<p style=”text-align: justify;”><strong>Varanasi News: </strong>3 मई कों देशभर में गंगा सप्तमी का पर्व मनाया गया. मान्यता है कि इस दिन भागीरथ की कठिन तपस्या के बाद मां गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था. वहीं काशी की बात कर ली जाए तो प्राचीन सनातन पर्व – परंपरा के अलावा इस शहर की पहचान गंगा नदी से भी है. गंगा नदी वाराणसी शहर से होकर गुजरती है लेकिन वर्तमान समय में गंगा की स्वच्छता के साथ-साथ घटता जलस्तर भी एक बड़े संकट की ओर इशारा कर रहा है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मार्च महीने में ही दिखने लगे थे रेत के टीले</strong><br />दुनिया के सबसे प्राचीन शहर काशी की पहचान गंगा नदी से है. यहां अनेक ऐसे पर्व मनाए जाते हैं जो सीधे मां गंगा के स्नान ध्यान से जुड़े हुए हैं. वैसे हर बार गर्मी के सीजन में वाराणसी के गंगा नदी के जलस्तर में कमी के साथ-साथ धारा में रेत के टीले दिखाई देते हैं. लेकिन इस बार तो यह स्थिति मार्च महीने में ही देखी गई जिसने लोगों को हैरान कर दिया. गंगा सप्तमी के दिन जब लोग आस्था की डुबकी लगाने मां गंगा के तट पर पहुंचे तो साफ तौर पर इस नदी की स्वच्छता और घटता जलस्तर लोगों को अपने परंपरा के साथ-साथ भविष्य की अनेक परेशानियों को लेकर चिंता में डालने वाला रहा.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>वैज्ञानिकों ने पहले भी जताई है चिंता</strong><br /> गंगा नदी पर लंबे समय से शोध कर रहे प्रो. बी. डी.त्रिपाठी का स्पष्ट कहना है की गंगा पर न सिर्फ गंभीरता से चिंतन करने की आवश्यकता है बल्कि तत्काल इस पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने चाहिए. इस नदी से केवल हमारे सांस्कृतिक, आध्यात्मिक परंपरा ही नहीं जुड़े बल्कि हमारा सामाजिक और भविष्य इस पर बहुत हद तक निर्भर है. गंगा के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा उत्पन्न करना, बांध से सही समय पर पानी छोड़ने, स्वच्छता अभियान का सही मैनेजमेंट, सहित अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं को सही रूप देना गंगा को संरक्षित करने में मददगार हो सकता है.</p> <p style=”text-align: justify;”><strong>Varanasi News: </strong>3 मई कों देशभर में गंगा सप्तमी का पर्व मनाया गया. मान्यता है कि इस दिन भागीरथ की कठिन तपस्या के बाद मां गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था. वहीं काशी की बात कर ली जाए तो प्राचीन सनातन पर्व – परंपरा के अलावा इस शहर की पहचान गंगा नदी से भी है. गंगा नदी वाराणसी शहर से होकर गुजरती है लेकिन वर्तमान समय में गंगा की स्वच्छता के साथ-साथ घटता जलस्तर भी एक बड़े संकट की ओर इशारा कर रहा है.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>मार्च महीने में ही दिखने लगे थे रेत के टीले</strong><br />दुनिया के सबसे प्राचीन शहर काशी की पहचान गंगा नदी से है. यहां अनेक ऐसे पर्व मनाए जाते हैं जो सीधे मां गंगा के स्नान ध्यान से जुड़े हुए हैं. वैसे हर बार गर्मी के सीजन में वाराणसी के गंगा नदी के जलस्तर में कमी के साथ-साथ धारा में रेत के टीले दिखाई देते हैं. लेकिन इस बार तो यह स्थिति मार्च महीने में ही देखी गई जिसने लोगों को हैरान कर दिया. गंगा सप्तमी के दिन जब लोग आस्था की डुबकी लगाने मां गंगा के तट पर पहुंचे तो साफ तौर पर इस नदी की स्वच्छता और घटता जलस्तर लोगों को अपने परंपरा के साथ-साथ भविष्य की अनेक परेशानियों को लेकर चिंता में डालने वाला रहा.</p>
<p style=”text-align: justify;”><strong>वैज्ञानिकों ने पहले भी जताई है चिंता</strong><br /> गंगा नदी पर लंबे समय से शोध कर रहे प्रो. बी. डी.त्रिपाठी का स्पष्ट कहना है की गंगा पर न सिर्फ गंभीरता से चिंतन करने की आवश्यकता है बल्कि तत्काल इस पर महत्वपूर्ण निर्णय लेने चाहिए. इस नदी से केवल हमारे सांस्कृतिक, आध्यात्मिक परंपरा ही नहीं जुड़े बल्कि हमारा सामाजिक और भविष्य इस पर बहुत हद तक निर्भर है. गंगा के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा उत्पन्न करना, बांध से सही समय पर पानी छोड़ने, स्वच्छता अभियान का सही मैनेजमेंट, सहित अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं को सही रूप देना गंगा को संरक्षित करने में मददगार हो सकता है.</p> उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड मुंबई को बम से उड़ाने की धमकी! जांच में कॉल निकला फर्जी, पुलिस ने कॉलर के खिलाफ क्यों नहीं की कार्रवाई?
वाराणसी में गंगा नदी में सफाई के बाद एक और बड़ी समस्या, वैज्ञानिक भी जता चुके हैं चिंता
