- रोते-रोते सो जाती है पत्नी
यहां से 15 किमी सफर तय कर मुबारकपुर थाना क्षेत्र के सठियांव गांव पहुंचे। लोगों से पूछते हुए इंदु प्रकाश के घर पहुंचे। इंदु प्रकाश के बेटे हुमेश्वर प्रसाद भी रूस गए हैं। उन्होंने कहा- हम लोगों का बहुत बुरा हाल है। हम खाना नहीं खा पा रहे हैं। बहू रोते-रोते सो जाती है। कई बार तो वह रात में उठकर जोर-जोर से रोने लगती है। हम सभी बेटे के सुरक्षित लौटने की आस लगाए हुए हैं। सरकार हमारी मदद करे और मेरे बेटे को लाने में मदद करे। पिता को खो दिया, मामा अभी भी फंसे
आजमगढ़ जिले के बनकटा के रहने वाले कन्हैया यादव (44) की रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के दौरान गोली लगने से मौत हो गई है। कन्हैया की डेडबॉडी 23 दिसंबर को गांव पहुंची। कन्हैया यादव कुक वीजा पर 16 जनवरी 2024 को रूस गए थे। जहां से ट्रेनिंग देकर उन्हें यूक्रेन के खिलाफ लड़ाई के मैदान में भेज दिया गया। कन्हैया के बेटे अजय ने बताया कि एजेंट सिक्योरिटी गार्ड का काम बताकर लेकर गया था। वहां रूसी सेना में भर्ती करा दिया गया। मेरे पिता को 7 मई को गोली लगी। बात हुई तो बताए कि इंफेक्शन से पिता की मौत हो चुकी है। अभी हमारे मामा विनोद यादव भी रूस में फंसे हैं। उनका पता नहीं है। रसोइया, कारपेंटर और सिक्योरिटी गार्ड की मिली थी नौकरी
मऊ-आजमगढ़ जिले का एजेंट विनोद पूर्वांचल के 14 लोगों को रूस ले गया था। वहां पर 2 लाख रुपए महीने की सैलरी मिलने की बात कही गई। उसने सभी के पासपोर्ट बनवाए। फिर सभी का रूस में कारपेंटर, कुक और सिक्योरिटी गार्ड के काम के लिए वीजा बनवाया। फिर सभी को रूस ले गया। अप्रैल- मई तक सभी की अपने घर वालों से बात होती रही। उसके बाद नहीं। विनोद की भी आखिरी बार अप्रैल में पिता से बात हुई थी। उसके बाद से उससे संपर्क नहीं हो पा रहा। अब तक आजमगढ़ के कन्हैया यादव और मऊ के श्यामसुंदर और सुनील यादव की रूस-यूक्रेन जंग में मौत हो चुकी है। आजमगढ़ के राकेश कुमार और मऊ के बृजेश यादव घायल होने के बाद घर लौट आए हैं। वहीं विनोद यादव, जोगिंदर यादव, अरविंद यादव, रामचंद्रा, अजहरुद्दीन खान, हुमेश्वर प्रसाद, दीपक, धीरेंद्र कुमार का अब तक कुछ पता नहीं चल पाया है। घर वालों को उनके आने का इंतजार है। 15 दिन की ट्रेनिंग देकर युद्ध में उतार दिया, वहां बम फट रहे
रूस से लौटे बृजेश ने बताया कि वह मऊ के मधुबन तहसील के धर्मपुर विशुनपुर का रहने वाला है। रूस जाना जितना आसान था, वहां से लौटना उससे कहीं ज्यादा कठिन। फरवरी, 2024 में मऊ और आजमगढ़ के 14 युवकों को एजेंट रूस लेकर गया था। हमें हर महीने 2 लाख सैलरी दिलाने का वादा किया गया था। लेकिन, वहां पहुंचते ही सभी का सपना टूट गया। हम लोगों को महज 15 दिन का सैन्य प्रशिक्षण देकर यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में उतार दिया गया। हमें चार चार लोगों के ग्रुप में करके युद्ध क्षेत्र में उतार दिया गया। इसके बाद कौन कहां है किसी को पता नहीं चल पा रहा है। मेरे ग्रुप का एक सदस्य बम के हमले में मर गया था। मेरे बाएं पैर में गोली लगी थी। इसके बाद वहां मेरा इलाज हुआ। एक स्थानीय अधिकारी को अपनी आपबीती बताई। फिर दूतावास से संपर्क हो सका। दूतावास के दबाव के चलते मुझे स्वदेश भेज दिया गया। अब पूर्वांचल के लोगों के लौटने की उम्मीद जगी
भारतीय विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को रूस के सामने सख्त रुख अख्तियार किया है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि रूस अपनी सेना में सेवा दे रहे सभी भारतीय नागरिकों को तुरंत रिहा करे। यह मांग उस समय उठाई गई, जब यूक्रेन के साथ संघर्ष में केरल के युवक की मौत हो गई। इस युद्ध में अब तक 10 भारतीयों की जान जा चुकी है। इनमें यूपी के 3 युवक शामिल हैं। ———————————— ये भी पढ़ें: आगरा में बेकरी का ओवन फटा, 14 कर्मचारी झुलसे:चमड़ी जल गई, सड़क पर तड़पते रहे….मदद के लिए चिल्लाते रहे आगरा में बेकरी का ओवन फटने से 14 से अधिक कर्मचारी गंभीर रूप से झुलस गए। इस दौरान अफरातफरी मच गई। झुलसे कर्मचारी रोड पर करीब 1 घंटे तक तड़पते और मदद की गुहार लगाते रहे। सूचना पर फायर ब्रिगेड की टीम और पुलिस पहुंची। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया। घटना दोपहर 1 बजे की हरीपर्वत के ट्रांसपोर्ट नगर में मेडले बेकर्स की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट की है। (पढ़ें पूरी खबर)   उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर